kabir ke dohe

 

 

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कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।

जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।

 

कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है। जिसका मन स्वंय के नियंत्रण में नहीं है उसका मन तो पक्षी के समान हो जाता है वह कहीं एक जगह टिक कर नहीं रहता है। वह जैसी संगति करता है वैसे ही परिणाम उसे भोगने पड़ते हैं। तात्पर्य है कि हमें हमारे मन को नियंत्रित रखना चाहिए और विषय विकारों से दूर रहना चाहिए।

 

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