Govindashtakam-Lord Krishna Stuti(Hindi)-गोविन्दाष्टकं

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Nov 3, 2020 #‘गो’ का अर्थ गाय भी है। चूंकि कृष्ण एक ग्वाले थे इसलिए कृष्ण को गोविंदा के रूप में जाना जाता है।, #benefits of govindashtakam, #devotional, #govind, #govind ashtakam, #Govind Ashtakam Hindi Lyrics, #Govind Ashtakam with hindi meaning, #govindam parmanandam, #govindashtakam, #govindashtakam composed by shri shankaracharya, #govindashtakam hindi lyrics, #govindashtakam in hindi, #govindashtakam lyrics, #govindashtakam meaning, #Govindashtakam with Hindi Meaning, #Govindashtakam-Lord Krishna Stuti, #krishna, #llord krishna, #lord govind, #Lord Krishna bhajan, #Lord Krishna Mantra, #lord krishna stuti, #lord krsihna prayer, #satyam gyan manantamnitya parakasham paramakasham, #Shri Govindashtakam, #Spiritual Talks, #spirituality, #कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा आत्माओं या जीव के मोक्ष प्राप्त करने का कोई और उपाय नहीं है।, #गोवर्धन पूजा से जुड़ी कथा, #गोविन्द अष्टकम, #गोविन्दं परमानन्दम्, #गोविन्दाष्टकं का फल, #गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति, #गोविन्दाष्टकम, #प्रभु नाम की महिमा, #भगवान श्री कृष्ण को गोविन्द नाम अत्यंत प्रिय है ।, #शङ्कराचार्य कृत  श्री गोविन्दाष्टकं, #श्री गोविन्दाष्टकम, #श्री गोविन्दाष्टकम हिंदी अर्थ सहित, #सत्यं ज्ञान मनन्तं नित्य मनाकाशं परमाकाशम् ।, #हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं| कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||
Govindashtakam-Lord Krishna Stuti

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Govindashtakam-Lord Krishna Stuti

 

 

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti

गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति – श्री शंकराचार्य द्वारा रचित 

 

 

सत्यं ज्ञान मनन्तं नित्य मनाकाशं परमाकाशम्
गोष्ठ प्राङ्गण रिङ्खण लोल मना यासं परमायासम् ।।
माया कल्पित नानाकार मनाकारं भुवनाकारम्
क्ष्माया नाथ मनाथं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् 1

 

उन गोविंद को नमन जो असीम परम आनंद हैं , सत्य हैं , ज्ञान से युक्त हैं , अनन्त हैं , सनातन हैं , पूर्ण ब्रह्म हैं । जो सभी प्रकार की उपाधियों से रहित हैं , स्वतन्त्र हैं और परम सत्य है । जो गौशाला में घुटनों से चलने में अति प्रसन्न और उत्साहित थे । जो सभी प्रकार की  कठिनाइयों से मुक्त हैं और फिर भी स्वयं को कठिनाई में होने का आभास कराते हैं , जो माया का आश्रय है अर्थात माया जिनकी शरण में है , जो सभी कारणों के कारण हैं , जो माया के भ्रम के कारण अनेक रूपों में प्रतीत होते हैं , जो अपने आनंद के लिए एक से अनेक होते हैं , जो पूरे ब्रह्माण्ड के रूप में स्वयं को विस्तृत करते हैं , जो पृथ्वी और लक्ष्मी जी के स्वामी हैं और जिनको नियंत्रित करने के लिए कोई स्वामी नहीं है अर्थात वे ही सम्पूर्ण जगत के अधिपति और स्वामी हैं । वे किसी के नियंत्रण में नहीं हैं अर्थात स्वतन्त्र हैं , मुक्त हैं , सर्वेसर्वा हैं।।1।।

 

मृत्स्नामत्सीहेति यशोदा ताडन शैशव सन्त्रासम् ।
व्यादित वक्त्रा लोकित लोका लोक चतुर्दश लोकालिम् ।।
लोक त्रय पुर मूलस्तम्भं लोका लोक मनालोकम् ।
लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 2 ॥

 

उन गोविंद को नमन, जो असीम चिर आनंद हैं , जो मैया यशोदा द्वारा डांट और मार खाने पर एक बालक के समान भयभीत हो जाते हैं और मैया के ये पूछने पर कि ” तूने मिट्टी खाई ?” उन्हें अपने खुले मुख में चौदह ब्रह्मांडो का दृश्य और अदृश्य भाग दिखाया, जो ( स्वर्ग , पृथ्वी , पाताल) तीनों लोकों के आधार हैं, त्रिभुवन पति हैं , जो ब्रह्मांडो के रूप में है , दृश्यमान और अदृश्य हैं , जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के रचयिता और नियंता हैं , जिन्हें देखा नहीं जा सकता है, जो संसार के स्वामी हैं और जो सर्वोच्च प्रभु हैं।।2।।

 

त्रैविष्ट परि पुवी रघ्नं क्षिति भारघ्नं भव रोगघ्नम् ।
कैवल्यं नवनीता हार मनाहारं भुवना हारम् ।।
वैमल्य स्फुट चेतो वृत्ति विशेषा भास मना भासम् ।
शैवं केवल शान्तं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 3 ॥

 

उन गोविंद को नमन, जो असीम सर्वोच्च आनंद हैं , जिन्होंने देवों के शक्तिशाली शत्रुओं का संहार कर पृथ्वी का भार कम किया , जो अपने भक्तों के जन्म-मृत्यु चक्र रुपी रोग को सदा के लिए दूर कर देते हैं , जो अनंत सुख के कारण हैं , जिनके पास खाने के लिए अपार मक्खन था, हालांकि उन्हें भोजन की कोई आवश्यकता नहीं थी, जो प्रलय के दौरान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को निगल लेते हैं , जो शुद्ध और शान्त मन के पटल पर चमकते हैं अर्थात अपना स्वरूप प्रकट करते हैं , जो किसी भी अन्य वस्तु द्वारा प्रकट नहीं किये जा सकते हैं  अर्थात भक्ति, प्रेम , श्रद्धा और विश्वास युक्त शुद्ध और शांत चित्त ही उनका दर्शन कर सकता है , जो शिव को प्रेम करते हैं , जो सबका कल्याण करते हैं , जो कल्याणकारी हैं , जो सम्पूर्ण रूप से शुभ और मंगलमय हैं और केवल शांति है , शांति है और बस शांति हैं।।3।।

 

गोपालं प्रभु लीला विग्रह गोपालं कुल गोपालम् ।
गोपी खेलन गोवर्धन धृति लीला लालित गोपालम् ।।
गोभिर्निगदित गोविन्द स्फुट नामानं बहु नामानम् ।
गोपी गोचर दूरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 4 ॥

 

उन गोविंद को नमन, जो परम आनंद हैं , जो संसार के रक्षक हैं और जिन्होंने अपनी लीला और माया द्वारा एक चरवाहे के रूप में अवतार ग्रहण किया , जो अद्भुत लीलाधारी हैं , जो यादव वंश और गौओं के रक्षक हैं , जिन्होंने गोप और गोपियों के हित के लिए गोवर्धन पर्वत को जहाँ गोप और गोपियाँ खेलते थे , अपनी लीला द्वारा उठा लिया और गोप – गोपियों को प्रसन्न किया। जिनका नाम “गोविंद” है अर्थात गौ का रक्षक या वेदों-शास्त्रों के ज्ञाता। जिनके अनगिनत नाम हैं और जो अज्ञानियों की पहुंच से परे हैं, बाहर हैं अर्थात अज्ञानी जन उन्हें और उनकी लीलाएं न समझ पते हैं न जान पाते हैं।।4।।

 

गोपी मण्डल गोष्ठी भेदं भेदा वस्थम भेदाभम् ।
शश्वद्गोखुर निर्धूतोद्गत धूली धूसर सौभाग्यम् ।।
श्रद्धा भक्ति गृहीता नन्दम चिन्त्यं चिन्तित सद्भावम् ।
चिन्ता मणि महिमानं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 5 ॥

 

उन गोविंद को नमन, जो असीम आनंद हैं , जो गोपियों के विभिन्न समूहों में से प्रत्येक में अलग – अलग मौजूद हैं। जो अलग-अलग रूपों में प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तव में एक ही हैं। जिनका सुंदर रूप गायों के खुरों द्वारा उठी हुई धुल से धूसरित हो उठता था या ढक जाता था । जिनका आनंदमय स्वरूप श्रद्धा और भक्ति के द्वारा चिंतन में आता है और अनुभव किया जाता है । जो सबकी कल्पनाओं से परे हैं , जिनके अस्तित्व का ज्ञान ज्ञानी जनों को है और जो इच्छा पूर्ति मणि चिंतामणि के समान महान हैं अर्थात भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करने वाले हैं।।5।।

 

स्नान व्याकुल योषि द्वस्त्र मुपा दायाग मुपारूढम् ।
व्यादित्सन्तीरथ दिग्वस्त्रा दातु मुपा कर्षन्तं ताः।।
निर्धूत द्वय शोक विमोहं बुद्धं बुद्धे रन्तस्थम् ।
सत्ता मात्र शरीरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 6 ॥

 

उन गोविंद को नमन, जो सर्वोच्च आनंद हैं , जो उन स्त्रियों के वस्त्र लेकर पेड़ पर चढ़ गए , जो अपने स्नान में व्यस्त थीं, जिन्होंने उन स्त्रियों को जो अपने वस्त्र वापस चाहती थी पेड़ के पास आकर स्वयं वस्त्र ले जाने को कहा। जो द्वंद्व, शोक, भ्रम से मुक्त है, जो बुद्धिमान है, जो ज्ञानियों के चित्त में निवास करते हैं और जो शुद्ध-अस्तित्व हैं।।6।।

 

कान्तं कारण कारण मादि मनादिं काल धना भासम् ।
कालिन्दी गत कालिय शिरसि सुनृत्यन्तम् मुहु रत्यन्तम् ।।
कालं काल कलातीतं कलिता शेषं कलि दोषघ्नम् ।
काल त्रय गति हेतुं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 7 ॥

 

उन गोविंद को नमन! जो असीम आनंद हैं , जो अत्यंत सुंदर हैं , जो परम कारण हैं , जो प्रत्येक वस्तु के स्रोत हैं , जिनका न कोई आदि है न कोई अंत , जिसका रंग काले मेघ के समान श्याम है, जिन्होंने यमुना नदी में निवास करने वाले कालिया नाग के फन पर अत्यधिक नृत्य किया , जो काल हैं अर्थात समय के रूप में प्रकट होते हैं , फिर भी जो काल की गति से परे हैं , जो सर्वज्ञ , जो कलि अर्थात कलियुग  के बुरे प्रभावों और बुराइओं को नष्ट करते हैं ,और जो समय के तीनों आयामों ( भूत , वर्तमान और भविष्य ) के नियंत्रक हैं अर्थात अतीत से ले कर भविष्य तक समय के बढ़ने का कारण है।।7।।

 

बृन्दावन भुवि बृन्दारक गण बृन्दा राधित वन्देहम् ।
कुन्दा भामल मन्द स्मेर सुधा नन्दं सुहृदा नन्दम् ।।
वन्द्या शेष महा मुनि मानस वन्द्या नन्द पद द्वन्द्वम् ।
वन्द्या शेष गुणाब्धिं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 8 ॥


उन गोविंद को नमन, जो असीम आनंद हैं , जो उस वृन्दावन की भूमि में निवास करते हैं जो पूज्य देवताओं द्वारा पूजित है, जिनकी अमृत तुल्य मुस्कान चमेली अर्थात कुंद के फूल के समान है, जो अनंत आनंद हैं , जिनके चरणारविन्दों की स्तुति और वंदना महान ऋषियों के शुद्ध अन्तः करण द्वारा की जाती है, जो सभी के आराध्य हैं, जो प्रशंसा योग्य गुणों के भण्डार हैं।।8।।

 

गोविन्दाष्टक मेतद धीते गोविन्दार्पित चेता यः ।
गोविन्दाच्युत माधव विष्णो गोकुल नायक कृष्णेति ।।
गोविन्दाङ्घ्रि सरोज ध्यान सुधा जल धौत समस्ताघः ।
गोविन्दं परमानन्दा मृत मन्तस्थं स तमभ्येति ॥9।।

 

जो भी गोविंद पर अपने मन को स्थित करके और गोविंद, अच्युत, माधव, विष्णु, गोकुल नायक और कृष्ण के नाम का उच्चारण करके गोविंद के इस अष्टक (गोविंदाष्टकम्) का पाठ करता है , वह गोविंद के चरण कमलों का ध्यान लगाकर अपने सभी पापों को चरण अमृत से धो देता है। वो अपने ह्रदय के भीतर निवास करने वाले अमृत रूपी परम आनंदमय गोविंद को प्राप्त करते हैं।

 

 

इति श्री शङ्कराचार्य विरचित श्रीगोविन्दाष्टकं समाप्तं

 

 

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti

गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति 

 

 

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti/ गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति 

 

 

गोविन्दाष्टकं का फल

 

जो कोई भी श्री गोविन्द अष्टकम के इस वैभवशाली श्लोक का पाठ करता है और गोविंद! अच्युत! माधव! विष्णु! गोकुलनायक ! कृष्ण ! जैसे विभिन्न वैभवशाली नामों का उच्चारण करता है वह भगवान गोविंद की भक्ति में अमृत की तरह डूब जाएंगे। उनके सभी पाप धुल जाएंगे और अंततः भगवान गोविंद के निवास को प्राप्त करेंगे। जो अनंत आनंद का परम निवास है। नियमित रूप से गोविन्द अष्टकम का जप भगवान गोविंद को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे शक्तिशाली तरीका है। गोविंदष्टकम् स्तोत्रम का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है और आपके जीवन से सभी बुराईयां दूर होती हैं और यह आपको स्वस्थ, धनवान, शांत और समृद्ध बनाता है। आपके बुरे कर्म अच्छे कर्म में परिवर्तित होने लगते हैं। आप अपने जीवन के उद्देश्य और आत्मा के उद्देश्य को खोजने के लिए सही रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू कर देते हैं।आपके सभी पाप धुल जाते हैं और आप जन्म मरण के इस भव सागर को पार कर भगवान गोविंदा के निवास धाम को प्राप्त करते हैं।

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti/ गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति 

 

 

गोविन्द नाम का रहस्य 

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti/ गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति 

 

भगवान के प्रत्येक नाम के पीछे एक रहस्य, एक कारण है, एक कथा जुड़ी है ।

 

  • गोविन्द का एक अर्थ है जो वेदों का रक्षक या वेदों का ज्ञाता है और जिस की वेदों द्वारा स्तुतियाँ गायी गई है और जिसे पवित्र लिपियों के ज्ञान से प्राप्त किया जा सकता है। यह नाम भगवान विष्णु के अवतार हयग्रीव के संदर्भ में भी हो सकता है, जिसमें उन्होंने वेदों दैत्य मधु और से कैटभ बचाया था ।
  • गो का अर्थ है वेद (ज्ञान) और विंद का अर्थ है प्राप्त करना । 
  • गो का अर्थ एक अर्थ वह भी है जो हमें सांसारिक अस्तित्व को जीवित रखने या उसे प्राप्त करने में हमारी सहायता करता है और सर्वोच्च प्राप्ति, अनुभूति या साधन तक पहुंचता है।
  • भगवान कृष्ण को गोपाल अर्थात गायों के रक्षक के रूप में भी जाना जाता है।
  • गोविंद और गोपाल नाम भगवान विष्णु के नाम हैं जो लोकप्रिय रूप से कृष्ण रूप को संबोधित करने के लिए प्रसिद्ध हैं, जिसमें वह एक ग्वाले के रूप में अपने युवा कार्यकलाप या लीला प्रस्तुत करते हैं। ये नाम विष्णु सहस्रनाम में भगवान विष्णु के 187 वें और 539 वें नाम के रूप में दिखाई देते हैं।
  • ऋषि जन कृष्ण को “गोविंद” कहते हैं, क्योंकि वे उन्हें शक्ति प्रदान करते हुए, सारे संसार में व्याप्त हैं। इसका अर्थ है “वह जिसे एकमात्र वैदिक शब्दों द्वारा जाना जा सकता है”।
  • भगवान की उनके कई नामों के माध्यम से प्रशंसा की जाती है। जिनमें गोविंद के नाम का विशेष स्थान है ।
  • गो’ का अर्थ पृथ्वी भी है। श्वेत वराह के रूप में उन्होंने असुर हिरण्याक्ष के चंगुल से भूमा देवी अर्थात पृथ्वी को बचाया अतः उन्हें गोविंद के रूप में संबोधित किया जाता है ।
  • भगवान ने वराह अवतार में पृथ्वी को तीन पगों में मापा था । इसलिए उन्हें गोविंद के नाम से जाना जाता है।
  • ‘गो’ का अर्थ गाय भी है। चूंकि कृष्ण एक ग्वाले थे इसलिए कृष्ण को गोविंदा के रूप में जाना जाता है।
  • वह गोविंद है क्योंकि वह हमें बोलने की शक्ति देता है।
  • गोविंद वह नाम है जिसे हमें कुछ भी खाने से पहले बोलना चाहिए।
  • जब दुशासन द्वारा द्रौपदी का अपमान किया जा रहा था तो वह रोते हुए कहती है “गोविंद, पुण्डरीकाक्ष रक्ष मम शरणागतम्।” इस प्रकार जो भी गोविन्द नाम का उच्चारण आर्त भाव से करता है वह सभी प्रकार के संकटों से बच जाता है।
  • संस्कृत में ‘गो’ शब्द के कई पर्यायवाची हैं।”गो – गायें, गो – पृथ्वी, गो – पर्वत, गो – किरण, गो- शब्द, गो – उपनिषद, गो – इंद्रियाँ”

 

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti/ गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति 

 

 

भगवान श्रीकृष्ण गोविंदा या गोविन्द के नाम से भी बहुत लोकप्रिय है। भगवान श्री कृष्ण को गोविन्द नाम अत्यंत प्रिय है ।

गोविन्द का अर्थ है गायों के ईश्वर, गायों के रक्षक, ग्वाला। जिसने गायों और चरवाहों को बचाने के लिए अपनी छोटी उंगली से गोवर्धन गिरि नामक पहाड़ को उठा लिया , वह पृथ्वी का भी रक्षक है। छोटे कन्हैया ने भारी बारिश, बाढ़, ओलावृष्टि, गरज और चक्रवात से लोगों और गोकुल की सभी गायों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। उन्होंने इसे सात दिनों और सात रातों के लिए उठा लिया। वह पांच साल के थे, जब उन्होंने यह चमत्कार किया था। इसी वजह से उन्हें गोविंद कहा जाता है।

 

Govindashtakam-Lord Krishna Stuti/ गोविन्दाष्टकं-भगवान कृष्ण की स्तुति 

 

गोवर्धन पूजा से जुड़ी कथा 

गोविन्द नाम से जुड़ी कथा 

इंद्र ने कृष्ण का नाम गोविंद रखा क्योंकि वे सभी गायों के अग्रणी हैं।

 

व्रजवासियों अर्थात गोकुल में लोगों ने, नंदगोप के नेतृत्व में इंद्र यज्ञ आयोजित करने का निश्चय किया, जैसा कि हर साल किया जाता था। तभी कृष्ण ने एक लीला दिखाने का निश्चय किया और अभिमानी इंद्र को सबक सिखाने का फैसला किया। उन्होंने व्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि बारिश होने के लिए पेड़, पहाड़ और यह प्रकृति जिम्मेदार है। बारिश होने का श्रेय इंद्र को नहीं जाता। तब गोकुलवासियो ने उनके शब्दों का पालन करते हुए इंद्र यज्ञ करने की योजना को छोड़ दिया और इसके बजाय गोवर्धन पूजा की।

 

ऐसा देखकर इंद्र हताशा से भर गए। इंद्र क्रोधित होने लगे। अन्य सभी देवता कृष्ण की इस लीला का आनंद ले रहे थे क्योंकि वे कृष्ण के बारे में जानते थे, कि वे परम पूर्ण अवतार के रूप में जन्म लेने वाले सर्वोच्च भगवान थे। वरुण, मलय, मारुत,  जैसे देवताओं के साथ इंद्र आए। उन्होंने गोकुल में सात दिनों और रातों तक लगातार बारिश कर के चरम सीमा तक अपना क्रोध दिखाया। जब गोकुल के लोग यह देखकर घबरा गए, कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली की नोक पर पहाड़ उठाना शुरू कर दिया। उन्होंने सभी लोगों को अपनी गायों, जहाजों, खाद्य पदार्थों आदि के साथ पहाड़ के नीचे आने का आह्वान किया। व्रजवासियों ने उनके शब्दों का पालन किया।

 

इंद्र ने यह सोचकर लगातार बारिश की कि कृष्ण थक गए होंगे। सभी बादल और गर्जन कमजोर हो गए और इंद्र शर्मिंदा होकर वहां से चले गए। व्रज के लोग आश्चर्यचकित हो गए और सोचा कि गोवर्धन गिरि की शक्ति और वरदान के कारण यह सब हुआ। बाद में इंद्र गोकुल में ऐरावत (स्वर्ग के हाथी), गंगा और सुरभि (स्वर्ग में गाय) के साथ आए। ऐरावत ने गंगा जल से और सुरभि ने अपने दूध से कृष्ण का अभिषेक किया। इंद्र ने उसके सामने झुककर पट्टाभिषेक पूर्ण किया।

 

इंद्र ने कृष्ण के लिए गोविंद पट्टाभिषेकम किया, और फिर कहा, “मैं इंद्र हूं जो आकाशीय तारों का स्वामी है। आप गायों के ईश हैं, और इसलिए आप गोविंद हैं। ” इंद्र ने कृष्ण का नाम गोविंद रखा क्योंकि वे सभी गायों के अग्रणी हैं। इंद्र के इस कृत्य से नारद और अन्य महर्षि अति प्रसन्न हुए।

 

 

प्रभु नाम की महिमा:

 

कृष्ण को यह गोविंद नाम बहुत पसंद है। हम सभी स्थितियों में इस नाम का जाप कर सकते हैं। भगवान का कोई भी नाम लेने का कोई सिद्धांत नहीं है। कोई भी व्यक्ति कहीं भी किसी भी समय भगवान के नाम का पाठ करने के योग्य है। राम, कृष्ण, हरि, नारायण, गोविंद, गोपाल, राधे, आदि किसी भी नाम का जप करना चाहिए, जो भी नाम आपको आकर्षित करता है। पहले माला या जाप माला पर जाप करने का अभ्यास करें। फिर धीरे-धीरे जप की संख्या बढ़ाते जाएं। एक ऐसा समय आता है जब आपको उनके नाम का जाप करने के लिए माला की जरूरत नहीं होती। आपका मन स्वतः ही इसका जप करने लगता है और आपके हृदय में निरंतर जप होता रहता है। । हमें उस अवस्था तक पहुँचना है जहाँ किसी को ईश्वर को याद करने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वह हमेशा आपके दिल और दिमाग में रहता है। यदि हम वास्तव में जन्म और मृत्यु के इस चक्र से मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो नाम जप से सरल कोई उपाय नहीं है । इस कलियुग में जहां अपने मन को ईश्वर पर केंद्रित करना बहुत कठिन है नाम जप अत्यंत सुगम मार्ग है । नाम जप या नाम संकीर्तन वेदों, पुराणों, उपनिषदों में सुझाया गया एकमात्र उपाय है जो इस युग की आत्माओं की मुक्ति के लिए मोक्ष प्राप्ति का साधन है।

 

कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा आत्माओं या जीव के मोक्ष प्राप्त करने का कोई और उपाय नहीं है।

 

 

हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं|

कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा||

 

 

 

 

Govindashtakam-Prayer to Lord Krishna(English)

 

 

Govindashtakam with Hindi Meaning

 

 

Govindashtakam with English Meaning

 

 

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