Papmochani Ekadashi

Papmochani Ekadashi Vrat Katha | Papmochani Ekadashi | Papmochni Ekadashi | Papmochini Ekadashi | Paapmochni Ekadashi | Paapmochini Ekadashi | Paap Mochini Ekadashi | Paap Mochni Ekadashi | Paapmochani Ekadashi | Papamochani Ekadashi | पापमोचनी व्रत कथा | पापमोचनी एकादशी | पाप मोचिनी एकादशी | पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्त्व | पापमोचनी एकादशी व्रत का फल | पापमोचनी एकादशी व्रत की पूजा विधि | पापमोचिनी एकादशी | पाप मोचनी एकादशी | पाप मोचिनी एकादशी | पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से भयंकर से भयंकर पाप होते हैं नष्ट |एकादशी | एकादशी व्रत कथा | एकादशी व्रत का फल | एकादशी व्रत का महत्त्व | एकादशी व्रत के लाभ | एकादशी का व्रत क्यों रखें | एकादशी व्रत पूजन विधि | एकादशी के व्रत में न हो जाए कोई भूल | एकादशी के दिन व्रत के भोजन में शामिल करें ये चीजें|एकादशी का व्रत क्यों रखा जाता है? एकादशी व्रत के पीछे वैज्ञानिक कारण | एकादशी के दिन क्या खाएं क्या न खाएं |एकादशी व्रत कैसे प्रारंभ हुआ?|एकादशी व्रत-उपवास के नियम | एकादशी व्रत के दिन क्या करें क्या न करें | 

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

 

 

Papmochani Ekadashi Vrat Katha

 

 

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी पड़ती है उसे पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है । पुराणों के अनुसार पापमोचनी एकादशी का व्रत अत्यंत शुभ फलदायी बताया गया है । जैसा कि नाम से स्‍पष्‍ट है, पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पुराने पाप धुल जाते हैं और मन का मैल साफ हो जाता है । शास्त्रों के अनुसार पापमोचनी एकादशी के व्रत से ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर किया जा सकता है और इसके साथ ही मन के बुरे विचार भी नष्ट हो जाते हैं । पापमोचनी एकादशी का व्रत करने वाले जातकों का चन्द्रमा भी शुभ फल देता है । पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातकों को संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं । इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्ण चोरी, मदिरापान, अहिंसा और भ्रूणघात समेत अनेक घोर पापों के दोष से मुक्ति मिलती है। पाप मोचिनी एकादशी व्रत को करने से पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुना पुण्य भी मिलता है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से अनजाने में किया गया भयंकर से भयंकर पाप भी नष्ट हो जाता है। पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने वाला मनुष्य पृथ्वीलोक में रहने पर मनुष्य संपूर्ण सुखों का भोग करता है और मृत्य के पश्चात बैकुंठ लोक का वासी बनता है।

 

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा 

युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार फाल्गुन ) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की तो वे बोले : ‘राजेन्द्र ! मैं तुम्हें इस विषय में एक पापनाशक उपाख्यान सुनाऊँगा, जिसे चक्रवर्ती नरेश मान्धाता के पूछने पर महर्षि लोमश ने कहा था ।’

मान्धाता ने पूछा: भगवन् ! मैं लोगों के हित की इच्छा से यह सुनना चाहता हूँ कि चैत्र मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है, उसकी क्या विधि है तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया ये सब बातें मुझे बताइये ।

लोमशजी ने कहा: नृपश्रेष्ठ ! पूर्वकाल की बात है । अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में, जहाँ गन्धर्वों की कन्याएँ अपने किंकरो के साथ बाजे बजाती हुई विहार करती हैं, मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए गयी । वे महर्षि चैत्ररथ वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे । मंजुघोषा मुनि के भय से आश्रम से एक कोस दूर ही ठहर गयी और सुन्दर ढंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी । मुनिश्रेष्ठ मेघावी घूमते हुए उधर जा निकले और उस सुन्दर अप्सरा को इस प्रकार गान करते देख बरबस ही मोह के वशीभूत हो गये । मुनि की ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आयी और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी । मेघावी भी उसके साथ रमण करने लगे । रात और दिन का भी उन्हें भान न रहा । इस प्रकार उन्हें बहुत दिन व्यतीत हो गये । मंजुघोषा देवलोक में जाने को तैयार हुई । जाते समय उसने मुनिश्रेष्ठ मेघावी से कहा: ‘ब्रह्मन् ! अब मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये ।’

मेघावी बोले: देवी ! जब तक सवेरे की संध्या न हो जाय तब तक मेरे ही पास ठहरो ।

अप्सरा ने कहा: विप्रवर ! अब तक न जाने कितनी ही संध्याँए चली गयीं ! मुझ पर कृपा करके बीते हुए समय का विचार तो कीजिये !

लोमशजी ने कहा: राजन् ! अप्सरा की बात सुनकर मेघावी चकित हो उठे । उस समय उन्होंने बीते हुए समय का हिसाब लगाया तो मालूम हुआ कि उसके साथ रहते हुए उन्हें सत्तावन वर्ष हो गये । उसे अपनी तपस्या का विनाश करनेवाली जानकर मुनि को उस पर बड़ा क्रोध आया । उन्होंने शाप देते हुए कहा: ‘पापिनी ! तू पिशाची हो जा ।’ मुनि के शाप से दग्ध होकर वह विनय से नतमस्तक हो बोली : ‘विप्रवर ! मेरे शाप का उद्धार कीजिये । सात वाक्य बोलने या सात पद साथ साथ चलनेमात्र से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है । ब्रह्मन् ! मैं तो आपके साथ अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं, अत: स्वामिन् ! मुझ पर कृपा कीजिये ।’

मुनि बोले: भद्रे ! क्या करुँ ? तुमने मेरी बहुत बड़ी तपस्या नष्ट कर डाली है । फिर भी सुनो । चैत्र कृष्णपक्ष में जो एकादशी आती है उसका नाम है ‘पापमोचनी ।’ वह शाप से उद्धार करनेवाली तथा सब पापों का क्षय करनेवाली है । सुन्दरी ! उसीका व्रत करने पर तुम्हारी पिशाचता दूर होगी ।

ऐसा कहकर मेघावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गये । उन्हें आया देख च्यवन ने पूछा : ‘बेटा ! यह क्या किया ? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला !’

मेघावी बोले: पिताजी ! मैंने अप्सरा के साथ रमण करने का पातक किया है । अब आप ही कोई ऐसा प्रायश्चित बताइये, जिससे पातक का नाश हो जाय ।

च्यवन ने कहा: बेटा ! चैत्र कृष्णपक्ष में जो ‘पापमोचनी एकादशी’ आती है, उसका व्रत करने पर पापराशि का विनाश हो जायेगा ।

पिता का यह कथन सुनकर मेघावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया । इससे उनका पाप नष्ट हो गया और वे पुन: तपस्या से परिपूर्ण हो गये । इसी प्रकार मंजुघोषा ने भी इस उत्तम व्रत का पालन किया । ‘पापमोचनी’ का व्रत करने के कारण वह पिशाचयोनि से मुक्त हुई और दिव्य रुपधारिणी श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्गलोक में चली गयी ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! जो श्रेष्ठ मनुष्य ‘पापमोचनी एकादशी’ का व्रत करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । इसको पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है । ब्रह्महत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान और गुरुपत्नीगमन करनेवाले महापातकी भी इस व्रत को करने से पापमुक्त हो जाते हैं । यह व्रत बहुत पुण्यमय है ।

 

 

Papmochani Ekadashi

 

 

पापमोचनी एकादशी की एक अन्य कथा 

धार्मिक मान्यता के अनुसार पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस जंगल में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे। मेधावी ऋषि शिव भक्त और अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थीं। एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य, गान और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया। वहीं मुनि मेधावी भी मंजूघोषा पर मोहित हो गए। इसके बाद दोनों ने अनेक वर्ष साथ में व्यतीत किये। एक दिन जब मंजूघोषा ने जाने के लिए अनुमति मांगी तो मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ। इसके बाद क्रोधित होकर उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दिया। इसके बाद अप्सरा ने ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के अनेकों बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का उपाय बताया और कहा इस व्रत को करने से तुम्हारे पापों का नाश हो जाएगा व तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी। अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे।

 

श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ‘’पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो।‘’

 

इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा ने श्राप से और मेधावी ऋषि ने पाप से मुक्ति पाई।

 

 

एकादशी व्रत का महत्त्व 

 

एकादशी को भगवान श्री विष्णु को समर्पित दिन माना जाता है। प्रत्येक एकादशी तिथि का एक अलग महत्व है और प्रत्येक एकादशी तिथि पर विष्णु की पूजा की जाती है। एकादशी तिथि हर महीने में दो बार आती है, एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार एक वर्ष में कम से कम 24 एकादशी होती हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 11वीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी  भगवान विष्णु को समर्पित एक दिन माना जाता है। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की। इस प्रकार एक वर्ष में कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, लेकिन अधिक मास (अतिरिक्त महीने) के मामले में यह संख्या 26 भी हो सकती है।

 

दोनों पक्षों की एकादशी समान रुप से कल्याण करने वाली है । इसमें शुक्ल और कृष्ण का भेद नहीं करना चाहिए । यदि उदय काल में थोड़ी सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अन्त में किंचित् त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ कहलाती है । वह भगवान को बहुत ही प्रिय है । यदि एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ को उपवास कर लिया जाय तो एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार द्वादशी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है । अष्टमी, एकादशी, षष्ठी, तृतीय और चतुर्दशी – ये यदि पूर्व तिथि से विद्ध हों तो उनमें व्रत नहीं करना चाहिए । परवर्तिनी तिथि से युक्त होने पर ही इनमें उपवास का विधान है । पहले दिन में और रात में भी एकादशी हो तथा दूसरे दिन केवल प्रात: काल एक दण्ड एकादशी रहे तो पहली तिथि का परित्याग करके दूसरे दिन की द्वादशी युक्त एकादशी को ही उपवास करना चाहिए । यह विधि मैंने दोनों पक्षों की एकादशी के लिए बतायी है । एकादशी तिथि के लिए उदया तिथि मान्य होती है। वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।

 

जो मनुष्य एकादशी को उपवास करता है, वह वैकुण्ठ धाम में जाता है, जहाँ साक्षात् भगवान गरुड़ध्वज विराजमान रहते हैं । जो मानव हर समय एकादशी के माहात्म्य का पाठ करता है, उसे हजार गौदान के पुण्य का फल प्राप्त होता है । जो दिन या रात में भक्तिपूर्वक इस माहात्म्य का श्रवण करते हैं, वे नि:संदेह ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाते हैं । एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है । हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना होती है।  

 

एकादशी व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है। इसलिए एकादशी व्रत में नियम और अनुशासन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही व्रत का पारण भी शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। एकादशी व्रत में पारण का विशेष महत्व दिया गया है। मान्यता है कि विधि पूर्वक व्रत का पारण न करने से इस व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है।

 

इस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।

 

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजेन्द्र ! बड़ी-बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है ।

 

एकादशी की रात्रि में रात्रि जागरण का विशेष महत्त्व है । अतः बंधु बांधवों के साथ या उनके अभाव में स्वयं ही भजन कीर्तन , नाम संकीर्तन और मन्त्र जाप करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए । एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए । ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं । 

 

kamada Ekadashi

 

 

एकादशी का व्रत क्यों रखा जाता है? 

एकादशी व्रत के पीछे वैज्ञानिक कारण 

 

एकादशी हर 15 दिन में एक बार आती है। यह वह समय होता है जब शरीर एक विशेष चक्र से गुजरता है। इस समय शरीर को भोजन की कोई खास जरूरत नहीं रहती या यूं कहें कि बाकी दिनों की अपेक्षा सबसे कम होती है। इस काल में शरीर हल्का और शुद्ध होना चाहता है। ऊर्जा अंतर्मुखी होकर बहना चाहती है।

 

हर 15 दिन बाद होने वाली व्रत की यह शृंखला शरीर की कोशिकाओं पर ही नहीं, बल्कि डीएनए तक पर प्रभाव डालकर अनेक असाध्य बीमारियों से बचाव करते हैं और शरीर की उम्र बढ़ाती है। ऐसे में किया गया उपवास शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ा देता है। यह उपवास करने का सबसे उचित समय होता है जो हमें प्रकृति से जोड़कर अंतर्मुखी करने में मदद करता है।

 

एकादशी व्रत कैसे प्रारंभ हुआ?

 

भगवती एकादशी कौन है, इस संबंध में पद्म पुराण में कथा है कि एक बार पुण्यश्लोक धर्मराज युधिष्ठिर को लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त दुःखों, त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाले, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाले एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया। एकादशी व्रत-उपवास करने का बहुत महत्व होता है। साथ ही सभी धर्मों के नियम भी अलग-अलग होते हैं। खास कर हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से ही कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए।

 

एकादशी व्रत-उपवास के नियम

एकादशी व्रत के दिन क्या करें क्या न करें 

 

एकादशी का व्रत दसवीं तिथि के सूर्यास्त के बाद से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय तक रहता है। इसमें खाने-पीने की कई चीजों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी का पूर्ण लाभ लेने के लिए व्रत के नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए। एकादशी व्रत का नियम कुछ कठोर होता है। यह व्रत कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से रख सकता है।एकादशी के व्रत में दशमी के दिन से ही ब्रह्मचार्य व्रत का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उन्हें धूप, फल, फूल, दीप, पंचामृत आदि अर्पित करते हैं। व्रत के दौरान क्रोध और द्वेष भावना नहीं रखनी चाहिए।

 

द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए। क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए। इस व्रत को करने से जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं, और उपवास करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है।

 

एकादशी के दिन क्या खाएं क्या न खाएं 

 

एकादशी व्रत में अन्न नहीं खाया जाता।  इस दिन चावल बिलकुल भी नहीं खाने चाहिए तथा चने या चने के आटे से बनी चीज से भी परहेज करना चाहिए। इस दिन शहद खाने से भी बचना चाहिए। एकादशी का व्रत-उपवास करने वालों को दशमी के दिन से ही मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए। 

 

एकादशी के व्रत का भोजन 

 

एकादशी के व्रत में अन्न खाना मना होता है। कुछ लोग एकादशी का व्रत निर्जला करते हैं, जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। वहीं, शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन इन वस्तुओं और मसालों का प्रयोग व्रत के दौरान कर सकते हैं- एकादशी के व्रत में ताजे फल, मेवे, चीनी, कुट्टू, नारियल, जैतून, दूध, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक, आलू, साबूदाना, शकरकंद आदि खा सकते हैं। एकादशी व्रत का भोजन सात्विक होना चाहिए। एकादशी के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।

 

कैसे करें एकादशी का व्रत

पूजा विधि

 

एकादशी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद पूजा की तैयारियां शुरू कर दें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र पर गंगाजल से छिड़काव करें और रोली व अक्षत से टीका करें। इसके बाद देशी घी का दीपक जलाएं और फूलों से मंदिर को सजाएं। इस एकादशी पर भगवान कृष्ण की पूजा करने का भी विधान है। कृष्णजी को माखन-मिश्री अच्छी लगती है इसलिए उनको यही भोग लगाएं। धूप-दीप से भगवान की पूजा करने के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना उत्तम रहेगा। इसके बाद तुलसी पूजन करें। दिन भर मन को शांत रखकर भगवान का स्मरण करते रहें और हो सके तो गीता पाठ कर लें । शाम के समय श्रीकृष्ण की फिर से पूजा करें और भोग लगाएं। इसके बाद भोग को सभी में बांट दें।अगले दिन पूजा-पाठ और दान-दक्षिणा देकर ब्राह्मणों को घर पर बुलाकर भोजन करवाएं और फिर खुद पारण करें।

 

भगवान को केवल सात्विक चीजें ही अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद आरती करें और भगवान से प्रर्थना करें। तत्पश्चात् पूजा स्थल को गंगा के जल की कुछ बूंदें डालकर पवित्र कर लेना चाहिये और तदुपरांत भगवान् नारायण का षोडशोपचार विधि से पूजन, अर्चन और स्तवन करना चाहिये। षोडशोपचार यानी सोलह प्रकार के उपचार के क्रियान्वयन को भगवान् की पूजा का षोडशोपचार पूजन कहा जाता है। इसमें सोलह प्रकार की चीजों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार हैं:

 

पहला उपचार यानी देवता का आवाहन।
दूसरा उपचार यानी देवता को आसन देना।
तीसरा उपचार यानी पाद प्रक्षालन।
चौथा उपचार यानी अर्घ्य देना।
पांचवां उपचार यानी आचमन या मुख प्रक्षालन।
छठवां उपचार यानी स्नान यानी देवता पर जल चढ़ाना।
सातवां उपचार यानी देवता को वस्त्र देना।
आठवां उपचार यानी देवता को उपवस्त्र अर्थात् जनेऊ देना।
नौवां उपचार यानी देवता को गंध या चंदन देना।
दसवां उपचार यानी पुष्प अर्पित करना।
ग्यारहवां उपचार यानी धूप अर्पित करना।
बारहवां उपचार यानी दीप अर्पित करना।
तेरहवां उपचार नैवेद्य अर्पित करना।
चौदहवां उपचार यानी देवता को नमन करना।
पंद्रहवां उपचार यानी परिक्रमा करना।
सोलहवां उपचार यानी मंत्रपुष्प अर्पित करना।

 

इस प्रकार षोडशोपचार विधि से भगवान् नारायण का पूजन करके उनसे अपने अपराधों के क्षमा याचना करनी चाहिये। रात में दीपों का दान करना चाहिये और यदि संभव हो तो पूरी रात जागरण करते हुए भगवान् नारायण का पाठ करते रहें। इस अवसर पर विष्णुसहस्रनाम का पाठ बहुत फल देने वाला माना गया है। इस प्रकार अगले दिन प्रात: पुन: पूजन आदि करके दान और भोजन आदि से योग्य पात्रों को संतुष्ट करके स्वयं भी सात्विक भोजन कर लेना चाहिये। 

 

 

 

 

 

Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:

The Spiritual Talks

 

For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

 

For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers  & Pinterest Stories:

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

 

For any query contact on:

E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com

 

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!