Kabir Das Ke Dohe Part 2

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Jan 20, 2022 #dohe, #jab mai tha tab hari nahi jab hari hai tab main nahi, #kabeer, #kabeerdas, #Kabir Das ke Dohe in Hindi: कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित, #kabir ke dohe, #Kabir Ke Dohe | Kabir Amritwani | कबीर दास के लोकप्रिय दोहे, #Kabir Ke Dohe In Hindi | संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित, #Kabir ke Dohe or Sakhiyan, #Kabir Ke Dohe: संत कबीर दास के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित।, #kabirdas, #kabirdas ke dohe, #saint kabirdas, #sant kabir, #sant kabirdas, #sant kabirdas ke dohe, #कबीर अमृतवाणी, #कबीर के दोहे, #कबीर के दोहे अमृतवाणी, #कबीर के दोहे मीठी वाणी, #कबीर दास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में, #कबीर दास के दोहे- भाग 2, #कबीरदास के प्रसिध्द दोहे, #जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाही ।, #संत कबीर के दोहे, #संत कबीर के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित।, #संत कबीर दास के लोकप्रिय दोहे, #संत कबीरदास के दोहे
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Kabir ke dohe Part 2

 

 

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जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही । 

जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही । 

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । 

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । 

जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । 

जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश । 

जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम। 

ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि। 

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान । 

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए । 

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई। 

जाता है सो जाण दे, तेरी दसा न जाइ। 

जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि । 

जानि बूझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह । 

जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानी । 

जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय। 

जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश। 

जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर। 

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं। 

जब तू आया जगत में, लोग हंसे तू रोय।

जो तोकूँ काँटा बुवै, ताहि बोय तू फूल।

जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं मैं नाहिं।

जैसी प्रीति कुटुम्ब की, तैसी गुरू सों होय।

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस। 

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । 

एक ही बार परखिये ना वा बारम्बार । 

इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़े बिछोह। 

इस तन का दीवा करों, बाती मेल्यूं जीव। 

इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति। 

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर । 

आगे दिन पाछे गये, गुरू सों किया न हेत।

आब गया आदर गया, नैनन गया सनेह।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । 

धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर। 

 

 

 

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