Naam Jap Ki Mahima | नाम जप की महिमा | भगवन्नाम की महिमा | भगवान के नाम की महिमा
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एक नाम जप होता है और एक मंत्र जप होता है। ” राम ” नाम मंत्र भी है और नाम भी है। नाम में सम्बोधन होता है और मंत्र में नमन और स्वाहा होता है। जैसे ” ॐ रामाय नमः”, ” ॐ कृष्णाय नमः ” , ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” , ” ॐ नमः शिवाय ” इत्यादि मंत्र हैं । मन्त्रों का विधिवत अनुष्ठान होता है । अर्थात प्रत्येक मंत्र की जप विधि अलग होती है। निश्चित संख्या का मंत्र जप करने पर ही मंत्र फलीभूत होता है। प्रतिदिन निश्चित संख्या की जप माला करने का विधान होता है। स्वच्छ आसन, स्वच्छ स्थान , स्वच्छ वस्त्र , स्वच्छ शरीर , अर्थात पवित्रता का विशेष ध्यान देना होता है। निश्चित संख्या में मंत्र का पुरश्चरण आवश्यक होता है । तभी मंत्र सिद्ध और फलीभूत होते हैं। प्राचीन काल में मनुष्य मन्त्रों का विधि विधान पूर्वक जप और उच्चारण कर सकता था। परन्तु आज के युग में तन और मन की पवित्रता रख पाना और विधि विधान पूर्वक मंत्र जप कर पाना अत्यंत मुश्किल है। यद्यपि आज भी कुछ मंत्र हैं जिन्हे आप सोते -जागते, उठते -बैठते , चलते -फिरते जप सकते हैं। जैसे ” श्री कृष्ण शरणम ममः “, ” हरे कृष्ण मंत्र “, ” श्री हरि शरणम ” ” हरि बोल “, ” श्री रामम शरणम ममः ” इत्यादि।। इन मंत्रो का मानसिक जप हर समय किसी भी अवस्था में कर सकते हैं । ये प्रभु के शरणागति मंत्र हैं और इनका जाप करने से प्रभु में प्रीति प्रगाढ़ होती है और उनकी कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती है।
मंत्र का वास्तविक अर्थ होता है मन को तंत्र करना अर्थात मन को नियंत्रित करना , मन को तंत्र करना अर्थात बांधना । इस मानव शरीर में सबसे चंचल मन ही है और सभी इन्द्रियाँ इसी मन के अधीन होती हैं। यही मन हमें हमारी इन्द्रियों के माध्यम से हमारे वास्तविक लक्ष्य जो की प्रभु को प्राप्त करना है उस से वंचित रखता है। हमारी बुद्धि भी इसी मन के वश हो जाती है और सही तथा गलत का निर्णय लेने में पूर्णतया मन पर निर्भर हो जाती है। हम अक्सर बोलते हैं हमारा मन ऐसा कर रहा है, हमारा मन है ये करने का, आज मेरा मन नहीं है काम करने का, आज मेरा मन है ये खाने का । तो ये क्या है । इन वाक्यों को सुन के ऐसा लगता है कि हम वही कर रहे हैं जो हमारा मन चाहता है , जो वो खाना चाहता है, जो वो करना चाहता है, हम अपने मन के अधीन हो कर उसके दास अर्थात गुलाम बन गए हैं। हम वो नहीं करते जो हमें करना चाहिए या जो हमारे लिए सही है बल्कि हम वो करते हैं जो हमारा मन हमसे करवाना चाहता है । फिर चाहे वो सही हो या गलत।
मन की गति के विषय में सभी जानते हैं की इस संसार में सबसे तीव्र गति इस मन की है। ये एक पल में यहाँ और दूसरे ही पल मीलों दूर पहुंच सकता है। इस मन को नियंत्रित करना अत्यंत कठिन है। जिसने इस मन पर नियंत्रण पा लिया, मन को वश में कर लिया , अपने मन को जीत लिया , उसने ही वास्तव में सच्चे अर्थ में इस जीवन को सार्थक किया, उसका ही मनुष्य जीवन सफल हुआ । उसने ही इस मानव जीवन के भेद को, रहस्य को जान लिया। क्योकि ये मन ही हमें हमारे वास्तविक उद्देश्य से सारा जीवन भटकाता रहता है। हमें हमारे जीवन के रहस्य को जान ने नहीं देता । ईश्वर के नाम और उनकी शरणागति ग्रहण करने के अतिरिक्त अन्य किसी भी उपाय में ये शक्ति नहीं की मन को वश में किया जा सके। ज्ञान, ध्यान , योग आदि अन्य भी उपाय हैं जिनके द्वारा सदियों से मनुष्य ने अपने मन को वश में करने का प्रयास किया है परन्तु वास्तविक सफलता उसे प्रभु का नाम और उनकी शरणागति प्राप्त करने के बाद ही प्राप्त होती है। अन्य सभी उपायों से अत्यंत कठिनाई पूर्वक , हठपूर्वक मन को कुछ पलों के लिए तो वश में किया जा सकता है पर जरा सी भी असावधानी से ये तुरंत ही पथ भ्रष्ट कर देता है। अन्य सभी मार्ग साधारण मनुष्यों के लिए अत्यंत कठिन हैं । बहुत कम सिद्ध योगी जन इन जप, तप, हठ मार्ग द्वारा मन को काबू में कर सके हैं।
इसीलिए कलयुग के मनुष्यों के लिए , उनकी क्षमता को देखते हुए ही कलयुग के प्राणियों के कल्याण के लिए प्रभु ने ही अत्यंत सरल मार्ग सुझाया है। जिसके द्वारा मनुष्य बड़ी ही आसानी से अपने मन को वश में कर सकता है। और अपने वास्तविक लक्ष्य, अपने प्रभु को पा सकता है। अपने वास्तविल स्वरुप को पा सकता है। अपने जीवन के रहस्य को भेद सकता है। और ये उपाय है प्रभु का नाम। कलयुग में प्रभु अपने नाम में ही निवास करते हैं। नाम और नामी में कोई अंतर नहीं है। अर्थात प्रभु और उनके नाम में कोई भेद नहीं है ये दो एक ही हैं। एक दूसरे से अभिन्न हैं। प्रभु ने अपने नाम में ही अपनी सम्पूर्ण शक्ति भर दी है। कलयुग में भले ही लाखों दोष हों परन्तु यही एक अच्छाई है कि कलयुग का मनुष्य निरंतर भगवान के नाम का जप कर के , उनके नाम का भजन कीर्तन कर के ही मुक्ति पा सकता है । निरंतर प्रभु के नाम जप से मनुष्य का मन वश में हों जाता है। मन स्वयं प्रभु के नाम के वशीभूत हों जाता है। प्रभु और उनका नाम है ही ऐसा जो एक बार देख ले, सुन ले मोहित हुए बिना नहीं रह पता। यह मन भी प्रभु के नाम के सम्मोहन जाल में फंस जाता है। हर पर प्रभु के नाम का जाप करना चाहता है। एक पल भी बिना नाम स्मरण के नहीं रह पाता। प्रभु के नाम स्मरण में मन को इतना आनंद आता है कि हर पल वो प्रभु के नाम ध्यान में खोया रहता है। और इस प्रकार जब मन हर पल प्रभु के ही ध्यान में लीन रहता है , उन्हीं कि लीलाओं में मगन रहता है तो वो मनुष्य को गलत पथ पर भटकने ही नहीं देता और मनुष्य अपने ध्येय को प्राप्त कर लेता है।
आरम्भ में नाम जप में थोड़ा प्रयास करना पड़ता है। क्योकि जन्मों से भटके हुए मन को नियंत्रण में लाना थोड़ा कठिन होता है, जैसे कि एक जंगली जानवर को काबू में करने के लिए थोड़ा अधिक प्रयास करना पड़ता है। थोड़ी सख्ती बरतनी पड़ती है। क्योकि इसके पहले वह स्वच्छंद घूम रहा था। किसी और की बंदिश नहीं थी उसके ऊपर। अपनी मर्जी का मालिक था। जब चाहे जहाँ जा सकता था। जो चाहे कर सकता था। परन्तु अब उसे एक नियमित अनुशासन में रहना होगा। नियम का पालन करना होगा। एक अनुशासित व्यवहार करना होगा। इसी प्रकार मन होता है। भगवान के नाम का जप उस मन को नियंत्रण में करने वाला चाबुक है। जो इस स्वच्छंद , अपनी मर्जी के मालिक मन को अनुशासन में लाता है। आरम्भ में मनुष्य को जप माला के साथ निश्चित संख्या में नित्य नाम जप का अभ्यास करना पड़ता है। फिर धीरे धीरे अभ्यास बढ़ाते बढ़ाते , जप संख्या बढ़ाते बढ़ाते एक समय ऐसा आता है जब नाम जप करना नहीं पड़ता स्वतः होने लगता है। तब न माला की आवश्यकता होती है , न किसी शांत स्थान की , न निश्चित समय की , न किसी अन्य साधन की। फिर तो हर समय सोते जागते, उठते बैठते , चलते फिरते , जग के कार्य करते करते मन में निरंतर प्रभु का ध्यान और नाम स्मरण चलता रहता है। जिसे अजपा जप कहते हैं। अजपा जप करना नहीं पड़ता बल्कि स्वतः होता रहता है। मन इतना अभ्यस्त हों जाता है कि उसे किसी नाम जप के आदेश की आवश्यकता नहीं पड़ती । बिना किसी के आदेश के वो नाम जप करता रहता है। और चिदानंद के आनंद में मग्न रहता है।
शुरू में नाम जप जोर से बोल के कर सकते हैं जिस से की हमारे कान नाम जप सुन ने अभ्यस्त हों सके। जिह्वा नाम लेने की अभ्यस्त हों सके। और आस पास का वातावरण नाम जप से शुद्ध हों सके। हमारे आस पास के प्राणी , जीव जंतु भी जो नाम नहीं जपते या जप नहीं सकते उनको भी हमारे नाम जप से लाभ हो। यदि जाने अनजाने सूक्ष्म जीव चलते फिरते हमारे पैरो के नीचे आ जाये तो हमारे नाम जप के कारण वे भी मुक्ति पा सकते हैं। ऐसा शक्तिशाली और पुण्यकारी है ये नामजप । जो स्वयं का भला तो करता ही है अपितु नाम जापक के संपर्क में भी जो लोग आते हैं मनुष्य या जीव जंतु या अदृश्य आत्माएं वे भी मुक्ति पा जाते हैं। इसी लिए जोर से नाम जप कीर्तन और भजन आदि का भी विधान है जिस से जो लोग वाणी से नाम जप न ले सके वे सुन के उसका लाभ ले सके। कोई भी नाम के प्रभाव से वंचित न रह सके।
नाम जप सबसे सरल और आसान उपाय है कलयुग के मनुष्य की मुक्ति का। प्रभु का तो हर नाम मीठा और मोहक है। प्रभु का जो भी नाम आपको प्यारा लगे, उनका जो भी रूप आपको प्रिय लगे उसी नाम और रूप का ध्यान , जप और स्मरण करे। आपको अवश्य ही लाभ होगा। राम , कृष्ण , नारायण , गोविन्द, हरि सभी प्रभु के अत्यंत प्रिय और अत्यंत सरल नाम हैं। प्रभु के भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार इनमे से किसी भी एक नाम पे दृढ विश्वास के साथ जुड़ कर भक्ति और मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। जैसा कि ज्ञात है कि प्रभु के सभी नामो में उनकी शक्ति समाहित है। जिस पल प्राणी प्रभु का नाम लेता है प्रभु उसकी जिह्वा पे नृत्य करते हैं। अपने नाम का जप करने वाले व्यक्ति के तो प्रभु स्वयं पीछे पीछे चलते हैं। नाम जापक के प्रभु सेवक बन जाते हैं। प्रभु अपने भक्त को सब कुछ देने को तत्पर रहते है। नाम जापक को हर प्रकार की रिद्धि सिद्धि और शक्ति की प्राप्ति हो जाती है परन्तु प्रभु के भक्त को प्रभु के सिवाय और कहाँ कुछ चाहिए।
तो आप भी आज से ही नाम जप में लग जाये। प्रभु के किसी भी नाम को पकड़ लें । आप को बस एक बार प्रभु के नाम को पकड़ने की देर है। फिर न नाम आपको छोड़ेगा न आप नाम को छोड़ पाएंगे । न प्रभु आपको छोड़ेगे न आप प्रभु को छोड़ पाएंगे। क्योकि प्रभु के नाम और प्रभु में कोई अंतर नहीं है। प्रभु के नाम को पकड़ने का अर्थ है प्रभु को पकड़ना ।
जय श्री कृष्णा
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