कृष्ण उपनिषद् हिंदी अर्थ सहित 

कृष्ण उपनिषद् हिंदी अर्थ सहित  | कृष्णोपनिषद | Krishna Upanishad | Krishnopnishad | कृष्णोपनिषद हिंदी अर्थ सहित | Krishnopnishad in Hindi | Krishnopnishad with hindi meaning | Krishna Upanishad hindi lyrics | Krishna Upanishad with hindi meaning | कृष्ण उपनिषद् | Krishnopnishad Lyrics

 Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

 

 

 

कृष्ण उपनिषद् हिंदी अर्थ सहित 

 

 

 

श्रीमहाविष्णु सच्चिदानन्दलक्षणं रामचन्द्रं दृष्ट्वा

सर्वाङ्गसुन्दरं मुनयो वनवासिनो विस्मिता बभूवुः ।

तं होचुर्नोऽवद्यमवतारान्वै गण्यन्ते आलिङ्गामो भवन्तमिति ।

भवान्तरे कृष्णावतारे यूयं गोपिका भूत्वा मामालिङ्गथ

अन्ये येऽवतारास्ते हि गोपा नः स्त्रीश्च नो कुरु।

 

सर्वांग सुन्दर, सच्चिदानन्द स्वरूप, महाविष्णु (के अवतारी) श्री रामचन्द्र जी को देखकर वनवासी मुनिगण बड़े आश्चर्यचकित हुए। (उन्हें धरती पर अवतरित होने के लिए ब्रह्मा जी का आदेश होने पर) ऋषियों ने उनसे (राम से) कहा- हम सब (धरती पर) अवतरित होने को अच्छा नहीं मानते हैं। हम आपका आलिंगन (अत्यधिक निकटता) चाहते हैं। (भगवान ने कहा- हमारे ) अन्य अवतार-कृष्णावतार में तुम सभी गोपिका बनकर मेरा आलिंगन (अतिसंन्निकटता) प्राप्त करो। (ऋषियों ने पुनः कहा- हमारे) जो अन्य अवतार हों, (उनमें) हमें गोप-गोपिका बना दें।  

 

अन्योन्यविग्रहं धार्यं तवाङ्गस्पर्शनादिह।

शश्वत्स्पर्शयितास्माकं गृह्णीमोऽवतारान्वयम्॥1

 

आपका सान्निध्य प्राप्त करने की स्थिति में हमें ऐसा शरीर (गोपिका आदि) धारण करना स्वीकार्य है, जो आपका स्पर्श सुख प्रदान कर सके।।1

 

रुद्रादीनां वचः श्रुत्वा प्रोवाच भगवान्स्वयम्।

अङ्गसङ्गं करिष्यामि भवद्वाक्यं करोम्यहम्॥2

 

रुद्र आदि सभी देवों की यह स्नेहयुक्त प्रार्थना सुनकर स्वयं आदि पुरुष भगवान् ने कहा- हे देवो! मैं अपने अंग-अवयवों के स्पर्श का अवसर तुम्हें निश्चित रूप से प्रदान करता रहूँगा। मैं तुम्हारी इच्छा को अवश्य पूर्ण करूंगा ॥ 2

 

मोदितास्ते सुराः सर्वे कृतकृत्याधुना वयम्।

यो नन्दः परमानन्दो यशोदा मुक्तिगेहिनी ॥3

 

परम पुरुष भगवान् का यह आश्वासन प्राप्त करके वे सभी देवगण अत्यधिक आनन्दित होते हुए बोले कि अब हम कृतार्थ हो गये। तदनन्तर वे समस्त देवगण भगवान् की सेवा हेतु प्रकट हुए। भगवान् का परम आनन्दमय स्वरूप ही अंशरूप में नन्दराय जी के रूप में उत्पन्न हुआ। स्वयं साक्षात् मुक्तिदेवी नन्दरानी यशोदा जी के रूप में अवतरित हुई।। 3

 

माया सा त्रिविधा प्रोक्ता सत्त्वराजसतामसी ।

प्रोक्ता च सात्त्विकी रुद्रे भक्ते ब्रह्मणि राजसी ।।4

 

सुप्रसिद्ध माया तीन प्रकार की कही गयी है, जिनमें से प्रथम सात्विकी, द्वितीय राजसी और तृतीय तामसी । भगवान् के भक्त श्रीरुद्र देव में सात्त्विकी माया विद्यमान है, ब्रह्मा जी में राजसी माया है।। 4

 

तामसी दैत्यपक्षेषु माया त्रेधा ह्युदाहृता।

अजेया वैष्णवी माया जप्येन च सुता पुरा ॥5

 

असुरों में तामसी माया का प्राकट्य हुआ है। इस कारण से यह तीन प्रकार की बतलायी गयी है। इसके अतिरिक्त जो वैष्णवी-माया है, उसको जीतना हर किसी के लिए असंभव है। इस माया को प्राचीन काल में ब्रह्मा जी भी पराजित नहीं कर सके।। 5

 

देवकी ब्रह्मपुत्रा सा या वेदैरुपगीयते ।

निगमो वसुदेवो यो वेदार्थ: कृष्णरामयोः ।।6

 

देवता भी सदा जिस वैष्णवी माया की स्तुति करते हैं, यही ब्रह्म विद्यामयी वैष्णवी माया ही देवकी के रूप में प्रादुर्भूत हुई। निगम अर्थात् वेद ही वसुदेव हैं,जो निरन्तर मुझ पूर्ण पुरुष नारायण के विराट् स्वरूप की स्तुति करते हैं।। 6

 

 

Krishnopnishad with hindi meaning

 

 

स्तुवते सततं यस्तु सोऽवतीर्णो महीतले।

वने वृन्दावने क्रीडन्गोपगोपीसुरैः सह ॥7

 

वेदों का तात्पर्यभूत ब्रह्म ही श्री बलराम एवं श्रीकृष्ण के रूप में इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ। वह मूर्तिमय वेदार्थ ही वृन्दावन में विद्यमान गोप एवं गोपियों के साथ क्रीड़ा करता है।। 7

 

गोप्यो गाव ऋचस्तस्य यष्टिका कमलासनः ।

वंशस्तु भगवान् रुद्रः शृङ्गमिन्द्रः सगोसुरः ॥8

 

वेदों की ऋचाएँ उन भगवान् श्रीकृष्ण को गौएँ एवं गोपियाँ हैं। ब्रह्माजी ने लकुटी का रूप धारण किया है तथा भगवान् रुद्र वंश (वंशी) बने हुए हैं। सगोसुर इन्द्र (अर्थात् वज्रधारी देव इन्द्र- यहाँ गो का अर्थ वज्र तथा सुर का अर्थ देव लिया गया है।) श्रृंग (सींग का बना वाद्ययंत्र) का रूप धारण किए हुए हैं।। 8

 

गोकुलं वनवैकुण्ठं तापसास्तत्र ते द्रुमाः ।

लोभक्रोधादयो दैत्याः कलिकालस्तिरस्कृतः ।।9

 

  गोकुल के नाम से प्रसिद्ध वन के रूप में जहाँ स्वयं साक्षात् वैकुण्ठ प्रतिष्ठित है, वहाँ पर द्रुमों (वृक्षों) के रूप में तप में रत महात्मा स्थित हैं। लोभ-क्रोधादि षड् विकारों ने महान् दैत्य-असुरों का रूप धारण कर लिया है, जो कलियुग में (केवल भगवान् श्रीकृष्ण के नाम जप मात्र से ही) विनष्ट हो जाते हैं।। 9

 

गोपरूपो हरिः साक्षान्माया विग्रह धारणः।

दुर्बोधं कुहकं तस्य मायया मोहितं जगत्।।10

 

स्वयं साक्षात् भगवान् श्रीहरि ही गोपरूप में लीला-विग्रह का रूप धारण किये हुए हैं। यह नश्वर जगत् माया से ग्रसित है, इस कारण उसके लिए भगवान् श्रीकृष्ण की माया का रहस्य जानना बहुत ही दुष्कर है।।10

 

दुर्जया सा सुरैः सर्वैर्धृष्टिरूपो भवेद्विजः ।

रुद्रो येन कृतो वंशस्तस्य माया जगत्कथम्॥11

 

वह प्रभु की माया सभी देवताओं के लिए भी दुर्जय है। जिन भगवान् की माया के वश में होकर ब्रह्मा जी लकुटी का रूप धारण किए हुए हैं तथा जिन्होंने भगवान् शिव को वंशी बनने के लिए विवश कर रखा है, उन प्रभु की माया को सामान्य जगत् किस प्रकार जान सकता है? 11

 

बलं ज्ञानं सुराणां वै तेषां ज्ञानं हृतं क्षणात्।

शेषनागोभवेद्रामः कृष्णो ब्रहमैव शाश्वतम् ॥12

 

 निश्चित रूप से देवों का जो ज्ञान युक्त थल है, उसे भगवान् की माया ने क्षण भर में हरण कर लिया है। श्रीशेषनाग जी श्री बलराम के रूप में जन्मे और सनातन ब्रह्म भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए।।12

 

अष्टावष्टसहस्त्रे द्वे शताधिक्यः स्त्रियस्तथा।

ऋचोपनिषदस्ता वै ब्रह्मरूपा ऋचः स्त्रियः ॥13

 

भगवान् श्रीकृष्ण की रुक्मिणी आदि सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ ही वेदों की ऋचाएँ एवं उपनिषद् हैं, इनके अतिरिक्त वेदों की जो ब्रह्म स्वरूपा ऋचाएँ हैं, वे सभी ब्रजभूमि में गोपिकाओं के रूप में अवतरित हुई।।13

 

 

Krishna Upanishad with hindi meaning

 

 

द्वेषश्चाणूरमल्लोऽयं मत्सरो मुष्टिको जयः।

दर्पः कुवलयापीडो गर्वो रक्षः खगो बकः ॥14

 

द्वेष ही चाणूर मल्ल के रूप में है, मत्सर ही दुर्जय मुष्टिक रूप में तथा दर्प ही कुवलयापीड हाथी के रूप में प्रकट हुआ है। गर्व ही आकाश में गमन करने वाले बकासुर राक्षस के रूप में अवतरित हुआ।।14

 

दया सा रोहिणी माता सत्यभामा धरेति वै।

अघासुरो महाव्याधिः कलिः कंसः स भूपतिः ॥15

 

माता रोहिणी के रूप में दया का प्राकट्य हुआ है और माँ पृथ्वी ही सत्यभामा के रूप में अवतरित हुई हैं। अघासुर के रूप में महाव्याधि और स्वयं साक्षात् कलि ही राजा कंस के रूप में प्रकट हुआ।।15

 

शमो मित्रः सुदामा च सत्याक्रूरोद्धवो दमः ।

यः शङ्खः स स्वयं विष्णुर्लक्ष्मीरूपो व्यवस्थितः ॥16

 

श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा जी ही ‘शम्’ हैं, सत्य के रूप में अक्रूर जी और दम के रूप में उद्धवजी उत्पन्न हुए। शंख स्वयं विष्णुरूप है और लक्ष्मी का भ्राता होने के कारण वह लक्ष्मी रूप भी है, उसका प्राकट्य क्षीरसागर से हुआ है।।16

 

दुग्धसिन्धौ समुत्पन्नो मेघघोषस्तु संस्मृतः।

दुग्धोदधिः कृतस्तेन भग्नभाण्डो दधिग्रहे॥17

 

मेघ के सदृश उसका गम्भीर घोष नाद है। भगवान् ने दूध दही के भण्डार से युक्त जो मटके फोड़े तथा उन मटकों से जो दूध दही प्रवाहित हुआ, उसके रूप में भगवान् ने स्वयं साक्षात् क्षीरसागर को ही प्रादुर्भुत किया है।।17

 

क्रीडते बालको भूत्वा पूर्ववत्सुमहोदधौ।

संहारार्थं च शत्रूणां रक्षणाय च संस्थितः ॥18

 

वे ( भगवान् श्रीकृष्ण) उस महासागर में बालक रुप में अवस्थित हो पूर्ववत् क्रीड़ा कर रहे हैं। शत्रुओं के शमन एवं साधुजनों के संरक्षण में वे पूर्णरूपेण तत्पर रहते हैं।।18

 

कृपार्थं सर्वभूतानां गोप्तारं धर्ममात्मजम्।

यत्स्रष्टुमीश्वरेणासीत्तच्चक्रं ब्रह्मरूपधृक् ॥19

 

   समस्त भूत प्राणियों पर अहैतु की कृपा करने के लिए एवं अपने आत्मज स्वरूप धर्म के अभ्युदय हेतु ही भगवान् श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ है, ऐसा ही जानना चाहिए। भगवान् महाकाल (शिव) ने श्रीहरि को समर्पित करने के लिए जिस चक्र को उत्पन्न किया था, भगवान् ( श्री कृष्ण) के हाथ में शोभायमान वह चक्र भी ब्रह्ममय ही है।।19

 

 

कृष्णोपनिषद हिंदी अर्थ सहित

 

जयन्तीसंभवो वायुश्चमरो धर्मसंज्ञितः ।

यस्यासौ ज्वलनाभासः खड्गरूपो महेश्वरः ।।20

 

धर्म ने चँवर का रूप धारण किया है, वायुदेव वैजयन्ती माला के रूप में उत्पन्न हुए हैं और महेश्वर ने अग्नि की भाँति चमकते हुए खड्ग का रूप स्वीकार किया है।।20

 

कश्यपोलूखलः ख्यातो रज्जुर्माताऽदितिस्तथा।

चक्रं शङ्खं च संसिद्धिं बिन्दुं च सर्वमूर्धनि ।।21

 

नन्द जी के घर में कश्यप ऋषि ऊखल के रूप में प्रतिष्ठित हैं तथा माता अदिति रस्सी के रूप में प्रकट हुई हैं।  जिस प्रकार समस्त अक्षरों के ऊपर अनुस्वार सुशोभित होता है, वैसे ही सभी के ऊपर जो शोभायमान आकाश है, उसको ही भगवान् श्रीकृष्ण का छत्र समझना चाहिए।।21

 

यावन्ति देवरूपाणि वदन्ति विबुधा जनाः।

नमन्ति देवरूपेभ्य एवमादि न संशयः ।।22

 

(व्यास, वाल्मीकि आदि ज्ञानी महात्माजन ) देवों के जितने रूपों का वर्णन करते हैं और जिन-जिन को लोग देवरूप में समझ कर नमन-वंदन करते हैं, वे समस्त देवगण भगवान् श्रीकृष्ण का ही एक मात्र अवलम्बन प्राप्त करते हैं।।22

 

गदा च कालिका साक्षात्सर्वशत्रुनिबर्हणी।

धनुः शार्ङंग स्वमाया च शरत्कालः सुभोजनः ।।23

 

 भगवान् के हाथ की गदा सम्पूर्ण शत्रुओं को विनष्ट करने वाली साक्षात् कालिका है। शार्ङ्रधनुष के रूप में स्वयं वैष्णवी माया ही उपस्थित है तथा प्राणों का संहार करने वाला काल ही भगवान् का बाण है।।23

 

अब्जकाण्डं जगद्वीजं धृतं पाणौ स्वलीलया।

गरुडो वटभाण्डीरः सुदामा नारदो मुनिः ।।24

 

इस विश्व-वसुधा के बीज स्वरूप कमल को भगवान ने लीलापूर्वक हाथ में ग्रहण किया है। भाण्डीरवट का रुप गरुड़ ने धारण कर रखा है और देवर्षि नारद उनके सुदामा नामक सखा के रूप में अवतरित हुए हैं।।24

 

वृन्दा भक्तिः क्रिया बुद्धिः सर्वजन्तुप्रकाशिनी।

तस्मान्न भिन्नं नाभिन्नमाभिर्भिन्नो न वै विभुः ।।25

 

भक्ति ने वृन्दा का रूप धारण किया है। समस्त भूत-प्राणियों को प्रकाश प्रदान करने वाली जो बुद्धि है, वही भगवान् की क्रियाशक्ति है।  इस कारण ये गोप एवं गोपिकाएँ आदि सभी भगवान् श्रीकृष्ण से अलग नहीं हैं तथा विभु-परमात्मा श्रीकृष्ण भी इन सभी से अलग नहीं हैं।।25

 

 

Krishna Upanishad

 

 

भूमावुत्तारितं सर्वं वैकुण्ठं स्वर्गवासिनाम् ।।

सर्वतीर्थफलं लभते य एवं वेद।

देहबन्धाद्विमुच्यते इत्युपनिषत् ।।26

 

  उन भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वर्गवासियों को एवं समस्त वैकुण्ठ धाम को पृथ्वी तल पर अवतरित कर लिया है, जो भी मनुष्य इस तरह से उन भगवान् को जानता है, वह समस्त तीर्थों के फल को प्राप्त कर लेता है और शारीरिक-बन्धनों से मुक्त हो जाता है, ऐसी ही यह उपनिषद् है।।26

 

 

 

Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:

The Spiritual Talks

For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers  & Pinterest Stories:

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

For any query contact on:

E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!