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इस स्तोत्र के द्वारा तुलसी जी का पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णुलोक में जाता है । विशेष रूप से कार्तिक एकादशी, तुलसी विवाह में और कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी पूजन करने से मनुष्य को अत्यंत पुण्य प्राप्त होता है । साथ ही कार्तिक महीने में विष्णु जी को तुलसी अर्पित करने से सहस्त्र गौ दान करने का पुण्य मिलता है।
तुलसी स्तोत्र
ध्यान
तुलसीं पुष्पसारां च सतीं पूज्या मनोहराम् ।
कृत्स्नपापेध्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम् ॥
पुष्पेषु तुलनाऽप्यस्या नासीद्देवीषु वा मुने ।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिता ॥
शिरोधार्यां च सर्वेषामीप्सितां विश्वपावनीम् ।
जीवन्मुक्ता मुक्तिदा च भजे तां हरिभक्तिदाम् ॥
अर्थ
तुलसी सभी फूलों का सार है वह सती है , पूजनीय है , मनोहर है।
सभी पापरूपी इंधन को जला डालने में समर्थ अग्नि है।।
इसकी तुलना ना तो फूलों से हो सकती है ना ही देवी से हो सकती है।
इसलिए इस पवित्र देवी को तुलसी कहा गया।।
यह सबकी शिरोधार्या है , अभीष्ट है , विश्व को पावन करने वाली है।
सभी को जीवनमुक्ति प्रदान करने वाली , मुक्ति और हरि भक्ति प्रदान करने वाली हैं।।
भगवान उवाच
वृन्दारूपाश्च वृक्षाश्च यदैकत्र भवन्ति च ।
विदुर्बुधास्तेन वृन्दा मत्प्रियां तां भजाम्यहम् ॥
पुरा बभूव या देवी ह्यादौ वृन्दावने वने ।
तेन वृन्दावनी ख्याता सुभगां तां भजाम्यहम् ॥
असंख्येषु च विश्वेषु पूजिता या निरन्तरम् ।
तेन विश्वपूजिताख्यां जगत्पूज्यां भजाम्यहम् ॥
असंख्यानि च विश्वानि पवित्राणि यया सदा ।
तां विश्वपावनीं देवीं विरहेण स्मराम्यहम् ॥
देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना ।
तां पुष्पसारां शुद्धां च द्रष्टुमिच्छामि शोकतः ॥
विश्वेयत्प्राप्तिमात्रेण भक्त्यानन्दो भवेद्ध्रुवम् ।
नन्दिनी तेन विख्याता सा प्रीता भविता हि मे ॥
यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च ।
तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् ॥
कृष्णजीवनरूपा या शश्वत्प्रियतमा सती ।
तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम् ॥
भगवान कहते हैं
जब वृंदा के वृक्ष एक जगह जमा हो जाते हैं।
तब मेरी प्रेमिका तुलसी को बुद्धिमान लोग वृंदा कहते हैं मैं उसकी सेवा कर रहा हूँ।।
पुरातन काल में जो वृंदावन में प्रकट हुई थी जिस कारण उसे वृंदावनी कहा जाता है।
उस सौभाग्यशाली देवी की मैं सेवा कर रहा हूँ।।
अनगिनत विश्व में उसकी हमेशा पूजा होती है इसलिए उसे विश्व पूजिता कहा जाता है।
इसलिए उस जगत पूजित देवी की मैं पूजा कर रहा हूँ।।
जिससे अनगिनत विश्व हमेशा पवित्र रहते हैं।
उस विश्व पावनी देवी के विरह में तड़पकर याद मैं कर रहा हूँ।।
जिसके अभाव में देव अनेक फूलों को पाकर भी प्रसन्न नहीं होते।।
उस शुद्ध और पुण्यरुपी देवी को देखने के लिए मैं व्याकुल हूँ।।
जिसके सिर्फ प्राप्ति भर से ही भक्त प्रसन्नचित्त हो जाता है।
जिस कारण से वे नंदिनी के नाम से प्रसिद्ध है , वह देवी तुलसी मुझ पर प्रसन्न हो जाए।।
पूरे संसार में जिसकी कोई तुलना ना हो , जिसके कारण उसका नाम तुलसी पड़ा हो।
उस प्रिया की मैं शरण में जाता हूँ।।
जो कृष्ण जी की जीवनस्वरूपा है , जो उनकी प्रियतमा है।
वह कृष्ण जीवनी देवी मेरे जीवन की रक्षा करें।।
फलश्रुति
अपुत्रो लभते पुत्रं प्रियाहीनो लभेत्प्रियाम् ।
बन्धुहीनो लभेद्बन्धुं स्तोत्रस्मरणमात्रतः ॥
रोगी प्रमुच्यते रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
भयान्मुच्येत भीतस्तु पापान्मुच्येत पातकी ॥
फलश्रुति
तुलसी जी के स्तोत्र के स्मरण मात्र से पुत्रहीन को पुत्र , स्त्रीहीन को स्त्री प्राप्त होती है।
बंधुहीन को बंधु प्राप्त होते हैं।।
रोगी रोगों से मुक्त हो जाते हैं , बंधन में फंसे हुए लोग बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
डरा हुआ प्राणी डर से मुक्त हो जाता है और पापी मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे
तुलसी स्तोत्रं सम्पूर्णम।।
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