Shri Krishna Shodashi Stotra

Shri Krishna Shodashi Stotra | श्री कृष्ण षोडशी स्तोत्र | श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी | Shri Krishna Stotram  | नित्य पाठ के लिए भगवान श्रीकृष्ण का षोडशी स्तोत्र | इस सुंदर कृष्ण स्तुति का पाठ करने से हो जाती है हर मनोकामना पूरी | इस सरल मगर शक्तिशाली स्तोत्र के द्वारा तुरंत कृपा करते हैं भगवान श्रीकृष्ण | श्री कृष्ण स्तोत्र | shri Krishna Stotra

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Shri Krishna Shodashi Stotra

 

 

 

 

भगवान श्रीकृष्ण परमब्रह्म परमात्मा और सबके आराध्य हैं। अपने भक्तों के लिए वे अत्यन्त सुलभ व सुखदायक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है–’मैं अपने भक्त के अधीन हूँ।’ उनके लीलाचरित्रों का रहस्य समझ पाना अत्यन्त कठिन है परन्तु उनका गान करके मनुष्य भगवान की कृपा सहज ही प्राप्त कर सकता है। ‘षोडशी स्तोत्र’ में भगवान श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण लीलाओं का गान सोलह पदों में किया गया है। इस स्तोत्र में भक्त भगवान श्रीराधाकृष्ण के पूर्ण शरणागत होकर उनसे अपने सम्पूर्ण अंगों की रक्षा की प्रार्थना करता है अत: यह स्तोत्र एक ‘कवच’ की तरह है। इसके नित्य पाठ से भगवान श्रीकृष्ण की शरणागति व उनके चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

 

 

 

श्री कृष्ण षोडशी स्तोत्र

 

 

 

जय जय श्रीराधारमण, मंगल करन कृपाल,

लकुट मुकुट मुरली धरन मनमोहन गोपाल ।

 

हे वसुदेवकुमार देवकीनंदन प्यारे,

गोकुल में नन्दलाल बाललीला विस्तारे।

गति दीन्ही पूतनहिं नाथ अब मेरी बारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१।।

 

माटी के मिस बदन सकल ब्रह्माण्ड दिखायो,

गोपिन छछिया भरि छाछहिं पे नाच नचायो ।

ऊखलसो बँधि नलकूबर की कुगति सुधारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।२।।

 

तृणावर्त अरू शकट अघासुर आदि नसाये,

ब्रह्मा बालक वत्स हरे बहु रूप बनाये ।

काली के फन फन पर नाचत रास बिहारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।३।।

 

दावानाल करि पान सबन को कष्ट मिटायो ,

खेल सखन सँग हारि श्रीदामहि कंध चढ़ायो ।

चीर हरण करि गोप ललिन की भूल सुधारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।४।।

 

बरसत ब्रज पर मेघ लियो गोवर्धन धारी,

भोजन मिस करि दरस तरीं मथुरा की नारी ।

नन्दहिं लाये वरूण लोक सों जग भय हारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।५।।

 

ग्वालन को निज दिव्य धाम वैकुण्ठ दिखायो,

शरदचन्द्र लखि विपिन मनोरम रास रचायो ।

गोपिन विच विच श्याम नटत नटवरवपुधारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।६।।

 

शंखचूड़ अरू केशि अरिष्टा व्याैमा तारे,

व्याकुल ब्रज अक्रूर संग मथुरा पग धारे ।

धोबी गज अरू मल्ल कंस पापी संहारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।७।।

 

कुब्जा सुन्दर करी हरी रुक्मणि सुकुमारी,

कन्या सोरह सहस बरी भौमासुर मारी ।

लाये सुरपुर सों सुरतरु सुरराज पछारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।८।।

 

विप्र सुदामा कियो कृपानिधि पूरण कामा,

पारथ सारथि बने महाभारत संग्रामा ।

द्रुपदसुता की लाज बचाय बढ़ायी सारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।९।।

 

गज की आर्त पुकार सुनत आतुर उठि धाये,

ब्रह्म अस्त्र सों गर्भ परीक्षित जरत बचाये ।

शंकर को भय हरयो परयो जब संकट भारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१०।।

 

देखि दुखित प्रहलाद रूप नरहरि को धारयो,

तिन तिन को दुख हरयो नेक जिन तुमहिं पुकारयो ।

ध्रुव को दीन्हे नाथ दिव्य दर्शन सुखभारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।११।।

 

मम मस्तक की करो सदा रक्षा मथरेश्वर,

नैनन नन्दकुमार नासिका नित तुलसीश्वर ।

मुख की रक्षा करो सदा श्रीमुरलीधारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१२।।

 

श्रवणन श्रीधर कण्ठ कंस संहारन हारे,

भुजन चतुर्भुज करन सदा करतार हमारे ।

हिरदय हरि हृदयेश राधिका रमण मुरारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१३।।

 

नाभि निरंजन पद्मनाभ नारायण प्यारे,

जंघन जगदाधार चरण गोचारण हारे ।

अँगुरिन श्रीचक्रधर नखन गोवर्धन धारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१४।।

 

पीठ परम प्राणेश सदा सन्मुख सुखराशी,

सब अंगन सर्वेश सच्चिदानन्द अविनाशी ।

मन मन्दिर में बसौ सदा मोहन बनवारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१५।।

 

मैं अति दोषनिधान दुखित करुणामय स्वामी,

जेहि विधि मम हित होय करहु सो अन्तरयामी ।

वंदत पद ‘जयरामदेव’ चरणन शिरधारी,

श्रीराधावर कृष्णचन्द्र मैं शरण तुम्हारी ।।१६।।

 

जै जै श्री राधारमण, जै जै नवल किशोर,

जै गोपी चितचोर प्रभु, जै जै माखन चोर ।।

 

श्री वृषिभानु कुमारि के पद वन्दउँ कर जोरि,

जिनकी कृपा कटाक्ष से सुख उपजत चहुँ ओर ।।

 

श्री राधे हाथन मेंहदी लगी, नथ में उलझे केश,

नन्द नंदन सुलझावते, धरि ललिता का भेष ।।

 

जसुदा जी को लाड़लौ, सन्तन को प्रतिपाल,

गहे शरण प्रभु राखियौं, सब अपराध बिसार ।।

 

बार बार वर मागहुॅँ, हरषि देहु श्रीरंग,

पद सरोज अनपायनी, भगति सदा सतसंग।।

 

 

 

 

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