Shri Lakshmi Narasimha Karavalamb Stotram | श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्रम | श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्रम हिंदी लिरिक्स हिंदी अर्थ सहित | Shri Lakshmi Narsimha Karavalamb Stotram English Lyrics with meaning | Shri Lakshmi Narsimha Karavalamb Stotram Hindi & English Lyrics with meaning | श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलम्बम स्तोत्र लिरिक्स हिंदी अर्थ सहित
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श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्रम
श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्रम की रचना श्री आदि शंकराचार्य ने की थी। यह स्तोत्र भगवान श्री लक्ष्मी नरसिंह की स्तुतियों से पूर्ण है जो कि भगवान् नरसिंह के उग्र रूप को शांत करने के भाव से की गयीं थीं । इस स्तोत्र में कुल 17 स्तुतियां हैं । या स्तोत्र ‘लक्ष्मी नरसिंह करावलम्ब स्तोत्र’ इसलिए कहलाता है क्योंकि इस स्तोत्र की प्रत्येक स्तुति का अंत ‘लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम्’ से होता है जिसका करता है कि ‘ हे भगवान् नरसिंह ! कृपया मेरी सहायता के लिए अपना हाथ बढ़ाइए ‘ । जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का प्रतिदिन पथ करता है उस व्यक्ति का क्रोध प्रतिदिन काम और शांत होता जाता है और उसके घर में सुख शांति का निवास हो जाता है । या एक शक्तिशाली स्तुति है जो सभी के आध्यात्मिक जीवन का एक अंग होनी चाहिए ।श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय और चिंता दूर हो जाते है। यह स्तोत्र पाठ करने वाले को साहस, आत्मविश्वास, विश्वास और निडरता प्रदान करता है । शत्रुओं को वश में करने में सहयता करता है और भगवान नरसिंह की सुरक्षात्मक कृपा से उनके बुरे प्रभावों से बचाता है। यह स्तोत्र सभी बुराइयों और खतरों से रक्षा में एक ढाल की तरह काम करता हैं। चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा भेजता है और घरों और व्यावसायिक स्थानों से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यह घर के सदस्यों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देता है। श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्र भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करता है और उन्हें अपने परम आध्यात्मिक लक्ष्य अर्थात् मुक्ति की ओर ले जाता है।भगवान नरसिंह भले ही क्रूर प्रवत्ति के प्रतीत होते हों किन्तु वे अत्यंत दयालु और और कृपा करने वाले हैं। इसलिए श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्र सफलता और सुरक्षा के लिए भगवान नरसिंह का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है।
श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्रम
श्रीमत्पयॊनिधिनिकॆतन चक्रपाणॆ
भॊगीन्द्रभॊगमणिराजित पुण्यमूर्तॆ ।
यॊगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपॊत
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 1 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को नमस्कार) जो क्षीर सागर में निवास करते हैं जो कि श्री (सौंदर्य और शुभता) से भरा हुआ है, जो आदि शेष नाग के फन पर चमकती हुयी मणियों के दिव्य प्रकाश में जिनका दिव्य मुख अपने हाथ पर एक चक्र धारण किये हुए चमक रहा है , जो योगेश्वर हैं , जो शाश्वत हैं , जो इस संसार के महासागर में एक नाव की तरह भक्तों को शरण देने वाले हैं, हे लक्ष्मी नृसिंह ! कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें ॥ 1 ॥
Shriimat-Payo-Nidhi-Niketan Chakra-Paanne
Bhogiindra-Bhog-Manni-Ran.jita-Punnya-Muurte |
Yogiisha Shaashvata Sharannya Bhava-Abdhi-Pota
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||1||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) Who resides on the Ocean of Milk, which is filled with Sri (Beauty and Auspiciousness), holding a Chakra (Discus) on His Hand with His Divine Face Shining with the Divine Light emanating from the Gems on the Hoods of Serpent Adi Shesha, Who is the Lord of Yoga, and Eternal, and giver of Refuge to the Devotees like a Boat over the Ocean of Samsara (Worldly Existence), O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands||1||
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ब्रह्मॆन्द्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकॊटि
सङ्घट्टिताङ्घ्रिकमलामलकान्तिकान्त ।
लक्ष्मीलसत्कुचसरॊरुहराजहंस
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 2 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को प्रणाम) ब्रह्मा, रुद्र, मरुत (पवन-देवता) और अर्क (सूर्य-देवता) के लाखों मुकुट जणित सर जिनके निर्मल , शुद्ध चरणों में नतमस्तक होते हैं और उन के समान वैभव प्राप्त करने की कामना रखते हैं, जो देवी लक्ष्मी के हृदय के भीतर झील पर तैरते हुए राजसी हंस हैं । हे लक्ष्मी नृसिंह ! कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें ॥ 2 ॥
Brahmendra-Rudra-Marud-Arka-Kiriitta-Kotti_
Sangghattttita-Angghri-Kamala-Amala-Kaanti-Kaanta |
Lakshmi-Lasat-Kuch-Saro-Ruha-Raajahamsa
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||2||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) Millions of Diadems (i.e. Decorated crowns ) of Brahma, Rudra, Maruts (Wind-Gods) and Arka (Sun-God) assembles at Whose Stainless, Pure Feet, desiring to obtain Its Splendour, Who is a Royal Swan floating on the Lake within the Heart of Devi Lakshmi, O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands ||2||
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संसार घोर गहने चरते मुरारे
मारोग्र भीकर मृग प्रवर्धिष्टाय
अर्थस्य मर्तस्य निध पीडितस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ।।3।।
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को नमस्कार) संसार के इस घने जंगल में मैं भटकता हूं, हे मुरारी (मुर दैत्य के शत्रु ), (संसार के इस जंगल में) कई दुर्जेय और हिंसक पशु मुझे विभिन्न इच्छाओं से पीड़ा देते हैं और मुझमें गहन भय उत्पन्न करते हैं , मैं (संसार के) इस स्वार्थ और ताप से बहुत पीड़ित और आहत हूं, हे लक्ष्मी नृसिंह ! कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें॥ 3 ॥
Samsaara-Ghor-Gahane Charate Muraare
Maaro[a-U]gra-Bhiikara-Mrga-Pravara-Arditasya |
Arthasya Matsara-Nidh-piidditasya
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||3||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) In this Dense Forest of Samsara (Worldly Existence), I wander, O Murari (the enemy of demon Mura), Many Formidable and Ferocious Animals (in this forest of Samsara), torments me with various Desires and rouses deep Fear in me, I am deeply Afflicted and Hurt in this Selfishness and Heat (of the Samsara), O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands||3||
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संसार कूपं अति घॊर मगाध मूलं
सम्प्राप्य दुःखशतसर्पसमाकुलस्य ।
दीनस्य दॆव कृपण आपदामागतस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 4 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को नमस्कार) संसार के इस कूप में जो अत्यधिक भयानक है; मैं इसकी अथाह गहराई तक पहुँच गया हूँ; जहां यह दुख रुपी सैकड़ों सांपों से भरा है, हे देव ! इस दयनीय आत्मा के लिए जो विकट है और विभिन्न आपदाओं से पीड़ित है, हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें ॥ 4 ॥
Samsaar-Koopam-Ati-Ghoram-Agaadha-Muulam
Sampraapya Duhkh-Shata-Sarpa-Samaakulasya |
Dinasya Deva Krpanna-[A]apadam-Aagatasya
Lakshmi-Narsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||4||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) In this Well of Samsara (Worldly Existence), which is exceedingly Terrible; to its Unfathomable Depth , I have reached; where it is filled with hundreds of Snakes of Sorrows, To this Miserable soul, O Deva, who is wretched and afflicted with various Calamities, O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands||4||
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संसारसागरविशालकरालकाल
नक्रग्रह ग्रसन निग्रहविग्रहस्य ।
व्यग्रस्य राग रसनोयॊर्मिनिपीडितस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 5॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को नमस्कार) संसार के इस विशाल महासागर में, जहां काल (समय) एक ग्राह (मगरमच्छ ) की भाँति सब कुछ अलग कर देता है; मेरा जीवन इस प्रकार बद्ध है और दिन प्रतिदिन ऐसे नष्ट हो रहा है जिस प्रकार राहु चन्द्रमा को स्तंभित और नष्ट कर रहा है , और मेरी इंद्रियां राग ( वासना ) के रस की लहरों में तल्लीन होकर मेरे जीवन को निचोड़ रही हैं, हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें ॥ 5 ॥
Samsaara-Saagara-Vishaala-Karaala-Kaala_
Nakra-Graha-Grasana-Nigraha-Vigrahasya |
Vyagrasya Raaga-Rasano[a-U]rmi-Nipiidditasya
Lakshmi-Narsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||5||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) In this Huge Ocean of Samsara (Worldly Existence), where Kala (Time) cleaves asunder everything like a Crocodile; my life is restrained and being eaten away like Rahu restrains and devours the Planet (i.e. Moon), and my senses being engrossed in the Waves of the Rasa (Juice) of Raga (Passion) is squeezing away my life, O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands ||5||
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संसारवृक्षमघबीजमनन्तकर्म-
शाखा शतं करणपत्रम अनङ्ग पुष्पम् ।
आरुह्य दुःख फलितं पततो दयालॊ
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 6 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिम्हा को प्रणाम) संसार के इस वृक्ष में – बुराई जिसका बीज है, अंतहीन गतिविधियां जिसकी सैकड़ों शाखाएं हैं, ज्ञानेन्द्रिय जिसका पत्ता है, अनंग (कामदेव) जिसका फूल है; मैंने उस पेड़ (संसार के) पर चढ़ा है और उसके दुखों का फल काटा है, अब नीचे गिर रहा हूँ ; हे दयालु, हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें॥ 6 ॥
Samsaara-Vriksham-Agha-Biijam-Ananta-Karma_
Shaakhaa-Shatam Karan-Patram-Anangga-Pushpam |
Aaruhya Duhkha-Phalitam Patato Dayaalo
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||6||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) In this Tree of Samsara (Worldly Existence) – Evil is whose Seed, Endless Activities are whose hundreds of Branches, Sense Organ is whose Leaf, Ananga (Kamadeva) is whose Flower; I have mounted that Tree (of Samsara) and having reaped its Fruits of Sorrows, is now falling down; O Compassionate One, O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands.||6||
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संसारसर्प घन वक्त्र भयोग्रतीव्र
दंष्ट्रा कराल विष दग्ध विनष्टमूर्तॆः ।
नागारिवाहन सुधाब्धिनिवास शौरॆ
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 7 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को नमस्कार) संसार के इस सर्व-विनाशकारी नाग ने अपने भयंकर चेहरे और तेज नुकीले दांतों के साथ, मुझे अपने भयानक जहर से जला दिया और नष्ट कर दिया, हे सर्पों के शत्रु (गरुड़) की सवारी करने वाले (जो कर सकते हैं) संसार के नागों को मार डालो), हे अमृत के सागर में रहने वाले (जो जले हुए प्राणियों को ठीक कर सकते हैं), हे शौरी (विष्णु), हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें || 7||
Samsaara-Sarpa-Ghana-Vaktra-Bhayo[a-U]gra-Tiivra_
Damssttraa-Karaala-Vissa-Dagdha-Vinasht-Moorteh |
Naagaari-Vaahana Sudhaa-[A]bdhi-Nivaasa Shaure
Lakshmii-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||7||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) This all-destroying Serpent of Samsara (Worldly Existence) with its Dreadful Face and Sharp Fangs, has burnt and destroyed me with its Terrible Poison, O the One riding the Enemy of Serpents (Garuda) (who can kill the serpents of Samsara), O the One Who Dwell in the Ocean of Nectar (which can heal out burnt beings), O Shauri (Vishnu), O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands||7||
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संसारदावदहनाकरभीकरॊरु-
ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्य ।
त्वत्पादपद्मसरसीरुहमागतस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 8॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को प्रणाम) इस संसार की जलती हुई अग्नि जो हममें भय पैदा करती है और हमें पीड़ित करती है, इसकी धधकती ज्वाला मेरे शरीर के हर हिस्से को जला रही है, आपके चरण कमल ( जली हुई आत्माओं के लिए) शरण देने वाली (ठंडी) झील हैं , हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें।||8||
Samsaara-Daava-Dahana-[A]atura-Bhiikaro-Ru_
Jvaalaa-Valiibhir-Ati-Dagdha-Tanuuruhasya |
Tvat-Paada-Padma-Sarasii-Sharannaagatasya
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||8||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) The Burning Heat of this Samsara (Worldly Existence) which creates Fear in us and makes us Suffer, It’s Blazing Flame is Burning every part of my Body, Your Lotus Feet is a (Cooling) Lake giving Refuge (to the Burnt Souls), O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands.||8||
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संसारजालपतिततस्य जगन्निवास
सर्वॆन्द्रियार्थ बडिसार्थ जषॊपमस्य ।
प्रॊत्गंडित प्रचुरतालुक मस्तकस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 9 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को नमस्कार) (उसकी तरह जो) इस दुनिया में रहते हुए संसार जल (सांसारिक लगाव का जाल) में गिर गया है, और जिसकी सभी इंद्रियां एक फंसी हुई मछली की तरह पीड़ित हो गई हैं, (मछली) जिसका तालू और सिर भयानक रूप से फटा हुआ है (इंद्रियों पर कई मछली के कांटे द्वारा) (ऐसी मेरी हालत है, इसलिए), हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें।||9||
Samsaara-Jaala-Patitasya Jagan-Nivaasa
Sarve[a-I]ndriya-[A]arta-Baddisa-[A]artha-Jhasso[a-U]pamasya |
Protkhannddita-Prachura-Taaluka-Mastakasya
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||9||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) (Like the one who) Living in this World has fallen in the Samsara Jala (Net of Worldly attachment), and whose all Indriyas (Sense Organs) have become afflicted like a Hooked Fish, (The Fish) whose Palate and Head has been profusely Torn (by the many Fish Hooks on the Sense Organs) (Such is my condition, so), O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands.||9||
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संसारभीकरकरीन्द्रकराभिघात
निष्पीड्य मर्म वपुषः सकलार्तिनाश ।
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 10 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को प्रणाम) इस संसार (सांसारिक अस्तित्व) ने, एक विशाल भयानक हाथी की तरह, मुझे अपनी सूंड से प्रताड़ित किया है और (अपने पैरों से) मेरे प्राणों को कुचल दिया है; हे भगवान ! आप सबसे सुंदर हैं और सभी पीड़ाओं के नाशक हैं, मेरे लिए जो इस संसार में मृत्यु के भय से डरा हुआ है , हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें||10||
Samsaara-Bhiikara-Kariindra-Kara-Abhighaata_
Nisspisstta-Marma-Vapussah Sakala-[A]arti-Naasha |
Praanna-Prayaanna-Bhava-Bhiiti-Samaakulasya
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||10||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) This Samsara (Worldly Existence), like a Huge Dreadful Elephant, has struck me with its Trunk and (with its Feet) has Crushed my Vitals; O Lord, You Who are the most Beautiful and destroyer of all Pains, To me who is filled with the Fear of Death in this World, O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands||10||
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अन्धस्य मॆ हृतविवॆकमहाधनस्य
चॊरैर्महाबलिभिरिन्द्रियनामधॆयैः ।
मॊहान्धकारकुहरॆ विनिपातितस्य
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 11 ॥
(श्री लक्ष्मी नृसिंह को प्रणाम) मेरे विवेक (अच्छे और बुरे के बीच भेदभाव की शक्ति) के छीन जाने के कारण मेरी दृष्टिहीनता ( अंधापन ) , हे भगवान ! चोरी से कमाया हुआ अपार धन , इंद्रियों द्वारा निरंतर प्रेरित किये जाने के कारण मेरा जीवन भ्रम के अंधेरे कुएं में गिर गया है, हे लक्ष्मी नृसिंह, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें।||11||
Andhasya Me Hrta-Vivek-Mahaa-Dhanasya
Choraih Prabho Bhalibhi-Indriyanaam-deyaih |
Moha-Andha-Kuupa-Kuhare Vinipaatitasya
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||11||
(Salutations to Sri Lakshmi Nrisimha) My Blindness due to seizing away my Viveka (Power of discrimination between good and bad), the great Wealth by Theft, O Lord, by the Indriyas (Sense Organs) which prompted for constant Oblations, has made my Life Fall inside the Dark Well of Delusion, O Lakshmi Nrisimha, Please give me Your Refuge by holding me with Your Divine Hands.||11||
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बद्ध्वा गलॆ यमभटा बहु तर्जयन्त
कर्षन्ति यत्र भवपाशशतैर्युतं माम् ।
ऎकाकिनं परवशं चकितं दयालॊ
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 12 ॥
हे महान भगवान लक्ष्मी नरसिंह ! मुझे मृत्यु के देवता के दूतों ने सांसारिक बंधनों की कई रस्सियों से बांध दिया है और वे मुझे नाक से गर्दन के चारों ओर घसीट रहे हैं और मैं अकेला, थका हुआ और डरा हुआ हूं और इसलिए हे दयालु कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें। ||12||
Baddhva Gale Yambhata bahu tarjayant
karshanti yatra bhav paash shatairyutam maam
aikakinam parvasham chakitam dayalo
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||12||
O great God Lakshami Narsimha , I have been tied by the soldiers of the God of death by numerous ropes of worldly attachments and they are dragging me along by the nose around the neck and I am alone , tired and afraid and so oh merciful one please give me the protection of your hands ||12||
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लक्ष्मीपतॆ कमलनाभ सुरॆश विष्णॊ
वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन विश्वरूप ।
ब्रह्मण्य कॆशव जनार्दन चक्रपाणे
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 13 ॥
हे देवों के राजा, जो लक्ष्मी के पति हैं (भगवान) हैं, जिनकी नाभि पर कमल है, जो विष्णु स्वर्ग के स्वामी हैं, जो वैकुंठ हैं, जो कृष्ण हैं, जो मधु के संहारक हैं, जो कमल के साथ एक हैं आंखें, जो ब्रह्म के ज्ञाता हैं, जो केशव, जनार्दन, वासुदेव हैं, कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें। ||13||
Lakshmi-Pate Kamala-Naabha Suresha Vishnno
Vaikunnttha Krssnna Madhusuudana Vishvaroop |
Brahmannya Keshava Janaardana Chakrapanne
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||13||
O King of devas , who is the Lord of lakshami who has a lotus on his belly , who is Vishnu the Lord of all heavenly beings , who is Vaikuntha , who is krishna , who is the slayer of Madhu , who is one with lotus eyes , who is the knower of brahman , who is Keshava , Janardana , Vasudeva, Please give me protection of your hands . ||13||
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ऎकॆन चक्रमपरॆण करॆण शङ्ख-
मन्यॆन सिन्धुतनयामवलम्ब्य तिष्ठन् ।
वामॆतरॆण वरदाभयपद्मचिह्नं
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 14 ॥
हे महान भगवान लक्ष्मी नरसिम्हा जिनके एक हाथ में सुदर्शन, पवित्र पहिया है, जो दूसरे हाथ में शंख धारण करते हैं, जो दूसरे हाथ में समुद्र की बेटी को गले लगाते हैं, और चौथा हाथ सुरक्षा और वरदान का प्रतीक है और इसलिए कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें।||14||
Eken Chakram Parenn Karenn Shankh
manyen sindhu Tanayaamavlambya Tishthan
Vaametarenn Varada bhay padm chihhnnam
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||14||
O Great God Lakshami narsimha who holds sudarshan , the holy wheel in one hand , who holds the conch in the other hand , who embraces the daughter of ocean in other hand , and the fourth hand signifies protection and boons and so please give me the protection of your hands ||14||
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संसारसागरनिमज्जनमुह्यमानं दीनं
विलॊकय विभॊ करुणानिधॆ माम् ।
प्रह्लादखॆदपरिहारपरावतार
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 15 ॥
हे महान भगवान लक्ष्मी नरसिम्हा, मैं दिन-प्रतिदिन के जीवन के समुद्र में डूबा हुआ हूं, कृपया इस दीन की रक्षा करें, हे भगवान, हे दयानिधि ! जैसे आपने प्रहलाद के दुखों को दूर करने के लिए एक रूप धारण किया और इसलिए कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें। ||15||
Sansar sagar nimajjan muhyamaanam
Dinam Vilokya vibho karunanidhe maam
prahalad khed parihar paravataar
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||15||
O great God Lakshami Narsimha , I am drowned in the ocean of day to day life , please protect this poor one, oh Lord , Oh treasure of compassion just as you took a form to remove the sorrows of Prahalad and so please give me the protection of your hands ||15||
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प्रह्लादनारदपराशरपुण्डरीक-
व्यासादिभागवतपुङ्गवहृन्निवास ।
भक्तानुरक्तपरिपालनपारिजात
लक्ष्मीनृसिंह मम दॆहि करावलम्बम् ॥ 16 ॥
हे महान भगवान लक्ष्मी नरसिंह, जो प्रहलाद, नारद, पराशर, पुंडरीक और व्यास जैसे ऋषियों के हृदय में रहते हैं, जो अपने भक्तों से प्रेम करते हैं और उनकी रक्षा करने वाले मनोकामना देने वाले वृक्ष हैं और इसलिए कृपया मुझे अपने दिव्य हाथों से पकड़कर अपनी शरण दें।॥ 16॥
Prahalad Narad Parashar Pundarik
Vyasaadi Bhagavat Pungav Hrinnivaas
Bhaktanurakt Paripalan Paarijaat
Lakshmi-Nrsimha Mama Dehi Kara-Avalambam ||16||
O great God Lakshami Narsimha, who dwells in the heart of sages like prahalad , Narad , parashar , Pundarika and Vyasa , who loves His devotees and is the wish giving tree that protects them and so please give me the protection of your hands ॥ 16 ॥
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लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुव्रतॆन
स्तॊत्रं कृतं शुभकरं भुवि शङ्करॆण ।
यॆ तत्पठन्ति मनुजा हरिभक्तियुक्ता-
स्तॆ यान्ति तत्पदसरॊजमखण्डरूपम् ॥ 17 ॥
यह प्रार्थना जो पृथ्वी को आशीर्वाद रूप में एक शुभ फल के रूप में प्रदान करती है, शंकर अर्थात शंकराचार्य द्वारा रचित है, जो एक मधुमक्खी के समान हैं , जो श्री लक्ष्मी नृसिंह के कमल-चरणों के अमृत में तल्लीन होकर इस स्तोत्र की रचना करते हैं और जो मनुष्य हरि की भक्ति से युक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करेंगे , वे श्री लक्ष्मी नृसिंह के चरण कमलों को प्राप्त करेंगे। इस प्रार्थना के द्वारा भ्रम में डूबे लोगों को बचाने के लिए श्री लक्ष्मी नृसिंह की शरण लेने क लिए हाथ बढ़ाया गया है ॥ 17॥
Lakshami Narsingh Charanaabjam Dhruvten
Stotram Kritam Shubhkaram Bhuvi Shankarenn
Ye Tatpathanti Manuja Haribhaktiyuktaste
Yaanti Tatpadsarojam Khannd roopam॥ 17 ॥
The prayer which blesses earth with good things is composed by Shankara who is a bee drinking deeply the honey from the lotus feet of Lakshami narsimha and those human who are blessed with devotion to Hari will attain the lotus Feet of the Shri Lakshmi Nrisingh॥ 17 ॥
श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्रम के लाभ
श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय और चिंता दूर हो जाते है। यह स्तोत्र पाठ करने वाले को साहस, आत्मविश्वास, विश्वास और निडरता प्रदान करता है । शत्रुओं को वश में करने में सहयता करता है और भगवान नरसिंह की सुरक्षात्मक कृपा से उनके बुरे प्रभावों से बचाता है। यह स्तोत्र सभी बुराइयों और खतरों से रक्षा में एक ढाल की तरह काम करता हैं। चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा भेजता है और घरों और व्यावसायिक स्थानों से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यह घर के सदस्यों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देता है। श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्र भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करता है और उन्हें अपने परम आध्यात्मिक लक्ष्य अर्थात् मुक्ति की ओर ले जाता है। भगवान नरसिंह भले ही क्रूर प्रवत्ति के प्रतीत होते हों किन्तु वे अत्यंत दयालु और और कृपा करने वाले हैं। इसलिए श्री लक्ष्मी नरसिंह करावलंब स्तोत्र सफलता और सुरक्षा के लिए भगवान नरसिंह का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है।
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