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हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी केस जलै ज्यूं घास।
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना।
हरिया जांणे रूखड़ा उस पाणी का नेह।
हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि ।
हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई ।
हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध ।
हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार ।
बड़ा भया तो क्या भया जैसे पेड़ खजूर ।
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय ।
बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि।
बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।
बहते को मत बहन दो कर गहि एचहु ठौर।
बन्दे तू कर बन्दगी तो पावै दीदार।
बार-बार तोसों कहा सुन रे मनुवा नीच।
बनिजारे के बैल ज्यों भरमि फिर्यो चहुँदेश।
बिरछा कबहुं न फल भखै नदी न अंचवै नीर।
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सब धरती काजग करू लेखनी सब वनराज ।
साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाये ।
सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग ।
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं ।
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत ।
शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान ।
सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप।
सांई ते सब होत है बन्दे से कुछ नाहिं।
साधु सीप समुद्र के सतगुरू स्वाती बुन्द।
संगति सों सुख ऊपजे कुसंगति सों दुख होय।
साहिब तेरी साहिबी सब घट रही समाय।