साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।
कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में अनाज साफ़ करने वाले सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में से अनाज के दानों को रख कर उसमें से तिनके , छिलके व दूसरी गैर-ज़रूरी चीज़ों को बाहर या अलग कर दिए जाते हैं। वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए। अर्थात निरर्थक चीज़ों को छोड़ कर सार्थक चीज़ों को ग्रहण करे ।