हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार ।
कौतिकहारा भी जले कासों करूं पुकार ।
दाह क्रिया में हड्डियां जलती हैं और उन्हें जलाने वाली लकड़ी जलती है तथा उनमें आग लगाने वाला भी एक दिन जल जाता है। समय आने पर उस दृश्य को देखने वाला दर्शक भी जल जाता है। जब सब का अंत यही हो तो पुकार किसको दू? किसको पुकारूँ ? किससे गुहार करूं ? किस से विनती या कोई आग्रह करूं? सभी तो एक ही नियति से बंधे हैं । सभी का अंत एक है ।