जानकी स्तुति अर्थ सहित

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जानकी स्तुति अर्थ सहित

 

 

जानकी स्तुति 

 

श्री जानकी स्तुति के नित्य पाठ से माता जानकी भक्तों पर प्रसन्न होती है। माँ जानकी की कृपा से मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता है। उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। दरिद्रता का नाश होता है और धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं। सीता नवमी को यह स्तुति पढ़ने का विशेष लाभ होता है । ऐसे मनुष्य को माँ सीता की असीम कृपा प्राप्त होती है ।

 

 

जानकी स्तुति हिंदी अर्थ सहित

 

 

जानकी त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥१॥

 

श्री हनुमान जी बोले- जनकनन्दिनी आपको नमस्कार हूँ। आप सभी पापों का नाश तथा दारिद्रय का संहार करने वाली हैं।।1।।

 

Jaanaki Tvaam Namasyaami

Sarva-Paapa-Prannaashiniim ||1||

 

(Hanumanji said:) O Devi Janaki, I salute You; You are the destroyer of all Sins ||1||

 

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Janaki Stuti English Lyrics

 

दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् ।

विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥२॥

 

आप दरिद्रता का नाश करने वाली हैं । भक्तों को अभीष्ट वस्तु देने वाली भी आप ही हैं। राघवेन्द्र श्रीराम को आनन्द प्रदान करने वाली (राघव श्री राम के आनंद का कारण ) विदेहराज जनक की लाड़ली श्रीकिशोरीजी को मैं प्रणाम करता हूँ ।।2।।

 

Daaridrya-Ranna-Samhartriim
Bhaktaana-Abhisstta-Daayiniim |
Videha-Raaja-Tanayaam

Raaghava-[A]ananda-Kaarinniim ||2||

 

(I Salute You) You are the destroyer of Poverty (in the battle of life) and bestower of wishes of the Devotees, (I Salute You) You are the daughter of Videha Raja (King Janaka), and cause of Joy of Raghava (Sri Rama) ||2||

 

 

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janaki Stuti with English Meaning

 

भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ।

पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥३॥

 

आप पृथ्वी की कन्या और विद्या (ज्ञान) स्वरूपा हैं, कल्याणमयी शुभ प्रकृति भी आप ही हैं। रावण के ऐश्वर्य का संहार तथा भक्तों के अभीष्ट को प्रदान करने वाली अर्थात भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली , सरस्वती रूपा भगवती सीता को मैं नमस्कार करता हूँ।।3।।

 

Bhuumer-Duhitaram Vidyaam

Namaami Prakrtim Shivaam |

Paulastya-[A]ishvarya-Samhatriim

Bhakta-Abhiissttaam Sarasvatiim ||3||

 

I Salute You, You are the daughter of the Earth and the embodiment of Knowledge; You are the Auspicious Prakriti, (I Salute You) You are the destroyer of the Power and Supremacy of (oppressors like) Ravana, (and at the same time) fulfiller of the wishes of the Devotees; You are an embodiment of Saraswati ||3||

 

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पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।

अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥४॥

 

(मैं आपको नमस्कार करता हूं) आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ और अग्रगण्य हैं । आप जनक की आत्मा हैं , उनकी प्रिय पुत्री हैं , आप बहुत दयालु हैं , भक्तों पर अनुग्रह करने वाली हैं , रिद्धि (लक्ष्मी), (शुद्ध और) निष्पाप, और हरि के अत्यंत प्रिय, आप श्रीजनकदुलारी को मैं प्रणाम करता हूँ।।4।।

 

Pativrataa-Dhuriinnaam Tvaam
Namaami Janaka-[A]atmajaam |
Anugraha-Paraam-Rddhim-

Anaghaam Hari-Vallabhaam ||4||

 

 I Salute You, You are the best among Pativratas (Ideal Wife devoted to Husband), (and at the same time) the Soul of Janaka (Ideal Daughter devoted to Father),  (I Salute You) You are very Gracious (being Yourself the embodiment of) Riddhi (Lakshmi), (Pure and) Sinless, and extremely Beloved of Hari||4||

 

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आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।

प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥५॥

 

आप ही आत्मविद्या, वेदत्रयी जिसका उल्लेख तीन वेदों में किया गया है तथा पार्वती स्वरूपा हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ । धर्म की आश्रयभूता करुणामयी वेदमाता गायत्री स्वरूपिणी श्रीजानकी को मैं नमस्कार करता हूँ। प्रसन्न मुख वाली आप क्षीरसागर  की पुत्री , शुभ लक्ष्मी हैं, और हमेशा (भक्तों पर) कृपा करने का विचार रखती हैं।।5।।

 

Aatma-Vidyaam Trayii-Ruupaam-

Umaa-Ruupaam Namaamyaham |

Prasaada-Abhimukhiim Lakssmiim

Kssiira-Abdhi-Tanayaam Shubhaam ||5||

 

I Salute You, You are the embodiment of Atma Vidya, mentioned in the Three Vedas (Manifesting its Inner Beauty in Life); You are of the nature of Devi Uma, (I Salute You) You are the Auspicious Lakshmi, the daughter of the Milky Ocean, and always intent on bestowing Grace (to the Devotees)||5||

 

 

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नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।

नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥६॥

 

चन्द्रमा की भगिनी (लक्ष्मीस्वरूपा) सर्वांगसुन्दरी सीता को मैं प्रणाम करता हूँ । सर्वांगसुन्दरी सीताजी का मैं अपने हृदय मे निरन्तर चिन्तन करता हूँ। आप धर्म की धाम, करुणा से पूर्ण और वेदों की जननी हैं।।6।।

 

 

Namaami Chandra-Bhaginiim

Siitaam Sarva-Angga-Sundariim |

Namaami Dharma-Nilayaam

Karunnaam Veda-Maataram ||6||

 

 I Salute You, You are like the sister of Chandra (in Beauty), You are Sita Who is Beautiful in Her entirety, (I Salute You) You are an Abode of Dharma, full of Compassion and the Mother of Vedas ||6||

 

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पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षःस्थलालयाम् ।

नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥७

 

मैं आपको नमस्कार करता हूं, (आप देवी लक्ष्मी के रूप में) कमल में निवास करती हैं, अपने हाथों में कमल धारण करती हैं, और हमेशा श्री विष्णु के हृदय में निवास करती हैं, आप चंद्र मंडल में निवास करती हैं, आप चन्द्रमुखी सीता देवी को मैं नमस्कार करता हूँ।।7।।

 

Padma-[A]alayaam Padma-Hastaam

Vissnnu-Vakssah-Sthala-[A]alayaam |

Namaami Candra-Nilayaam

Siitaam Candra-Nibha-[A]ananaam ||7||

 

 (I Salute You) (You as Devi Lakshmi) Abide in Lotus, hold Lotus in Your Hands, and always reside in the Heart of Sri Vishnu, I Salute You, You reside in Chandra Mandala, You are Sita Whose Face resembles the Moon||7||

 

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आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम् ।

नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ।

सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥८॥

 

आप श्रीरघुनन्दन की आह्लादमयी शक्ति हैं, कल्याणमयी सिद्धि हैं और भगवान् शिव की अर्द्धांगिनी कल्याणकारिणी सती हैं जिनकी उपस्थिति शुभ है और सिद्धि और मुक्ति प्रदान करती, मैं आपको नमस्कार करता हूं। मैं ब्रह्मांड की जननी को नमस्कार करता हूं, जो रामचंद्र की प्रिय हैं, मैं हमेशा ह्रदय से आपकी वंदना करता हूँ । हे सीता माता ! आप संपूर्ण रूप से सुंदर हैं , आपका रूप सभी को आनंद देता है, वह सौंदर्य जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।।8।। 

 

 

Aahlaadroopini siddhim shivaam shivkareem Sateem

Namami Vishvajananeem Ramchandreshtvallabhaam

Seetaam Sarvaanvadyaangi Bhajaami sattam Hrida||8||

(I Salute You) Your Form gives Joy to all, You are the Sati (Devoted Wife) Whose presence is Auspicious and confers Siddhi and Liberation, I Salute the Mother of the Universe, Who is the Beloved of Ramachandra, I always Worship You in my Heart, O Mother Sita, You are Beautiful in entirety, the Beauty which cannot be expressed in words ||8||

 

 

 

॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे सेतुमाहात्म्ये श्रीजानकीस्तुतिः सम्पूर्ण ॥

जानकी स्तुति के लाभ 

 

 

श्री जानकी स्तुति के नित्य पाठ से माता जानकी भक्तों पर प्रसन्न होती है। माँ जानकी की कृपा से मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता है। उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। दरिद्रता का नाश होता है और धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं।

 

 

 

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