नारायणाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित | Narayanashtottarashatanamastotram with hindi meaning| Narayan Ashtottar Shatanama Stotra | नारायण अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | Narayana Ashtottara Shatanama Stotram
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नारायण अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व, भगवान नारायण की स्तुति में एक भजन है। इसमें नारायण के 108 नाम शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक उनके गुणों और विशेषताओं का वर्णन करता है। ऐसा माना जाता है कि यह स्तोत्र उन लोगों को विजय, समृद्धि और मुक्ति प्रदान करता है जो इसे भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं। इस स्तोत्र में “नारायण” नाम का दोहराव और उससे जुड़े विभिन्न गुण ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण को दर्शाते हैं।
नारायणाय सुरमण्डनमण्डनाय नारायणाय सकलस्थितिकारणाय ।
नारायणाय भवभीतिनिवारणाय नारायणाय प्रभवाय नमो नमस्ते ॥ १॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है, जो देवताओं की सभा का आभूषण हैं , जो इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को सुशोभित करते हैं , जो इस समस्त सृष्टि की उत्पत्ति और उसके पालन का कारण हैं , जो इस भवसागर के भय को दूर करते हैं , जो भवरोगों का नाश करने वाले हैं , जो समस्त शक्तियों का स्रोत हैं । मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ ॥ १॥
(यह श्लोक भगवान नारायण के प्रति श्रद्धा और श्रद्धांजलि व्यक्त करता है, उन्हें ब्रह्मांड में निर्माता, पालनकर्ता और भय को दूर करने वाले के रूप में स्वीकार करता है। )
नारायणाय शतचन्द्रनिभाननाय नारायणाय मणिकुण्डलधारणाय ।
नारायणाय निजभक्तपरायणाय नारायणाय सुभगाय नमो नमस्ते ॥ २॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है , जिनका मुख सैकड़ों चंद्रमाओं के समान देदीप्यमान है।” जो रत्नजड़ित कुण्डलों से सुशोभित हैं। जो अपने भक्तों के प्रति समर्पित हैं , जो शुभ और मंगलकारी है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ ॥ २॥
नारायणाय सुरलोकप्रपोषकाय नारायणाय खलदुष्टविनाशकाय ।
नारायणाय दितिपुत्रविमर्दनाय नारायणाय सुलभाय नमो नमस्ते ॥ ३॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार हैं जो देवलोक का पोषण करते हैं, जो दुष्टों और धूर्तों का विनाश करते हैं, जो दिति के पुत्रों ( दैत्यों ) का दमन करते हैं, जो अपने भक्तों के लिए सुलभ हैं अर्थात आसानी से प्राप्त होने वाले हैं, मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ ॥ ३॥
नारायणाय रविमण्डलसंस्थिताय नारायणाय परमार्थप्रदर्शनाय ।
नारायणाय अतुलाय अतीन्द्रियाय नारायणाय विरजाय नमो नमस्ते ॥ ४॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है, जो सूर्य मंडल में स्थित हैं, जो सर्वोच्च ( परम ) सत्य को प्रकट करते हैं, जो अतुलनीय हैं , जो इंद्रियों से परे हैं, जो शुद्ध और दोषों से मुक्त हैं , मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ ॥ ४॥
नारायणाय रमणाय रमावराय नारायणाय रसिकाय रसोत्सुकाय ।
नारायणाय रजोवर्जितनिर्मलाय नारायणाय वरदाय नमो नमस्ते ॥ ५॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो आनंददायक हैं , जो सभी प्राणियों में निवास करते हैं , जो आनंद का स्रोत हैं , जो आनंदमग्न हैं , जो आत्मा को आनंदित करते हैं , जो योगीजनों और भक्तों की आत्माओं में रमण करते हैं , जो देवी लक्ष्मी के पति हैं , जो रसिक हैं, जो अत्यंत अनुभवी और कला तथा सौंदर्य के उत्तम पारखी हैं , जो भक्तों के भाव में लीन हैं , जो भक्ति रस के अमृत के लिए उत्सुक हैं, जो रजस और तमस ( रजोगुण / तमोगुण / सांसारिक वासनाओं ) से मुक्त और पवित्र हैं, जो निष्कलंक हैं , जो वरदान देने वाले हैं, उन नारायण मैं को बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥ ५॥
नारायणाय वरदाय मुरोत्तमाय नारायणाय अखिलान्तरसंस्थिताय ।
नारायणाय भयशोकविवर्जिताय नारायणाय प्रबलाय नमो नमस्ते ॥ ६॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो वरदान देने वाले हैं, जो मुर के शत्रुओं में सर्वश्रेष्ठ हैं, जो सर्वोच्च सत्ता हैं , जो सभी प्राणियों के ह्रदय में और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विद्यमान हैं, जो भय और शोक से रहित हैं, जो पराक्रमी और महाशक्तिमान हैं, उन नारायण को बारम्बार नमस्कार है ॥ ६॥
नारायणाय निगमाय निरञ्जनाय नारायणाय च हराय नरोत्तमाय ।
नारायणाय कटिसूत्रविभूषणाय नारायणाय हरये महते नमस्ते ॥ ७॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है, जो वेदस्वरूप हैं, जो वेदों का सार हैं , जो शुद्ध और निष्कलंक हैं, जो भक्तों के कष्टों को हरने वाले हैं, जो पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं, जो आभूषण के रूप में पवित्र धागे से सुशोभित हैं, जो महा पापों को भी हरने वाले हैं, जो महान और गौरवशाली हैं, मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ ॥ ७॥
नारायणाय कटकाङ्गदभूषणाय नारायणाय मणिकौस्तुभशोभनाय ।
नारायणाय तुलमौक्तिकभूषणाय नारायणाय च यमाय नमो नमस्ते ॥ ८॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो आभूषण के रूप में कंगन और बाजूबंद धारण करते हैं, जो कौस्तुभ मणि से सुशोभित हैं, जो सर्वोत्तम मोतियों से विभूषित हैं, जो परम गंतव्य ( यम ) भी हैं, उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है ॥ ८॥
नारायणाय रविकोटिप्रतापनाय नारायणाय शशिकोटिसुशीतलाय ।
नारायणाय यमकोटिदुरासदाय नारायणाय करुणाय नमो नमस्ते ॥ ९॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान हैं, जो करोड़ों चंद्रमाओं के समान शीतल हैं, जो करोड़ों यमों के समान अजेय हैं, जो करुणामय और कृपालु हैं, मैं नारायण को बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥ ९॥
नारायणाय मुकुटोज्ज्वलसोज्ज्वलाय नारायणाय मणिनूपुरभूषणाय ।
नारायणाय ज्वलिताग्निशिखप्रभाय नारायणाय हरये गुरवे नमस्ते ॥ १०॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो उज्जवल और कांतिमय मुकुट से विभूषित हैं , जिनका भव्य रूप है, जो रत्नजड़ित नूपुरों ( पायलों ) से सुशोभित हैं, जिनकी चमक धधकती ज्वाला के समान तीव्र है, जिनका तेज अग्नि के समान प्रकाशमय है , जो दुखों को हरने वाले हरि हैं, जो गुरु हैं, उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है ॥ १०॥
नारायणाय दशकण्ठविमर्दनाय नारायणाय विनतात्मजवाहनाय ।
नारायणाय मणिकौस्तुभभूषणाय नारायणाय परमाय नमो नमस्ते ॥ ११॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है, जो दस सिर वाले रावण का विनाश करने वाले हैं, जो विनता के पुत्र गरुड़ पर सवार हैं, जो कौस्तुभ मणि से सुशोभित हैं, जो सर्वोच्च और दिव्य हैं। मैं नारायण को बारम्बार नमस्कार करता हूँ ।
नारायणाय विदुराय च माधवाय नारायणाय कमठाय महीधराय ।
नारायणाय उरगाधिपमञ्चकाय नारायणाय विरजापतये नमस्ते ॥ १२॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार, जो विदुर हैं (बुद्धिमान और गुणी) , जो माधव हैं, जो सभी कामनाओं की पूर्ती करने वाले हैं , जो मनवांछित वरदान देने वाले हैं , जो पृथ्वी को धारण करने वाले हैं, जो तेजस्वी हैं , जो नागों के स्वामी आदि शेष नाग की शय्या धारण करने वाले हैं , जो विराज ( दिव्य नदी जो भौतिक और आध्यात्मिक जगत को अलग करती है। जो लोग विराजा नदी को पार करते हैं वे आध्यात्मिक दुनिया को प्राप्त करते हैं, जहां नारायण अपने सर्वोच्च निवास में निवास करते हैं। ) के स्वामी हैं , जो मोक्ष प्रदान करने वाले हैं , जो पवित्रता और वैराग्य धारण करने वाले हैं , मैं नारायण को बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥ १२॥
नारायणाय रविकोटिसमाम्बराय नारायणाय च हराय मनोहराय ।
नारायणाय निजधर्मप्रतिष्ठिताय नारायणाय च मखाय नमो नमस्ते ॥ १३॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, जो दुःख और कष्टों को हरने वाले हरि हैं, जो आकर्षक और मनोहर हैं, जो सबके मन को मोहित करने वाले हैं , जो अपने धर्म में स्थित हैं, जो यज्ञ के स्वामी हैं , मैं नारायण को बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥ १३॥
नारायणाय भवरोगरसायनाय नारायणाय शिवचापप्रतोटनाय ।
नारायणाय निजवानरजीवनाय नारायणाय सुभुजाय नमो नमस्ते ॥ १४॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो भव ( सांसारिक ) रोग की औषधि हैं, जो शिव के धनुष को तोड़ने वाले हैं, जो अपनी ही वानर सेना के प्राण हैं, जिनकी भुजाएं सुंदर हैं, जो अपने भक्तों का जीवन हैं , हे नारायण ! मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ ॥ १४॥
नारायणाय सुरथाय सुहृच्छ्रिताय नारायणाय कुशलाय धुरन्धराय ।
नारायणाय गजपाशविमोक्षणाय नारायणाय जनकाय नमो नमस्ते ॥ १५॥
उन नारायण को नमस्कार और नमस्कार है जो देवताओं और सज्जनों के मित्र और शुभचिंतक हैं, जो अपने भक्तों और सुहृदयी मनुष्यों के परम आश्रय और परम हितकारी हैं , जो जीव को उसके परम गंतव्य पर पहुंचाने वाले श्रेष्ठ रथ हैं , जो पुण्यात्माओं को आशीर्वाद देने वाले हैं , जो सभी कलाओं और ज्ञान में कुशल और निपुण हैं, जो ज्ञान और बुद्धि के स्रोत हैं , जो शूरवीर और श्रेष्ठ योद्धा हैं, जो अजेय हैं , जो शत्रुओं के विनाशक हैं , जो गज को मगरमच्छ के पाश से छुड़ाने वाले हैं ( अर्थात जीव को सांसारिक पाश और बंधनों से मुक्ति दिलाने वाले हैं ) , जो जगत के जनक ( पिता ) हैं , हे नारायण ! मैं आपको बारम्बार नमस्कार करता हूँ ॥ १५॥
नारायणाय निजभृत्यप्रपोषकाय नारायणाय शरणागतपञ्जराय ।
नारायणाय पुरुषाय पुरातनाय नारायणाय सुपथाय नमो नमस्ते ॥ १६॥
मैं उन नारायण को नमस्कार करता हूँ , जो अपने भक्तों का पोषण करते हैं, जो शरणागतों का आश्रय हैं, जो पुरुषोत्तम हैं, जो परमात्मा हैं , जो शाश्वत और प्राचीन हैं, जो श्रेष्ठ मार्ग प्रदान करते हैं, जो धर्म के पथ का प्रदर्शन करते हैं , हे नारायण ! मैं आपको बारम्बार नमन करता हूं और नमस्कार करता हूँ ॥ १६॥
नारायणाय मणिस्वासनसंस्थिताय नारायणाय शतवीर्यशताननाय ।
नारायणाय पवनाय च केशवाय नारायणाय रविभाय नमो नमस्ते ॥ १७॥
उन नारायण को नमस्कार है नमस्कार है , जो मणियों और रत्नों से जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं , जो सैकड़ों वीरों का बल धारण करने वाले और सैकड़ों मुखों और सैकड़ों स्वरूप वाले हैं, जो पवन के समान वेगमान हैं , जो पावक हैं , जो पवित्र करने वाले हैं , जो केशव हैं, जो सुन्दर केशों वाले हैं , जो सूर्य के समान उज्ज्वल और तेजस्वी हैं, उन नारायण को मैं बारम्बार नमन करता हूँ ॥ १७॥
श्रियःपतिर्यज्ञपतिः प्रजापतिर्धियाम्पतिर्लोकपतिर्धरापतिः ।
पतिर्गतिश्चान्धकवृष्णिसात्त्वतां प्रसीदतां मे भगवान् सताम्पतिः ॥ १८॥
वह भगवान नारायण, जो सभी लक्ष्मियों के पति ( स्वामी ) , सभी यज्ञों के पति, सभी प्रजाओं के पति, सभी जीवों के पति , सभी बुद्धियों के पति, सभी लोकों के पति, सभी ग्रहों के पति , सभी धराओं के पति, अन्धक और वृष्णि वंश के राजाओं और सात्त्विकों के पति और गति हैं, वे सभी भक्तों के पति, मुझ पर कृपा करें ॥ १८॥
त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं रविकरगौरवराम्बरं दधाने ।
वपुरलककुलावृताननाब्जं विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ॥ १९॥
जो अर्जुन के सखा हैं, जो तीनों लोकों में सबसे अभिलषित है, तीनों लोक जिन्हें चाहते हैं , जो सूर्य की किरणों के समान देदीप्यमान और उज्जवल पीले वस्त्र धारण करते हैं, जिनका वर्ण तमाल के वृक्ष के समान गहरा और श्याम है, जिनका कमल के समान मुख चंदन के तिलक से सुशोभित है , जिनकाशरीर सुंदर बालों की लटों से सुशोभित है और कमल के समान मुख से घिरा हुआ है।उन श्रीकृष्ण के प्रति मेरा निष्काम और शुद्ध प्रेम हो।
अष्टोत्तराधिकशतानि सुकोमलानि नामानि ये सुकृतिनः सततं स्मरन्ति ।
तेऽनेकजन्मकृतपापचयाद्विमुक्ता नारायणेऽव्यवहितां गतिमाप्नुवन्ति ॥ २०॥
जो सुकृतिवान लोग नारायण के इन 108 से अधिक सुकोमल नामों का सदा स्मरण करते हैं, वे अनेक जन्मों से एकत्र किए गए संचित पापों के ढेर से मुक्त हो जाते हैं और बिना किसी बाधा के नारायण की अविच्छिन्न गति को प्राप्त करते हैं ॥ २०॥
इति नारायणाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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