कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।
सबही ऊभा मेल्हि गया, राव रंक सुलतान।।
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! क्षणिक जीवन के लिए मनुष्य बड़े-बड़े आयोजन करता है, किन्तु चाहे वह बहुत बड़ा राजा या सुल्तान हो या साधारण दरिद्र मनुष्य, सभी की बड़े उत्साह से निर्मित योजनाएँ ध्वस्त हो जाती है। राजा-रंक भी जाते हैं और उनकी योजनाएँ भी ध्वस्त हो जाती हैं। अर्थात यहां सभी काल के बन्धन में वशीभूत हैं। मात्र थोड़ा सा जीवन जीने के लिए तुम्हें मिला है और तुम ठाठ-बाठ बहुत रचते हो। आराम और सुविधा में रहते हो। अपने मन की आंखें खोलकर देखों यहां गरीब, धनवान, राजा, रंक, भिखारी सभी के ऊपर जन्म-मरण के आवागमन का काल मंडरा रहा है।