कस्तूरी कुन्डल बसे, मृग ढूंढे बन माहिं।
ऐसे घट घट राम हैं, दुनियां देखे नाहिं।।
अति सुगन्धित कस्तूरी मृग के नाभि में होती है, जब घास चरने के लिए मृग अपनी सिर नीचे करता है तो कस्तूरी की सुगन्ध उसे मिलती है और उसे ढूंढने के लिए वह जंगल में इधर उधर दौड़ता फिरता है जबकि कस्तुरी तो उसकी नाभि में है जिसका ज्ञान उसे नहीं है उसी प्रकार अविनाशी भगवान तुम्हारे अपने हदय में विद्यमान हैं किन्तु सांसरिक प्राणी उन्हें देख नहीं पाते।