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Contents
Madhurashtakam/’मधुराष्टकम्’
इस छोटी-सी स्तुति में मुरली मनोहर की अत्यंत मनमोहक छवि तो उभरती ही है, साथ ही उनके सर्वव्यापी और संसार के पालनकर्ता होने का भी भान होता है।
Madhurashtakam/मधुराष्टकं-Hindi Lyrics & Meaning
अधरं मधुरं वदनं मधुरं
नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥
हे श्रीकृष्ण! आपके होठ मधुर हैं, मुख मधुर है, आंखें मधुर हैं, हास्य मधुर है. हृदय मधुर है, गति भी गति मधुर है। श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।।1।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥
हे श्रीकृष्ण! आपके वचन मधुर हैं, चरित्र मधुर हैं, वस्त्र मधुर हैं, अंगभंगी मधुर है. चाल मधुर है और भ्रमण भी अति मधुर है।श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।।2।।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥
हे श्रीकृष्ण! आपके वेणु मधुर है, चरण की धूल मधुर है, करकमल मधुर है, चरण मधुर है. नृत्य मधुर है, सख्य भी अति मधुर है।श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।।3।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥
हे श्रीकृष्ण! आपके गान मधुर है, पान मधुर है, भोजन मधुर है, शयन मधुर है. रूप मधुर है, तिलक भी अति मधुर है।श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।
करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥
हे श्रीकृष्ण! आपके कार्य मधुर है, तैरना मधुर है, हरण मधुर है, रमण मधुर है, उद्धार मधुर है और शांति भी अति मधुर है। श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।।5।।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥
हे श्रीकृष्ण! आपकी गुंजा मधुर है, माला मधुर है, यमुना मधुर है, उसकी तरंगें मधुर हैं, उसका जल मधुर है और कमल भी मधुर है।श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।।6।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥
हे श्रीकृष्ण! गोपियां मधुर हैं, उनकी लीला मधुर है, उनका संयोग मधुर है, वियोग मधुर है, निरीक्षण मधुर है और शिष्टाचार मधुर है। श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।।7।।
गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥
हे श्रीकृष्ण! गोप मधुर हैं, गौएं मधुर हैं, लकुटी मधुर है, रचना मधुर है, दलन मधुर है और उसका फल भी अति मधुर है। श्रीमधुराधिपति आपका सभी कुछ मधुर है।
Madhurashtakam/मधुराष्टकं -Hindi Lyrics & Meaning
‘मधुराष्टकम्’ – इस छोटी-सी स्तुति में मुरली मनोहर की अत्यंत मनमोहक छवि तो उभरती ही है, साथ ही उनके सर्वव्यापी और संसार के पालनकर्ता होने का भी भान होता है। भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यहां तक कि अमृत पी कर भी कुछ समय बाद संतृप्त हुआ जा सकता है, लेकिनअगर दिव्य भगवान की मिठास के विषय में बात करे, यह किसी के पास पर्याप्त नहीं हो सकती है।
कृष्ण भक्त महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य भगवत्प्रेममय थे। कहा जाता है श्रीमद्वल्लभाचार्य जी कि गोपी प्रेम के साकार स्वरूप ही थे और प्रतिक्षण प्रभु की परम प्रेममयी निकुन्जलीला के दिव्य रस में मग्न रहते थे। उनके रोम–रोम से दिव्य भगवत्प्रेम उमड़ता रहता था। जो भी उनकी सन्निधि में रहता, वह श्रीकृष्णप्रेम–युक्त हो जाता। श्रीमद्वल्लभाचार्य जी ने भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबकर प्रेममयी एक ऐसी स्तुति की रचना की जिसका पाठ करने वाले के रोम–रोम में भी प्रेम का जागरण होने लगता है। महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य के द्वारा उपदेशित पुष्टिमार्ग प्रेममार्ग है।
मधुराष्टकम 1478 ई। में महान कृष्ण भक्त श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित है।
मधुराष्टकम के माध्यम से उन्होंने कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया और उनके हर पहलू की प्रशंसा की। यह सुन्दर पंक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि कैसे श्रीमद वल्लभाचार्य जी कृष्ण की हर गतिविधि को पसंद करते हैं। किस प्रकार भक्त को अपने प्रभु की हर वस्तु , हर बात किस प्रकार अद्भुत , अनुपम , अद्वितीय और प्रिय लगता है । हम भी उनकी प्रशंसा में इस वाक्यांश को गाकर उनके प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कर सकते हैं। जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो हम उसकी हर विषय वस्तु से प्रेम करते हैं।
मधुराष्टकम एक स्तोत्र है जिसमें अद्वितीय भगवान कृष्ण की मधुरता का वर्णन किया गया है जिसका प्रभाव सम्पूर्ण संसार में विस्तृत है।मधुराष्टकम मूल रूप से संस्कृत में लिखा गया था और इसे समझना आसान है। भगवान कृष्ण के सुंदर पहलुओं और उनके सुंदर रूप का वर्णन करने के लिए कविता में केवल एक विशेषण “मधुरम” का प्रयोग हुआ है। जिसका अर्थ है – मिठास या सुंदरता। भगवान कृष्ण को इस भजन के माध्यम से श्री कृष्ण को मधुरता के स्वामी के रूप में बताया गया है।
मधुरष्टकम से स्पष्ट होता है कि भक्त ,भगवान कृष्ण के न केवल सर्वांग सुंदर , दिव्य , मधुर रूप पर मोहित है, बल्कि भगवान के अस्तित्व अर्थात उनकी चाल , उनकी लीलाओं आदि पर भी मुग्ध है।
इस प्रकार भक्त कहते हैं: “मथुरा के भगवान कृष्ण, मधुर हैं, मधुर हैं और मधुर के अलावा कुछ नहीं हैं !”
भगवत्स्वरूप की सेवा के लिये भक्ति में स्नेह और प्रेम अत्यंत आवश्यक है। जब भक्त का चित्त भगवत्प्रेममय होकर भगवत्प्रवण हो जाता है, तभी सेवा सधती है और प्रेमपूर्वक सेवा करने से सेव्य–स्वामी अवश्य प्रसन्न होते हैं। भगवान भी अपने प्रेमी भक्तों के वश में हो जाते हैं। भक्त कृष्ण की अनुपस्थिति का अनुभव करता है, क्योंकि कृष्ण के बिना उनकी सुंदरता का अमृत कैसे पिया जा सकता है।
जब कृष्ण की बांसुरी की पारलौकिक ध्वनि होती है, तो उस बांसुरी को सुनने के लिए भक्त की व्यग्रता इस भौतिक संसार के आवरण को भेदती है और आध्यात्मिक आकाश में प्रवेश करती है। कृष्ण की बाँसुरी की धुन हमेशा गोपियों के कान के भीतर रहती है और उनके परमानंद को बढ़ाती है। जिस समय गोपियों द्वारा बांसुरी की धुन सुनी जा रही होती है उस समय कोई अन्य ध्वनि उनके कान में प्रवेश नहीं कर सकती है और उनकी पारिवारिक गतिविधियों में वे ठीक से उत्तर देने में सक्षम नहीं होती हैं क्योंकि उस समय बांसुरी की सुंदर ध्वनि कंपन कर रही होती है।
गोपियों का मन हमेशा कृष्ण की मिठास को फिर से पाने में लगा रहता है। वह सुंदरता का सागर है और उनका सुंदर चेहरा, सुंदर मुस्कान, और शरीर की चमक हमेशा गोपियों के चित्त आकर्षित करती है।
कृष्ण कर्णामृत में इन तीन बातों को मधुर, मधुर और मधुर बताया गया है। जब शरीर में तीन प्रकार की विशुद्धियाँ होती हैं तो उस स्थिति को आक्षेप कहते हैं। तो इस तरह कृष्ण का एक परिपूर्ण भक्त, भाव–विभोरमयी अवस्था को प्राप्त होता है। जब वह कृष्ण के शरीर की सुंदरता, उनके चेहरे और कृष्ण की मुस्कान की सुंदरता को देखकर अभिभूत हो जाता है तो स्वयं को अपने प्रभु के अत्यंत निकट अनुभव करता है ।
भगवान कृष्ण की आराधना करने और उन्हें प्रसन्न करने से जीवन में सुंदरता, धन और समृद्धि आती है।
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