Shri vishnupadadikeshantavarnan stotram with hindi and english meaning

विष्णुपादादिकेशान्तस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित | श्री विष्णु स्तोत्राणि | लक्ष्मीभर्तुर्भुजाग्रे कृतवसति सितं यस्य रूपं विशालं| श्री विष्णु पादादिकेशान्तवर्णन स्तोत्रम् | विष्णु पादादि केशान्त स्तोत्र | विष्णु-पादादि-केशान्त-स्तोत्रम् viṣṇu-pādādi-keśānta-stotram | Shri vishnu-padadi-keshanta-stotram with english meaning | Shri Vishnu Stotrani | Shri vishnupadadikeshantavarnan stotram with hindi and english meaning| Lord Vishnu Stotra | श्री विष्णु स्तोत्र | Shri vishnu-padadi-keshanta-stotram composed by shri shankaracharya| श्री शंकराचार्य द्वारा रचित विष्णुपादादिकेशान्तस्तोत्रम्

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Shri vishnupadadikeshantavarnan stotram with hindi and english meaning

 

विष्णुपादादिकेशान्तस्तोत्रम् श्री शंकराचार्य द्वारा रचित भगवान विष्णु के अंगों और उनके अस्त्रों से की गयी स्तुति है । भगवान विष्णु और उनसे सम्बंधित प्रत्येक वस्तु , उनके अंगों , उनके आयुधों में कोई अंतर नहीं है । वे सब भगवान के ही समान शक्तिशाली हैं । इस स्तुति में श्री शंकराचार्य भगवन विष्णु के शंख , गदा , धनुष , तलवार , उनके केश , उनके चरणों की रज इत्यादि से प्रार्थना करते हैं की वे उनकी रक्षा करें । 

 

विष्णु-पादादि-केशान्त-स्तोत्रम् viṣṇu-pādādi-keśānta-stotram

 

 

लक्ष्मीभर्तुर्भुजाग्रे कृतवसति सितं यस्य रूपं विशालं

नीलाग्रेस्तुङ्गशृंगस्थितमिव रजनीनाथबिम्बं विभाति ।

पायान्नः पाञ्चजन्यः स दितिजकुलत्रासनैः पूरयन् स्वैः

निर्ध्वानैर्नीरदौघध्वनिपरिभवदैरम्बरं कम्बुराजः ॥ १॥

 

शंखों के राजा पाञ्चजन्य हमारी रक्षा करें; पाञ्चजन्य जो भगवान विष्णु के हाथ में है, जो आकार में बहुत बड़ा है और नीले पर्वत की ऊंची चोटी पर चंद्रमा की तरह चमकता है, जो काले बादलों की गड़गड़ाहट से भी बढ़कर अपनी ध्वनि से आकाश को भर देता है और जो असुरों के दिलों में भय पैदा करता है ॥ १॥

 

lakshmeebharturbhujagre krtavasati seetan yasy roopan vishaalan

neelaagrestungashrrngasthitamiv rajaneenaathabimban vibhaati.

payannah panchajanyah sa daitijakulatraasanaih poorayan svaih

nirdhvaniranirdaughadhvaniparibhavadairbaran kamburaajah . 1

 

May the king of conches panjajanya protect us; panjajanya  which nestles in the hand of Vishnu, which is very large in size and shines like the moon atop the tall peak of the blue mountain,  which fills the skies with its sound surpassing the thunder of dark clouds and which strikes terror in the hearts of asuras.1

 

श्री विष्णु पादादिकेशान्तवर्णन स्तोत्रम् hindi lyrics

 

आहुर्यस्य स्वरूपं क्षणमुखमखिलं सूरयः कालमेतं

ध्वान्तस्यैकान्तमन्तं यदपि च परमं सर्वधाम्नां च धाम।

चक्रं तच्चक्रपाणेर्दितिजतनुगलद्रक्तधाराक्तधारं

शश्वन्नो विश्ववन्द्यं वितरतु विपुलं शर्म घर्मांशु शोभम् ॥२॥

 

भगवन विष्णु का चक्र हमें हमेशा शांति और आनंद प्रदान करे ; चक्र जिसके बारे में बुद्धिमान लोग कहते हैं कि यह एक क्षण से लेकर अनंत काल तक के समय का प्रतीक है, जो अंधकार को समाप्त करता है, जो सभी चमकदार वस्तुओं से अधिक चमकीला है, जो सूर्य की तरह चमकता है और जिसका छोर असुरों के शरीर के रक्त से रंगा हुआ है ॥२॥

 

ahuryasy svaroopan kshanamukhamakhilan sooryah kaalametan

dhanvantasyaikaantamantan yadapi ch paraman sarvadhaamanan ch dhaam.

chakran tachchkrpaanerditijatnugaladraktadhaaraaktadhaaran

shashvaanno vishvavandyan vitartu vipulan sharm gharaanshu shobham .2

 

May the chakra (Disc) of Vishnu always give us peace and happiness; chakra which the wise say symbolizes Time from seconds to eternity, which puts an end to darkness, which is brighter than all bright objects, which shines bright as the Sun and the blades of which are stained by the blood from the bodies of asuras.2

 

विष्णुपादादिकेशान्तस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित

 

अव्यान्निर्घातघोरो हरिभुजपवनामर्शनाध्मातमूर्तेः

अस्मान्विस्मेरनेत्रत्रिदशनुतिवचःसाधुकारैः सुतारः।

सर्वं संहर्तुमिच्छोररिकुलभुवनं स्फारविस्फार नादः

संयत्कल्पान्तसिन्धौ शरसलिलघटावार्मुचः कार्मुकस्य ॥३॥

 

शत्रुओं के संपूर्ण समूह को मारने की इच्छा रखने वाले भगवान् विष्णु के धनुष से निकलने वाली भयानक ध्वनि हमारी रक्षा करे; वह धनुष जो हरि की भुजाओं की वायु से आकार में बड़ा हो जाता है, जिसकी जय जय कार देवता आश्चर्य भरी नजरों से करते हैं , जिसकी ध्वनि गड़गड़ाहट की भांति दूर-दूर तक फैलती है और जो युद्ध में बाणों की उसी प्रकार वर्षा करता है जैसे किसी कल्प के अंत में जलप्रलय (प्रलय के समुद्र ) पर बादल की वर्षा होती है ॥३॥

 

avyaannirghaataghoro haribhujapavanamarshanaadhamaataamoorteh

asmaanvismaarenetridashanutivachahsaadhukaraih sutaarah.

sarvan sanhartumichchhorikulabhuvanan safaravisphar naadah

sanyatakalpaantasindhau sharasalilaghataavaramuchah kaarmukasy .3

 

May the terrible sound emanating from the bow of  Vishnu who wishes to kill the entire horde of enemies protect us; The bow which grows in size from the air of Hari’s arms, which is hailed by the celestials wide-eyed with wonder, the sound of which like thunder spreads far and wide and which rains arrows in the battle like the rain of the clouds over the sea of pralaya (deluge) at the end of a kalpa.3

 

जीमूतश्यामभासा मुहुरपि भगवद्बाहुना मोहयन्ती

युद्धेषूद्धूयमाना झटिति तटिदिवालक्ष्यते यस्य मूर्तिः।

सोऽसिस्त्रासाकुलाक्षत्रिदशरिपुवपुश्शोणितास्वाददृप्तो

नित्यानन्दाय भूयान्मधुमथनमनोनन्दको नन्दको नः ॥४॥

 

भगवान विष्णु की तलवार, नंदक, हमें शाश्वत आनंद दे; नंदक जो मधु के संहारक भगवान विष्णु के ह्रदय को आनंद प्रदान करती है। तलवार जिस की भुजा बादल के समान गहरी नीली है, जो अक्सर युद्धों के दौरान लहराने पर बिजली की अचानक चमक के रूप में देखी जाती है और असुरों को भ्रमित करती है और जो भय के कारण डगमगाती हुयी आँखों से युक्त असुरों के रक्त का स्वाद चखने पर गर्व करती है ॥४॥

 

jeemootashyaabhaasa muhurpi bhagavadbahuna mohayanti

yuddheshuddhooyamaana jashtiti tatidivaalakshyate yasy moortih.

sosistrasaakulakshatridasharipuvapushshonitaasvaadadrpto

nityaanandaay bhooyaanmadhumathanamanonandako nandako nah .4.

 

May the sword of Vishnu, Nandaka,  give us eternal bliss; Nandaka which gladdens the heart of the slayer of Madhu (Vishnu) whose hand is dark blue as the cloud,  which when brandished often during wars is seen as the sudden flash of lightning and confuses the asuras and which prides itself of tasting the blood of asuras whose eyes are wobbly because of fright.4

 

कम्राकारा मुरारेः करकमलतलेनानुरागाद्गृहीता

सम्यग्वृत्ता स्थिताग्रे सपदि न सहते दर्शनं या परेषां ।

राजन्ती दैत्यजीवासवमदमुदिता लोहितालेपनार्द्रा

कामं दीप्तांशुकान्ता प्रदिशतु दयितेवाऽस्य कौमोदकी नः ॥५॥

 

भगवान विष्णु की प्रिय गदा कौमोदकी, जो अपनी उज्ज्वल किरणों से सुंदर है, हमारी मनोकामनाएं पूरी करें; वह गदा जो भगवान विष्णु के हस्त-कमल में प्रेमपूर्वक पकड़ी जाती है, जो एक पूर्ण गोले के आकार की है, जो सदैव भगवान विष्णु के सामने रहती है और दूसरों को बर्दाश्त नहीं करती है, जो असुरों के जीवन का आसव या रक्त पीने से नशे में है और जो असुरों के रक्त के छींटों से सनी हुयी है ॥५॥

 

kaamraakaara muraareh karkamalatalanenuraagaadgrheeta

samyagvrtta sthitagre sapadi na sahate darshanan ya darshanan.

rajanti daityajeevaasavamamudita lohitaalepanaraadr

kaaman deeptaanshukaant pradistu dayitevasy kaumodaki nah .5

 

May Kaumodaki, the mace dear to Vishnu, which is beautiful with its bright rays, grant us our wishes; the mace which is lovingly held in the lotus-hand of Vishnu, which is of the shape of a perfect sphere, which stays in the front of Vishnu and does not tolerate others, which is intoxicated by drinking the asava (intoxicating drink) of the life of asuras and  which is wet with the smear of red (from the blood of asuras).5

 

यो विश्वप्राणभूतस्तनुरपि च हरेर्यानकेतुस्वरूपो

यं सञ्चिन्त्यैव सद्यः स्वयमुरगवधूवर्गगर्भाः पतन्ति।

चञ्चच्चण्डोरुतुण्डत्रुटितफणिवसारक्तपङ्कांकितास्यं

वन्दे छन्दोमयं तं खगपतिममलस्वर्णवर्णं सुपर्णम् ॥६॥

 

मैं पक्षियों के राजा गरुड़ को प्रणाम करता हूँ, जो शुद्ध सोने के रंग का है और जो वेदों का अवतार है, जो इस संसार की प्राणवायु है, जो मानो हरि का (दूसरा) शरीर है, उनका वाहन और उनका ध्वज, जिसके बारे में सोचने मात्र से मादा-सर्पों का गर्भपात हो जाता है और जिसका मुंह उसकी मजबूत और सक्रिय चोंच द्वारा टुकड़े-टुकड़े किए गए नागों के खून से सना हुआ है॥६॥

 

yo vishvapraanabhootastunurapi ch hareranyaketusvaroopo

yan sanchintyaiv sadyah svayamurgavadhuvargagarbhaah patanti.

chanchachchhandorutundatrutitaphanisaaraktapankankitaasyaam

vande chhandomayan tan khagapatimallasvarnavarnan suparnam .6

 

I bow to Garuda, the King of birds who is of the colour of pure gold and who is the embodiment of the Vedas, who is the very life breath of the world, who is , as it were, (another) body of Hari, his vehicle and its flag, the very thought of whom causes the pregnancy of female-serpents to abort and  whose mouth is smeared with the blood of serpents cut to pieces by his strong and active beak.6

 

विष्णोर्विश्वेश्वरस्य प्रवरशयनकृत् सर्वलोकैकधर्ता

सोऽनन्तः सर्वभूतः पृथुविमलयशाः सर्ववेदैश्च वेद्यः।

पाता विश्वस्य शश्वत् सकलसुररिपुध्वंसनः पापहन्ता

सर्वज्ञः सर्वसाक्षी सकलविषभयात् पातु भोगीश्वरो नः॥७॥

 

अनंत (आदिशेष), सर्वज्ञ और हर चीज के साक्षी, हमें सांप के विष के भय से बचाएं; “अनंत” जो संसार के स्वामी विष्णु की उत्कृष्ट शय्या के रूप में सेवा करते हैं, जो अकेले ही इन सभी लोकों का भरण – पोषण करते हैं, जो सभी प्राणियों के कारण हैं, जो महान और निर्मल प्रसिद्धि वाले हैं और सभी वेदों द्वारा जानने योग्य हैं, जो सभी के रक्षक हैं , समस्त लोकों और समस्त देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले तथा पापों का नाश करने वाले हैं ॥७॥

 

vishnurvishveshvarasy pravarshyankrt sarvalokadharta

sonantah sarvabhootah prthuvimalayashaah sarvavedaishch vedyah.

paata vishvasy shaashvat sakalasuraripudhvansanah paapahanta

sarvagyah sarvasaakshee sakalavishabhayaat paatu bhogeeshvaro nah.7.

 

May  Ananta (Adishesha),  all-knowing and witness to everything,  protect us from the fear of snake-poisoning; Ananta who serves as the excellent bed of Vishnu the Lord of the worlds, who supports all these worlds alone, who is the cause of all beings, who is of great and spotless fame and knowable by all the Vedas, who is the protector of all the worlds and the slayer of enemies of celestials and who wipes out sins.78

 

वाग्भूगौर्यादि भेदैर्विदुरिह मुनयो यां यदीयैश्च पुंसां

कारुण्यार्द्रैः कटाक्षैः स्वयमपि पतितैः संपदः स्युः समग्राः।

कुन्देन्दुस्वच्छमन्दस्मितमधुरमुखांभोरुहां सुंदराङ्गीं

वन्दे वन्द्यामशेषैरपि मुरभिदुरोमंदिरामिन्दिरां ताम् ॥८॥

 

मैं देवी लक्ष्मी को प्रणाम करता हूँ , जो सभी के लिए पूजनीय हैं और जिनका निवास मुर के संहारक भगवान् विष्णु के वक्षस्थल पर है, जिन्हें ऋषि लोग सरस्वती, धरती माता और पार्वती के रूप में विभिन्न रूपों में जानते हैं, जिनकी करुणा से भरी निगाहें जिस किसी पर भी पड़ती हैं उस व्यक्ति को सभी प्रकार की संपत्ति प्रदान करती हैं , जिनका सुंदर मुख चमेली के फूल और चंद्रमा के समान सफेद और त्रुटिहीन मुस्कान से चमकता है और जिनका शरीर सुंदर है ॥८॥

 

vaagbhugauryaadi bhedairvidurih munyo yan yadyaishch punsaan

karunyaardraih katikaih svayamapi patitaih sampadaah syuh samagraah.

kundendusvachchhamandasmitamadhuramukhaanbhoruhan sundaraangeen

vande vandyamasheshairapi murabhiduromandiramindiran tam .8.

 

I bow to Goddess Lakshmi who deserves to be worshipped by all and who has her abode on the chest of Vishnu the slayer of Mura,  whom the rishis know in different forms as Saraswati, Mother Earth and Parvati, whose glances steeped in compassion, falling on anyone confers on the person riches of all kinds, whose beautiful face is lit with an impeccable smile as  white as the jasmine flower  and the moon and who has a lovely body.8

 

या सूते सत्त्वजालं सकलमपि सदा सन्निधानेन पुंसो

धत्ते या सत्त्वयोगाच्चरमचरमिदं भूतये भूतजालम् ।

धात्रीं  स्थात्रीं जनित्रीं प्रकृतिमविकृतिं विश्वशक्तिं विधात्रीं

विष्णोर्विश्वात्मनस्तां विपुलगुणमयीं प्राणनाथां प्रणौमि ॥९॥

 

मैं भगवान विष्णु की सत्व, रजस और तमस गुणों से युक्त पत्नी प्रकृति को नमन करता हूँ , जो पुरुष के साथ अपनी शाश्वत निकटता के द्वारा सभी प्राणियों को प्रकट करती हैं , जो पुरुष कोई और नहीं बल्कि विष्णु हैं, जो समस्त विश्व की आत्मा हैं। प्रकृति अपना सत्त्वगुण धारण करती है और सभी गतिशील और निर्जीव प्राणियों को उनके कल्याण के लिए पोषण देती है और वह सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और स्थिरता प्रदान करने वाली और सम्पूर्ण जगत के पीछे की शक्ति है ॥९॥

 

ya sute sattvajaalan sakalamapi sada sannidhaanen punso

dhatte ya sattvayogaachcharaamacharamidan bhootaye bhootajaalam.

dhaatrin sthaatrin janitrin prakrtimavikrtin vishvashaktin vidhaatrin

vishnorvishvaatmanastaan vipulagunamayeen praananaathan pranaumi .9

 

I bow to Prakriti, consort of Vishnu  with her attributes of sattwa, rajas and tamas¸ who brings forth all  beings simply by her perennial proximity to Purusha who is none other than Vishnu,  the soul of the whole world. Prakriti takes on her sattwa attribute and nourishes all moving and non-moving beings for their welfare and she is the creator, sustainer and stabiliser and the power behind the whole world.9

 

येभ्योऽसूयद्भिरुच्चैः सपदि पदमुरु त्यज्यते दैत्यवर्गैः

येभ्यो धर्तुं च मूर्ध्ना स्पृहयति सततं सर्वगीर्वाणवर्गः।

नित्यं निर्मूलयेयुर्निशिततरममी भक्तिनिघ्नात्मनां नः

पद्माक्षस्यांघ्रिपद्मद्वयतलनिलयाः पांसवः पापपङ्कम् ॥१०॥

 

कमल-नेत्र भगवान विष्णु के चरणों की धूल या चरणरज हमारे द्वारा किए गए पापों की गंदगी को जड़ से मिटा दे, जिनका हृदय उनकी भक्ति में डूबा हुआ है; वह धूल जिसे असुरों का वंश त्याग देता है क्योंकि वे जहाँ अच्छाई होती है वहाँ भी केवल बुराई ही देखते हैं और जिसे देवगण सदैव श्रद्धापूर्वक अपने सिर पर रखना चाहते हैं ॥१०॥

 

yebhyosuyadbhiruchchaih sapaadi padamuru tyajyate daityavargaih.

yebhyo dhratun ch moorddhana srhayati satatan sarvagirvaanavargah.

nityan nirmoolayeyurnishitarami bhaktinighnaatmanaan nah

padmaakshasanghrpadmadvaitalaanilayah paansavah paapapankam .10

 

May the dust of the feet of  the lotus-eyed Vishnu root out the dirt of sins committed by us whose heart is steeped in devotion to Him;  the dust which the clan of asuras discard because they see only badness even where there is goodness and which the celestials always want to place reverentially on their heads.10

 

रेखाः लेखाभिवन्द्याश्चरणतलगताश्चक्रमत्स्यादिरूपाः

स्निग्धाः सूक्ष्माः सुजाता मृदुललिततरक्षौमसूत्रायमाणाः।

दद्युर्नो मंगलानि भ्रमरभरजुषा कोमलेनाब्धिजायाः

कम्रेणाम्रेड्यमाना किसलयमृदुना पाणिना चक्रपाणेः ॥११॥

 

भगवान विष्णु के पैरों के तलवों की रेखाएँ हमें शुभ वस्तुएँ प्रदान करें; वे रेखाएँ जो रेशम के मुलायम और महीन धागों के सामान कोमल, महीन, सुगठित हैं और जिन्हें लक्ष्मी के पत्तों की कलियों की तरह कोमल, नाजुक , सुंदर और चूड़ियों की खनक से युक्त हाथों द्वारा सहलाया जाता है ॥११॥

 

rekhaah lekhaabhivindyaashcharanatalagataashchakramatsyaadiroopaah

snigdhaah sookshmaraah sujaata mrdulitaatarakshaumasootraayamaanah.

dadyurno mangalaani bhramarabhaarjusha komalenaabdhijaayaah

kaamrenaamaredyamaana kisalayamrduna paanin chakrapaaneh .11

 

May the lines on the soles of the feet of Vishnu bestow auspicious things on us; the lines which are soft, fine, well-formed, like the soft and fine threads of silk and which are caressed by the hands of Lakshmi soft as leaf buds, delicate  and beautiful,  accompanied by the tinkling sound of bangles.11

 

यस्मादाक्रामतो द्यां गरुडमणिशिलाकेतुदण्डायमाना-

दाश्च्योतंती बभासे सुरसरिदमला वैजयन्तीव कान्ता।

भूमिष्ठो यस्तथान्यो भुवन्गृहबृहत्स्तंभशोभां दधानः।

पातामेतौ पयोदोदर ललिततलौ पंकजाक्षस्य पादौ ॥१२॥

 

कमल-नयन भगवान विष्णु के चरणों के हृदय-कमल के समान कोमल और नाजुक तलवे हमारी रक्षा करें। भगवान विष्णु का एक पैर (वराह अवतार में त्रिविक्रम के रूप में) जिसने स्वर्ग पर आक्रमण किया था, गहरे हरे रत्न से बने ध्वज के डंडे के रूप में चमक रहा था और स्वर्गीय गंगा, जिसमें से चमकता हुआ पानी गिर रहा था, वैजयंती माला (विष्णु द्वारा पहनी गई) के समान सुंदर था और दूसरा पैर जो पृथ्वी पर टिका हुआ था, ऐसे चमक रहा था मानो वह पृथ्वी-गृह का एक विशाल स्तंभ हो ॥१२॥

 

yasmaadakramato dyan garudamanishilaaketudandayamana-

daashchyotanti babhaase surasaridamala vaijayanteev kaanta.

bhoomistho yastathaanyo bhuvangrhabrhatastambhashobhan dadhaanah.

paataametau payododar lalitatalau pankajaakshasy paadau .12

 

May the soles, soft and delicate as the heart of the lotus,  of the feet of lotus-eyed Vishnu protect us.  One foot of Vishnu (as trivikrama in the Varaha incarnation) which invaded the heavens shone, as it were, as a flag staff made of dark green gemstone and the heavenly Ganga,  with her sparkling waters, pouring down from it  was beautiful as the vaijayantee garland (worn by Vishnu) and the other foot which rested on the earth  shone as it were a huge pillar of the Earth-house.12

 

आक्रामद्भ्यां त्रिलोकीमसुरसुरपती तत्क्षणादेव नीतौ

याभ्यां वैरोचनीन्द्रौ युगपदपि विपत्संपदोरेकधाम।

ताभ्यां ताम्रोदराभ्यां मुहुरहमजितस्याञ्चिताभ्यामुभाभ्यां

प्राज्यैश्वर्यप्रदाभ्यां प्रणतिमुपगतः पादपंकेरुहाभ्याम् ॥१३॥

 

मैं अजेय भगवान विष्णु के सुंदर कमल जैसे चरणों को बार-बार प्रणाम करता हूं, जिनके चरण भक्तों को असीमित धन प्रदान करते हैं, जिनके तलवे लाल रंग के होते हैं और जो तीनों लोकों पर आक्रमण (मापने) की प्रक्रिया में असुरों के राजा महाबली को  कठिनाइयों के निवास (पाताल) और देवों के देव इंद्र को धन के निवास (स्वर्ग) में एक साथ एक ही समय पर भेजते हैं ॥१३॥

 

akramadbhyaan trilokeemasooraspati tatkshanadev neetiu

yaabhyaan vairochaneendrau yugapaadapi vipatsampadorekadhaam.

taabhyaan taamrodaraabhyaan muhurhamajitasyaanchitaabhyamubhaabhyaan

raajyaishvaryapradaabhyaan pranatimupagatah paadapankeruhaabhyam .13

 

I repeatedly prostrate, before the beautiful lotus-like feet of invincible Vishnu which feet bestow limitless riches (on devotees),  the soles of which are red in colour and which, in the process of invading (measuring) the three worlds, simultaneously sent Mahabali, the king of asuras to the abode of difficulties (nether world, patala ) and Indra, the Lord of the devas to the abode of riches (Heaven).13

 

यभ्यो वर्णश्चतुर्थश्चरमत उदभूदादिसर्गे प्रजानां

साहस्री चापि संख्या प्रकटमभिहिता सर्ववेदेषु येषाम्।

व्याप्ता विश्वंभरा यैरतिवितततनोः विश्वमूर्तेर्विराजो

विष्णोस्तेभ्यो महद्भ्यः सततमपि नमोस्त्वंघ्रिपंकेरुहेभ्यः ॥१४॥

 

सभी सृजित प्राणियों सहित सभी संसारों के अवतार के रूप में भगवान विष्णु के लौकिक रूप में, उनके कमल-चरणों के समक्ष सदैव साष्टांग प्रणाम; वे पैर जिनसे वर्णों में अंतिम वर्ण शूद्र का जन्म हुआ, जिनके संबंध में वेद स्पष्ट रूप से कहते हैं ‘उसके हजारों पैर (सहस्रपाद) हैं और जो पूरी पृथ्वी पर फैला हुआ है ॥१४॥

 

yaabhyo varnashchaturthashcharmat udbhoodaadisarge prajaanaan

saahasakree chaapi sankhya prakatamabhihita sarvavedeshu yesham.

varaama vishvambhara yairtivitatanoh vishvamoorterviraajo

vishnostebhyo mahadbhyah satatamapi namostvanghrpankeruhebhyah .14.

 

Prostrations, always,  before the lotus-feet of Vishnu in his cosmic form as the embodiment of all the worlds including all created beings; the feet from which was born the last of the varnas, Sudra,  in respect of which the vedas  explicitly say ‘He is having thousands  of feet (sahasrapaad ) and which is spread over the whole of the Earth.14

 

विष्णोः पादद्वयाग्रे विमलनखमणिभ्राजिता राजते या

राजीवस्येव रम्या हिमजलकणिकालंकृताग्रा दलाली।

अस्माकं विस्मयार्हाण्यखिलमुनिमनःप्रार्थनीयानि सेऽयं

दद्यादाद्यानवद्या ततिरतिरुचिरा मंगलान्यंगुलीनाम् ॥१५॥

 

भगवान विष्णु के पैरों के अंत में सुंदर और निर्मल पैर की उंगलियां हमें सभी शुभ चीजें प्रदान करें जो अद्भुत हैं और यहाँ तक ​​कि ऋषियों द्वारा भी प्रार्थना की गई है; जिनके पैर की उंगलियां निष्कलंक रत्नों के समान चमकती हैं और बूंदों से सुशोभित कमल की पंखुड़ियों के समान सुंदर हैं ॥१५॥

 

vishnoh paadadvayaagre komalakhamanibhraajita raajate ya

raajeevasyev ramy himajaalakanikaalankrtaagraasati.

asmaakan vismayaarhanyakhilamunimanahpraarthaneeyani seyan

dadyadaadyaanavadya tatiratiruchira mangalaanyangulinaam .15

 

May the beautiful and unblemished toes at the end of the feet of Vishnu bestow on us all auspicious things which are wonderful and prayed for even by rishis;  toes the nails of which shine like spotless sparkling gems and are beautiful like the petals of the lotus adorned with due drops.15

 

यस्यां दृष्ट्वामलायां प्रतिकृतिममराः स्वां भवन्त्यानमन्तः

सेन्द्राः सान्द्रीकृतेर्ष्यास्त्वपरसुरकुलाशंकयाऽऽतंकवन्तः।

सा सद्यः सातिरेकां सकलसुखकरीं संपदं साधयेन्नः

चञ्चच्चार्वंशुचक्रा चरणनलिनयोश्चक्रपाणेर्नखाली ॥१६॥

 

सुंदर किरणें बिखेरते चक्रपाणि (विष्णु) के चरण-कमलों के नाखून हमें शीघ्र सभी सुख-सुविधाएं प्रदान करने वाली प्रचुर संपत्ति प्रदान करें ; साष्टांग प्रणाम करते समय उन निष्कलंक और निर्मल नाखूनों में जिनमें अपना प्रतिबिम्ब दिखता है, अपना ही प्रतिबिम्ब देख कर इंद्र सहित देवगण ईर्ष्या और भय से अभिभूत हो जाते हैं और यह सोचकर भ्रमित हो जाते हैं कि ये प्रतिबिम्ब वास्तव में देवताओं के एक अन्य कुल के हैं और (उन्हें भगवान द्वारा पहले ही सुरक्षा प्रदान की जा चुकी है ) ॥१६॥

 

yasyaan drshtvaamalaayaan pratikrtimaraah svan bhavantyaanamantah

sendraah saandrikershyaastvaparsurakulaashankaayaatankavantah.

sa sadyah satirekan sakalasukhakriyaan sampadan saadhayennah

chanchachcharavanshaanuchakr charanaanlinayoshchakrapaanernakhaali .16.

 

May the nails of the lotus-feet of chakrapani (Vishnu) radiating beautiful rays bestow on us soon,  abundant riches yielding all comforts; the unblemished nails seeing in which their own reflections while prostrating, the celestials including Indra are overcome by jealousy and fear, deluded into thinking that the reflections are really another clan of devas.16

 

पादांभोजन्मसेवासमवनतसुरव्रातभास्वत्किरीट-

प्रत्युप्तोच्चावचाश्मप्रवरकरगणैश्चित्रितं यद्विभाति।

नम्रांगानां हरेर्नो हरिदुपलमहाकूर्मसौन्दर्यहारि-

च्छायं श्रेयःप्रदायि प्रपदयुगमिदं प्रापयेत्पापमन्तम्॥१७॥

 

भगवान विष्णु के चरणों का ऊपरी भाग हमें सभी अच्छी चीजें प्रदान करें और हमारे पापों को मिटा दें; वे भाग जो गहरे हरे रंग के रत्न से बने अपने खोल के साथ एक बड़े कछुए की पीठ से भी अधिक सुंदर हैं, जो उन देवताओं के चमकते मुकुटों में स्थापित विभिन्न प्रकार के रत्नों से निकलने वाले बहु-रंगों में प्रकाशित होते हैं , जो भगवान विष्णु के चरण कमलों में झुकने और उनकी पूजा करने आये हैं ॥१७॥

 

padaanbhojojanmasevaasanvantasuravratabhaasvatkireet-

pratyuptochchaashvasmapravarakaraganaishachitritan yadvibhaati.

namraanganaan harerno haridupalamahaakoormasaundaryahari-

chhaayan shreyahpradaayai prapaadayugamidan praapayetpaapamantam.17

 

May the upper part of the feet of Vishnu bestow on us all good things and wipe out our sins; those parts which are more beautiful than the back of a big tortoise with its shell, as it were, of dark green gemstone, which is lighted up in multi-colours radiating from the different types of gemstones set in the shining crowns of the celestials who have come to bow and worship at the lotus-feet of Vishnu.17

 

श्रीमत्यौ चारुवृत्ते करपरिमलनानन्दहृष्टे रमायाः

सौन्दर्याढ्येन्द्रनीलोपलरचितमहादण्डयोः कान्तिचोरे।

सूरीन्द्रैः स्तूयमाने सुरकुलसुखदे सूदितारातिसंघे

जंघे नारायणीये मुहुरपि जयतामस्मदंहो हरन्त्यौ।१८॥

 

भगवान विष्णु के निचले पैर ( पिंडली ) हमारे पापों को छीन लें; जिसके बाल लक्ष्मी के हाथों के दुलार से अति प्रसन्न होकर खड़े हो जाते हैं, जो नीले रत्नों की सुंदर और उत्कृष्ट चमक वाली छड़ों के समान हैं, जिनकी बुद्धिमान लोग प्रशंसा करते हैं, जो देवताओं को सुख और आनंद प्रदान करते हैं और जो शत्रुओं के समूहों को नष्ट कर देते हैं । नारायण (विष्णु) के उन सुंदर और पूर्ण गोलाकार पैरों ( पिंडिलयों ) की बार-बार जय।।१८॥

 

shreematyau chaaruvrtte karparimalaanandahrshte raamayaah

saundaryadhyendraneelopalaarchitamahaadandayoh kaantichore.

surindraayah stuyaamaane surakulasukhade saditaaraatisanghe

janghe naaraayanye muhurapi jaayatamasmadanho harantyau.18

 

May the shanks (lower legs) of Vishnu snatch away our sins; shanks the hairs of which stand on end overjoyed by the caresses from Lakshmi’s hands, which are beautiful and excel in brightness rods  of blue gemstones, which are praised by the wise, which give joy and comfort to the celestials and which kills the horde of enemies. Victory again and again to those beautiful and well-rounded shanks of Narayana (vishnu).18

 

सम्यक् साह्यं विधातुं सममपि सततं जंघयोः खिन्नयोर्ये

भारीभूतोरुदण्डद्वयभरणकृतोत्तंभभावं भजेते ।

चित्तादर्शं निधातुं महितमिव सतां ते समुद्गायमाने

वृत्ताकारे विधत्तां हृदि मुदमजितस्यानिशं जानुनी नः ॥१९॥

 

अजित (अजेय, विष्णु) के सुडौल घुटने हमें हमेशा सुख और प्रसन्नता प्रदान करें; घुटने जो भारी जाँघों को सहारा देने का काम करते हैं ताकि उन जाँघों का भार उठाने से हमेशा थके हुए पिंडलियों को मदद मिल सके और जो अच्छे लोगों के मन-दर्पण को स्थापित करने के लिए पात्र के समान हैं (जो कि ध्यान का विषय है) अच्छे और महान आत्माओं के शुद्ध दिमाग) ॥१९॥

 

samyak sahyan vidhaatun samamapi satatan janghayoh khinnayorye

bhaareebhootorudandadvayabharanakrtottambhabhaavan bhajete.

chittadarshan nidhaatun mahitamiv satatan te samudgayaamaane

vrttaakaare vidhattaan hrdi mudmajitasyaanishan jaanuni nah .19.

 

May the well-rounded knees of  ajita (the invincible, Vishnu) always bestow on us joy and happiness; the knees which function as supports to the heavy thighs in order to be of help to the shanks always tired of carrying the weight of those thighs and which resemble receptacles to place the mind-mirror of good people (which is the object of meditation for the pure minds of good  and noble souls).19

 

देवो भीतिं विधातुः सपदि विदधतौ कैटभाख्यं मधुं चा-

प्यारोप्यारूढगर्वावधिजलधि ययोरादिदैत्यौ जघान।

वृत्तावन्योन्यतुल्यौ चतुरमुपचयं बिभ्रतावभ्रनीला-

वूरू चारू हरेस्तौ मुदमतिशयिनीं मानसे नो विधत्ताम् ॥२०॥

 

भगवान विष्णु की जंघायें हमारे मन को अद्भुत आनंद और ख़ुशी से भर दें; जंघायें जो सुंदर, अच्छी तरह से गोल, आकार और आकार में समान, अच्छी तरह से विकसित और बादल के समान गहरे नीले रंग की हैं, जिन पर भगवान विष्णु ने पहले असुर मधु और कैटभ को रखा और मार डाला, जिन्होंने भगवान विष्णु के कानों के मैल से उत्पन्न होते ही ब्रह्मा के मन में भय पैदा कर दिया था॥२०॥

 

devo bheetin ​​vidhaatuh sapadi vidhaatau kaitabhaakhyan madhun cha-

priyopyaarudhagarvapoornataajaladhi yoraadidaityau jaghan.

vrttaavanyonyatulyau chaturmupachayan bibhrataavabhraneela-

chaaru chaaru harestau voo mudamatishayinan manase no vidttam .20

 

May the thighs of Vishnu fill our minds with wonderful joy and happiness; thighs which are beautiful, well-rounded, equal in shape and size, well-developed and dark blue as the cloud, on which were placed and killed by Vishnu the first asuras Madhu and Kaitabha who had created fear in the mind of Brahma soon (after their birth from the ear-wax of Vishnu).20

 

पीतेन द्योतते यच्चतुरपरिहितेनांबरेणात्युदारं

जातालंकारयोगं जलमिव जलधेः बाडवाग्निप्रभाभिः।

एतत्पातित्यदान्नो जघनमतिघनादेनसो माननीयं

सातत्येनेव चेतोविषयमवतरत्पातु पीतांबरस्य ॥२१॥

 

पीतांबरधारी भगवान विष्णु का कूल्हा ( नितम्ब ) हमेशा हमारे लिए चिंतन और ध्यान का विषय बना रहे और हमें हमारे गंभीर पापों से बचाए जो हमें रसातल में फेंक देते हैं; भगवान विष्णु का नितंब ( कमर ) सुरुचिपूर्ण ढंग से पहने गए रेशमी वस्त्रों के चमकीले पीले रंग से सुशोभित हो कर चमकता है और गहरे नीले सागर में प्रलय के दौरान चमकती आग ( बड़वाग्नि ) के समान प्रतीत होता है ॥२१॥

 

peeten dhyotate yacchaturparihitenaambarennaatyudaaram

jataalankaaryogam jalmiv jaladheh baadvaagniprabhaabhih

etatpaatityadaanno jaghanmatighanaadenso maan-niyam

saatatyevnev chetovishaymavataratpaatu peetambarasya.21

 

May the hip of Pitambara (Vishnu) ever remain an object of contemplation and meditation for us and protect us from our grave sins which hurl us into an abyss;  hip which is adorned and shines by the bright yellow of the elegantly worn silken clothes which resemble, as it were,  the bright fire (badavagni) during dissolution (pralaya) in the dark blue ocean.21

 

यस्या दाम्ना त्रिधाम्नो जघनकलितया भ्रजतेऽङ्गं यथाब्धेः

मध्यस्थो मन्दराद्रिर्भुजगपतिमहाभोगसंनद्धमध्यः

काञ्ची सा काञ्चनाभा मणिवरकिरणैरुल्लसद्भिः प्रदीप्ता

कल्यां कल्याणदात्री मम मतिमनिशं कम्ररूपा करोतु ॥२२॥

 

भगवान विष्णु द्वारा नितम्ब पर धारण की गई रत्नजटित तथा अनेक रंगों की किरणें छोड़ती हुई सोने की सुंदर तथा मंगलदायक कमरबंद सदैव मेरे मन को पवित्र करती रहे; कमरबंद जिसकी डोरियों से भगवान विष्णु का नितंब गहरे नीले समुद्र के बीच में मंदार पर्वत के सामान दिखता है, जो नागों के राजा (वासुकी) के मजबूत शरीर से बंधा हुआ है ॥२२॥

 

yasy damna tridhaamno jaghanakalitaya bhrajatenagan yathaabdheh

madhyastho mandraadirbhujagapatimahaabhogasannaddhamadhyah

kaanchee sa kaanchanaabha manivarakiranairullasadbhih pradeepata

kalyaan kalyaanadaatree mam matimaneeshan kaamaroopa karotu .22

 

May the beautiful and giver-of-good-things waist-belt of gold studded with gems and emitting rays of multiple colors worn at the hip by Vishnu ever purify my mind; the waist-belt with the strings of which the hip of Vishnu resembles the Mandara mountain in the midst of the deep blue ocean, tied around by the stout body of the king of serpents (Vasuki).22

 

उन्नम्रं कम्रमुच्चैरुपचितमुदभूद्यत्रपत्रैर्विचित्रैः

पूर्वं गीर्वाणपूज्यं कमलजमधुपस्यास्पदं तत्पयोजम्।

तस्मिन्नीलाश्मनीलैस्तरलरुचिजलैः पूरिते केलिबुद्ध्या

नालीकाक्षस्य नाभीसरसि वसतु नश्चित्तहंसश्चिराय ॥२३॥

 

हंसों की भांति हमारे मन लंबे समय तक कमल-नेत्र भगवान विष्णु की सुगठित और सुंदर नाभि-सरोवर पर ध्यान केंद्रित करें, जो भगवान विष्णु के शरीर से निकलने वाली गहरी नीली लहरदार किरणों के कारण गहरे नीले पानी से भरा हुआ प्रतीत होता है; नाभि से बहुरंगी पंखुड़ियों वाला कमल निकला, जिसकी देवताओं ने पूजा की और जो कमल पर मंडराने वाली मधुमक्खी के समान ब्रह्मा जी का निवास स्थान बन गया ॥२३॥

 

unnamran kaamramuchchairuchitamudbhoodyatrapatrairvichitraih

poorvan geervaanapoojyan kamalajamadhupasyaaspadan tatpayojam.

tasminilaasmaaneelesteralaruchijalaih pureete kelibuddhya

goolakaakshasy naabhisarasi vastu nashchittahansashcharaay .23

 

May our minds like swans playfully dwell for long on the lotus-eyed Vishnu’s well-formed and beautiful navel-lake which appears as if filled with dark blue waters on account of the dark blue wavy rays from the body of Vishnu; the navel from which emerged the lotus with multi-colored petals, worshipped by the celestials and which became the abode of the Brahma-honeybee. 23

 

पातालं यस्य नालं वलयमपि दिशां पत्रपंक्तीं नगेन्द्रान्

विद्वांसः केसरालीर्विदुरिह विपुलां कर्णिकां स्वर्णशैलम् ।

भूयाद्गायत्स्वयंभूमधुकरभवनं भूमयं कामदं नो

नालीकं नाभिपद्माकरभवमुरुतन्नागशय्यस्य शौरेः ॥२४॥

 

भगवान विष्णु की नाभि-सरोवर से उत्पन्न कमल, जिनके शय्या पर आदिशेष सर्प है, हमारी मनोकामनाएं पूर्ण करें; कमल जिसके तने की जड़ पाताल में है, जिसकी पंखुड़ियाँ चौथाई भाग हैं, जिसकी पत्तियाँ पर्वत हैं, जिसका तंतुओं सहित मध्य भाग मेरु का स्वर्ण पर्वत है, जो कमल पर स्थित मधुमक्खी के समान ब्रह्माजी का निवास है और जो पृथ्वी का रूप ले लेता है ॥२४॥

 

paataalan yasy naalan valayamapi dishaan patrapanktin naagendraan

vidavaansah kesaralirvidurih vipulaan karnikaan svarnashailam.

bhooyaadgayatsvayambhoomadhukarabhavanan bhoomayan kaamadan nan

gilakan naabhipadmakarabhavamurutannanaagashayasy shoreh .24

 

May the lotus which was born from the navel-lake of Vishnu who has the serpent adishesha as his bed grant us our wishes; the lotus whose stem has its root in patala (nether world),whose petals are the quarters, whose leaves are mountains, whose central portion with its filaments is the golden mountain of Meru, which is the abode of the honey-bee Brahma and which takes the form of the Earth.24

 

कान्त्यंभ:पूरपूर्णे लसदसितवली भंगभास्वतरङ्गे

गम्भीरावर्तनाभीचतुरतरमहावर्तशोभिन्युदारे।

क्रीडत्वानद्धहेमोदरनहनमहाबाडवाग्निप्रभाढ्ये

कामं दामोदरीयोदरसलिलनिधौ चित्तहंसश्चिरं नः ॥२५॥

 

मेरा हृदय-हंस दामोदर (विष्णु) के उदर-सागर में लंबे समय तक खेलता रहे, जो प्रलय के समय अग्नि के समान उज्ज्वल सुनहरे कमरबंद जैसे आभूषण से सुशोभित है, जो गहरे नीले रंग की चमक के कारण पानी से भरा हुआ दिखाई देता है। शरीर, जो लहरदार सिलवटों से चमकता है और जो भँवर के समान गहरी नाभि के साथ सुंदर है ॥२५॥

 

kaantyambh:poorpoorne lasadasitavalee bhangabhaasvatarange

aghaavartanaabhichaturtaramahaavartashobhinyudare.

krdatvaandhahemodaranahanamahaabaadvaagniprabhaadye

kaaman daamodariyodarasalilanidhau chittahansashchiran nah 25.

 

May the heart-swan of mine play for long in the stomach-ocean of Damodara (Vishnu) which is adorned by a golden belt-like ornament bright as the fire during dissolution, which appears full of water because of the dark blue brightness of the body, which shines with wave-like folds and which is pretty with the deep navel resembling a whirlpool.25

 

नाभीनालीकमूलादधिकपरिमलोन्मोहितानामलीनां

माला नीलेव यान्ती स्फुरति रुचिमती वक्त्रपद्मोन्मुखी या।

रम्या सा रोमराजिर्महितरुचिकरी मध्यभागस्य विष्णो:

चित्तस्था मा विरंसीच्चिरतरमुचितां साधयन्ती श्रियं नः ॥२६॥

 

भगवान विष्णु के मध्य भाग (नाभि से वक्षस्थल तक) में एक रेखा बनाने वाले सुंदर बालों के समूह से ऐसा आभास होता है कि यह भगवान विष्णु के मुख-कमल की ओर बढ़ते हुए मधुमक्खियों से बनी एक माला है जो नाभि में स्थित कमल की सुगंध से आकर्षित होती है। भगावन विष्णु के बालों का यह समूह सदैव हमारे मन में बना रहे और हमें उचित धन प्रदान करे ॥२६॥

 

naabhinaalikamoolaadadhikaparimalonamohitaanaamaleenaan

mail bloov yaanti sphurati ruchimatee vektraapadmonmukhee ya.

ramy sa romaraajirmahitaruchikiri madhyabhaagasy vishno:

chittastha ma viransachirataaramuchitaan saadhayanti shriyan nah .26

 

The pretty cluster of hair forming a line in the middle part of Vishnu (from the navel to the chest) gives one the impression that it is a garland made of the honey-bees which are attracted by the fragrance of the lotus in the navel and moving towards the lotus-face of Vishnu. May this cluster of hair ever stay in our mind conferring on us appropriate riches.26

 

आदौ कल्पस्य यस्मात् प्रभवति सततं विश्वमेतद्विकल्पैः

कल्पान्ते यस्य चान्तः प्रविशति सकलं स्थावरं जंगमं च ।

अत्यन्ताचिन्त्यमूर्तेश्चिरतरमजितस्यान्तरिक्षस्वरूपे

तस्मिन्नस्माकमन्तःकरणमतिमुदा क्रीडतात् क्रोडभागे ॥२७॥

 

हमारे हृदय आनंद से परिपूर्ण होकर अजित और अजेय भगवान् विष्णु के वक्षस्थल के निचले हिस्से पर खेलें, जिनका रूप मन की समझ से परे है और अंतरिक्ष के समान है, जहाँ से कल्प की शुरुआत में ये सभी संसार अपनी बहुलता के साथ प्रकट होते हैं और जिसमें कल्प के अंत में ये सभी चल और अचर चीजें विलीन हो जाती हैं ॥२७॥

 

aadau kalpasy yasmaat prabhaavati satatan vishvametadvikaalpaih

kalpante yasy chantah pravishti sakalan sthaavaran jangaman ch.

atyantachintyamoorteshchirataramajitasyaantarikshasvaroope

tasminnasmaakamantahkaranamatimuda kreedat krodhabhaage .27.

 

May our hearts joyously sport on the lower part of the chest of Ajita, the invincible Vishnu, whose form is beyond the comprehension of the mind and is like the space, from which emerges at the beginning of a kalpa all these worlds with its plurality and into which merges all these moving and non-moving things at the end of a kalpa.27

 

संस्तीर्णं कौस्तुभांशुप्रसरकिसलयैर्मुग्धमुक्ताफलाढ्यं

श्रीवत्सोल्लासिफुल्लप्रतिवनवनमालांशुराजत्भुजान्तम्।

वक्षः श्रीवृक्षकान्तं मधुकरनिकरश्यामलं शार्ङ्गपाणॆ:

संसाराध्वश्रमार्तैरुपवनमिव यत्सेवितं तत्प्रपद्ये॥२८॥

 

मैं भगवान् विष्णु के वक्षस्थल में शरण लेता हूँ जो उन लोगों के लिए आराम करने के लिए एक उद्यान की भांति है जो इस संसार के मार्ग पर चलते-चलते थक गए हैं। इस उद्यान में कौस्तुभ मणि से निकलने वाली लाल किरणें कोमल पत्तियाँ हैं। सुंदर मोतियों का हार फलों जैसा दिखता है। हर जंगल से चुने गए फूलों की वनमाला उद्यान में पूरी तरह से खिले फूलों के समान दिखती है। यह उद्यान लक्ष्मी के वृक्ष से सुन्दर दिखता है और मधु मक्खियों के झुण्ड के कारण अंधकारमय प्रतीत होता है ॥२८॥

 

sanstirnan kaustubhaanshuprasarkisalayairmugdhamuktaphalaadhyan

shreevatsollasiphullaprativanmaalaanshuraajatbhujantam.

vakshah shreevrkshakaantan madhukarnikarshyamallan sharangapaanai:

sansaaradhvajashramartairupavanamiv yatsevitan tatprapadye.28

 

I take refuge in the chest of Vishnu which is like a garden for taking rest by those who are tired of treading the path of this samsara.  In this garden the red rays emanating from the kaustubha  gem  are tender leaves. The necklace of pretty pearls resemble fruits. The vanamala of flowers picked from every forest resembles flowers in full bloom in the garden. The garden is beautiful with the tree of Lakshmi and it is dark with the swarm of honey bees.28

 

कान्तं वक्षो नितान्तं विदधदिव गलं कालिमा कालशत्रो:

इन्दोर्बिंम्बं यथाङ्को मधुप इव तरोर्मंजरीं राजते यः।

श्रीमान्नित्यं  विधेयादविरलमिलितः कौस्तुभश्रीप्रतानैः

श्रीवत्सः श्रीपतेः स श्रिय इव दयितो वत्स उच्चैः श्रियं नः ॥२९॥

 

भगवान् विष्णु का श्रीवत्स चिह्न, जो लक्ष्मी को उसी समान प्रिय है जैसे गाय को उसका बछड़ा प्रिय होता है, हमें प्रचुर धन प्रदान करें; जो श्रीवत्स का चिह्न उनके सुंदर वक्षस्थल के उस स्थान को जहाँ वो स्थित है , काल के शत्रु भगवान शिव की गर्दन के समान काला कर देता है , जो श्रीवत्स का चिह्न चंद्रमा पर स्थित काले धब्बे के समान और फूल पर स्थित काली मधुमक्खी के चिह्न की भांति प्रतीत होता है और जो कौस्तुभ मणि की उज्ज्वल किरणों के निरंतर मिश्रण से सुंदर दिखाई देता है ॥२९॥

 

kaantan vaksho nitantan vidadhaadiv galan kaalima kalaashatro:

indorbimban yathaanko madhup iv taromnjarin raajate yah.

shreemaannityan vidheyaadaviralamilitah kaustubhashreeprataanaih

shreevatsah shreepateh sa shriy iv dayito vats uyah shriyan nah .29

 

May the srivatsa mark of Vishnu, dear to Lakshmi like a calf to the cow, bestow on us abundance of wealth; which srivatsa makes the beautiful chest dark (where the mark is )  like the neck of Lord Shiva, the enemy of Kala, which is just like the mark on the moon and the honey-bee on a blossom and which is beautiful with the continuous mixing of the bright rays from the kaustubha gem.29

 

संभूयांभोधिमध्यात्सपदि सहजया यः श्रिया संनिधत्ते

नीले नारायणोरस्थल गगनतले हारतारोपसेव्ये

आशाः सर्वाः प्रकाशा विदधदपिदधच्चात्मभासान्यतेजां-

स्याश्चर्यस्याकरो नो द्युमणिरिव मणिः कौस्तुभः सोऽस्तु भूत्यै॥३०॥

 

भगवान् विष्णु का अद्भुत और सूर्य के समान दीप्तिमान कौस्तुभ रत्न हम पर धन की वर्षा करे; कौस्तुभ जो लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर से प्रकट हुआ और भगवान विष्णु के वक्षस्थल के आकाश में रहता है, जो रत्नों के हार से सुशोभित है, जिसमें सितारों की भांति कांति और चमक है, जो सभी दिशाओं को उज्ज्वल करता है और जो अपनी चमक से अन्य चमकदार वस्तुओं की चमक को ढक देता है ॥३०॥

 

sambhooyaambhodhimadhyaatsapadi sahajaya yah shriya sannidhatte

bloo naaraayanorasthal gaganatale haarataaropasevaye

aashaah sarvaah prakaasha viddhadapidachchaatmabhaasanyatejaan-

syaashcharyasyaakaro no dyumaaniriv manih kaustubhah sostu bhootyai.30

 

May the wonderful and bright-as-the-Sun kaustubha gem of Vishnu shower riches on us; kaustubha which emerged from the milky ocean along with Lakshmi and abides in the sky of  Vishnu’s  chest  adorned with necklaces the gems in which glitter like stars, which brightens all the quarters and which veils the brightness of other luminous objects by its effulgence.30

 

या वायावानुकूल्यात्सरति मणिरुचा भासमानासमाना

साकं साकंपमंसे वसति विदधते वासुभद्रं सुभद्रं ।

सारं सारंगसंघैर्मुखरित कुसुमा मेचकांता च कांता

माला मालालितास्मान्न विरमतु सुखैः योजयन्ती जयन्ती ॥३१॥

 

भगवान् विष्णु की वैजयंती माला, जो माँ लक्ष्मी द्वारा सहलाई गई है , हमें आनंद और आराम देना कभी बंद न करे; वैजयंती जो बहती हवा के साथ चलती है, जो अतुलनीय रूप से उज्ज्वल और सुंदर है, जो भगवान विष्णु के कंधों पर बैठकर उन्हें सुशोभित करती है, जिसके फूल मधु मक्खियों के झुंड की गुंजन ध्वनि से घिरे होते हैं और जो काले फूलों से सुंदर प्रतीत होती है ॥३१॥

 

yaavayaanukolyatsarati manirucha bhasmaanaasmaana

saakan sakampamanse vasati vidadhate vasubhadran subhadran.

saaram saarangasanghairmukharit kusuma mechakanta ch kaanta

mala malalitaasmaann viramatu sukhaih yojayantee jayantee .31.

 

May the Vaijayanti garland of Vishnu, caressed by Lakshmi, never stop bestowing joy and comfort on us; Vaijayanti which moves with the blowing breeze, which is incomparably bright and beautiful, which, sitting on the shoulders of Vishnu, adorns him, the flowers in which are surrounded by the humming sound of swarms of honey-bees and which is beautiful with black flowers.31

 

हारस्योरुप्रभाभिः प्रतिवनवनमालांशुभिः प्रांशुभिर्यत्

श्रीभिश्चाप्यङ्गदानां शबलितरुचिभिः निष्कभाभिश्च भाति।

बाहुल्येनेव बद्धाञ्जलिपुटमजितस्याभियाचामहे तद्

बन्धार्तिं बाधतां नो बहु विहतिकरीं बन्धुरं बाहुमूलम् ॥३२॥

 

हाथ जोड़कर हम विनती करते हैं कि अजित और अजेय भगवान विष्णु के सुंदर कंधे हमें बंधन से मुक्त करें जो हमारे लिए अनगिनत कठिनाइयाँ पैदा करते हैं ; कंधे जो हार की चमक और विभिन्न वनों के फूलों से बनी वनमाला के रंगों और विभिन्न रंगों की किरणें उत्सर्जित करने वाले अंगद जैसे आभूषणों की सुंदरता और चमक से चमकते हैं॥३२॥

 

harasyoruprabhaabhih prativanmaalaanshubhih praanshubhiryat

shreebhishchaapyangadaanaan shabalitaruchibhih nishkabhaabhishch bhaati.

bahulyenev buddhaanjaliputamajitsyaabhiyaachaamahe tad

bandhaartin baadhataan no bahu vihatikrin bandhuran bahumoolam .32.

 

With folded hands (anjali) we beg that the beautiful shoulders of Ajita,  the invincible Vishnu, release us from bondage which creates countless difficulties for us; shoulders which shine with the brightness of necklaces and the colours from the vanamala made of flowers from different forests and the beauty and glitter of ornaments like angada  emitting rays of different colours.32

 

विश्वत्राणैकदीक्षास्तदनुगुणगुणक्षत्रनिर्माणदक्षाः

कर्तारो दुर्निरूपाः स्फुटगुरुयशसां कर्मणामद्भुतानाम् ।

शार्ङ्गं बाणं कृपाणं फलकमरिगदे पद्मशंखौ सहस्रं

बिभ्राणः शस्त्रजालं मम ददतु हरे: बाहवो मोहहानिम् ॥३३॥

 

हरि के हाथ मेरे अज्ञान और भ्रम को दूर करें; जिन हाथों का मुख्य व्रत पूरे संसार की रक्षा करना है और जिनमें आवश्यक गुणों (वीरता, युद्ध-पर-संकट साहस आदि) के साथ एक योद्धा वर्ग (क्षत्रिय) बनाने की क्षमता है , जिनका वर्णन करना मुश्किल है, जो अद्भुत कर्म करने वाले हैं , जो प्रसिद्धि और गौरव लाने वाले हैं और जो धनुष, बाण, तलवार, फलक, चक्र, गदा, शंख, कमल और हजारों अन्य अस्त्रों को धारण करते हैं ॥३३॥

 

vishvatraanaikadeekshaastanugunagunakshatranirmaanadakshaah

kartaaro durniroopaah sphutaguruyashasan karmanaamadbhutaanaam.

sharangan baanan krpaanan phalakaamarigade padmashankhau sahasran

bibhranah shastrajaalan mam datu hareh bahavo mohanim .33.

 

May the hands of Hari dispel my ignorance and delusion; hands the main vow of which is to protect the whole world and which has the capacity to create a warrior class (kshatriyas) with the required qualities of (valour, fight-to-finish courage etc), which are difficult to describe, which are doers of amazing actions bringing  fame and glory and which carry the bow, arrow, sword, phalaka, chakra, mace, conch, lotus and a thousand other weapons.33

 

कण्ठाकल्पोद्गतैर्यः कनकमयलसत् कुण्डलोस्रैरुदारै-

रुद्योतैः कौस्तुभस्याप्युरुभिरुपचितः चित्रवर्णो विभाति।

कण्ठाश्लेषे रमायाः करवलयपदैः मुद्रिते भद्ररूपे

वैकुण्ठीयेऽत्र कण्ठे वसतु मम मतिः कुंण्ठभावं विहाय ॥३४॥

 

मेरा मन अपना आलस्य दूर करके महाविष्णु की गर्दन पर ध्यान केंद्रित करे; वह गर्दन जो अपने ऊपर सुशोभित आभूषणों से अनेक रंगों से चमकती है, सुनहरे कर्ण-गोलकों से निकलने वाली किरणों से और कौस्तुभ की चमक से चमकती है और जो भगवान विष्णु को गले लगाते समय लक्ष्मी की चूड़ियों द्वारा छोड़े गए निशानों से सुंदर दिखती है ॥३४॥

 

kanthakalpodgatairyah kanakamayalasat kundalosraayarudaarai-

rudyotaih kaustubhasyaapyurubhirupachitah chitravarno vibhaati.

kanthaashleshe raamayaah karvalayapaadaih reshame bhadraroope

vaikunthayetr kanthe vastu mam matih kunthabhaavan vihaay .34.

 

Let my mind, shaking off its lethargy, dwell on the neck of Mahavishnu;  the neck which glitters with many colours from the ornaments adorning it, from the rays emitted by the golden ear-globes and the luster of the Kaustubha and which is pretty with the marks left by the bangles of Lakshmi while embracing it.  34

 

पद्मानन्दप्रदाता परिलसदरुणश्रीपरीताग्रभागः

काले काले च कम्बुप्रवर शशधरापूरणे यः प्रवीणः।

वक्त्राकाशान्तरस्थस्तिरयति नितरां दन्ततारौघशोभाम्

श्रीभर्तुर्दन्तवासोद्युमणिरघतमोनाशनायास्त्वसौ नः ॥३५॥

 

विष्णु के होठों का सूर्य हमारे पापों के अंधकार को मिटा दे; वे होंठ जो लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं, जो अपने किनारों पर सुंदर लाल रंग से चमकते हैं, जो चंद्रमा के समान शंखों के राजा पांचजन्य को बार-बार बजाने में माहिर हैं और जो मुंह के आकाश में रहकर सितारों के समान चमकने वाले दांतों की चमक को छिपाते हैं ॥३५॥

 

padmaanandapradaata parilasadarunashreeparitaagrabhaagah

kaale kaale ch kambupravar shashadharaapoorne yah satyah.

vaktrakaashaantarasthastirayati nitaraan dantataaraughashobhaam

shreebharturdantavaasodayamanirghatamonaashanayaastvasau nah .35.

 

May the Sun of Vishnu’s lips wipe out the darkness of our sins; lips which give joy to Lakshmi, which shine with a beautiful red colour at their edges, which are expert in blowing the moon-like king of conches Panchajanya off and on and which, staying in the sky of the mouth veils the twinkling of the teeth which are like stars.35

 

नित्यं स्नेहातिरेकान्निजकमितुरलं विप्रयोगाक्षमा या

वक्त्रेन्दोरन्दराले कृतवसतिरिवाभाति नक्षत्रराजिः।

लक्ष्मीकान्तस्य कान्ताकृतिरतिविलसन्मुग्धमुक्ताफलश्री:

दन्ताली संततं सा नतिनुतिनिरतान् रक्षतादक्षता नः ॥३६॥

 

मोतियों की भांति सुंदर और चमकदार लक्ष्मी के पति भगवान विष्णु के दांतों की सुंदर पंक्तियाँ, सदैव हमारी रक्षा करें जो हमेशा (उनके चरणों में) झुकने और (उनकी) स्तुति करने में लगे रहते हैं; दाँत जो तारों के समान प्रतीत होते हैं जिन्होंने अपने प्रेमी चंद्रमा (विष्णु के मुख ) के प्रति गहरे प्रेम के कारण विष्णु के मुख के भीतर अपना स्थान बना लिया है ॥३६॥

 

nityan snehaatirekannijakamituralan viprayogakshama ya

vaktrenadorandraraale krtavasateerivaabhaati nakshatraraajih.

lakshmeekaantasy kaantaakrtirativilaasanmugghamuktaaphalashree:

dantaalee santatan sa natinutiniratan rakshadakshata nah .36.

 

May the beautiful rows of teeth of the consort of Lakshmi, beautiful and shining like pearls, always protect us who are ever engaged in bowing (at His feet) and singing (His) praises; teeth which appear to be stars which have taken their position within the face (mouth) of Vishnu because of their deep love for their lover the moon (the face of Vishnu).36

 

ब्रह्मन्ब्रह्मण्यजिह्मां मतिमपि कुरुषे देव संभावये त्वां

शंभो शक्र त्रिलोकीमवसि किममरैः नारदाद्याः सुखं वः।

इत्थं सेवावनम्रं सुरमुनिनिकरं वीक्ष्य विष्णोः प्रसन्न-

स्यास्येन्दोरास्रवन्ती वरवचनसुधा ह्लादयेन्मानसं नः ॥३७॥

 

हे ब्रह्मा ! क्या आप अपने मन को ब्रह्म, परम सत्य के एकाग्र ध्यान में लगाते हैं? “हे शम्भू! मैं आपका सम्मान करता हूँ और आपका स्वागत करता हूं।” “हे इंद्र! क्या आप देवगणों सहित तीनों लोकों की रक्षा करते हैं?” “हे नारद और अन्य लोगों! क्या आप ठीक और खुश हैं?” – विष्णु के चंद्रमा जैसे मुख से निकले देवताओं और ऋषियों को संबोधित अमृत में डूबे ये शब्द हमारे दिलों को प्रसन्न करें ॥३७॥

 

brahmanbrahmanyajihmaan matimapi kurushe dev sambhavaye tvan

shambho shakr trilokeemavasi kimmaraih naaradadyah sukhan vah.

itthan sevaavanamran suramunikaranan veekshy vishnoh prasann-

syaasyendoraasravanti varavachanasudha hlaadyenamaanasan nah .37.

 

“ O Brahma, Do you engage your mind in single-minded meditation of the Brahman, the Ultimate Reality?”.  “O Shambhu! I honour you and welcome you”. “ O Indra ! do you protect the three worlds along with the celestials?”.  “O Narada and others ! are you well and happy?” – May these words steeped in nectar addressed to the devas and rishis, emerging from the moon-like face(mouth) of Vishnu gladden our hearts.37

 

कर्णस्थस्वर्णकम्रोज्ज्वलमकरमहाकुण्डलप्रोतदीप्य-

न्माणिक्यश्रीप्रतानैः परिमिलितमलिश्यामलं कोमलं यत्।

प्रोद्यत्सूर्यांशुराजन्मरकतमुकुराकारचोरं मुरारेः

गाढामागामिनीं नो गमयतु विपदं गण्डयोर्मण्डलं तत् ॥३८॥

 

मुरारी (विष्णु) के गाल , भविष्य में उत्पन्न होने वाली हमारी सभी कठिनाइयों को रोकें; गाल , जो कानों में पहने जाने वाले सुनहरे मछली के आकार के कुंडलों में स्थापित माणिक्य के गहरे लाल रंग को प्रतिबिंबित करते हैं, जो सुंदर गहरे नीले रंग के हैं और जो चमकते हैं और उगते सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करने वाले हरे रत्न के दर्पण की सुंदरता से भी परे हैं॥३८॥

 

karnasthasvarnakaamrojjvalamakaramahaakundalaprotadeepy-

namaanikyashreeprataanaih parimilitamalishyaamalan komalan yat.

prodyatsuryaanshuraajanmaraktamukurakaarachoran muraareh

gadhaamaagaamineen no gamayatu vipadan gandhayormandalan tat .38

 

May the cheeks of Murari (Vishnu) prevent all our difficulties which may arise in the future; the cheeks which reflect the deep red of the manikya set in the golden fish-shaped Kundalas (ear-globes) worn in the ears, which is of beautiful dark blue colour and which shines  and surpasses the beauty of the mirror of green gemstone reflecting the rays of the rising sun.38

 

वक्त्रांभोजे लसन्तं मुहुरधरमणिं पक्वबिम्बाभिरामं

दृष्ट्वा दष्टुं शुकस्य स्फुटमवतरतः तुण्डदण्डायते यः।

घॊणः शॊणीकृतात्मा श्रवणयुगलसत्कुण्डलोस्रैर्मुरारेः

प्राणाख्यस्यानिलस्य प्रसरणसरणिः प्राणदानाय नः स्यात् ॥३९॥

 

विष्णु की नाक जो प्राण नामक वायु को अंदर लेने और छोड़ने का मार्ग है, हमें जीवन का उपहार (प्राण) दे; नाक जो भगवान विष्णु के मुख कमल में चमकती है और जो जिससे यह आभास होता है कि जैसे तोते की चोंच पके हुए बिम्ब फल के समान दिखने वाले चमकीले लाल निचले होंठ तक उसको काटने के लिए पहुंच रही है , नाक जो विष्णु के कानों को सुशोभित करने वाले कर्ण-गुच्छों से लाल रंग की किरणों को प्रतिबिंबित करता है॥३९॥

 

vaktraambhoje lasantan muhurdharamanin pakvabimbaabhiraaman

drshtva dastun shukasy sphutamavataaratah tundadandayate yah.

ghonah shonikrtaatma shravanayugalasatkundalosaraayamuraareh

praanaakhyaasyaanilasy prasharanasaaranih praanadaanaay nah syaat .39.

 

May the nose of vishnu which is the pathway for inhaling and exhaling the air known as prana, give us the gift of life (prana); the nose which shines in the lotus of the face and which gives the impression of the beak of a parrot reaching out to the bright red lower lip to bite it since it looks like a ripe bimba fruit, which reflects the rays of red colour from the ear-globes adorning the ears of Vishnu.39

 

दिक्कालौ वेदयन्तौ जगति मुहुरिमौ संचरन्तौ रवीन्दू

त्रैलोक्यालोकदीपावभिदधति ययोरेव रूपं मुनीन्द्राः।

अस्मानब्जप्रभे ते प्रचुरतरकृपानिर्भरं प्रेक्षमाणे

पातामाताम्रशुक्लासितरुचिरुचिरे पद्मनेत्रस्य नेत्रे ॥४०॥

 

कमल-नेत्र (विष्णु) की आंखें हमारी रक्षा करें; ऋषियों ने जिन आँखों को सूर्य और चंद्रमा कहा है जो दिन-रात इस संसार का चक्कर लगाते हैं और हमें अंतरिक्ष और समय का ज्ञान देते हैं और तीनों लोकों को प्रकाश प्रदान करते हैं, जो कमल की भांति चमकते हैं, जिनकी दृष्टि करुणा से परिपूर्ण होती है और जो हल्के लाल, सफेद और काले रंग से युक्त होकर सुंदर लगती हैं ॥४०॥

 

dikkalau vedayantau jagati muhurimo sanchaarantau ravindu

trailokyalokadeepaavabhiddhati yorev roopan munindrah.

asmaanabjaprabhe te prachuratarakrpaanirbharan prekshamane

paataamaataamrashuklasituruchiruchire padmanetrasy netre .40.

 

May the eyes of the lotus-eyed (Vishnu) protect us; the eyes which the sages say are the Sun and the moon who circle this world day and night and give us the sense (knowledge) of space and time and provide the three worlds with light, which shine like the lotus, the glances from which are full of compassion and which are beautiful with light red, white and black colours.40

 

लक्ष्माकारालकालिस्फुरदलिकशशांकार्धसंदर्शमील-

न्नेत्रांभोजप्रबोधोत्सुकनिभृततरालीनभृंगच्छदाभे ।

लक्ष्मीकान्तस्य लक्ष्यीकृतविबुधजनापांगबाणासनार्ध-

च्छाये नो भूतिभूरिप्रसवकुशलते भ्रूलते पालयेताम् ॥४१॥

 

लक्ष्मी के स्वामी भगवान विष्णु की भौहें हमारी रक्षा करें; भौंहें जो मूक मधुमक्खी के पंखों की भांति दिखती हैं, जो चन्द्रमा के चिह्न के समान प्रतीत होने वाले घुंघराले वालों से युक्त माथे के अर्धचंद्र को देखकर बंद कमल-नेत्रों को खोलने के लिए उत्सुक हैं , जो अर्ध धनुष के समान जिससे विष्णु के दृष्टिबाण देवताओं को लक्ष्य करके छोड़े जाते हैं और जो प्रचुर धन उत्पन्न करने में सक्षम हैं ॥४१॥

 

lakshmaakaarakaaleesaphuradaalikaashaankaaradhaasandarshameel-

nanetraambhojaprabodhotsukanibhrtatraaleenabhrngachchhadaabhe.

lakshmeekaantasy lakshitavibuddhajanapaangabaanaasanaardh-

chhaayaaye no bhootibhooriprasavakushalate bhroolate palayetaam .41

 

May the eye-brows of the consort of Lakshmi protect us; the eye-brows which look like the wings of a silent honey bee which is keen on making open the lotus-eyes closed on seeing the half –moon of the forehead with the curly hairs on the forehead looking like the mark on the moon, which resemble one half of the bow from which are shot the arrows of glances of Vishnu aimed at the devas and which are capable of creating abundant wealth.41

 

पातात्पातालपातात्पतगपतिगतेर्भ्रूयुगं भुग्नमध्यं

येनेषच्चालितेन स्वपदनियमिताः सासुराः देवसंघाः।

नृत्यल्लालाटरंगे रजनिकरतनोरर्धखण्डावदाते

कालव्यालद्वयं वा विलसति समया बालिकामातरं नः ॥४२॥

 

पक्षियों के राजा गरुड़ पर सवार विष्णु की भौहें हमें पाताल लोक में गिरने से बचाएं; भौहें जो मध्य में धनुषाकार होती हैं, जिनकी थोड़ी सी हलचल से देवता और असुर दोनों अपने-अपने स्थान पर नियुक्त हो जाते हैं और जो सर्पों की माँ के समान दिख रही घुंघराले काले केशों से युक्त शुद्ध और सफ़ेद अर्धचंद्र के समान माथे पर नृत्य करते हुए दो काले सर्पों के बच्चों के समान दिखती हैं ॥४२॥

 

paataatpaatalapaatatpatagapatigaterbhrooyugan bhugnamadhyan

yeneshch sanchaalanen svapadnomitaah sasuraah devasanghaah.

nrtyaalayalatarange rajaneeratnordhanaardhakhandavadate

kaalavyaaladvayan va vilaasati samaya mokshamaatran nah .42

 

May the eye-brows of Vishnu who rides the king of birds Garuda save us from falling into the nether worlds; eye-brows which are arched at the centre, by a slight movement of which both devas and asuras are appointed in their respective positions and which resemble two  black child snakes  dancing on the forehead of pure white half-moon with short curly hair playing on it looking like the mother snake.42

 

रूक्षस्फारेक्षुचापच्युतशरनिकरक्षीणलक्ष्ये कटाक्ष-

प्रोत्फुल्लत्पद्ममाला विलसित महित स्फाटिकैशान लिङ्गम्।

भूयाद्भूयो विभूत्यै मम भुवनपतेः भ्रूलताद्वन्द्वमध्या-

दुत्थं तत्पुण्ड्रमूर्ध्वं जनिमरणतमः खण्डनं मण्डनं च ॥४३॥

 

भगवान विष्णु की दोनों भौंहों के मध्य से उठने वाला ऊर्ध्वपुण्ड्र (वैष्णवों के माथे पर गोपीचंदन का चिन्ह) हमें पुनः धन प्रदान करें; ऊर्ध्वपुण्ड्र जो भगवान विष्णु के माथे को सुशोभित करता है , जो जन्म और मृत्यु के चक्र को तोड़ता है और जो शुद्ध स्फटिक के एक पवित्र शिव लिंग के समान प्रतीत होता है, जो कामदेव के गन्ने के धनुष से निकले तीरों से टकराने के बाद लक्ष्मी की कटाक्ष या दृष्टि के समान कमल पुष्पों से निर्मित एक माला द्वारा पुनर्जीवित हो गया था ॥४३॥

 

rookshasphaarekshuchaapachyutasharnikarakshanalakshye kataaksh-

protphullatpadmaamaala valisit mahit sphatikaishan lingam.

bhooyaadbhooyo vibhootyai mam bhuvanapateh bhroolataadvandvamadhye-

duttham tatpundramoordhvan janimrantamah khandanan mandanan ch .43.

 

May the urdhwapundra  (the mark by gopichandan on the forehead of Vaishnavas) rising from the centre between the two eye-brows of Vishnu bestow on us riches again; the urdhwapundra  which adorns the forehead of Vishnu and breaks the cycle of births and deaths and  which resembles a holy Siva Linga of pure sphatika (crystal) which, after being hit by the arrows of Cupid flung from his sugarcane bow, was revived by a garland of lotus blossom like the glances of Lakshmi.43

 

पीठीभूतालकान्ते कृतमुकुटमहादेवलिङ्गप्रतिष्ठे

लालाटे नाट्यरंगे विकटतरतटॆ कैटभारेश्चिराय।

प्रोद्घाट्यैवात्मतन्द्रीप्रकटपटकुटीं प्रस्फुरन्तीं स्फुटांगम्

पट्वीयं भावनाख्यां चटुलमतिनटी नाटिकां नाटयेन्न: ॥४४॥

 

बुद्धि की चतुर नर्तकी, अपने आलस्य का पर्दा हटाकर, अपने सुगठित अंगों से चमकती हुई कल्पना को मस्तक द्वारा निर्मित उस नृत्य मंच पर नृत्य करने पर मजबूर कर दे, जो माथे और माथे पर गिरने वाले घुंघराले बालों के निचले गुच्छे से बनता है जिस पर मुकुट रखा जाता है जो शिव लिंग की स्थापना जैसा दिखता है ॥४४॥

 

peethibhootalakaante krtamukutamahaadevalingapratishthe

laalaate naatyarange vikatatarattai kathaabhareshcharaay.

prodghaatyaivaatmatndreeprakatapatakuteen prasphuranteen sphutakaangam

patveeyam bhaavanaakhyaam chaatulamatinti naatikaam naatayennah .44

 

May the clever dancer of intellect,  drawing aside the curtain of its lethargy, make the imagination, shining with her well-formed limbs, dance on the dancing stage which is formed by the forehead and the low stool of curly hair falling on the forehead on which is kept the crown which resembles the installation of a Siva Linga.44

 

मालालीवालिधाम्नः कुवलयकलिता श्रीपतेः कुन्तलाली

कालिन्द्यारुह्य मूर्ध्नो गलति हरशिरः स्वर्धुनी स्पर्धया नु ।

राहुर्वा याति वक्त्रं सकलशशिकलाभ्रान्ति लोलान्तरात्मा

लोकैरालोच्यते या प्रदिशतु सकलैः साखिलं  मंगलं नः ॥४५॥

 

भगवान विष्णु की मधु मक्खियों के झुण्ड के समान दिखने वाली काली जटाएँ हमें सब कुछ शुभ प्रदान करें; जटाएं जो नीले कुमुदिनी के पुष्पों से बनी मालाओं के समूह का आभास देती हैं, जिससे यह संदेह होता है कि काली नदी यमुना ऊपर चढ़ गई है और शिव की जटाओं में स्थित स्वर्गीय गंगा से प्रतिस्पर्धा करने के लिए जटाओं के रूप में नीचे की ओर बह रही है और जिसके बारे में लोग कल्पना करते हैं , जैसे राहु (जो काला है) यह सोचकर मुख की ओर बढ़ रहा है कि यह पूर्ण चंद्र है ॥४५॥

 

maalaleevaaleedhamanah kuvalyaklita shreepateh kuntalaali

kaalindyaruhy moordhano galati harashirah svardhuni srdhaya nu.

rahurvaa yaati vaktram sakalashashikalaabhranti lolaantaraatma

lokairaalochyate ya pradistu sakalaih saakhilan mangalam nah .45.

 

May the locks of Vishnu, dark as a swarm of honey bees,  bestow on us everything auspicious; the locks which give the impression of a bunch of garlands made of blue lilies, which make one doubt that the  dark river Yamuna has climbed up and is flowing down as locks to compete with the heavenly Ganga lodged in the matted locks of Siva and about which the people think that  Rahu (who is dark) is moving towards the face deluded into thinking that it is the full moon.45

 

सुप्ताकाराः सुषुप्ते भगवति विबुधैरप्यदृष्टस्वरूपा

व्याप्तव्योमान्तरालास्तरलरुचिजलारंजिताः स्पष्टभासः।

देहच्छायोद्गमाभा रिपुवपुरगुरुप्लोषरोषाग्निधूम्याः

केशाः केशिद्विषो नो विदधतु विपुलक्लेशपाशप्रणाशम् ॥४६॥

 

केशी के शत्रु भगवान विष्णु के केश हमारे दुःख के सभी कारणों को नष्ट कर दें (पंच क्लेश – अविद्या (अज्ञान), अस्मिता (अहंकार, स्वामित्व), राग (लगाव), द्वेष (घृणा), अभिनिवेश (बुढ़ापे का डर और मृत्यु); जब भगवान गहरी नींद में होते हैं तो वे जटाएं अदृश्य प्रतीत होती हैं, जिनका वास्तविक स्वरूप देवता भी नहीं देख पाते हैं , केश जो पूरा आकाश घेर लेते हैं, जो क्षीर सागर की लहरों द्वारा उज्ज्वल हो जाते हैं, जो विष्णु के श्याम शरीर से निकलते प्रतीत होते हैं और जो यह आभास देते हैं कि वे भगवान विष्णु के क्रोध की आग से शत्रुओं के शरीर को धूप और अगर की भांति जलाने से उत्पन्न होने वाला काला और गाढ़ा धुआं हैं ॥४६॥

 

suptaakaarah sushupte bhagavatee vibudhairapyadrshtasvaroopa

vyaaptvyomantralaastaralaaruchijalaranjitaah spashtabhaasah.

dehachchayodgamaabha ripuvapuraguruplosharoshaagnidhoomyah

keshaah keshidvisho no vidadhaatu vipulakleshapaashapranaasham .46.

 

May the locks of the enemy of Keshi (Vishnu) destroy all the causes our sorrow ( पंच क्लेशाः – अविद्या (ignorance), अस्मिता ( ego, possessiveness), राग (attachment), द्वेष (aversion), अभिनिवेश (fear of old age and death); the locks which appear to vanish when the Lord is in deep sleep, the real nature of which is not seen even by devas, which occupies the whole of space, which are made bright by the waves of the milky ocean, which appear to be an emission from the (dark) body (of Vishnu)  and which give the impression that they are the dark and thick  smoke resulting from the burning of the bodies of enemies like incense  by the fire of vishnu’s anger.46

 

यत्र प्रत्युप्तरत्नप्रवरपरिलसद्भूरिरोचिष्प्रतान-

स्फूर्त्या मूर्तिमुरारेर्द्युमणिशतचितव्योमवद्दुर्निरीक्ष्या।

कुर्वत्पारेपयोधि ज्वलदकृतमहाभास्वदौर्वाग्निशंकां

शश्वन्नः शर्म दिश्यात्कलिकलुषतमःपाटनं तत्किरीटम्॥४७॥

 

कलियुग की बुराइयों के अंधकार को तोड़ने में सक्षम भगवान विष्णु के सिर का मुकुट हमें शांति और आनंद प्रदान करे; जिस मुकुट की चमक, उसमें जड़े हुए बहुमूल्य रत्नों की किरणों के फैलने से उत्पन्न होती है, उससे मुरारी (विष्णु) के रूप को देखना बहुत मुश्किल हो जाता है, जैसे आकाश में एक समय में सैकड़ों सूर्य चमकते हैं और जिससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि शायद यह समुद्र की सतह पर विघटन या बड़वाग्नि की अग्नि की महान प्राकृतिक चमक है (क्योंकि विष्णु का शरीर समुद्र के समान गहरा नीला है) ॥४७॥

 

yatr pratyuptaratnapravaraparilasadbhurirochishprataan-

sphoortya moortimuraarerdyumanishchitvomavaddurnirakshay.

kurvat-parepayodhi jvaladakrtamahaabhaasvadoorvaagnishanakan

shashvannah sharm dishyaatkaalikaalushtamahpaatanan tatkireetam.47.

 

May the crown on the head of Vishnu,  capable of breaking the darkness of the evils of the Kaliyuga, bestow on us peace and happiness; the crown the brilliance of which,  arising from the spread of rays from the precious gems set in it, makes it very difficult to look at the form of Murari (Vishnu) just like the sky with a hundred Suns shining at a time and which makes one doubt that perhaps it is the great natural blaze of the fire of dissolution (badavagni) on the surface of the ocean ( as the body of Vishnu is dark blue like the ocean) .47

 

भ्रान्त्वा भ्रान्त्वा यदन्तस्त्रिभुवनगुरुरप्यब्दकोटीरनेका:

गन्तुं नान्तं समर्थो भ्रमर इव पुनर्नाभिनालीकनालात्।

उन्मज्जन्नूर्जितश्रीस्त्रिभुवनमपरं निर्ममे तत्सदृक्षं

देहांभोधिः स देयान्निरवधिरमृतं दैत्यविद्वेषि विष्णोः ॥४८॥

 

असुरों के शत्रु भगवान विष्णु का असीम शरीर-सागर हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति का अमृत प्रदान करे; वह शरीर-सागर जिसमें तीनों लोकों के रचयिता ब्रह्मा लाखों वर्षों तक भटकते रहे और इसकी सीमा नहीं पा सके, (विष्णु की) नाभि से निकलने वाले कमल के डंठल के माध्यम से बाहर आए और नयी ऊर्जा के साथ एक समान संसार की रचना की ॥४८॥

 

bhraantva bhraantva yadantastribhuvanagururapyabadakotiraneka:

gantum naantam samartho bhramar iv punarnaabhinaalikanaalaat.

unmajjannoorjitashreestribhuvanamaparan nirmame tatsadrkshan

dehambodhih sa dayaanniravadhiramrtan daityavidveshi vishnuh .48

 

May the limitless body-ocean of Vishnu, enemy of asuras,  bestow on us the nectar of liberation from the cycle of births and deaths; the body-ocean in which the creator of the three worlds Brahma wandered for millions of years and, unable to find its limits, came out through the stem of the lotus emerging from the navel (of Vishnu) and with refreshed energy created a similar  world.48

 

मत्स्यः कूर्मो वराहो नरहरिणपतिः वामनो जामदग्न्यः

काकुत्स्थः कंसघाती मनसिजविजयी यश्च कल्की भविष्यन्।

विष्णोरंशावतारा भुवनहितकरा धर्मसंस्थापनार्थाः

पायासुर्मां त एते गुरुतरकरुणाभारखिन्नाशया ये ॥४९॥

 

विश्व के कल्याण के लिए और धर्म की स्थापना के लिए, अत्यधिक करुणा से भरे हृदय से प्रेरित होकर, अपनी आंशिक शक्तियों से मछली (मत्स्य), कछुआ (कूर्म), सूअर (वराह) के रूप में विष्णु के अवतार हो सकते हैं। नरसिम्हा ,वामन , जमदग्नि के पुत्र परशुराम , ककुत्स्थ (श्री राम), कंस के संहारक कृष्ण , कामदेव के विजेता बुद्ध और कल्कि का भावी अवतार मेरी रक्षा करो ॥४९॥

 

matsyah koormo varaho naraharinpatih vaamano jaamadagnyah

kaakutsthah kansaghaatee manasijvijayee yashch kalki bhavishyan.

vishnoranshaavataar bhuvanahitakara dharmasan sthaapanaarthah

paayasuramaam ta ete gurutarakarunaabhaarakhinanaashay ye .49.

 

May the incarnations of Vishnu by his partial potencies, prompted by a heart heavy with extreme compassion,  for the welfare of the worlds and for the establishment of dharma,  as the fish (matsya), the tortoise (kurma), the boar(varaha), the man-lion(narasimha) , the dwarf(vamana), the son of Jamadagni (parasurama), Kakutstha (Sri Rama), the slayer of Kamsa (Krishna), the conqueror of Cupid (buddha) and the future incarnation of Kalki protect me.49

 

यस्माद्वाचो निवृत्ताः सममपि मनसा लक्षणामीक्षमाणाः

स्वर्थालाभात्परार्थ व्यपगमकथनश्लाघिनो वेदवादाः।

नित्यानन्दं स्वसंविन्निरवधिविमलस्वांतसंक्रान्तबिंब-

च्छायापत्यापि नित्यं सुखयति यमिनो यत्तदव्यान्महो नः ॥५०॥

 

वह तेज हमारी रक्षा करे जिसका वेद उपयुक्त शब्द न खोज पाने पर ‘यह नहीं, यह नहीं’ के निषेध के रूप में वर्णन करते हैं और शब्दों के शाब्दिक अर्थ को त्यागकर उनके अनुमानित या संकेतात्मक अर्थ को अपना लेते हैं, लेकिन फिर भी उसे ग्रहण करने में असमर्थ हैं। वेदों के शब्दों की तरह मन भी उसे समझने में असमर्थ हो जाता है जो शाश्वत आनंद की प्रकृति वाला है, स्व-प्रकाशमान, असीमित और अमर है और जो अपने शुद्ध हृदय में इसके प्रतिबिंब को देखता है और ध्यान करता है उसे प्रसन्न और आनंदित करता है ॥५०॥

 

yasmaadvaacho nivrttah samamapi manasa lakshanaameekshamanaah

svaarthalaabhaatparaarth vyaapagamakathaashlaaghino vedavaadah.

nityaanandan svasanvinniravadhivimalasvantasankraantibimb-

chhaayaapatyapi nityan sukhayati yamino yattadavyaanmaho nah .50.

 

May that effulgence protect us which the Vedas, unable to find suitable words,  describe in terms of negation ‘not this, not this’ and,  discarding the literal meaning of words,  adopt their inferred or indicative meaning but are still unable to grasp it. Like the words of the Vedas the mind also returns unable to comprehend it which is of the nature of Eternal Bliss, Self-Luminous, limitless and immortal and which makes those who see and meditate on the reflection of it in their pure hearts happy and blissful.50

 

आपादादा च शीर्षाद्वपुरिदमनघं वैष्णवं स्वचित्ते

धत्ते नित्यं निरस्ताखिलकलिकलुषे संततान्तः प्रमोदः ।

जुह्वज्जिह्वाकृशानौ हरिचरितहविः स्तोत्र मन्त्रानुपाठैः

तत्पादांभोरुहाभ्यां सततमपि नमस्कुर्महे निर्मलाभ्याम् ॥५१॥

 

हम सदैव उन लोगों के चरण कमलों में झुकते हैं, जो अपने शुद्ध हृदय में आनंद से भरे हुए हैं और बार-बार भजन और मंत्रों के जाप से और अपनी जीभ की अग्नि में हरि की दिव्य लीलाओं की आहुति देकर कलि की बुराइयों से मुक्त हो जाते हैं और जो सदैव सिर से पैर तक विष्णु के शुद्ध और पवित्र रूप का ध्यान करते हैं ॥५१॥

 

aapaadaada ch sheershaadvapureedamaghan vaishnavan svachitte

dhatte nityan pitrkhilakaalikalushe santantah raamah.

juhvajjihvaakrshnau haricharitaahavih stotr mantraanupaathaih

tatpaadaambhoruhaabhyaan satatamapi namaskurmahe neelaabhyam .51

 

We always bow at the lotus feet of those who, brimming with happiness in their pure hearts and freed of the ills of Kali by the repeated chanting of hymns and mantras and by oblation, into the fire of their tongues, of the divine leelas of Hari and  who always meditate on the pure and holy form  of Vishnu from head to foot.51

 

मोदात्पादादिकेशस्तुतिमितिरचितां कीर्तयित्वा त्रिधाम्नः

पादाब्जद्वंद्वसेवासमयनतमतिर्मस्तकेनानमेद्यः ।

उन्मुच्यैवात्मनैनोनिचयकवचकं पञ्चतामेत्य भानोर्

बिंबान्तर्गोचरं स प्रविशति परमानन्दमात्मस्वरूपम् ॥५२॥

 

जो व्यक्ति भगवान के चरण कमलों में पूजा करते हुए विष्णु को इस पादादिकेश स्तोत्र का आनंदपूर्वक पाठ करेगा और सिर झुकायेगा वह अपने पापों से मुक्त हो जाएगा और अपने शरीर को त्यागने के बाद सूर्य की कक्षा में प्रकट परम आनंद की अपनी प्रकृति को प्राप्त करता है ॥५२॥

 

modaatpaadaadikeshastutimitirchitan keertayitva tridhaamnah

paadaabajadvandvasevaasamayantamatirmastakenaanamedyah.

unmuchyaivatmanonichyavachakan panchataamety bhaanor

bimbaantaragocharam sa pravishti paramaanandamaatmasvaroopam .52

 

He who happily recites this padadikesha hymn to vishnu during worship at the lotus feet of the Lord and bows down with his head will be freed from his sins and, after shedding his body, attain his own nature of Absolute Bliss manifest within the orb of the sun.52

 

 

 

 

 

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