
राम नाम मात्र एक शब्द नहीं है अपितु यह स्वयं साक्षात परबह्म का स्वरूप है । यह नाम जितना सरल है उतना ही रहस्यमय भी है। संसार में सब कुछ कार्य – कारण सिद्धांत से बंधा हुआ है किन्तु एक राम नाम ऐसा मंत्र , नाम और साधन है जो स्वयं सभी कारणों से परे है । जो भी व्यक्ति इस नाम का जप करता है उस पर विधाता का बनाया कोई भी नियम लागू नहीं होता क्योंकि वह स्वयं उस परम सत्ता से जुड़ जाता है जो विधाता की भी रचना करती है । विधाता अर्थात ब्रह्मा जो सृष्टि की रचना करते हैं । वह विधाता स्वयं वेदों , धर्मों और कर्मों के विधान के अधीन है । किंतु राम नाम उन सबसे ऊपर है । राम शब्द में जो शक्ति है वह ब्रह्मा , विष्णु और महेश को भी दिशा देती है । यह बात तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में स्पष्ट की है ।
“राम नाम अति पावन पावक जासु बस जग त्रय विप्र धावक”
अर्थात राम नाम इतना पवित्र है कि उसके वश में त्रिलोक के देवता तक रहते हैं । जिस व्यक्ति की जिह्वा पर निरंतर राम का नाम रहता है उसके जीवन में विधि के विधान निष्क्रिय हो जाते हैं । सामान्य व्यक्ति पाप-पुण्य , जन्म-मरण , ग्रह-नक्षत्र , कर्म-फल आदि के नियमों से बंधा होता है । वह यदि कुछ गलत करता है तो उसका फल भोगता है । यदि कुछ पुण्य करता है तो उसे उसका भी प्रतिफल मिलता है किन्तु जो व्यक्ति राम नाम का निरंतर जाप करता है वह इन सभी चक्रों से मुक्त हो जाता है । उसे ना तो पाप स्पर्श करता है ना पुण्य उसे बांधता है । वह परम स्वतंत्र हो जाता है । यह इसलिए संभव होता है क्योंकि राम नाम स्वयं ईश्वर का रूप है । जब कोई व्यक्ति नाम को ही अपना आधार बना लेता है तो वह धीरे-धीरे नाम में लीन हो जाता है । उसकी चेतना नाम में विलीन हो जाती है और जब चेतना नाम में समाहित हो जाती है तब वह व्यक्ति कर्ता नहीं रहता । उसमें कर्तापन का अभिमान समाप्त हो जाता है और जहां कर्तापन समाप्त होता है वहां कर्म का बंधन भी समाप्त हो जाता है । यही कारण है कि राम नाम जापक को विधाता का कोई भी नियम नहीं छू सकता क्योंकि उसके जीवन में कुछ भी स्वेच्छा से नहीं होता । सब राम की इच्छा से होता है ।
वर्तमान युग में मनुष्य अनगिनत नियमों से घिरा हुआ है । धर्म , समाज , परिवार , शासन , ग्रह – नक्षत्र , संस्कार , परंपरा । सब मिलकर उसके चारों ओर एक ऐसा जाल बुन देते हैं जिससे बाहर निकलना कठिन हो जाता है किन्तु राम नाम उस जाल को चीर कर आत्मा को उसकी मूल स्वतंत्रता में प्रतिष्ठित कर देता है। एक ऐसा व्यक्ति जो हर समय राम का नाम जपता है वह इन बंधनों को पहचानता ही नहीं । उसके लिए जीवन एक सहज सरल और आनंदमय यात्रा बन जाता है । राम नाम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह भेद नहीं करता । यह ना जाति देखता है , ना धर्म , ना लिंग , ना अवस्था । जो कोई भी सच्चे मन से राम को पुकारता है राम नाम उसी के हृदय में बस जाता है। चाहे वह व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में हो यदि उसके मुख पर राम का नाम है तो वह हर संकट से पार हो जाता है । इतिहास गवाह है कि राम नाम ने डाकुओं को भक्त बना दिया और पतितों को पावन बना दिया । एक साधारण व्यक्ति को अपने जीवन में ना जाने कितनी बार ग्रहों की शांति के लिए पूजा करनी पड़ती है , नक्षत्रों के दोष दूर करने के लिए उपाय करने पड़ते हैं , जन्मपत्री में दिख रहे दोषों को ठीक करने के लिए कई कर्मकांड करने पड़ते हैं लेकिन जो व्यक्ति राम का नाम जपता है उसे इन सब की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि राम नाम का प्रभाव सभी दोषों को भस्म कर देता है ।
तुलसीदास जी ने स्वयं कहा है कि नाम की महिमा वही जानता है जो इसका निरंतर जाप करता है । राम नाम जापक पर विधाता का कोई नियम लागू ना होना इस बात का प्रमाण है कि यह नाम केवल भक्ति का साधन नहीं यह मोक्ष का मार्ग भी है और यह मोक्ष केवल मृत्यु के बाद नहीं बल्कि इस जीवन में भी अनुभव किया जा सकता है । जो व्यक्ति राम नाम का रसपान करता है उसकी वासनाएं समाप्त होने लगती हैं। उसके भीतर शांति , संतोष और करुणा का उदय होता है । वह संसार में रहकर भी संसार से परे हो जाता है । वह भोजन करता है , व्यवहार करता है , काम करता है लेकिन सब कुछ निष्काम भाव से । यह अवस्था कर्म योग से नहीं , ज्ञान योग से नहीं बल्कि केवल नाम योग से प्राप्त होती है । राम नाम के प्रभाव से अनेक ऋषि-मुनियों ने कठिन तप के बिना ही परम पद को प्राप्त किया । तुलसीदास जी ने नाम की महिमा गाते हुए कहा है कि केवल नाम का स्मरण ही सारे दुख , दोष और दरिद्रता को समाप्त कर देता है । यदि यह केवल कोई मंत्र होता तो इसके लिए विधि-विधान , गुरु दीक्षा और समय आवश्यक होता लेकिन राम नाम तो उस प्रेम का प्रतीक है जिसे कोई भी कहीं भी जप सकता है ।
चलते-फिरते , खाते-पीते , जागते-सोते यही इसकी सर्वसुलभता है । धार्मिक ग्रंथों में राम नाम को हर युग में प्रभावी माना गया है लेकिन कलयुग में इसकी महिमा और भी बढ़ जाती है। कलयुग में जब कोई भी धर्म का पालन करने में अक्षम होता है तब केवल नाम ही सहारा देता है । श्रीमद् भागवत में कहा गया है कलयुग में केवल नाम लेने से ही भगवान पूजित हो जाते हैं । जब भगवान स्वयं इतने सहज हो जाएं कि केवल उनके नाम से प्रसन्न हो जाए तो फिर उस नाम के जापक पर कोई नियम कैसे लागू हो सकता है । जब व्यक्ति अपने जीवन में राम नाम को केंद्र बना लेता है तो उसकी हर क्रिया चाहे वह सांस लेना हो , बोलना हो , चलना हो , काम करना हो सब नाम की सत्ता से भर जाता है । वह व्यक्ति अब संसार का भाग नहीं रहता वह राम का अंश बन जाता है। राम नाम का प्रभाव उसके जीवन में ऐसा प्रकाश फैलाता है जिसमें अंधकार टिक ही नहीं सकता । ना अज्ञान , ना भय , ना भ्रम । सब कुछ नाम में समर्पित हो जाता है । ऐसे जापक को जब कोई कष्ट आता है तो वह उसे कष्ट नहीं मानता । वह जानता है कि यह भी राम की इच्छा है । वह प्रसन्न रहता है क्योंकि उसका विश्वास अटल हो चुका होता है कि राम जो करते हैं भले के लिए ही करते हैं । उसका जीवन अब शिकायतों का नहीं बल्कि हर सम – विषम परिस्थिति को स्वीकार करने का बन जाता है । इस प्रकार राम नाम उसे मानसिक शांति , स्थिरता और आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान करता है । राम नाम जप करने वाला व्यक्ति किसी नियम से नहीं बंधा होता क्योंकि वह अब अपनी व्यक्तिगत पहचान को छोड़ चुका होता है । वह अब मैं और मेरा से ऊपर उठ चुका होता है। उसके लिए सब राम है ।
शरीर राम का , मन राम का , कर्म राम के , विचार राम के । ऐसा व्यक्ति अब व्यक्तिगत नियति से मुक्त होता है और ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ जाता है । जब चेतना का विस्तार होता है तो व्यक्ति अपने छोटे-छोटे सुख – दुखों से परे हो जाता है । राम नाम जापक के जीवन में एक दिव्यता आ जाती है जो उसके संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को स्पर्श करती है । वह समाज में रहते हुए भी समाज से ऊपर उठ जाता है । उसके जीवन में जो कुछ भी घटता है वह एक उच्च शक्ति के निर्देशन में होता है। उसे अपने जीवन की दिशा तय नहीं करनी पड़ती बल्कि स्वयं राम नाम उसकी नया का खिवैया बन जाता है । इसलिए जब कहा जाता है कि राम नाम जापक पर विधाता का कोई भी नियम लागू नहीं होता तो इसका अर्थ यह होता है कि ऐसा व्यक्ति अब कर्मों के चक्र में बंधा हुआ नहीं रहता । वह अब केवल राम की इच्छा से संचालित होता है । उसका जीवन अब नियति या भाग्य नहीं बल्कि कृपा से चलता है और जब कृपा बरसती है तो वह सारे बंधनों को तोड़ देती है ।
इसलिए जीवन में यदि कोई वास्तव में मुक्त होना चाहता है ; यदि कोई नियमों , बाधाओं , दोषों और दुर्भाग्य से ऊपर उठना चाहता है तो राम नाम ही उसका एकमात्र और सर्वोत्तम उपाय है । इस नाम में जो सामर्थ्य है वह सारे युगों , सारे शास्त्रों और सारे देवताओं से भी परे है । जो इस नाम को अपना लेता है उसके लिए स्वयं विधाता भी नियम बदल देता है । यही है राम नाम की सर्वोच्च महिमा । तो आप भी आज से बल्कि अभी से राम नाम का जाप शुरू कर दें और अपने जीवन में आने वाले बदलावों को स्वयं अनुभव करें ।
राम नाम जपते ही व्यक्ति के सभी संचित , प्रारब्ध और क्रियमाण कर्मों का नाश होना प्रारम्भ हो जाता है । राम नाम जपने वाले मनुष्य ने अपनी पिछली योनियों , अनगिनत पूर्व जन्मों में जो भी कर्म संचित किये होते हैं , जो भी पाप एकट्ठे किये होते हैं एक – एक कर वो नष्ट होने आरम्भ हो जाते हैं । नाम जप करते समय यदि कोई दुःख , बाधा , कष्ट आते भी हैं तो नाम जप छोड़े नहीं । जैसे जब हम कहीं पानी के लिए गहरा कुआँ खोदते हैं तो पहले हमें कंकड़ , पत्थर आदि कई अशुद्धियाँ मिलती हैं फिर कहीं जाकर शुद्ध पानी दिखता है ऐसे ही जब हम नाम जप करते हैं तो वह नाम हमारे तन , मन , आत्मा , बुद्धि , जन्मों के एकत्र किये हुए पाप , संस्कार सब शुद्ध कर रहा होता है । नाम जड़ से हमारे पाप कर्म नष्ट करता है । हमारी पाप कर्मों से मलिन हुई दूषित बुद्धि , आत्मा और मन को पवित्र तथा निर्मल करता है । हमारे कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त हुए इस शरीर और पाप कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त हुए शरीर के दोषों , व्याधियों , वंशानुगत रोगों को भी मूल रूप से दूर करता है । तो नाम पे अपना विश्वास बनाये रखें , राम पे अपनी श्रध्दा अडिग रखें । तो प्रेम से बोलिये जय श्री राम ।
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