श्रीकृष्ण अष्टकम स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | Shri Krishnashtak | श्री कृष्णाष्टक | Shri Krishnashtakam | श्री कृष्णाष्टकं | Shri Krishnashtakam composed by Shri Paramhans Brahmanand| Shri Krishna Stuti | Krishna Ashatakam | Shri Krishna Ashtakm Hindi Lyrics with meaning | Chaturmukhadi samstutam samastsaatvataanutam | चतुर्मुखादिसंस्तुतं समस्तसात्वतानुतम् | श्रीपरमहंसब्रह्मानन्द विरचितं श्रीकृष्णाष्टकं | श्री राधिकाधिप अष्टकम | कृष्णाष्टक हिंदी अर्थ सहित | श्री कृष्णाष्टकं हिंदी लिरिक्स अर्थ सहित | परमहंस ब्रह्मानंद द्वारा रचित राधाष्टकं / कृष्णाष्टकं| Shri Krishna Ashtakam Stotra with Hindi Meaning|
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परमहंस ब्रह्मानंद द्वारा रचित राधाष्टकं / कृष्णाष्टकं
चतुर्मुखादिसंस्तुतं समस्तसात्वतानुतम्
हलायुधादिसंयुतं नमामि राधिकाधिपम् ॥१॥
मैं श्री राधा के ईश श्री कृष्ण को नमस्कार करता हूं, जिनकी स्तुति चतुर्मुखी ब्रह्मा और अन्य देवताओं द्वारा की जाती है , जो सदैव भक्तों और सत्व गुणी लोगों द्वारा पूजित हैं, और जो हलायुध अर्थात हल के वाहक बलराम और अन्य जनों के साथ सुशोभित हैं।।1।।
बकादिदैत्यकालकं सगोपगोपिपालकम्
मनोहरासितालकं नमामि राधिकाधिपम् ॥२॥
बकासुर जैसे असुरों का वध करने वाले, गोपों और गोपियों की देखभाल करने वाले और घने तथा आकर्षक काले बालों वाले राधा के स्वामी श्री कृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।।2।।
सुरेन्द्रगर्वभञ्जनं विरञ्चिमोहभञ्जनम्
व्रजाङ्गनानुरञ्जनं नमामि राधिकाधिपम् ॥३॥
देवताओं के स्वामी इंद्र के झूठे अभिमान को चूर करने वाले, विरंचि अर्थात ब्रह्माजी के भ्रम को दूर करने वाले और व्रज वासियों को प्रसन्न करने वाले राधा जी के स्वामी श्री कृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।।3।।
मयूरपिच्छमण्डनं गजेन्द्रदन्तखण्डनम्
नृशंसकंसदण्डनं नमामि राधिकाधिपम् ॥४॥
मैं राधा के स्वामी श्री कृष्ण को प्रणाम करता हूं, जो मोर पंख धारण करते हैं, जिन्होंने कुवलयापीड़ नामक हाथी के दांत को तोड़ा, और जिन्होंने नृशंस कंस को दंडित कर के प्रजा को प्रसन्न किया।।4।।
प्रदत्तविप्रदारकं सुदामधामकारकम्
सुरद्रुमापहारकं नमामि राधिकाधिपम् ॥५॥
मैं राधा के स्वामी श्री कृष्ण को नमस्कार करता हूं, जिन्होंने ब्राह्मण ( सांदीपनि मुनि )के बच्चे को लौटाया , जिन्होंने सुदामा की दरिद्रता को दूर किया, और जिन्होंने स्वर्ग से देवताओं के पारिजात के वृक्ष को हर लिया।।5।।
धनञ्जयजयावहं महाचमूक्षयावहम्
पितामहव्यथापहं नमामि राधिकाधिपम् ॥६॥
धनञ्जय अर्थात अर्जुन की पराजय को दूर करने वाले, शत्रुओं की विशाल सेना का नाश करने वाले और पितामह भीष्म के दुख दूर करने वाले राधा के स्वामी श्री कृष्ण को मैं प्रणाम करता हूं।।6।।
मुनीन्द्रशापकारणं यदुप्रजापहारणम्
धराभरावतारणं नमामि राधिकाधिपम् ॥७॥
मैं श्री राधा जी के स्वामी श्री कृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ, जो ऋषियों के श्राप का कारण बने , जिन्होंने यदु कुल के लोगों का नाश किया, और जिन्होंने पृथ्वी पर भार हल्का किया।।7।।
सुवृक्षमूलशायिनं मृगारिमोक्षदायिनम्
स्वकीयधाममायिनं नमामि राधिकाधिपम् ॥८॥
मैं राधा के स्वामी को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने बरगद के पेड़ के नीचे शयन किया था , जिन्होंने शिकारियों को मोक्ष दिया, और जिन्होंने अपने धाम में अपना स्थान प्राप्त किया।।8।।
इदं समाहितो हितं वराष्टकं सदा मुदा
जपञ्जनो जनुर्जरादितो द्रुतं प्रमुच्यते ॥९॥
इस प्रकार, श्री राधिका के प्रभु की महिमा गाने वाली आठ प्रार्थनाएं ( वराष्टकम ) सभी के लिए समान रूप से हितकारी हैं, और सभी को प्रसन्नता देंगी। यह वराष्टकम उसे जप करने वाले को भौतिक संसार से शीघ्र ही मुक्त कर देगा।।9।।
इति श्री परमहंसब्रह्मानन्द विरचितं श्री कृष्णाष्टकं सम्पूर्णम
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