श्री राधाकृष्णस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित | श्री कृष्ण स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | श्री कृष्ण स्तोत्र | श्री राधाकृष्णस्तोत्रम् – वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेय | श्री कृष्ण स्त्रोत-भगवान श्री कृष्ण की स्तुति करने के लिए| श्री कृष्ण स्तोत्र के लाभ | Shri Krishna Stotra | Shri Radhakrishna Stotra | Shri Krishna Stotra Lyrics| Shri Radha krishna Stotra Lyrics | श्री राधा कृष्ण स्तोत्रम् | श्री राधाकृष्णस्तोत्र | Shri Krishna Stotra with hindi meaning | Shri Radhakrishna Stotra with hindi meaning
Subscribe on Youtube:The Spiritual Talks
Follow on Pinterest:The Spiritual Talks
श्री कृष्ण स्त्रोत का पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं । श्री कृष्ण स्तोत्र पाठ करने श्री कृष्ण की असीम कृपा मिलती है। इस पाठ को करने से हर समस्या का अंत हो जाता है।
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससं।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम्॥१॥
मैं उन भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार करता हूं जो घने मेघों के समान श्याम वर्ण हैं , जो पीले रेशमी वस्त्रों से सुसज्जित हैं जो आनंद से भरपूर हैं , सुंदर , शुद्ध और प्रकृति से परे हैं ।।1।।
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतं।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षःस्थलस्थितम्॥२॥
जो श्रीराधिका के स्वामी हैं , श्रीराधिका के प्राणों के प्रिय हैं , जो वल्लवी अर्थात गोपी अर्थात यशोदा के पुत्र हैं , जिनके राधा द्वारा सेवित चरण कमल श्री राधा के वक्ष स्थल पर स्थित हैं ।।2।।
राधानुगं राधिकेशं राधानुकृतमानसं।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम्॥३॥
जो राधा का अनुकरण करते हैं , राधा का अनुसरण करते हैं , राधिका के इश्वर हैं , जो राधा का आधार है, संसार का आधार है, सबका आधार है, उन श्री कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूँ।।3।।
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभं।
राधासहचरं शश्वद्राधाज्ञापरिपालकम् ॥४॥
राधा के हृदय कमल के मध्य स्थित वसंत ऋतु सदैव मंगलकारी है , जो राधा के साथी हैं और सदैव राधा की आज्ञा का पालन करते हैं।।4।।
ध्यायन्ते योगिनो योगात् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम्।
तं ध्यायेत् सन्ततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥५॥
योगी, सिद्ध और सिद्ध भगवान योग द्वारा जिनका ध्यान करते हैं। मनुष्य को उस शुद्ध एवं शाश्वत परमेश्वर का निरंतर ध्यान करना चाहिए।।5।।
सेवने सततं सन्तो ब्रह्मेशशेषसंज्ञकाः।
सेवन्ते निर्गुणब्रह्म भगवन्तं सनातनं॥६॥
जो संत निरंतर ब्रह्म की सेवा में रहते हैं उन्हें ब्रह्म का शेष कहा जाता है। वे शाश्वत सर्वोच्च भगवान, पारलौकिक ब्रह्म की पूजा करते हैं।।6।।
निर्लिप्तं च निरीहं च परमानन्दमीश्वरं।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनं॥७॥
जो निर्लिप्त ( आसक्ति तथा माया मोह रहित ) हैं , जो अत्यंत भोले हैं , परम आनंद से युक्त है , नित्य हैं , सत्य हैं , सर्वोच्च ईश्वर हैं , शाश्वत हैं उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ ।।7।।
यं सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परं।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनं॥८॥
जो सृष्टि का आरंभ और सबका बीज, सर्वोच्च सत्ता है। योगी उस शाश्वत परमेश्वर को प्राप्त कर लेते हैं।।8।।
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणं।
वेदाऽवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥९॥
वही बीज ही विभिन्न अवतारों और सभी कारणों का कारण है। वेद अज्ञेय हैं और वेदों का बीज ही वेदों का कारण व प्रभाव है।।9।।
Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:
For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:
Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks
For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers & Pinterest Stories:
Follow on Pinterest: The Spiritual Talks
For any query contact on:
E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com