श्री विष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्र-श्री विष्णु सहस्रनामम हिंदी लिरिक्स

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May 21, 2024 #1000 names of lord Vishnu, #benefits of visnu sahasranama, #lord vishnu, #om vishvam vishnu vashatkaaro, #Shri Vishnu Sahasra Namavali, #shri vishnu sahasranaam stotra, #Shri Vishnu Sahasranama, #shri vishnu sahastranaam in hindi, #shuklambar dharam vishnu, #Sri Vishnu Sahasranama Stotram, #sri visnu sahasranamam, #vishnu sahasranama Hindi Lyrics, #Vishnu Sahasranama Lyrics, #Vishnu Sahasranama Stotram | 1000 Names Stotram of Lord Vishnu, #vishnu sahasranamam, #Vishnu Sahasranamam Hindi Lyrics  |, #Vishnu Sahasranamam In Hindi । विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र, #Vishnu Sahasranamam Lyrics |, #Vishnu Sahastranama Lyrics, #vishnu sahastranamavali, #ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः । भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ॥ १ ॥, #विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्रम – Vishnu Sahasranamam Stotram, #विष्णु सहस्त्रनाम हिंदी में, #विष्णु सहस्रनाम, #विष्णु सहस्रनाम का फल, #विष्णु सहस्रनाम के लाभ, #विष्णु सहस्रनाम हिंदी लिरिक्स, #शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥1।।, #श्री विष्णु सहस्रनामम हिंदी लिरिक्स, #श्री विष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्र
Vishnu Sahasranamam Stotram

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श्री विष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्र

 

Vishnu Sahasranama Hindi Lyrics & meaning – The Spiritual Talks (the-spiritualtalks.com)

 

विष्णु सहस्रनाम हिंदी अर्थ सहित 

 

यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि विष्णु सहस्रनाम का जाप करने से अवसाद, तनाव, चिंता दूर होती है और स्मरण शक्ति में सुधार होता है लेकिन अगर आप इसका जाप नहीं कर सकते तो केवल “राम राम” कहना ही काफी होगा। जितना हो सके इसका जाप करें। कहते हैं कि जब आप अपने बिस्तर पर होते हैं और उनका नाम जपते हैं, तो राम बैठते हैं और सुनते हैं। जब आप बैठकर उनका नाम जप रहे होते हैं तो वह खड़े होकर सुनते हैं। जब आप खड़े होकर जप करते हैं तो वह खुशी से नाचते हैं और आपकी बात सुनते हैं और जब आप हर समय इसका जाप करते हैं, तो वह आपके लिए वैकुंठ का द्वार खोल देते हैं ।

 

विष्णुसहस्रनाम का फल 

 

विष्णु सहस्रनाम में महात्मा केशव के कीर्तनीय एक हजार दिव्य नामों का इस स्तोत्र में गुणगान किया गया है। भगवान् विष्णु के इस स्तोत्र की रचना महर्षि वेद व्यास ने की है। जो मनुष्य इसको श्रेय और सुख की प्राप्ति के लिए पढता है या पढ़ने की  इच्छा मात्र करता है । जो भगवान विष्णु के हज़ार नामों को नित्य सुनता है या जो गुणगान करता है वह इस लोक में या परलोक में श्रेष्ठ फलों को भोगता है । जो लोग आपदाओं से घिरे हुए हैं , जो हताश , निराश, परेशान और दुखी  हैं , जो भयभीत हैं , जो भयंकर रोगों से ग्रस्त हैं , वे लोग भगवान् विष्णु के नारायण नाम उच्चारण या जाप करने से अपने कष्टों से मुक्त हो जाते हैं और प्रसन्न हो जाते हैं।विष्णु सहस्रनामम रोज सुनने या पाठ करने से रोगी रोग से , बंधा हुआ बंधन से , भयभीत भय से और आपत्तिग्रस्त आपत्ति से छूट जाता है। उसे जीवन में और मृत्यु के बाद भी कभी अशुभता नहीं देखनी पड़ती। सहस्रनाम का श्रवण करने से ब्राह्मण वेदांत का जानने वाला , क्षत्रिय विजयी , वैश्य धन से संपन्न और शूद्र सुख पाता है। सहस्रनाम का पाठ करने से धर्मार्थी धर्म प्राप्त करता है , अर्थार्थी अर्थ प्राप्त करता है , कामना वालों की कामनापूर्ति होती है , पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है तथा राजा इक्षुक प्रजा को प्राप्त करता है । जो भक्तिमान पुरुष सदा उठकर पवित्र और तद्गत चित्त से भगवान वासुदेव के इस सहस्रनाम का कीर्तन करता है । वो महान यश , जाति में प्रधानता , अचल लक्ष्मी और मोक्ष प्राप्त करता है। जो विष्णु सहस्रनाम रोज पढता या सुनता है  उसे कहीं भय नहीं होता, वह पराक्रम और तेज़ प्राप्त करता है तथा निरोग ( रोगरहित ), कांतिमान ( शोभायुक्त ) , बल , रूप और गुणों से संपन्न होता है । जो प्राणी भक्तिभाव से भगवान पुरुषोत्तम की सहस्रनामों से सदैव स्तुति करता है वह दुःखों से मुक्त हो जाता है । जो जीव विश्वेश्वर, अजन्मा और संसार की उत्पत्ति तथा उसके लय के स्थान देव देव पुण्डरीकाक्ष को भजते हैं उनका कभी पराभव नहीं  होता अर्थात कभी दुःखों को प्राप्त नहीं होता । जो मनुष्य भगवान वासुदेव का शरणागत होकर उनमें आसक्ति रखता है वह पापमुक्त हो कर सनातन ब्रह्म को प्राप्त करता है। वासुदेव के भक्तों का कहीं भी अशुभ नहीं होता तथा उन्हें जन्म , मृत्यु, ज़रा और रोगों का भी भय नहीं रहता । जो श्रद्धा भक्ति से इस स्तोत्र का पाठ करता है वह आत्मसुख , शान्ति , लक्ष्मी , बुद्धि, स्मृति , कीर्ति वाला होता है । पुरुषोत्तम भगवान के पुण्यात्मा भक्तों को क्रोध , मात्सर्य ( दूसरों के गुण में दोष दृष्टि रखना), लोभ और अशुभ बुद्धि नहीं होती। भगवान वासुदेव के बल पराक्रम से ही द्यु लोक ( स्वर्ग ), चन्द्रमा , सूर्य , नक्षत्र समूह , आकाश , दिशा , पृथ्वी , समुद्र स्थिर हैं । ऋषि , पितर , देवता , महाभूत , धातु  , जंगम  , स्थावर जगत की उत्पत्ति भगवान् नारायण से ही है । पांच ज्ञानेन्द्रियाँ , पांच कर्मेन्द्रियाँ , मन , बुद्धि , सत्व , तेज़ , बल , धृति , क्षेत्र , क्षेत्रज्ञ आदि सभी भगवन वासुदेव के ही रूप हैं । भगवान् विष्णु ही जीवों की आत्मा , सृष्टि के भोगकर्ता व शाश्वत हैं। वे ही महत तत्त्व से उत्पन्न अनेक जीवों और तीनों लोकों को रच कर उसका उपभोग करते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा – हे पाण्डव (हे अर्जुन), जो मेरे सहस्रनाम से स्तोत्र या स्तुति करने की इच्छा रखता है, वह विष्णु , मैं एक श्लोक से ही स्तुत हो जाता हूँ । इस बात पर कोई शंका नहीं । जो अनन्य भक्त मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, मुझमें निरन्तर लगे हुए उन भक्तों का योगक्षेम (अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा) मैं वहन करता हूँ।

 

 

vishnu sahasranam hindi lyrics

 

 

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् 

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥1।।

 

यस्य द्विरदवक्त्राद्याः पारिषद्याः परः शतम्

विघ्नं निघ्नन्ति सततं विष्वक्सेनं तमाश्रये

 

व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम्

पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम्

 

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे

नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः

 

Vishnu Sahasranama Hindi Lyrics

 

अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने

सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे

 

यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात्

विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे

 

 

सच्चिदानंद रूपाय कृष्णायाक्लिष्टकारिणे।

नमो वेदांत वेद्याय गुरवे बुद्धि साक्षिणे ।।7।।

 

कृष्ण द्वैपायनम व्यासं सर्वलोकहिते रतं।

वेदाब्ज भास्करं वंदे शमादि निलयं मुनिं।।8।।

 

सहस्रमूर्तेः पुरुषोत्तमस्य सहस्रनेत्रानन पाद बाहोः।

सहस्रनाम्नां स्तवनं प्रशस्तं निरुच्यते जन्म जरा दिशान्तयै।।9।।

 

ॐ नमो विष्णवे प्रभविष्णवे ।

 

Shri Vishnu sahasranama stotra in hindi

 

 श्रीवैशम्पायन उवाच –

 

श्रुत्वा धर्मानशेषेण पावनानि सर्वशः

युधिष्ठिरः शान्तनवं पुनरेवाभ्यभाषत

 

1000 Names of Lord Vishnu in hindi

 

युधिष्ठिर उवाच —

 

किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्

स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम्

 

को धर्मः सर्वधर्माणां भवतः परमो मतः

किं जपन्मुच्यते जन्तुर्जन्मसंसारबन्धनात्

 

जगत्प्रभुं देवदेवमनन्तं पुरुषोत्तमम्

स्तुवन् नामसहस्रेण पुरुषः सततोत्थितः १०

 

तमेव चार्चयन्नित्यं भक्त्या पुरुषमव्ययम्

ध्यायन् स्तुवन् नमस्यंश्च यजमानस्तमेव ११

 

अनादिनिधनं विष्णुं सर्वलोकमहेश्वरम्

लोकाध्यक्षं स्तुवन्नित्यं सर्वदुःखादिगो भवेत् १२

 

ब्रह्मण्यं सर्वधर्मज्ञं लोकानां कीर्तिवर्धनम्

लोकनाथं महद्भूतं सर्वभूतभवोद्भवम् १३

 

एष मे सर्वधर्माणां धर्मोऽधिकतमो मतः

यद्भक्त्या पुण्दरीकाक्षं स्तवैरर्चेन्नरः सदा १४

 

परमं यो महत्तेजः परमं यो महत्तपः

परमं यो महद्ब्रह्म परमं यः परायणम् १५

 

पवित्राणां पवित्रं यो मङ्गलानां मङ्गलम्

दैवतं देवतानां भूतानां योऽव्ययः पिता १६

 

यतः सर्वाणि भूतानि भवन्त्यादियुगागमे

यस्मिंश्च प्रलयं यान्ति पुनरेव युगक्षये १७

 

तस्य लोकप्रधानस्य जगन्नाथस्य भूपते

विष्णोर्नामसहस्रं मे शृणु पापभयापहम् १८  

 

lord vishnu

 

यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः

ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये १९

 

ऋषिर्नाम्नां सहस्रस्य वेदव्यासो महामुनिः

छन्दोऽनुष्टुप् तथा देवो भगवान् देवकीसुतः २०

 

अमृतांशुद्भवो बीजं शक्तिर्देवकिनन्दनः

त्रिसामा हृदयं तस्य शान्त्यर्थे विनियोज्यते २१

 

विष्णुं जिष्णुं महाविष्णुं प्रभविष्णुं महेश्वरम्

अनेकरूप दैत्यान्तं नमामि पुरुषोत्तमं २२

 

भगवान विष्णु के हजार नाम

 

॥ पूर्वन्यासः ॥

श्रीवेदव्यास उवाच –

अस्य श्रीविष्णोर्दिव्यसहस्रनामस्तोत्रमहामन्त्रस्य

श्री वेदव्यासो भगवान् ऋषिः  

अनुष्टुप् छन्दः

श्रीमहाविष्णुः परमात्मा श्रीमन्नारायणो देवता

अमृतांशूद्भवो भानुरिति बीजम्

देवकीनन्दनः स्रष्टेति शक्तिः

उद्भवः क्षोभणो देव इति परमो मन्त्रः

शङ्खभृन्नन्दकी चक्रीति कीलकम्

शार्ङ्गधन्वा गदाधर इत्यस्त्रम्

रथाङ्गपाणिरक्षोभ्य इति नेत्रम्

त्रिसामा सामगः सामेति कवचम्

आनन्दं परब्रह्मेति योनिः

ऋतुः सुदर्शनः काल इति दिग्बन्धः

श्रीविश्वरूप इति ध्यानम्

  अथ न्यासः

शिरसि वेदव्यासऋशये नमः

मुखे अनुष्टुप्छन्दसे नमः

हृदि श्रीकृष्णपरमात्मदेवतायै नमः

गुह्ये अमृतांशूद्भवो भानुरिति बीजाय नमः।

पादयोर्देवकीनन्दनः स्रष्टेति शक्तये नमः

सर्वाङ्गे शङ्खभृन्नन्दकी चक्रीति कीलकाय नमः

करसंपूटे मम श्रीकृष्णप्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः

इति ऋषयादिन्यासः

अथ करन्यासः

विश्वं विष्णुर्वषट्कार इत्यङ्गुष्ठाब्यां नमः

अमृताम्शूद्भवो भानुरिति तर्जनीभ्यां नमः

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद्ब्रह्मेति मध्यमाभ्यां नमः

सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्य इत्यनामिकाभ्यां नमः

निमिषोऽनिमिषः स्रग्वीति कनिष्ठिकाभ्यां नमः

रथाङ्गपाणिरक्षोभ्य इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

इति करन्यासः

अथ षडङ्गन्यासः

विश्वं विष्णुर्वषट्कार इति हृदयाय नमः
अमृताम्शूद्भवो भानुरिति शिरसे नमः
ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद्ब्रह्मेति शिखायै नमः
सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्य इति कवचाय नमः
निमिषोऽनिमिषः स्रग्वीति नेत्रत्रयाय नमः
रथाङ्गपाणिरक्षोभ्य इत्यस्त्राय नमः

इति षडङ्गन्यासः

श्रीकृष्णप्रीत्यर्थे विष्णोर्दिव्यसहस्रनामजपमहं
करिष्ये इति सङ्कल्पः

 

अथ ध्यानम्

 

क्षीरोधन्वत्प्रदेशे शुचिमणिविलसत्सैकतेर्मौक्तिकानां

मालाक्लृप्तासनस्थः स्फटिकमणिनिभैर्मौक्तिकैर्मण्डिताङ्गः

शुभ्रैरभ्रैरदभ्रैरुपरिविरचितैर्मुक्तपीयूष वर्शः

आनन्दी नः पुनीयादरिनलिनगदा शङ्खपाणिर्मुकुन्दः

 

भूः पादौ यस्य नाभिर्वियदसुरनिलश्चन्द्र सूर्यौ नेत्रे

कर्णावाशः शिरो द्यौर्मुखमपि दहनो यस्य वास्तेयमब्धिः

अन्तःस्थं यस्य विश्वं सुरनरखगगोभोगिगन्धर्वदैत्यैः

चित्रं रंरम्यते तं त्रिभुवन वपुषं विष्णुमीशं नमामि

 

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्

 

मेघश्यामं पीतकौशेयवासं

श्रीवत्साङ्कं कौस्तुभोद्भासिताङ्गम्

पुण्योपेतं पुण्दरीकायताक्षं

विष्णुं वन्दे सर्वलोकैकनाथम्

 

नमः समस्तभूतानामादिभूताय भूभृते

अनेकरूपरूपाय विष्णवे प्रभविष्णवे

 

सशङ्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं

सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्

सहारवक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं

नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुर्जम्

 

छायायां पारिजातस्य हेमसिंहासनोपरि

आसीनमम्बुदश्याममायताक्षमलंकृतम्

चन्द्राननं चतुर्बाहुं श्रीवत्साङ्कित वक्षसं

रुक्मिणी सत्यभामाभ्यां सहितं कृष्णमाश्रये

 

स्तोत्रम्

हरिः

 

Vishnu Sahasranamam Stotram

 

ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः

भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः

 

पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमा गतिः ।

अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च ॥ २ ॥

 

योगो योगविदां नेता प्रधानपुरुषेश्वरः

नारसिंहवपुः श्रीमान् केशवः पुरुषोत्तमः

 

सर्वः शर्वः शिवः स्थाणुर्भूतादिर्निधिरव्ययः ।

संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभुरीश्वरः ॥ ४ ॥

 

स्वयम्भूः शम्भुरदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः

अनादिनिधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः

 

अप्रमेयो हृशीकेशः पद्मनाभोऽमरप्रभुः

विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः

 

अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः

प्रभूतस्त्रिककुब्धाम पवित्रं मङ्गलं परम्

 

ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः

हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः

 

ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः

अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञ कृतिरात्मवान्

 

सुरेशः शरणं शर्म विश्वरेताः प्रजाभवः

अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः १०

 

अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादिरच्युतः

वृषाकपिरमेयात्मा सर्वयोगविनिःसृतः ११

 

वसुर्वसुमनाः सत्यः समात्मा सम्मितः समः

अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः १२

 

रुद्रो बहुशिरा बभ्रुर्विश्वयोनिः शुचिश्रवाः

अमृतः शाश्वत स्थाणुर्वरारोहो महातपाः १३

 

सर्वगः सर्वविद्भानुर्विष्वक्सेनो जनार्दनः 

वेदो वेदविदव्यङ्गो वेदाङ्गो वेदवित् कविः १४

 

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृताकृतः

चतुरात्मा चतुर्व्यूहश्चतुर्दंष्ट्रश्चतुर्भुजः १५

 

भ्राजिष्णुर्भोजनं भोक्ता सहिष्णुर्जगदादिजः

अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः १६

 

उपेन्द्रो वामनः प्रांशुर मोघः शुचिरूर्जितः

अतीन्द्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः १७

 

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः

अतीन्द्रयो महामायो महोत्साहो महाबलः १८

 

महाबुद्धिर्महावीर्यो महाशक्तिर्महाद्युतिः

अनिर्देश्यवपुः श्रीमानमेयात्मा महाद्रिधृक् १९

 

महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः

अनिरुद्धः सुरानन्दो गोविन्दो गोविदां पतिः २०

 

मरीचिर्दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः

हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः॥ २१

 

अमृत्युः सर्वदृक् सिंहः सन्धाता सन्धिमान् स्थिरः ।

अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा॥ २२ ॥

 

गुरुर्गुरुतमो धाम सत्यः सत्यपराक्रमः

निमिषोऽनिमिषः स्रग्वी वाचस्पतिरुदारधीः  २३

 

अग्रणीर्ग्रामणीः श्रीमान् न्यायो नेता समीरणः

सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्॥ २४

 

आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः संप्रमर्दनः

अहः संवर्तको वह्निरनिलो धरणीधरः॥ २५

 

सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृग्विश्वभुग्विभुः ।

सत्कर्ता सत्कृतः साधुर्जह्नुर्नारायणो नरः॥ २६ ॥

 

असंख्येयोऽप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्टकृच्छुचिः

सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः॥ २७

 

वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषपर्वा वृषोदरः ।

वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुतिसागरः॥ २८ ॥

 

सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेन्द्रो वसुदो वसुः ।

नैकरूपो बृहद्रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः॥ २९ ॥

 

ओजस्तेजोद्युतिधरः प्रकाशात्मा प्रतापनः ।

ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मन्त्रश्चन्द्रांशुर्भास्करद्युतिः॥ ३० ॥

 

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिन्दुः सुरेश्वरः ।

औषधं जगतः सेतुः सत्यधर्मपराक्रमः॥ ३१ ॥

 

भूतभव्यभवन्नाथः पवनः पावनोअनलः।

कामहा कामकृत कान्तः कामः कामप्रदः प्रभुः ।।32।।

 

युगादिकृद्युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।

अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजिदनन्तजित्॥ ३३ ॥

 

इष्टोऽविशिष्टः शिष्टेष्टः शिखण्डी नहुषो वृषः ।

क्रोधहा क्रोधकृत्कर्ता विश्वबाहुर्महीधरः॥ ३४ ॥

 

अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः

अपांनिधिरधिष्ठानमप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ३५

 

स्कन्दः स्कन्दधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः

वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरन्दरः ३६

 

अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः

अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ३७

 

पद्मनाभोऽरविन्दाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत्

महर्द्धिरृद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वजः ३८

 

अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः

सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जयः ३९

 

विक्षरो रोहितो मार्गो हेतुर्दामोदरः सहः

महीधरो महाभागो वेगवानमिताशनः ४०

 

उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः

करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ४१

 

व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः

परर्द्धिः परमस्पष्टस्तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ४२

 

रामो विरामो विरतो मार्गो नेयो नयोऽनयः

वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठो धर्मो धर्मविदुत्तमः ४३

 

वैकुन्ठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः

हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ४४

 

ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः

उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्वदक्षिणः ४५

 

विस्तारः स्थावरस्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम्

अर्थोऽनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ४६

 

अनिर्विण्णः स्थविष्ठोऽभूर्धर्मयूपो महामखः

नक्षत्रनेमिर्नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः ४७

 

यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः

सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमम् ४८

 

सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत्

मनोहरो जितक्रोधो वीरबाहुर्विदारणः ४९

 

स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत्

वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ५०

 

धर्मगुब्धर्मकृद्धर्मी सदसत्क्षरमक्षरम्

अविज्ञाता सहस्रांशुर्विधाता कृतलक्षणः ५१

 

गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः

आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद्गुरुः ५२

 

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः

शरीरभूतभृद्भोक्ता कपीन्द्रो भूरिदक्षिणः ५३

 

सोमपोऽमृतपः सोमः पुरुजित्पुरुसत्तमः

विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्त्वतांपतिः ५४

 

जीवो विनयितसाक्षी मुकुन्दोमितविक्रमः।

अम्भोनिधिरनन्तात्मा महोदधिशयोन्तकः ।।55।।

 

अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः

आनन्दो नन्दनो नन्दः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः ५६

 

महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः

त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाशृङ्गः कृतान्तकृत् ५७

 

महावराहो गोविन्दः सुषेणः कनकाङ्गदी

गुह्यो गभीरो गहनो गुप्तश्चक्रगदाधरः ५८

 

वेधाः स्वाङ्गोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणोऽच्युतः

वरुणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः   ५९

 

भगवान् भगहाऽनन्दी वनमाली हलायुधः

आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णुर्गतिसत्तमः ६०

 

सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः

दिवःस्पृक् सर्वदृग्व्यासो वाचस्पतिरयोनिजः ६१

 

त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक्

संन्यासकृच्छमः शान्तो निष्ठा शान्तिः परायणम् ६२

 

शुभाङ्गः शान्तिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः

गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः ६३

 

अनिर्वर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृच्छिवः

श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ६४

 

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः

श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमाँल्लोकत्रयाश्रयः ६५

 

स्वक्षः स्वङ्गः शतानन्दो नन्दिर्ज्योतिर्गणेश्वरः

विजितात्माऽविधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः ६६

 

उदीर्णः सर्वतश्चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः

भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः ६७

 

अर्चिष्मानर्चितः कुम्भो विशुद्धात्मा विशोधनः

अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः ६८

 

कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः

त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः ६९

 

कामदेवः कामपालः कामी कान्तः कृतागमः

अनिर्देश्यवपुर्विष्णुर्वीरोऽनन्तो धनञ्जयः ७०

 

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः

ब्रह्मविद् ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः ७१

 

महाक्रमो महाकर्मा महातेजो महोरगः

महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ७२

 

स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः

पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः ७३

 

मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः

वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः ७४

 

सद्गतिः सत्कृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः

शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः ७५

 

भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयोऽनलः

दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्ढरोऽथापराजितः ७६

 

विश्वमूर्तिर्महामूर्तिर्दीप्तमूर्तिरमूर्तिमान्

अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ७७

 

एको नैकः सवः कः किं यत् तत्पदमनुत्तमम्

लोकबन्धुर्लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः ७८

 

सुवर्णवर्णो हेमाङ्गो वराङ्गश्चन्दनाङ्गदी

वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरचलश्चलः ७९

 

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक्

सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ८०

 

तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः

प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकशृङ्गो गदाग्रजः ८१

 

चतुर्मूर्तिश्चतुर्बाहुश्चतुर्व्यूहश्चतुर्गतिः

चतुरात्मा चतुर्भावश्चतुर्वेदविदेकपात् ८२

 

समावर्तोऽनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः

दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ८३

 

शुभाङ्गो लोकसारङ्गः सुतन्तुस्तन्तुवर्धनः

इन्द्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ८४

 

उद्भवः सुन्दरः सुन्दो रत्ननाभः सुलोचनः

अर्को वाजसनः शृङ्गी जयन्तः सर्वविज्जयी ८५

 

सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः

महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधिः ८६

 

कुमुदः कुन्दरः कुन्दः पर्जन्यः पावनोऽनिलः

अमृतांशोऽमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ८७

 

सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः

न्यग्रोधोऽदुम्बरोऽश्वत्थश्चाणूरान्ध्रनिषूदनः ८८

 

सहस्रर्चिः सप्तजिह्वः सप्तैधाः सप्तवाहनः

अमूर्तिरनधोऽचिन्त्यो भयकृद्भयनाशनः ८९

 

अणुर्बृहत्कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान्

अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः ९०

 

भारभृत् कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः

आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः ९१

 

धनुर्धरो धर्नुवेदो दण्डो दमयिता दमः

अपराजितः सर्वसहो नियन्ताऽनियमोऽयमः ९२

 

सत्त्ववान् सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः

अभिप्रायः प्रियार्होऽर्हः प्रियकृत् प्रीतिवर्धनः ९३

 

विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग्विभुः

रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः ९४

 

अनन्तो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः

अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकाधिष्ठानमद्भुतः ९५

 

सनात्सनातनतमः कपिलः कपिरप्ययः  

स्वस्तिदः स्वस्तिकृत्स्वस्ति स्वस्तिभुक्स्वस्तिदक्षिणः ९६

 

अरौद्रः कुण्डली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः

शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः ९७

 

अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणांवरः

विद्धत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः ९८

 

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः

वीरहा रक्षणः सन्तो जीवनः पर्यवस्थितः ९९

 

अनन्तरूपोऽनन्तश्रीर्जितमन्युर्भयापहः

चतुरश्रो गभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः १००

 

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मीः सुवीरो रुचिराङ्गदः

जननो जनजन्मादिर्भीमो भीमपराक्रमः १०१

 

आधारनिलयोऽधाता पुष्पहासः प्रजागरः

ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः १०२

 

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत्प्राणजीवनः

तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्युजरातिगः १०३

 

भूर्भुवःस्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः

यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञाङ्गो यज्ञवाहनः १०४

 

यज्ञभृद् यज्ञकृद् यज्ञी यज्ञभुग् यज्ञसाधनः

यज्ञान्तकृद् यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव १०५

 

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः

देवकीनन्दनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः १०६

 

शङ्खभृन्नन्दकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः

रथाङ्गपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः १०७

 

वनमाली गदी शार्ङ्गी शङ्खी चक्री नन्दकी

श्रीमान् नारायणो विष्णुर्वासुदेवोऽभिरक्षतु १०८

 

श्री वासुदेवोऽभिरक्षतु नम इति

 फल श्रुति

 

उत्तरन्यासः

 

भीष्म उवाच –

भीष्म बोले

 

इतीदं कीर्तनीयस्य केशवस्य महात्मनः ।

नाम्नां सहस्रं दिव्यानामशेषेण प्रकीर्तितम् ॥ १ ॥

 

इस प्रकार महात्मा केशव के कीर्तनीय एक हजार दिव्य नामों का इस स्तोत्र में गुणगान किया गया है।

 

य इदं शृणुयान्नित्यं यश्चापि परिकीर्तयेत् ।

नाशुभं प्राप्नुयात्किंचित्सोऽमुत्रेह च मानवः ॥ २ ॥

 

जो भगवान विष्णु के हज़ार नामो को नित्य सुनता है या जो गुणगान करता है वह इस लोक में या परलोक में श्रेष्ठ फलों को भोगता है । उसे जीवन में और मृत्यु के बाद भी कभी अशुभता नहीं देखनी पड़ती।

 

वेदान्तगो ब्राह्मणः स्यात्क्षत्रियो विजयी भवेत् ।

वैश्यो धनसमृद्धः स्याच्छूद्रः सुखमवाप्नुयात् ॥ ३ ॥

 

सहस्रनाम का श्रवण करने से ब्राह्मण वेदांत का जानने वाला  , क्षत्रिय विजयी , वैश्य धन से संपन्न और शूद्र सुख पाता है।

 

धर्मार्थी प्राप्नुयाद्धर्ममर्थार्थी चार्थमाप्नुयात् ।

कामानवाप्नुयात्कामी प्रजार्थी प्राप्नुयात्प्रजाम् ॥ ४ ॥

 

सहस्रनाम का पाठ करने से धर्मार्थी धर्म प्राप्त करता है , अर्थार्थी अर्थ प्राप्त करता है , कामना वालों की कामनापूर्ति होती है , पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है तथा राजा इक्षुक प्रजा को प्राप्त करता है ।

 

भक्तिमान् यः सदोत्थाय शुचिस्तद्गतमानसः ।

सहस्रं वासुदेवस्य नाम्नामेतत्प्रकीर्तयेत् ॥ ५ ॥

 

जो भक्तिमान पुरुष सदा उठकर पवित्र और तद्गत चित्त से भगवान वासुदेव के इस सहस्रनाम का कीर्तन करता है ।

 

यशः प्राप्नोति विपुलं ज्ञातिप्राधान्यमेव च ।

अचलां श्रियमाप्नोति श्रेयः प्राप्नोत्यनुत्तमम् ॥ ६ ॥

 

( जो विष्णु सहस्रनाम का नित्य पाठ करता है ) वो महान यश , जाति में प्रधानता , अचल लक्ष्मी , और मोक्ष प्राप्त करता है ।

 

न भयं क्वचिदाप्नोति वीर्यं तेजश्च विन्दति ।

भवत्यरोगो द्युतिमान्बलरूपगुणान्वितः ॥ ७ ॥

 

( जो विष्णु सहस्रनाम रोज पढता या सुनता है ) उसे कहीं भय नहीं होता, वह पराक्रम और तेज़ प्राप्त करता है तथा निरोग ( रोगरहित ), कांतिमान ( शोभायुक्त ) , बल , रूप और गुणों से संपन्न होता है ।

 

रोगार्तो मुच्यते रोगाद्बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।

भयान्मुच्येत भीतस्तु मुच्येतापन्न आपदः ॥ ८ ॥

 

( विष्णु सहस्रनामम रोज सुनने या पाठ करने से ) रोगी रोग से , बँधा हुआ बंधन से , भयभीत भय से और आपत्तिग्रस्त आपत्ति से छूट जाता है।

 

दुर्गाण्यतितरत्याशु पुरुषः पुरुषोत्तमम् ।

स्तुवन्नामसहस्रेण नित्यं भक्तिसमन्वितः ॥ ९ ॥

 

जो प्राणी भक्तिभाव से भगवान पुरुषोत्तम की सहस्रनामों से सदैव स्तुति करता है वह दुःखों से मुक्त हो जाता है ।

 

वासुदेवाश्रये मर्त्यो वासुदेवपरायणः ।

सर्वपापविशुद्धात्मा याति ब्रह्म सनातनम् ॥ १० ॥

 

जो मनुष्य भगवान वासुदेव का शरणागत होकर उनमें आसक्ति रखता है वह पापमुक्त हो कर सनातन ब्रह्म को प्राप्त करता है ।

 

न वासुदेवभक्तानामशुभं विद्यते क्वचित् ।

जन्ममृत्युजराव्याधिभयं नैवोपजायते ॥ ११ ॥

 

वासुदेव के भक्तों का कहीं भी अशुभ नहीं होता तथा उन्हें जन्म , मृत्यु, ज़रा और रोगों का भी भय नहीं रहता ।

 

इमं स्तवमधीयानः श्रद्धाभक्तिसमन्वितः ।

युज्येतात्मसुखक्षान्तिश्रीधृतिस्मृतिकीर्तिभिः ॥ १२ ॥

 

जो श्रद्धा भक्ति से इस स्तोत्र का पाठ करता है वह आत्मसुख , शान्ति , लक्ष्मी , बुद्धि, स्मृति , कीर्ति वाला होता है ।

 

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः ।

भवन्ति कृत पुण्यानां भक्तानां पुरुषोत्तमे ॥ १३ ॥

 

पुरुषोत्तम भगवान के पुण्यात्मा भक्तों को क्रोध , मात्सर्य ( दूसरों के गुण में दोष दृष्टि रखना), लोभ और अशुभ बुद्धि नहीं होती।

 

द्यौः सचन्द्रार्कनक्षत्रा खं दिशो भूर्महोदधिः ।

वासुदेवस्य वीर्येण विधृतानि महात्मनः ॥ १४ ॥

 

भगवान वासुदेव के बल पराक्रम से ही द्यु लोक ( स्वर्ग ), चन्द्रमा , सूर्य , नक्षत्र समूह , आकाश , दिशा , पृथ्वी , समुद्र स्थिर हैं ।

 

सुसुरासुरगन्धर्वं सयक्षोरगराक्षसम् ।

जगद्वशे वर्ततेदं कृष्णस्य सचराचरम् ॥ १५ ॥

 

देवता, राक्षस, गन्धर्व, किन्नर आदि चराचर जगत भगवान कृष्ण के वशीभूत हैं ।

 

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिः सत्त्वं तेजो बलं धृतिः ।

वासुदेवात्मकान्याहुः क्षेत्रं क्षेत्रज्ञ एव च ॥ १६ ॥

 

पांच ज्ञानेन्द्रियाँ , पांच कर्मेन्द्रियाँ , मन , बुद्धि , सत्व , तेज़ , बल , धृति , क्षेत्र , क्षेत्रज्ञ आदि सभी भगवन वासुदेव के ही रूप हैं ।

 

सर्वागमानामाचारः प्रथमं परिकल्पते ।

आचारप्रभवो धर्मो धर्मस्य प्रभुरच्युतः ॥ १७ ॥

 

सब शास्त्रों में आचार ( शौच , स्नान , संध्या , वंदन आदि को ) सर्वोपरि कहा गया है क्योंकि आचार से धर्म और धर्म से भगवान अच्युत फल प्रदान करते हैं।

 

ऋषयः पितरो देवा महाभूतानि धातवः ।

जङ्गमाजङ्गमं चेदं जगन्नारायणोद्भवम् ॥ १८ ॥

 

ऋषि , पितर , देवता , महाभूत , धातु  , जंगम  , स्थावर जगत की उत्पत्ति भगवान् नारायण से ही है ।

 

योगो ज्ञानं तथा सांख्यं विद्याः शिल्पादि कर्म च ।

वेदाः शास्त्राणि विज्ञानमेतत्सर्व जनार्दनात् ॥ १९ ॥

 

योग, ज्ञान , सांख्य , विद्या , शिल्पादि तथा कर्म  , वेद , शास्त्र विज्ञान की उत्पत्ति भगवान् जनार्दन से ही हुई है।

 

एको विष्णुर्महद्भूतं पृथग्भूतान्यनेकशः ।

त्रींल्लोकान्व्याप्य भूतात्मा भुङ्क्ते विश्वभुगव्ययः ॥ २० ॥

 

भगवान् विष्णु ही जीवों की आत्मा , सृष्टि के भोगकर्ता व शाश्वत हैं। वह महत तत्त्व से उत्पन्न और अनेक जीवों , तीनों लोकों को रच कर उसका उपभोग करते हैं।

 

इमं स्तवं भगवतो विष्णोर्व्यासेन कीर्तितम् ।

पठेद्य इच्छेत्पुरुषः श्रेयः प्राप्तुं सुखानि च ॥ २१ ॥

 

भगवान् विष्णु के इस स्तोत्र की रचना महर्षि वेद व्यास ने की है। जो मनुष्य इसको श्रेय और सुख की प्राप्ति के लिए पढ़ता है या पढ़ने की  इच्छा मात्र करता है ।

 

विश्वेश्वरमजं देवं जगतः प्रभुमव्ययम् ।

भजन्ति ये पुष्कराक्षं न ते यान्ति पराभवम् ॥ २२ ॥

न ते यान्ति पराभवम् ॐ नम इति ।

 

जो जीव विश्वेश्वर, अजन्मा और संसार की उत्पत्ति तथा उसके लय के स्थान देव देव पुण्डरीकाक्ष को भजते हैं उनका कभी पराभव नहीं  होता अर्थात कभी दुःखों को प्राप्त नहीं होता ।

 

अर्जुन उवाच –

 

पद्मपत्रविशालाक्ष पद्मनाभ सुरोत्तम ।

भक्तानामनुरक्तानां त्राता भव जनार्दन ॥ २३ ॥

 

अर्जुन ने कहा – हे कमल के पत्तों जैसे विशाल नयन या आंखों वाले, हे नाभि में कमल वाले, सभी देवताओं में श्रेष्ठ, जन की रक्षा करने वाले , प्यार करने वाले भक्तों के रक्षक बनिये ।

 

श्रीभगवानुवाच –

 

यो मां नामसहस्रेण स्तोतुमिच्छति पाण्डव ।

सोहऽमेकेन श्लोकेन स्तुत एव न संशयः ॥ २४ ॥

 

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा-हे पाण्डव (हे अर्जुन), जो मेरे सहस्रनाम से स्तोत्र या स्तुति करने की इच्छा रखता है, वह विष्णु , मैं एक श्लोक से ही स्तुत हो जाता हूँ । इस बात पर कोई शंका नहीं ।

 

व्यास उवाच –

 

वासनाद्वासुदेवस्य वासितं भुवनत्रयम् ।

सर्वभूतनिवासोऽसि वासुदेव नमोऽस्तु ते ॥ २५ ॥

श्री वासुदेव नमोऽस्तुत ॐ नम इति ।

 

तीनों लोकों का अस्तित्त्व अर्थात इनमें सर्वभूतों का (सजीव एवं निर्जीव ) वास, हे वसुदेवनन्दन वासुदेव ! आपके इन जीवों में वास के कारण है । आपको नमन है !

 

पार्वत्युवाच –

 

केनोपायेन लघुना विष्णोर्नामसहस्रकम् ।

पठ्यते पण्डितैर्नित्यं श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो ॥ २६ ॥

 

पार्वती ने पुछा : स्वामी मैं आपसे वह साधन जानना चाहती हूँ जिसके द्वारा ज्ञानीजन आसानी से प्रति दिन भगवान् विष्णु के हजार नाम का पाठ कर सके।

 

ईश्वर उवाच –

 

श्रीराम राम रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ॥२७ ॥

श्रीरामनाम वरानन ॐ नम इति ।

 

ईश्वर बोले ( शिव जी बोले )- हे पार्वती , यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ। एक बार राम नाम का जाप, सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के 1000 नामों के जाप के समतुल्य है ( बराबर है )।

 

Vishnu Sahasranama Hindi Lyrics

 

ब्रह्मोवाच –

 

नमोस्त्वन ऽनन्ताय सहस्रमूर्तये

सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।

सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते

सहस्रकोटि युगधारिणे नमः ॥ २८ ॥

सहस्रकोटि युगधारिणे ॐ नम इति ।

 

ब्रह्मा जी बोले , ”  सहस्रों रूप , सहस्रों सर , सहस्रों पैर, सहस्रों हाथ , सहस्रों नेत्र ,सहस्रों भुजाओं वाले अनंत प्रभु को मेरा नमस्कार है। उन सनातन शाश्वत पुरुष को नमस्कार है जिनके सहस्र नाम हैं और जिन्होंने इस सृष्टि को सहस्र कोटि युगों से धारण किया हुआ है।

 

सञ्जय उवाच –

 

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ २९ ॥

 

संजय बोले – जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुषधारी अर्जुन हैं, वहाँ ही श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है – ऐसा मेरा मत है।

 

****************

 

श्रीभगवानुवाच –

 

अनन्यश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ ३० ॥

 

जो अनन्य भक्त मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, मुझ में निरन्तर लगे हुए उन भक्तों का योगक्षेम (अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की रक्षा) मैं वहन करता हूँ।

 

आर्ताः विषण्णाः शिथिलाश्च भीताः

घोरेषु च व्याधिषु वर्तमानाः ।

संकीर्त्य नारायणशब्दमात्रं

विमुक्तदुःखाः सुखिनो भवन्तु ॥ ३२ ॥

 

जो लोग आपदाओं से घिरे हुए हैं , जो हताश , निराश, परेशान और दुखी  हैं , जो भयभीत हैं , जो भयंकर रोगों से ग्रस्त हैं , वे लोग भगवान् विष्णु के नारायण नाम उच्चारण या जाप करने से अपने कष्टों से मुक्त हो जाते हैं और प्रसन्न हो जाते हैं।

 

कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा

बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।

करोमि यद्यत् सकलं परस्मै

नारायणायेति समर्पयामि ॥ ३३ ॥

 

हे नारायण ! मेरे शरीर, मन, वचन, इन्द्रिय, बुद्धि और आत्मा से सोच समझकर या अज्ञानतावश (अपनी प्रकृति अनुरूप) जो भी हो रहा है, वो मैं सर्वस्व आपके श्री चरणोंमें समर्पित करता हूं !

 

 

॥ इति श्रीविष्णोर्दिव्यसहस्रनामस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

॥ ॐ तत् सत् ॥

 

 

 

Vishnu Sahasranama Hindi Lyrics

 

 

 

Vishnu sahasranama English Lyrics with meaning

 

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