कलि संतरण उपनिषद् हिंदी अर्थ सहित | कलिसंतरणोपनिषद् | Kali-Saṇṭāraṇa Upaniṣad | कलि संतरण उपनिषद् हिंदी अर्थ सहित | कलिसंतरणोपनिषद हिंदी अर्थ सहित | Kali Santaran Upanishad | Kali santaran upanishad with hindi meaning | कलि संतरण उपनिषद् Kalisantaranopnishad | Kali Santaranopnishad with hindi meaning | Kali Santaran Upanishad in hindi | Kali Santaran Upanishad Hindi Lyrics | Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare Hare Krishna Hare Krishna Krishna krishna Hare | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। ब्रह्मा जी द्वारा नारद जी को कहा गया कलिसंतरणोपनिषद् | कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति और सभी पापों से मुक्त करने वाला मंत्र
Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks
Follow on Pinterest: The Spiritual Talks
कलिसंतरणोपनिषद्
द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं
भगवन् गां पर्यटन्कलिं संतरेयमिति।
द्वापर युग के अन्तिम काल में एक बार देवर्षि नारद पितामह ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हुए और बोले ‘हे भगवन्! मैं पृथ्वीलोक में भ्रमण करता हुआ किस प्रकार से कलिकाल से मुक्ति पाने में समर्थ हो सकता हूँ?
स होवाच ब्रह्मा साधु पृष्टोऽस्मि सर्वश्रुतिरहस्यं
गोप्यं तच्छृणु येन कलिसंसारं तरिष्यसि।
ब्रह्माजी प्रसन्नमुख हो इस प्रकार बोले- हे वत्स ! तुमने आज मुझसे अत्यन्त प्रिय बात पूछी है। आज मैं समस्त श्रुतियों का जो अत्यन्त गुप्त रहस्य है, उसे बतलाता हूँ, सुनो। इसके श्रवण मात्र से ही कलियुग में संसार सागर को पार कर लोगे ।
भगवत आदिपुरुषस्य नारायणस्य
नामोच्चारणमात्रेण निर्धूतकलिर्भवति ।।1
भगवान् आदि पुरुष श्रीनारायण के पवित्र नाम के उच्चारण मात्र से मनुष्य कलिकाल के समस्त दोषों को विनष्ट कर डालता है ॥
नारदः पुनः पप्रच्छ तन्नाम किमिति ।
देवर्षि नारद ने पुनः प्रश्न किया- पितामह ! वह कौन सा नाम हैं?
स होवाच हिरण्यगर्भः।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
तदुपरान्त हिरण्यगर्भ ब्रह्मा जी ने कहा-वह सोलह अक्षरों से युक्त नाम इस प्रकार है-
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मषनाशनम्।
इस प्रकार ये सोलह नाम कलिकाल के महान् पापों का विनाश करने में सक्षम हैं।
नातः परतरोपायः सर्ववेदेषु दृश्यते ।
इससे श्रेष्ठ अन्य कोई दूसरा उपाय चारों वेदों में भी दृष्टिगोचर नहीं होता।
इति षोडशकलावृतस्य जीवस्यावरणविनाशनम् ।
इन सोलह नामों के द्वारा षोड्श कलाओं से आवृत जीव के आवरण समाप्त हो जाते हैं।
ततः प्रकाशते परं ब्रह्म मेघापाये रविरश्मिमण्डलीवेति ।।
तदनन्तर जिस प्रकार मेघ के विलीन होने पर सूरज की किरणें ज्योतिर्मय होने लगती हैं, वैसे ही अज्ञान के घने अंधकार रुपी मेघों के विलीन होने पर परब्रह्म का स्वरूप भी दीप्तिमान् होने लगता है ।। २ ।।
पुनर्नारदः पप्रच्छ भगवन्कोऽस्य विधिरिति ।
देवर्षि नारद जी ने पुनः प्रश्न किया- हे प्रभु! इस मन्त्र नाम के जप की क्या विधि है?
तं होवाच नास्य विधिरिति ।
ब्रह्माजी ने कहा। इस मन्त्र की कोई विधि नहीं है।
सर्वदा।
शुचिरशुचिर्वा पठन्ब्राह्मण: सलोकतां
समीपतां सरूपतां सायुज्यतामेति ।
शुद्ध हो अथवा अशुद्ध, हर स्थिति में इस मन्त्र नाम का सतत जप करने वाला मनुष्य सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य एवं सायुज्य आदि सभी तरह की मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।
यदास्य षोडशीकस्य सार्धत्रिकोटीर्जपति
तदा ब्रह्महत्यां तरति।
जब साधक इस पोडश नाम वाले मत्र को साढ़े तीन करोड़ जप कर लेता है, तब वह ब्रह्म-हत्या के दोष से मुक्त हो जाता है।
तरति वीरहत्याम्।
वह वीर हत्या (या भाई की हत्या) के पाप से भी मुक्त हो जाता है।
स्वर्णस्तेयात्पूतो भवति ।
स्वर्ण की चोरी के पाप से भी मुक्त हो जाता है।
पितृदेवमनुष्याणामपकारात्पूतो भवति ।
पितर, देव और मनुष्यों के अपकार के पापों (दोषों) से भी मुक्त हो जाता है।
सर्वधर्मपरित्यागपापात्सद्यः शुचितामाप्नुयात् सद्यो।
समस्त धर्मों के त्याग के पाप से वह तुरन्त ही परिशुद्ध हो जाता है।
मुच्यते सद्यो मुच्यत इत्युपनिषत् ।।
वह शीघ्रातिशीघ्र मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। ऐसी ही यह उपनिषद् है ।।
Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:
For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:
Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks
For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers & Pinterest Stories:
Follow on Pinterest: The Spiritual Talks
For any query contact on:
E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com