जगन्नाथ स्तोत्र | जगन्नाथ स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | Jagannath Stotra | Jagannath Stotra with hindi meaning
Subscribe on Youtube:The Spiritual Talks
Follow on Pinterest:The Spiritual Talks
॥ जगन्नाथप्रणामः ॥
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने ।
बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ॥ १॥
हे नील पर्वत पर निवास करने वाले सनातन परमात्मा ! हे ब्रह्मांड के स्वामी ! मैं आपको, बलभद्र और सुभद्रा को प्रणाम करता हूं॥ १॥
जगदानन्दकन्दाय प्रणतार्तहराय च ।
नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः ॥ २॥
हे जगत के हर्ष के कारण और दीन दुखियों के कष्ट हरने वाले! हे ब्रह्माण्ड के स्वामी ! हे नील पर्वत पर निवास करने वाले ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ॥ २॥
॥ श्री जगन्नाथ प्रार्थना ॥
रत्नाकरस्तव गृहं गृहिणी च पद्मा
किं देयमस्ति भवते पुरुषोत्तमाय ।
अभीर , वामनयनाहृतमानसाय
दत्तं मनो यदुपते त्वरितं गृहाण ॥ १॥
रत्नाकर (क्षीरसागर) तो आपका घर है, साक्षात् लक्ष्मी आपकी पत्नी हैं, आप स्वयं जगदीश्वर हैं, भला आपको क्या दिया जाए? किंतु हे यदुनाथ! गोपसुंदरियों ने अपने नेत्रकटाक्ष से आपका मन हर लिया है, इसलिए मैं अपना मन आपको अर्पित करता हूँ, कृपया इसे ग्रहण कीजिए॥ १॥
भक्तानां भयप्रदो यदि भवेत् किन्तद्विचित्रं प्रभो
कीटोऽपि स्वजनस्य रक्षणविधावेकान्तमुद्वेजितः ।
ये युष्मच्चरणारविन्दविमुखा स्वप्नेऽपि नालोचका-
स्तेषामुद्धरण-क्षमो यदि भवेत् कारुण्यसिन्धुस्तदा ॥ २॥
हे प्रभो ! आप अपने भक्तों को निर्भयता प्रदान करते हैं नहीं तो यह कितनी विचित्र बात है कि एक कीट भी एकांत में इस बात को लेकर चिंतित रहता है कि अपने स्वजनों की रक्षा कैसे की जाए ? जो आपके चरणकमलों से विमुख होते हैं , जो स्वप्न में भी निन्दा नहीं करते , ऐसे जनों को क्षमा कर उनका उद्धार करने में आप जैसे करुणासिन्धु के अतिरिक्त और कौन समर्थ होगा ॥ २॥
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः ।
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ॥ ३॥
जिनका इस दुनिया में कोई नहीं, जगन्नाथ भगवान उनके स्वामी है, इसमें कोई शंका नहीं और, जिनके स्वामी जगन्नाथ हैं, उनको जीवन में क्या दु:ख हो सकता है? ॥ ३॥
या त्वरा द्रौपदीत्राणे या त्वरा गजमोक्षणे ।
मय्यार्ते करुणामूर्ते सा त्वरा क्व गता हरे ॥ ४॥
द्रौपदी की रक्षा करने में जो शीघ्रता और गज को मुक्त करने में जो शीघ्रता आपने दिखाई थी , हे करुणा की मूर्ति ! वही शीघ्रता मेरे विपत्ति काल में कहाँ गयी थी ? ॥ ४॥
मत्समो पातकी नास्ति त्वत्समो नास्ति पापहा ।
इति विज्ञाय देवेश यथायोग्यं तथा कुरु ॥ ५॥
मेरे समान कोई पापी नहीं और आपके समान कोई पापों का उद्धारक और पापों का नाशक नहीं । ऐसा जानकर हे देव ! जैसा उचित हो वैसा करें ॥ ५॥
Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:
For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:
Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks
For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers & Pinterest Stories:
Follow on Pinterest: The Spiritual Talks
For any query contact on:
E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com