जानकी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

जानकी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | जानकी स्तोत्र || Janki Stotra with hindi meaning | Janaki Stotra Lyrics | Janki stotra hindi lyrics with meaning | कल्याणकारी है जानकी स्तोत्र  देता है अपार धन और ऐश्वर्य

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जानकी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

 

 

जानकी स्तोत्र का पाठ नियमित करने से मनुष्य के सभी कष्टों का नाश होता है। इसके पाठ से माता सीता प्रसन्न होकर धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति कराती है। श्री जानकी स्तुति के नित्य पाठ से माता जानकी भक्त पर प्रसन्न होती है। माँ जानकी की कृपा से मनुष्य के सभी दुखों का नाश होता हैं। उसके पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। दरिद्रता का नाश होता है और धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं। शत्रु पर विजय प्राप्त होती हैं। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं। जानकी स्तोत्र अति कल्याणकारी है और अपार धन और ऐश्वर्य भी प्रदान करता है ।

 

 

जानकी स्तोत्र अर्थ सहित

 

 

नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।

शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।।1।।

 

नील कमल-दल के सदृश जिनके नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना चाहती हैं, उन रामप्रिया श्रीसीता माता का मैं ध्यान करता हूं।।1।।

 

 

Janki Stotra with hindi meaning

 

 

रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।

ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।2।।

 

जिनके नेत्र श्रीरामजी के चरणों की ओर निश्चल रूप से लगे हुए हैं, जिन्होंने अपनी अङ्गकान्ति से सुवर्ण को मात कर दिया है तथा ताटका के वैरी श्रीरामजी के द्वारा दुष्टों के प्रति कहे गए कटु वचनों से जो घबराई हुई हैं, उन श्रीरामजी की प्रेयसी श्री सीता मां की मैं मन में भावना करता हूं।।2।।

 

 

Janki Stotra with meaning

 

 

कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्त्रग-सुधाकरद्युतिम्।

वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।3।।

 

जो लज्जा से हतप्रभ हुईं अपने उस मुख को, जिनके कपोल उनके बिथुरे हुए बालों से उसी प्रकार आवृत हैं, जैसे चन्द्रमा राहु द्वारा ग्रसे जाने पर अंधकार से आवृत हो जाता है, वस्त्र से ढंक रही हैं, उन राम-पत्नी सीताजी का मैं मन में ध्यान करता हूं।।3।।

 

 

कल्याणकारी है जानकी स्तोत्र  देता है अपार धन और ऐश्वर्य

 

 

कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम्।

तद्दहाङ्गमिति पावकं यतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।।4।।

 

जो मन-ही-मन यह कहती हुई कि यदि मैंने श्रीरघुनाथ के अतिरिक्त किसी और को अपने शरीर, वाणी अथवा मन में कभी स्थान दिया हो तो हे अग्ने! मेरे शरीर को जला दो अग्नि में प्रवेश कर गईं, उन रामजी की प्राणप्रिय सीताजी का मैं मन में ध्यान करता हूं।।4।।

 

इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकै: सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि।

पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घ्रिकां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।5।।

 

उत्तम विमानों में बैठे हुए इन्द्र, रुद्र, कुबेर और वरुण द्वारा पुष्पवृष्टि के अनंतर जिनके चरणों की भली-भांति स्तुति की गई है, उन श्रीराम की प्यारी पत्नी श्रीसीता माता की मैं मन में भावना करता हूं।।5।।

 

संचयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम्।

तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम्।।6।।

 

अग्नि-शुद्धि के समय विमानों में बैठे हुए देवगण विस्मयाविष्ट चित्त से जिनकी ओर देख रहे थे और जो अपने तेज से दसों दिशाओं को आच्छादित कर रही थीं, उन रामवल्लभा श्री सीता मां का मैं ध्यान करता हूं।।6।।

 

 

।।इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

 

 

 

 

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