भक्त नामावली | भक्त नामावली पढ़ने के लाभ | Bhakt Namavali |
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भक्त नामावली सुनने से अथवा पढ़ने से सभी संतो का स्मरण होता है और कष्ट दूर हो जाते हैं इसीलिए इसे प्रतिदिन सुनना और पढ़ना चाहिए । स्वामी श्री हित प्रेमानंद गोविन्द शरण जी महाराज कहते हैं कि लाख बार हरि – हरि का उच्चारण करने से या भगवान के नाम का उच्चारण करने से जो फल प्राप्त होता है वो फल किसी भक्त का एक बार नाम उच्चारण करने से प्राप्त हो जाता है । हरि का या प्रभु का एक नाम उच्चारण करने से जो परम सुख प्राप्त होता है वो सुख प्रभु के भक्त का एक बार नाम उच्चारण करने से प्राप्त हो जाता है । जो भक्तों कि नामावली का ध्यान करेगा उसकी भक्ति प्रतिदिन बढ़ती चली जाएगी और हरि निरंतर उसकी सहायता करेंगे । ये भक्त नामावली का प्रकट फल है। किसी की ऐसी सामर्थ्य नहीं है कि भक्त नामावली पढ़ने वाले भक्त की भक्ति में बाधा पंहुचा दे । जो प्रभु अर्थात राधा कृष्ण का भजन करने वालों का भजन करता है तो त्रिभुवन में जितनी भी अशुभ और अनिष्टकारी दैवीय या आसुरी शक्तियां हैं उनकी इतनी सामर्थ्य नहीं है की भक्त की नामावली करने वाले को बढ़ा पहुंचा सके । जो भक्तों का भजन कीर्तन करता है , उनकी नामावली का भजन करता है तो शुभ शक्तियां भी उसको परम सच्चिनान्द प्रभु के चरण – कमलों से दूर नहीं कर सकतीं अर्थात संसार में कोई ऐसा सुख नहीं जो भक्त नामावली पढ़ने वाले भक्त को परम सुखमय प्रभु से अलग कर सके ।
नमो नमो जय श्रीहरिवंश
रसिक अनन्य वेणुकुल मण्डन लीला मानसरोवर हंस ।।
नमो जयति श्रीवृन्दावन सहज माधुरी रास विलास प्रसंस ।
आगम निगम अगोचर राधे चरण सरोज व्यास अवतंस ।।
श्री राधावल्लभ नमो नमो ।
कुञ्ज निकुंज पुंज रतिरस में रूपराशि जहाँ नमो – नमो ।।
सुखसागर गुण नागर रसनिधि रस सुधंग रंग नमो – नमो ।
स्याम सरीर कमल दल लोचन दुःख मोचन हरि नमो – नमो ।।
वृंदाविपिन चंद नन्द आनंद कंद सुख नमो – नमो ।
सर्वोपरि सर्वोपम निसिदिन व्यासदास प्रभु नमो – नमो ।।
हमसों इन साधुन सों पंगति।
जिनको नाम लेत दुःख छूटत , सुख लूटत तिन संगति ।। 1।।
मुख्य महन्त काम रति गणपति , अज महेस नारायण।
सुर नर असुर मुनि पक्षी पशु , जे हरि भक्ति परायण ।। 2।।
वाल्मीक नारद अगस्त्य शुक , व्यास सूत कुल हीना ।
सबरी स्वपच वसिष्ठ विदुर , विदुरानी प्रेम नवीना ।। 3।।
गोपी गोप द्रोपदी कुंती , आदि पांडवा ऊधौ ।
विष्णु स्वामी निम्बार्क माधो , रामानुज मग सूधो ।। 4 ।।
लालाचारज धनुरदास , कुरेस भाव रस भीजै ।
ज्ञानदेव गुरु शिष्य त्रिलोचन , पटतर को कहि दीजै ।। 5।।
पदमावती चरण को चारन , कवि जयदेव जसीलौ ।
चिंतामणि चिद रूप लखायो , बिल्वमंगलहिं रसिलौ ।। 6।।
केशवभट्ट श्रीभट्ट नारायण , भट्ट गदाधर भट्टा ।
विट्ठलनाथ वल्लभाचारज , ब्रज के गूजर जट्टा ।। 7।।
नित्यानन्द अद्वैत महाप्रभु , शची सुवन चैतन्या ।
भट्ट गोपाल रघुनाथ जीव , अरु मधु गुसाईं धन्या ।।8।।
रूप सनातन भज वृन्दावन तजि दारा सुत सम्पति ।
व्यासदास हरिवंस गुसाईं दिन दुलराई दम्पति ।। 9।।
श्रीस्वामी हरिदास हमारे , विपुल विहारिणी दासी ।
नागरि नवल माधुरी वल्लभ , नित्य विहार उपासी।। 10।।
तानसेन अकबर करमैती , मीरा करमाबाई ।
रत्नावती मीर माधौ , रसखान रीति रस गाई ।। 11।।
अग्रदास नाभादि सखी ये , सबै राम सीता की।
सूर मदनमोहन नरसी अलि , तस्कर नवनीता की।। 12।।
माधोदास गुसाईं तुलसी , कृष्णदास परमानन्द ।
विष्णुपुरी श्रीधर मधुसूदन , पीपा गुरु रामानंद ।। 13 ।।
अलि भगवान मुरारि रसिक , श्यामानन्द रंका बंका।
रामदास चीधर निष्किंचन सम्हन भक्ति निसंका ।। 14।।
लाखा अंगद भक्त महाजन , गोविंद नंद प्रबोधा।
दासमुरारी प्रेमनिधि विट्ठलदास , मथुरिया योधा ।। 15।।
लालमती सीता प्रभुता , झाली गोपाली बाई।
सुत विष दियौ पूज सिलपिल्ले , भक्ति रसीली पाई ।। 16।।
पृथ्वीराज खेमाल चतुर्भुज , राम रसिक रस रासा।
आसकरण मधुकर जयमल नृप , हरिदास जन दासा ।। 17।।
सेना धना कबीरा नामा , कूबा सदन कसाई ।
बारमुखी रैदास सभा में , सही न श्याम हंसाई।। 18।।
चित्रकेतु प्रह्लाद विभीषण , बलि ग्रह बाजे बावन।
जामवंत हनुमन्त गीध गुह , किये राम जे पवन ।। 19।।
प्रीति प्रतीति प्रसाद साधु सों , इन्हें इष्ट गुरु जानो ।
तज ऐश्वर्य मरजाद वेद की , तिनके हाथ बिकानो ।। 20।।
भूत भविष्य लोक चौदह में , भये होय हरि प्यारे ।
तिन तिन सों व्यवहार हमारौ , अभिमानिन ते न्यारे ।। 21।।
‘भगवतरसिक’ रसिक परिकर करि , सादर भोजन पावै।
ऊँचो कुल आचार अनादर , देख ध्यान नहिँ आवै ।। 22।।
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