श्री राम चंद्र कृपालु भज मन हिंदी अर्थ सहित

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“श्री रामचंद्र कृपालु” या “श्री राम स्तुति” गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित एक आरती है। यह सोलहवीं शताब्दी में संस्कृत और अवधी भाषाओं के मिश्रण में लिखा गया था। प्रार्थना श्री राम और उनकी विशेषताओं का गुणगान करती है। यह विनय पत्रिका में श्लोक संख्या 45 पर लिखा गया है।

 

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन हिंदी अर्थ सहित

 

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन 

Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

 

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कंजारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट पीत मानहु तडित रूचि, शुचि नौमि जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल, चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक, चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर, शेष मुनि मन रंजनम्।

मम हृदय कुंज निवास कुरु, कामादि  खल दल गंजनम्।।

छंद :

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि,सो बरु सहज सुंदर सावरों।

एहि भांति गौरी असीस सुनि, सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

 

 

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन हिंदी अर्थ सहित 

Shri Ramchandra Kripalu Bhajman with hindi meaning

 

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कंजारुणम्।।1।।

 

हे मन, तू कृपालु भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर। वे भव अर्थात संसार के जन्म-मरण रुपी दुःख-दर्द , सभी  प्रकार के भय और दारुण अर्थात दरिद्रता और कमी को दूर करने वाले है। उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है। मुख कमल के समान हैं। हाथ कमल के समान हैं। चरण भी कमल के समान हैं।

 

shri ramchandra kripalu bhaj man lyrics with hindi meaning

 

कंदर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट पीत मानहु तडित रूचि, शुचि नौमि जनक सुतावरम्।।2।।

 

उनके सौंदर्य की छ्टा अनगिनत कामदेवों से बढ़कर है। उनका वर्ण नवीन नील कमल और सजल मेघ के समान सुंदर है। पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है। ऐसे पावनरूप जानकी पति श्री राम को मैं नमस्कार करता हूँ।

 

 

भजु दीन बंधु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल, चंद दशरथ नन्दनम्।।3।।

 

हे मन! दीनों के बंधु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यो के वंश का नाशकरने वाले, दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर। हे मन! आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर।

 

lord ram

 

सिर मुकुट कुण्डल तिलक, चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खर-धूषणं।।4।।

 

जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानों में कुण्डल, मस्तक पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं , जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैैं और जो धनुष-बाण लिये हुए हैं , जिन्होनें संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है।

 

इति वदति तुलसीदास शंकर, शेष मुनि मन रंजनम्।

मम हृदय कुंज निवास कुरु, कामादि  खल दल गंजनम्।।5।।

 

तुलसीदासजी प्रार्थना करते हैं कि शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल में सदा निवास करें जो कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओं का नाश करने वाले हैं।

 

छंद :

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि,सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सीलु, सनेहू जानत रावरो।।

 

माँ गौरी मैया सीता की स्तुति सुन कर बोलीं “जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा। वह स्वभाव से सहज, सुंदर और सांवला है। वह करुणा निधान (दया का खजाना), सुजान (सर्वज्ञ, सब जाननेवाला), शीलवान है।तुम्हारे स्नेह को जानता है।

 

एहि भांति गौरी असीस सुनि, सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।।

 

इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुईं। तुलसीदास जी कहते है कि भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं। 

 

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

 

गौरी को अनुकूल जानकर सीता के हृदय को जो हर्ष हुआ, वह कहा नहीं जा सकता। सुंदर मंगलों के मूल उनके बाएँ अंग फड़कने लगे॥

 

Shriramchandra Kripalu English Lyrics with meaning – The Spiritual Talks (the-spiritualtalks.com)

Shriramchandra Kripalu English Lyrics with meaning

 

 

 

 

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