Shri Krishna Sharanam Mamah–श्री कृष्ण शरणम ममः| श्री कृष्ण शरणम ममः | Shri Krishna Sharanam Mamah | श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य द्वारा प्रकट मंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः | कृष्ण मंत्र | अष्टाक्षर मंत्र | श्री कृष्ण शरणं ममः अष्टाक्षरी मंत्र के लाभ (8 अक्षर मंत्र)| Ashtakshar Mantra | Mantra by Shrimad Vallabhacharya | श्री कृष्ण शरणं ममः मंत्र सफलता के लिए | अष्टाक्षरी मंत्र ( श्री कृष्ण शरणम ममः ) का महत्व| श्री कृष्ण शरणम ममः मंत्र की महिमा और लाभ | Benefits of Shri Krishna Shranam Mamah| Meaning of Shri Krishna Sharanam Mamah| श्री कृष्ण शरणम ममः का अर्थ | Shri Krishna Sharanam Mama Mantra and Benefits| Description of Ashtakshar Mantra | Sri Krishna Sharanam mamah Mantra For Success|Importance Of Ashtakshari mantra|
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Shri krishna sharanam mamah
श्री कृष्ण शरणम ममः
श्री कृष्ण शरणम ममः अर्थात सुख हो या दुख आज से मैं आजीवन कृष्ण की शरण में हूं।
यह अष्टाक्षर कृष्ण मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) भगवान कृष्ण के लिए एक आह्वान है जहां आप उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे आपको अपनी शरण में ले लें, अपने आप को पूरी भक्ति के साथ उनके सामने आत्मसमर्पण कर दें। कहा जाता है कि यह मंत्र आपके जीवन और मन से सभी दुखों और दुखों को दूर कर आपको शांति प्रदान करता है।
श्री – भाग्य का प्रतीक है, “श्री” का अर्थ है लक्ष्मी जिसका अर्थ भाग्य भी है। जो इस नाम का पाठ करता है वह भी लक्ष्मी की तरह भाग्यशाली होता है।
कृ – हमारे पिछले जन्मों और वर्तमान जन्मों में हमारे द्वारा किए गए सभी पापों को नष्ट कर देता है।
ष्ण – संसार के सभी दुखों को दूर रखता है।
श – हजारों रूपों में बार-बार जन्म लेने से और दुखों को भोगने से बचाता है
र – भगवान के दिव्य रूप और दिव्य कर्मों को अनुभव करने और समझने में सक्षम बनाता है।
णं- श्री कृष्ण के प्रति भक्ति को मजबूत बनाता है
म – श्री कृष्ण के लिए शाश्वत प्रेम की शुरुआत करता है
मः – अनंत काल तक श्री कृष्ण की संगत का आनंद लेने में सक्षम बनाता है और बार बार जीवन मरण के चक्र से गुजरने से रोकता है।
श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य ने अपने भक्तों के लाभ के लिए इस मंत्र को प्रकट किया है। श्रीमद् वल्लभाचार्य के श्री कृष्ण शरणम् ममः के अनमोल, अमूल्य वचनों को सदा याद रखना चाहिए।
अनुकूल समय और विपत्ति में, श्री महाप्रभुजी द्वारा प्रकट ‘ श्री कृष्ण शरणम् ममः ‘ साधन और फल दोनों हैं। इस प्रकार कई महान विद्वानों और गोस्वामी-आचार्यों ने प्रकाश डालते हुए अष्टाक्षर मंत्र के गहन महत्व का वर्णन किया है ताकि दैवी आत्माओं को मुक्ति मिल सके।
हर भाव या भावना के साथ अष्टाक्षर मंत्र को दोहराएं और ऐसा करने वाले भक्तों के साथ जुड़ें । श्री महा प्रभुजी की मुख्य शिक्षा यह है कि अष्टाक्षर मंत्र को हर भाव अर्थात सर्वात्म भाव के साथ और निरंतर दोहराया जाना चाहिए।
श्री कृष्ण: शरणं ममः मंत्र की महिमा
य: स्मरेत्तु सदा मन्त्रं ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’।
अष्टाक्षरं जपेन्नित्यं यमो दृष्ट्वा हि शंकते।।
“जो प्राणी सदैव ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’ इस प्रकार स्मरण करता है, जप-कीर्तन करता है, उसको देखकर यम निश्चय शंकित होते हैं।” जिस प्रकार भगवान मनुष्य की भावना के अनुसार उसके मनोरथ पूर्ण करने में समर्थ हैं, उसी प्रकार इस अष्टाक्षर महामन्त्र (जो कि भगवान का अक्षरात्मक भगवद्विग्रह है) का प्रत्येक अक्षर समस्त मनोरथों को पूर्ण करने में समर्थ है। श्रीमद्भगवद्गीता के विभूतियोग में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है–‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ अर्थात् ‘समस्त यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ’। जप से सब प्रकार के क्लेशों की निवृत्ति होती है और समाधि सिद्ध होती है।
श्रीमद्वल्लभ मतानुयायी नाममन्त्र अथवा नामदीक्षा के रूप में ‘श्रीकृष्ण: शरणं मम’— इसी को जानते हैं। इस महामन्त्र के प्रत्येक अक्षर की महिमा इस प्रकार है–
श्री–सौभाग्य देता है, धन और राजसुख देता है।
कृ–यह पाप का शोषण करता है।
ष्ण:–आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक– तीनों प्रकार के दु:खों का हरण करता है।
श–जन्म-मरण का दु:ख दूर करता है।
र–प्रभु सम्बन्धी ज्ञान देता है।
णं–प्रभु में दृढ़भक्ति कराता है।
म–भगवत्-सेवा के उपदेशक गुरुदेव में प्रीति कराता है।
म–प्रभु में सायुज्य कराता है, जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिलाता है।
इस नाम मन्त्र की महिमा–इस मन्त्र के उच्चारण से सिद्धि सदैव घर में रहती है। समस्त प्रकार के आनन्दों की उपलब्धि होती है। सारे विघ्न, बीमारियां, ग्रहपीड़ा दूर हो जाते हैं। साथ ही दुर्लभ भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है। आक्रमण, अपमान-सहन आदि के निवारण का भी उत्तम साधन यह नाममन्त्र है। इस प्रकार यह कलियुग का महामन्त्र है।
श्री कृष्ण शरणं ममः अष्टाक्षरी मंत्र के लाभ (8 अक्षर मंत्र)
हे कृष्ण! जो कोई भी इस तरह से कृष्ण के नाम का निरंतर जप करता है, वह अपने दिव्य रूप के आनंद और परमानंद को प्राप्त करता है और गोलोक धाम में अपने शाश्वत निवास को प्राप्त करता है।
जो सदा श्रीकृष्ण का स्मरण करता है, उसका यमराज भी क्या बिगाड़ सकते हैं?
श्री कृष्ण का स्मरण करने से जघन्य से जघन्य पापों का नाश होता है।
यमराज भी उस व्यक्ति से डरते हैं जो अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) को लगातार दोहराता है।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) की शक्ति से मुक्ति और अन्य दिव्य फल दैवी आत्माओं को प्राप्त हो सकते हैं जो इन सिद्धियों के लिए किसी भी साधन से रहित हैं।
जिसने इस अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) को धारण किया है और जिसके हृदय में अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) वास करता है, वह श्री वल्लभाचार्यजी के प्रिय भगवदीय हैं।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जप से और उसके गूढ़ महत्व के ज्ञान से श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की प्राप्ति होती है और वैराग्य की प्राप्ति होती है। सुख और मुक्ति दृढ़ता से स्थापित होता है।
यदि किसी क्षण या संकट या विपदा आती है तो अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) को हृदय में गहराई से स्मरण करने से कठिनाइयाँ अपने आप दूर हो जाएँगी और श्री वल्लभाचार्य की कृपा से भगवद साक्षात्कार की प्राप्ति होगी।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जप से व्यक्ति रोग से मुक्त होगा और सभी पापों का नाश होगा।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जप से धन और शक्ति तुरंत प्राप्त होती है और व्यक्ति सुरक्षा और स्थिरता के साथ घर में रह सकता है।
जो अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का पाठ करता है, उसे भूतों या अन्य आत्माओं, जंगली जानवरों, चोरों आदि से नुकसान नहीं हो सकता है और विपत्तियों में प्रभु द्वारा सुरक्षित रहता है।
प्रभु की शरण में रहने से शत्रु मित्र बन जाते हैं और जैसे चूहा सांप को देखकर भयभीत हो जाता है, वैसे ही शत्रु भय से भर जाते हैं।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जप से कुण्डली में पाप कर्म, अशुभ दशाएं, अशुभ ग्रह विन्यास सब नष्ट हो जाते हैं और आनंद स्वरूप श्रीकृष्ण हृदय में सदा निवास करते हैं।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का दिन-रात नम्रता पूर्वक जप करने से सारे कष्ट और दोष दूर हो जाते हैं।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जप से धन, प्रसिद्धि , अन्य सांसारिक सुख प्राप्त होंगे और मुक्ति तथा प्रभु के दिव्य रूप में विलीन होने का अवसर प्राप्त होगा।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जप से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी क्षेत्रों में सुख की प्राप्ति होती है।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) अन्य सभी से श्रेष्ठ है और इसलिए इसे दिन-रात लगातार दोहराना चाहिए।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) तीनों लोकों का शोधक है और इसमें कोई संदेह नहीं कि यह मनुष्य की आत्मा को शुद्ध करता है।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) सभी मंत्रों का राजा है और सर्वोच्च शासन करता है।
जो कोई भी एकांत में श्रद्धा के साथ अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का नित्य जप करता है, उसे धन और शक्ति प्राप्त होती है।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) से श्री कृष्ण की गहराइयों का पता चलता है।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) सभी शास्त्रों, वेदों, पुराणों आदि का सार है।
श्री कृष्ण शरणं ममः मंत्र सफलता के लिए
सफलता के लिए अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का जाप करते हुए, भगवान से हमें अपनी शरण में लेने और हमारे जीवन के सभी दुखों, और कष्टों को दूर करने के लिए कहते हैं। जो लोग नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करते हैं उन्हें उनकी शरण में मन की शांति और आशीर्वाद का अनुभव होगा।
भगवान कृष्ण के भक्त भगवान को याद करते हुए और उन्हें पुकारते हुए इस अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का जाप करते हैं।
यह अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) हमें ज्ञान कराता है कि इस दुनिया में और इस दुनिया से परे सब कुछ भगवान का है।
यह अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) प्रिय भगवान कृष्ण के लिए एक आह्वान है जहां आप उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हमको अपनी शरण में ले लें। अपने आप को पूरी भक्ति के साथ उनके सामने आत्मसमर्पण कर दें।
यह अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) आपके जीवन और मन से सभी दुखों को दूर कर आपको शांति प्रदान करता है।
जीवन में आई विपदा से उबरने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का यह अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) बहुत ही सरल और प्रभावी मंत्र है।
इस अष्टाक्षर महा मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण बिल्कुल उसी तरह मदद को दौड़े आते हैं जिस तरह उन्होंने द्रौपदी की मदद की थी।
अष्टाक्षरी मंत्र ( श्री कृष्ण शरणम ममः ) का महत्व
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) की विशिष्ट विशेषताओं में से एक यह है कि यह ॐकार से शुरू नहीं होता है, अन्य बीज मंत्रों के विपरीत जो ओंकार से शुरू होते हैं। शास्त्र विधान के अनुसार ॐकार से शुरू होने वाले किसी भी मंत्र का उच्चारण अशुद्ध अवस्था में नहीं करना चाहिए, जैसे कि यदि कोई शौचालय गया हो और बाद में स्नान नहीं किया हो या सूतक आदि के दौरान । शुद्धिकरण के लिए निर्धारित विधि करने के पश्चात ही मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
अपनी असीमित करुणा में, श्री महा प्रभुजी ने दैवी आत्माओं पर कृपा की ताकि वे कलियुग के इस युग में प्रभु के नाम को एक पल के लिए भी दोहराने के अधिकार से वंचित न हों।
नित्य दिन-रात सभी परिस्थितियों में हृदय में अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का जप करना चाहिए।
इस प्रकार अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के निरंतर जप के माध्यम से, व्यर्थ विचारों और चर्चाओं से बचा जा सकता है और प्रभु की नाम के रूप में सेवा की जा सकती है क्योंकि प्रभु के नाम का प्रभु की सेवा के समान महत्व है।
भगवान इस ब्रह्मांड में दो माध्यमों से खेलते हैं। उनका अपना रूप और उनका नाम। साथ ही, जैसे-जैसे हम दिन-रात चलते-फिरते हैं, अनजाने में हमारे पैरों के नीचे चीटियां, भृंग और अन्य कीड़े कुचल जाते हैं। यदि उस समय हमारे हृदय में भगवद नाम की शक्ति से प्रभु का नाम दोहराया जा रहा है, तो वह आत्मा मुक्त हो जाएगी और हम एक जीवित आत्मा को मारने के पाप से बच जाएंगे।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) का पाठ करने से पाप कर्म, प्रतिकूल परिस्थितियाँ और प्रतिकूल ग्रह विन्यास का विनाश सभी दूर हो जाते हैं।
अष्टाक्षर मंत्र ( श्री कृष्ण शरणं ममः ) के जाप से आनंद स्वरूप श्री कृष्ण सदा हृदय में निवास करते हैं।
श्री कृष्ण शरणम ममः मंत्र की महिमा और लाभ
धन अकिंचन का श्री कृष्ण शरणम ममः। 1
लक्ष्य जीवन का श्री कृष्ण शरणम ममः। 2
दीन दुःखियों का, निर्बल जनों का , सदा दृढ सहारा है श्री कृष्ण शरणम ममः।3
वैष्णवों का हितैषी, सदन शांति का, प्राण प्यारा है श्री कृष्ण शरणम ममः। 4
काटने के लिये , मोह जंजाल को , तेज तलवार है श्री कृष्ण शरणम ममः। 5
नाम ही मंत्र है , मंत्र ही नाम है, है महामंत्र है श्री कृष्ण शरणम ममः।6
छूट जाते है सभी साधन अंत में, साथ रहता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 7
साथी दुनिया में न कोई किसी का , सच्चा साथी है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 8
तरना चाहो जो संसार सागर से , तो पार कर देगा ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 9
शत्रु हारेंगे विजय होगी तुम्हारी , याद रखना है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 10
सुख मिलेगा , सफलता आयेगी स्वयं , तुम जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। 11
पूरे होंगे मनोरथ सभी सर्वदा, जो न भूलोगे तुम श्री कृष्ण शरणम ममः। 12
दीनबंधु, कृपासिंधु, गोविन्द का प्रेम सिंधु है ये श्री कृष्ण शरणम ममः।13
दुःख , दारिद्र, दुर्भाग्य मेट कर, देता ये सौभाग्य श्री कृष्ण शरणम ममः। 14
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी नित्य जपते हैं प्रेम से श्री कृष्ण शरणम ममः। 15
शेष , सनकादि , नारद , विषारद सभी , रट लगाते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः।16
मंत्र जितने भी हैं दुनिया में विख्यात , मूल सबका है श्री कृष्ण शरणम ममः। 17
पाना चाहो जो सिद्धि अनायास , तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः।18
भक्त दुनिया में हुए जितने आजतक, सबका आधार ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 19
लट्टुओं की तरह विश्व के जीव हैं, काम विद्युत का श्री कृष्ण शरणम ममः। 20
दुष्ट राक्षस लगें डराने जब , बोले प्रहलाद श्री कृष्ण शरणम ममः।21
राणा बोले कि रक्षक तेरा है कौन, तो मीरा बोली श्री कृष्ण शरणम ममः। 22
बोलो श्रद्धा से, विश्वास से, प्रेम से, श्री कृष्ण शरणम ममः।23
प्राणवल्लभ के वल्लभ हैं वल्लभ प्रभु, उनका वल्लभ है श्री कृष्ण शरणम ममः। 24
दुख मिटाता है देकर सहारा सदा, सुख बढ़ाता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 25
धाम आनंद का, नाम गोविन्द का, सिंधु रस का है श्री कृष्ण शरणम ममः। 26
जग में आनन्द ,अक्षय अचल संपदा, नित्य देता है श्री कृष्ण शरणम ममः।27
पांडवों की विजय जो हुई युद्ध में, उसका कारण है ये श्री कृष्ण शरणम ममः।28
द्रौपदी का सहारा यही था एक , नित्य जपती थी वो श्री कृष्ण शरणम ममः।29
ब्रज के गोपों का, गोपीजनों का सदा, एक था आश्रय श्री कृष्ण शरणम ममः।30
वल्लभाचार्य का , विट्ठलाधीश का, मूल साधन था श्री कृष्ण शरणम ममः।31
पुष्टीमार्गीय वैष्णव जनों के लिये, प्राणजीवन है श्री कृष्ण शरणम ममः।32
लाभ लौकिक-अलौकिक विविध भांति के, सबसे बढकर है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 33
क्षीण हो जाते हैं पुण्य सब भांति के, किंतु अक्षय है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 34
काम सुधरेंगे सब लोक के ,परलोक के, जब जपोगे तुम श्री कृष्ण शरणम ममः। 35
बल है निर्बल का, धन है निर्धन का , गुण है निर्गुण का श्री कृष्ण शरणम ममः। 36
असम्भव को संभव बनाता सदा, शक्तिशाली है ये श्री कृष्ण शरणम ममः।37
कोई अन्तर नहीं है नाम में रूप में, स्वयं कृष्ण है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 38
न हो जिन्हे विश्वास, वे भटकते रहें, हम तो जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। 39
खिन्नता , हीनता और पराधीनता, सब मिटाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 40
भाग जाता है भय, होता निर्भय हृदय, याद आते ही श्री कृष्ण शरणम ममः। 41
दूर रखता है सदा कुसंग से , देता सत्संग सदा श्री कृष्ण शरणम ममः। 42
रंग अद्भुत चढाता है सत्संग का ये , रहता है संग श्री कृष्ण शरणम ममः। 43
कृष्ण का प्यार, पीयूष की धार है, शास्त्र का सार श्री कृष्ण शरणम ममः। 44
काम को, क्रोध को, मोह को, लोभ को , नष्ट करता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 45
मेट दुख-द्वन्द, भव-फन्द , छल-छंद सब, देता आनन्द श्री कृष्ण शरणम ममः। 46
पाप का, ताप का, क्लेश का, द्वेष का, नाश करता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 47
ज्ञान, ध्यानादि से, योग , यज्ञादि से , बढकर है सबसे श्री कृष्ण शरणम ममः। 48
अहोभाग्य हैं उसके जिसे अन्त में, याद रहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 49
धन्य है वे भक्त जिनके मन में सदा, वास करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 50
कृष्ण बसते हैं हृदय में उसी भक्त के, जो भी जपता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 51
छूट जाते हैं धन-जन-भवन एक दिन, साथ जाता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 52
बस जरूरत है श्रद्धा की, विश्वास की, कल्पतरु ही है श्री कृष्ण शरणम ममः। 53
चलते फिरते जपो या जपो बैठकर, है सफल मंत्र श्री कृष्ण शरणम ममः। 54
मन के भीतर जपो, या बाहर जपो,अंतर्यामी है श्री कृष्ण शरणम ममः। 55
आज तक किये हैं जो सुकृत आपने, फल है उनका श्री कृष्ण शरणम ममः। 56
थक गये हैं जो जग में भटक कर उन्हें , देता विश्राम श्री कृष्ण शरणम ममः। 57
जग में जितने भी हैं साधन छोटे बड़े , सबका स्वामी है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 58
जाना चाहो जो लीला में, श्री कृष्ण की, तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। 59
शुद्धि करनी हो जीवन की, मन की तुम्हें , तो जपो नित्य श्री कृष्ण शरणम ममः। 60
Shri Krishna Shararm Mamah
Shri Krishna Sharanam mamah
गेय श्रद्धेय है ,ये अनुपमेय है, है स्वयं श्रेय श्री कृष्ण शरणम ममः। 61
मन की ममता ,अहंता सभी मेट कर, समता देता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 62
कृष्ण होते प्रकट ,अपने जन के निकट, नित्य रटते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। 63
दुनिया झुकती है चरणों में ,उनके सदा, नित्य जपते जो श्री कृष्ण शरणम ममः। 64
शुद्धि करता है अन्तःकरण की सदा, बुद्धि देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 65
भ्रांति हरता है सिद्धांत के ज्ञान से, क्रांतिकारी है श्री कृष्ण शरणम ममः। 66
भक्ति का ज्ञान का और वैराग्य का, भाव भरता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 67
बन्द आँखों को सत्संग के ज्ञान से, खोल देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 68
दो सो बावन ओ चौरासी वैष्णव सभी, नित्य जपते हैं श्री कृष्ण शरणम ममः। 69
पुष्टिमार्गीय वैष्णव करोडों हैं जो, नित्य जपते हैंश्री कृष्ण शरणम ममः। 70
सेवा उत्तम है सदा सभी में बस मानसी, श्रेष्ठ सुमिरन है बसश्री कृष्ण शरणम ममः। 71
न कोई झंझट, न कोई खटपट , सीधा सादा है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 72
चस्का लग जाये रस का, तो कहना ही क्या, अपने बस का है श्री कृष्ण शरणम ममः। 73
कृष्ण के प्रेम का, नेम का, क्षेम का, केन्द्र सबका है येश्री कृष्ण शरणम ममः। 74
अपने गौरव के तराजू में , साधन सभी, तोल देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 75
ज्ञान का, ध्यान का, मान सम्मान का, दान देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 76
मानसी सिद्ध करता है, सद्भाव की वृष्टि करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 77
ब्रह्म साकार भी है, निराकार भी, सिद्ध करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 78
मर्म समझाता है , वेद के भेद का, खेद हरता है सभी श्री कृष्ण शरणम ममः। 79
सच्चे वैष्णव की है ये मुख्य पहचान , नित्य जपता है वो श्री कृष्ण शरणम ममः। 80
वृद्धि करता है सदा आयुष्य , आरोग्य की, वह रसायन है श्री कृष्ण शरणम ममः। 81
मिटा देता है सभी भ्रम और संशय , सिद्ध सदगुरु है श्री कृष्ण शरणम ममः। 82
बीज होता है दुनिया में हर चीज का , भक्ति का बीज है श्री कृष्ण शरणम ममः। 83
चारों युग में , चौदह भुवन में सदा, सर्व व्यापक है श्री कृष्ण शरणम ममः। 84
मन को निर्मल बना , भक्त को देता रस दान श्री कृष्ण शरणम ममः। 85
हृदय के हिंडोले में नित झुलाता है कृष्ण को श्री कृष्ण शरणम ममः। 86
रास के जो रसिक हैं उन्हें नित पास बुलाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 87
आस विश्वास रखते हैं ,जो कृष्ण में , दास जपते हैं वो श्री कृष्ण शरणम ममः। 88
अन्याश्रय से डरते हैं ,वैष्णव सदा, उनका आश्रय है श्री कृष्ण शरणम ममः। 89
प्रेम से सदगुरु, जो देता है ,हरि रत्न ,वो रत्न है श्री कृष्ण शरणम ममः। 90
तोला जाता नहीं , मोल बिकता नहीं , रत्न अनमोल है श्री कृष्ण शरणम ममः। 91
भाग्यशाली भगवदीय जन ही सदा, करते हैं प्राप्त श्री कृष्ण शरणम ममः। 92
जो कृपा पात्र हैं बस ,उन्हीं के लिये, है वरदान ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 93
हैं बड़े भाग्य उनके , जिसे मिल गया, देव दुर्लभ श्री कृष्ण शरणम ममः। 94
मिल गया है जिन्हें ,वे ध्यान से सुनें, कि धरोहर है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 95
है ये गोलोक का मार्गदर्शक सखा, नित्य रटना है बस श्री कृष्ण शरणम ममः। 96
अविश्वासियों से सदा रखना है गुप्त , वो मंत्र है श्री कृष्ण शरणम ममः। 97
छोड़ देते हैं अपने ,जब लोग सभी ,साथ देता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 98
टूट जाते हैं धागे ममता के सभी, साथ देता है ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 99
पर्दा हटाता है दिल से अज्ञान का, ज्ञानी बनाता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 100
देखता न अपराध जन का कभी, है क्षमाशील श्री कृष्ण शरणम ममः। 101
रंग , रूप , धन की, परवाह नहीं , प्रेम चाहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 102
दूर हरि से न हरिजन रहे एक भी, चाहता है यह श्री कृष्ण शरणम ममः। 103
माता करती रक्षा जैसे , रक्षा करता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 104
आप बनें उनके वे बने आपके, यही कहता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 105
भक्त सोता है किन्तु स्वयं जाग कर, पहरा देता है श्री कृष्ण शरणम ममः। 106
चाहे मानो न मानो इच्छा आपकी, सच्चा धन तो है, श्री कृष्ण शरणम ममः। 107
डर नही है किसी द्वैत का, प्रेत का , शुद्धद्वैत है श्री कृष्ण शरणम ममः। 108
इस सीधी सड़क पर चल पडो बेधड़क , साथ रक्षक है श्री कृष्ण शरणम ममः। 109
हारते नहीं हैं वे कहीं और कभी, नित्य जपते हैं जो श्री कृष्ण शरणम ममः। 110
श्याम सुंदर निकुंजों में मिल जायेगें, ढूंढ लायेगा ये श्री कृष्ण शरणम ममः। 111
दुनिया सपना है, न अपना है कोई यहाँ , नित्य जपना है श्री कृष्ण शरणम ममः। 112
सत्य है , शिव है और सुन्दर है ये श्री कृष्ण शरणम ममः।
सर्वस्व है जो, नवनीत है जो श्री कृष्ण शरणम ममः। 113
धन अकिंचन का है श्री कृष्ण शरणम ममः।
लक्ष्य जीवन का है श्री कृष्ण शरणम ममः।
Shri krishna sharanam mamah-श्री कृष्ण शरणम ममः
कृष्ण मंत्र कृष्ण से जुड़ने का सरल तरीका है। कृष्ण से जुड़कर ही इस भवसागर को पार किया जा सकता है।
इस संबंध में गीता में स्वयं कृष्ण कहते हैं :-
‘हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है। हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मुझमें गुंथा हुआ है। माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे असुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।
हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला), आर्त (संकटनिवारण के लिए भजने वाला), जिज्ञासु (मेरे को यथार्थ रूप से जानने की इच्छा से भजने वाला) और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं।
गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो मेरी शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं। बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।’
जो मनुष्य कृष्ण के शरणागत है उसे किसी भी प्रकार से रोग और शोक सता नहीं सकते। उसके मस्तिष्क में किसी भी प्रकार के द्वंद्व नहीं होते।
श्री कृष्णं शरणं ममः
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