श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् | लक्ष्मीनारायणस्तोत्रम् | श्रीलक्ष्मीनारायणस्तोत्रम् || Shri LaxmiNarayan Stotram | Laxmi Narayan Stotra | श्री कृष्ण कृत श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र | लक्ष्मी नारायण स्तोत्र| Lakshmi Narayan Stotra
श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पथ करने से मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु जी की कृपा भी प्राप्त होती है । माँ लक्ष्मी जिस पर प्रसन्न हो जाती हैं उसे जीवन में किसी भी वस्तु की कमी नहीं होती है । अगर आप भी माता की कृपा चाहते हैं तो श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। कहते हैं कि केवल माँ लक्ष्मी की स्तुति करने से माँ सदा के लिए स्थायी रूप से नहीं आतीं और व्यक्ति लक्ष्मी का गलत उपयोग भी कर सकता है किन्तु जब माँ लक्ष्मी की स्तुति के साथ साथ उनके पति श्री नारायण की भी स्तुति की जाती है तो वे सदा के लिए नारायण संग उस घर में निवास करती हैं और व्यक्ति श्री नारायण की कृपा से सही दिशा में धन का सदुपयोग करता है । यह लक्ष्मी नारायण स्तोत्र श्री कृष्ण द्वारा रचित है ।
ध्यानम्
चक्रं विद्या वर घट गदा दर्पणम् पद्मयुग्मं
दोर्भिर्बिभ्रत्सुरुचिरतनुं मेघविद्युन्निभाभम् ।
गाढोत्कण्ठं विवशमनिशं पुण्डरीकाक्षलक्ष्म्यो-
रेकीभूतं वपुरवतु वः पीतकौशेयकान्तम् ॥ १॥
शंखचक्रगदापद्मकुंभाऽऽदर्शाब्जपुस्तकम्।
बिभ्रतं मेघचपलवर्णं लक्ष्मीहरिं भजे ॥२॥
विद्युत्प्रभाश्लिष्टघनोपमानौ शुद्धाशयेबिंबितसुप्रकाशौ।
चित्ते चिदाभौ कलयामि लक्ष्मी- नारायणौ सत्त्वगुणप्रधानौ ॥३॥
लोकोद्भवस्थेमलयेश्वराभ्यां शोकोरुदीनस्थितिनाशकाभ्याम्।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥४॥
सम्पत्सुखानन्दविधायकाभ्यां भक्तावनाऽनारतदीक्षिताभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥५॥
दृष्ट्वोपकारे गुरुतां च पञ्च-विंशावतारान् सरसं दधत्भ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥६॥
क्षीरांबुराश्यादिविराट्भवाभ्यां नारं सदा पालयितुं पराभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥७॥
दारिद्र्यदुःखस्थितिदारकाभ्यां दयैवदूरीकृतदुर्गतिभ्याम्
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥८॥
भक्तव्रजाघौघविदारकाभ्यां स्वीयाशयोद्धूतरजस्तमोभ्याम्।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥९॥
रक्तोत्पलाभ्राभवपुर्धराभ्यां पद्मारिशंखाब्जगदाधराभ्याम्।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥१०॥
अङ्घ्रिद्वयाभ्यर्चककल्पकाभ्यां मोक्षप्रदप्राक्तनदंपतीभ्याम्।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥११॥
इदं तु यः पठेत् स्तोत्रं लक्ष्मीनारयणाष्टकम्।
ऐहिकामुष्मिकसुखं भुक्त्वा स लभतेऽमृतम् ॥१२॥
।। इति श्रीकृष्णकृतं लक्ष्मीनारयण स्तोत्रं संपूर्णम् ।।
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