द्रौपदी कृत श्रीकृष्ण स्तुति | Draupadi Krit Krishna Stuti | Krishna stuti by Draupadi
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॥द्रौपदी कृत श्रीकृष्ण स्तुति॥
शङ्खचक्रगदापाणॆ! द्वरकानिलयाच्युत!
गोविन्द! पुण्डरीकाक्ष!रक्ष मां शरणागताम्॥
हा कृष्ण! द्वारकावासिन्! क्वासि यादवनन्दन!।
इमामवस्थां सम्प्राप्तां अनाथां किमुपेक्षसे॥
गोविन्द! द्वारकावासिन् कृष्ण! गोपीजनप्रिय!।
कौरवैः परिभूतां मां किं न जानासि केशव!॥
हे नाथ! हे रमानाथ! व्रजनाथार्तिनाशन!।
कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन!॥
कृष्ण! कृष्ण! महायोगिन् विश्वात्मन्! विश्वभावन!।
प्रपन्नां पाहि गोविन्द! कुरुमध्येऽवसीदतीम्॥
नीलोत्पलदलश्याम! पद्मगर्भारुणेक्षण!
पीतांबरपरीधान! लसत्कौस्तुभभूषण!॥
त्वमादिरन्तो भूतानां त्वमेव च परा गतिः।
विश्वात्मन्! विश्वजनक! विश्वहर्तः प्रभोऽव्यय!॥
प्रपन्नपाल! गोपाल! प्रजापाल! परात्पर!
आकूतीनां च चित्तीनां प्रवर्तक नतास्मि ते॥
शङ्खचक्रगदापाणॆ! द्वरकानिलयाच्युत!
गोविन्द! पुण्डरीकाक्ष!रक्ष मां शरणागताम्॥
हा कृष्ण! द्वारकावासिन्! क्वासि यादवनन्दन!।
इमामवस्थां सम्प्राप्तां अनाथां किमुपेक्षसे॥
गोविन्द! द्वारकावासिन् कृष्ण! गोपीजनप्रिय!।
कौरवैः परिभूतां मां किं न जानासि केशव!॥
हे नाथ! हे रमानाथ! व्रजनाथार्तिनाशन!।
कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन!॥
कृष्ण! कृष्ण! महायोगिन् विश्वात्मन्! विश्वभावन!।
प्रपन्नां पाहि गोविन्द! कुरुमध्येऽवसीदतीम्॥
नीलोत्पलदलश्याम! पद्मगर्भारुणेक्षण!
पीतांबरपरीधान! लसत्कौस्तुभभूषण!॥
त्वमादिरन्तो भूतानां त्वमेव च परा गतिः।
विश्वात्मन्! विश्वजनक! विश्वहर्तः प्रभोऽव्यय!॥
प्रपन्नपाल! गोपाल! प्रजापाल! परात्पर!
आकूतीनां च चित्तीनां प्रवर्तक नतास्मि ते॥
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