कबीर तासूँ प्रीति करि, जो निरबाहे ओड़ि।
बनिता बिबिध न राचिये, दोषत लागे षोड़ि॥
कबीर साहब की वाणी है कि हमें उनसे प्रीत करनी चाहिए जो अंत तक प्रीत को निभा सके, सबंध को कायम रख सकें। अनेक स्त्रियों और माया के चक्कर में पड़े हुए व्यक्ति को देखते ही पाप लगता है।