कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।
जब तक यह देह है तब तक तू कुछ न कुछ देता रह अर्थात दोनों हाथों से दान किये जा। जब देह से प्राण निकल जायेगा तब न तो ये सुन्दर देह बचेगी और न ही तू । फिर तेरी मिट्टी की देह मिट्टी में मिल जाएगी फिर तेरी देह को कौन देह कहेगा सब इसे शव कहेंगे ।