काची काया मन अथिर थिर थिर काम करंत ।
ज्यूं ज्यूं नर निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ।
शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है । मन चंचल है परन्तु तुम इन्हें स्थिर मान कर काम करते हो। इन्हें अनश्वर मानते हो । मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर घूमता है और मगन रहता है उतना ही काल अर्थात मृत्यु उस पर हँसता है । मृत्यु पास है यह जानकर भी इंसान अनजान बना रहता है । कितनी दुखभरी बात है।