कबीर माया मोहिनी, भई अंधियारी लोय।
जो सोये से मुसि गये, रहे वस्तु को रोय।।
कबीर साहेब कहते हैं कि माया मोहिनी उस काली अंधियारी रात्रि के समान है जो सबके ऊपर फैली है। जो वैभव रूपी आनन्द में मस्त हो कर सो गये अर्थात् माया रूपी आवरण ने जिसे अपने वश में कर लिया उसे काम, क्रोध और मोहरूपी डाकुओं ने लूट लिया और वे ज्ञान रूपी अमृत तत्व से वंचित रह गये।