Krishnashraya Stotram Hindi Lyrics with meaning | कृष्णाश्रय स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित श्री कृष्णाश्रय स्तोत्र | कृष्णाश्रय स्तोत्र | Krishnashraya Stotram hindi lyrics | Krishnashraya Stotra Lyrics
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॥ श्री कृष्णाश्रय स्तोत्रम् ॥
सर्वमार्गेषु नष्टेषु काले च कलिधर्मिणि ।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम ॥ १ ॥
कलियुग में धर्म के सभी मार्ग नष्ट हो गए हैं, विश्व में अधर्म और पाखंड का बाहुल्य है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥१॥
म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च ।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥ २ ॥
दुर्जनों से आक्रांत (परेशान) देशों में, पाप पूर्ण स्थानों में, सज्जनों की पीड़ा से व्यग्र संसार में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥२॥
गङ्गादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह ।
तिरोहिताधिदैवेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ३ ॥
गंगा आदि प्रमुख तीर्थ भी दुष्टों द्वारा घिरे हुए हैं, प्रत्यक्ष देवस्थान लुप्त हो गए हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥३॥
अहङ्कारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु ।
लाभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ४ ॥
अहंकार से मोहित हुए सज्जन व्यक्ति भी पाप का अनुसरण कर रहे हैं और लोभ वश ही पूजा करते हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही
मेरा आश्रय हैं॥४॥
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेषु व्रतयोगिषु ।
तिरोहितार्थदैवेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ५ ॥
मंत्र ज्ञान नष्ट हो गया है, योगी नियमों का पालन न करने वाले हो गए हैं, वेदों का वास्तविक अर्थ लुप्त हो गया है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥५॥
नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु ।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ६ ॥
भिन्न-भिन्न प्रकार के मतों के कारण शुभ कर्म और व्रत आदि का नाश हो गया है, पाखंडपूर्ण कर्मों का ही आचरण हो रहा है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥६॥
अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः ।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ७ ॥
आपका नाम अजामिल आदि के दोषों का नाश करने वाला है, ऐसा सबने सुना है, आपके ऐसे संपूर्ण माहात्म्य को जानने के बाद, केवल आप श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥७॥
प्राकृतास्सकला देवा गणितानन्दकं बृहत् ।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ८ ॥
सभी देवता प्रकृति के अंतर्गत हैं, विराट का आनंद भी सीमित है, केवल श्रीहरि पूर्ण आनंद स्वरुप हैं, अतः केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥८॥
विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः ।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम ॥ ९ ॥
विवेक, धैर्य, भक्ति आदि से रहित, विशेष रूप से पाप में आसक्त मुझ दीन के लिए केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥९॥
सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत् ।
शरणस्थसमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम् ॥ १० ॥
अनंत सामर्थ्यवान, सर्वत्र सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाले, शरणागतों का उद्धार करने वाले श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ॥१०॥
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत् ॥ ११ ॥
श्रीकृष्ण के आश्रय में और उनकी मूर्ति के समीप जो इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य का कथन है॥११॥
इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं श्री कृष्णाश्रयस्तोत्रम् ।
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