Mahalakshmi Ashtakam With Hindi Meaning | श्री महालक्ष्म्यष्टकम् | Shri Mahalakshmi Ashtak lyrics with meaning & Benefits in hindi | श्री महालक्ष्मी अष्टकम के पाठ का हिंदी में अर्थ एवं इसके लाभ| श्री महालक्ष्मी अष्टकम | हिंदी में पढ़े श्री महालक्ष्मी अष्टकम | Mahalakshmi Ashtakam | Mahalaxmi Ashtakam | Indra Krit Mahalakshami Ashtakam| Mahalaxmi Stotram lyrics in hindi | महालक्ष्मी अष्टकम लिरिक्स | Mahalakshmi Ashtakam Lyrics With Hindi Meaning | Mahalakshmi Ashtakam Stotram With Meaning | MAHA LAKSHMI ASHTAKAM | श्री महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्र | श्रीमहालक्ष्मी अष्टकं | श्री महालक्ष्मी अष्टकम हिंदी अर्थ सहित | इंद्र कृत महालक्ष्मी अष्टक
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महालक्ष्मी अष्टकम का पाठ देवराज इंद्र द्वारा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया गया था। अपने जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाने के लिए महालक्ष्मी अष्टकम का पाठ उपयोगी है । जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है। महालक्ष्मी अष्टकम का प्रतिदिन एक बार पाठ करने से भक्तों के महापापों का विनाश हो जाता हैं। प्रतिदिन दो बार अर्थात प्रातः व संध्या काल यह पाठ करने से भक्तों को धन और धान्य की प्राप्ति होती है। प्रतिदिन तीनों कालों में अर्थात प्रातः , दोपहर व संध्या काल में यह पाठ करने से भक्तों के शक्तिशाली शत्रुओं का नाश होता है और उनसे ल्याणकारिणी वरदायिनी माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती है तथा उनके वरदान स्वरुप भक्तों के सभी कार्य शुभ होंते है|
ॐ श्री गणेशाय नमः
इन्द्र उवाच:
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते |
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते || 1 ||
देवराज इंद्र बोले: श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है|| 1 ||
नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि |
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते || 2 ||
पक्षीराज गरुड़ जिनका वाहन है, भयानक से भयानक दानव भी जिनके भय से कांपते है| सभी पापो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार हैं || 2 ||
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी |
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते || 3 ||
देवराज इंद्र बोले: मैं उन देवी की पूजा करता हूं जो सब जानने वाली हैं , सब प्रकार के वर देने वाली हैं , सभी दुष्टों का को भय देने वाली हैं और सभी दुःखों को हरने वाली हैं । हे देवी महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है || 3 ||
सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी |
मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते || 4 ||
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें सदा प्रणाम है || 4 ||
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥5॥
हे देवि ! हे आदि-अंतरहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि ! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है || 5 ||
स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे |
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते || 6 ||
हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है || 6 ||
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हास्वरूपिणि |
परमेशि जगन्मातारमहालक्ष्मी नमोस्तुते || 7 ||
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्म स्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ( संपूर्ण ब्रह्मांड की माता) ! हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभुषिते |
जगतस्थिते जगन्मातारमहालक्ष्मी नमोस्तुते || 8 ||
हे देवि ! तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है || 8 ||
|| फल स्तुति ||
महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम् यः पठेत्भक्तिमानरः |
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा || 9 ||
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्य वैभव को प्राप्त कर सकता है|| 9 ||
एककालं पठेनित्यम महापापविनाशनं |
द्विकालं यः पठेनित्यम धनधान्यसमन्वित: || 10 ||
महालक्ष्मी अष्टकम का प्रतिदिन एक बार पाठ करने से भक्तों के महापापों का विनाश हो जाता हैं। प्रतिदिन दो बार अर्थात प्रातः व संध्या काल यह पाठ करने से भक्तों को धन और धान्य की प्राप्ति होती है|| 10 ||
त्रिकालं यः पठेनित्यम महाशत्रुविनाशनम |
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा || 11 ||
प्रतिदिन तीनों कालों में अर्थात प्रातः , दोपहर व संध्या काल में यह पाठ करने से भक्तों के शक्तिशाली शत्रुओं का नाश होता है और उनसे ल्याणकारिणी वरदायिनी माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती है तथा उनके वरदान स्वरुप भक्तों के सभी कार्य शुभ होंते है || 11 ||
॥ इस प्रकार इन्द्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम ( महालक्ष्म्यष्टक ) सम्पूर्ण हुआ ॥
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