Ram raksha stotra Hindi Lyrics with meaningShri Ram Raksha Stotram

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित  |  राम रक्षा स्तोत्र | श्रीरामरक्षास्तोत्र  |  Shri Ram Raksha Stotram-श्रीरामरक्षास्तोत्रम |राम रक्षा स्तोत्र : धन व समृद्धि के लिए करें | मंत्र: श्री राम रक्षा स्तोत्रम् – Mantra: Shri Ram Raksha Stotram| Ram Raksha Stotra राम रक्षा स्तोत्र: भगवान राम को प्रसन्न करने के लिए करें इसका पाठ | राम रक्षा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | Ram Raksha Stotra Hindi| श्री राम रक्षा स्तोत्र – Shri Ram Raksha Stotra|Ram Raksha Stotra | Ramraksha Stotra| राम रक्षा स्तोत्र लिरिक्स | Ram Raksha Stotra Lyrics| श्री राम रक्षा स्तोत्र – एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र| श्रीरामरक्षास्तोत्रम् लिरिक्स Ramraksha Stotra Lyrics| श्रीरामरक्षा स्‍त्रोत से प्रसन्‍न होते हैं भगवान राम और करते हैं रक्षा| राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से होगी धन की वर्षा, जानें इसका महत्व| Ram Raksha Stotra In Hindi | राम रक्षा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

 

 

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र
श्रीरामरक्षास्तोत्र

 

 

 

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।

बुधकौशिक ऋषि: ।

श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।

अनुष्टुप्‌ छन्द: । सीता शक्ति: ।

श्रीमद्‌हनुमान्‌ कीलकम्‌ ।

श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्र जपे विनियोग: ॥

 

इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |

 

॥ अथ ध्यानम्‌ ॥

 

Lord Ram Sita
Ram raksha stotra

 

।।ध्यानम।।

 

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं ।

पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥

वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।

नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥

 

ध्यान करिये – जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें ।

 

॥ इति ध्यानम्‌ ॥

 

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।

एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥

 

श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं । उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है ।।1।।

 

Lord Ram, Lakshaman and Sita
Ram Raksha stotram

 

 

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।

जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥

 

नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले, जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके।।2।।

 

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र

 

 

 

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र

 

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌

स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥

 

जो अजन्मा ( जिसका जन्म न हुआ हो अर्थात जो प्रकट हुआ हो ) एवं सर्वव्यापक हैं । हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए हैं । राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण हुए हैं । ऐसे प्रभु श्रीराम का स्मरण करके॥३॥

 

Lord Ram
Ram Raksha Stotra

 

रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌

शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

 

मैं सर्वकामप्रद ( सभी कामनाओ की पूर्ति करने वाले ) और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ । राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें ।।4।।

 

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती

घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

 

कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें।।5।।

 

जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:

स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

 

मेरी जिह्वा की विद्यानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें ।।6।।

 

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌

मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

 

मेरे हाथों की सीतापति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें ।।7।।

 

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:

ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥

 

मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, कूल्हों की हनुमान के प्रभु और सभी रघुओं में उत्तम और राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ मेरे जांघो की रक्षा करें ।।8।।

 

 

Lord Ram and Hanuman
Ram Raksha Stotra

 

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक:

पादौ विभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥

 

मेरे जानुओं ( घुटनो ) की सेतुकृत ( सेतु का निर्माण करने वाले ), अग्र जंघाओं की दशानन वधकर्ता , चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें ।।9।।

 

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्‌

चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥

 

शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं।।10।।

 

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण:

द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

 

जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्म वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते ।।11।।

 

 

Lord Ram and Hanuman
Ram Raksha stotra

 

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌

नरो लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं विन्दति ॥१२॥

 

राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है ।।12।।

 

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌

य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धयः ॥१३॥

 

जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं ।।13।।

 

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र

 

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌

अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥

 

जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं ।।14।।

 

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:

तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

 

भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया ।।15।।

 

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌

अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ न: प्रभु: ॥१६॥

 

जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम ( आराम ) देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों ( आपदाओं ) को दूर करने वाले हैं (विराम देने वाले हैं ) और जो तीनों लोकों में मोहक और सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।।16।।

 

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ

पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

 

जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं ।।17।।

 

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ

पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

 

जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।।18।।

 

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌

रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

 

ऐसे महाबली रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारी रक्षा करें ।।19।।

 

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्‌सङि‌गनौ

रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥

 

संधान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें ।।20।।

 

 

Lord Ram Laxman

 

 

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा

गच्छन्मनोरथान्नश्च राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

 

हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खड्ग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें ।।21।।

 

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली

काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

 

भगवान् का कथन है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम।।22।।

 

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:

जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥

 

वेदान्त् वेद्य, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम ।।23।।

 

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित:

अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति संशय: ॥२४॥

 

इन नामों से नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है । इसमें कोई संशय या संदेह नहीं है ।।24।।

 

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम्‌

स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

 

दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता ।।25।।

 

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र

 

रामं लक्षमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्‌ ।

काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथ तनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।

वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥

 

लक्ष्मण जी के पूर्वज अर्थात बड़े भाई रघुवर , सीताजी के पति, काकुत्स्थ कुल-नंदन ( काकुत्स्थ राजा के वंशज ), करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र ( ब्राह्मण ) भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर ( राजाओं के राजा ), सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ ।।26।।

 

 

Lord Ram

 

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।

रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

 

राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधाता स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ ।।27।।

 

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।

श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।

श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

 

हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए ।।28।।

 

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

 

मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ ।।29।।

 

माता रामो मत्पिता राम चंद्रः ।

स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।

र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

 

श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं । इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं। उनके सिवा मैं किसी दूसरे को नहीं जानता ।।30।।

 

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।

पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥

 

जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान जी विराजमान हैं, मैं उन्हीं रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ ।।31।।

 

 

Ram Darbar

 

 

लोकाभिरामं रणरङ्ग धीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

 

मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार श्रीराम की शरण में हूँ ।।32।।

 

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

 

जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन वानरों के समूह के मुख्य और अग्रणी पवन-नंदन श्रीराम दूत ( हनुमान जी ) की शरण लेता हूँ ।।33।।

 

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥

 

मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम का कुंजन करते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ ।।34।।

 

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥

 

मैं इस सभी लोकों में सुन्दर एवं प्रिय उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं ।।35।।

 

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।

तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥

 

‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं ।।36।।

 

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।

रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

 

राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ । सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ । श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ । मैं हमेशा श्रीराम में ही लीन रहूँ । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें ।।37।।

 

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

 

(शिव पार्वती से बोले -) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं अर्थात विष्णु जी के 1000 नामों के बराबर एक राम नाम है । मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ ।

 

Lord Shiva telling glories of Ram nama to Gauri

Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र

 

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

 

 

श्री राम रक्षा स्तोत्र का महत्व

 

श्री राम रक्षा स्तोत्र सुनने तथा पाठ करने से घर-परिवार की बुरी नजर से रक्षा होती है व सुख संपत्ति का वास होता है।

श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने वाले हर तरह की परेशानियों से सुरक्षित रहते हैं। जीवन में आने वाले कष्टों से राहत मिलती है। भगवान श्री राम का आशीर्वाद मिलने से व्यक्ति को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्तोत्र के प्रभाव से मंगल का कुप्रभाव कम होता है। श्री राम रक्षा स्तोत्र से प्रभु श्रीराम के साथ हनुमान जी की भी कृपा बनी रहती है।

 

 

 

Ram Raksha Stotra English Lyrics with meaning

 

 

 

 

 

Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:

The Spiritual Talks

For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers  & Pinterest Stories:

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

For any query contact on:

E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com

 

 

 

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!