Krishna Raksha kavach hindi Lyrics with meaning/ श्री कृष्ण रक्षा कवचम् हिंदी अर्थ सहित / गर्गसंहिता/खण्डः १ (गोलोकखण्डः)/अध्यायः १३/ पूतना उद्धार | Krishna Raksha kavach | Shri Krishna Raksha kavach | Krishna Raksha kavach lyrics | SHri Krishna Raksha kavach Hindi Lyrics | श्री कृष्ण रक्षा कवचम् | श्री कृष्ण रक्षा कवच | कृष्ण रक्षा कवच
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यह सबकी रक्षा करने वाला परम दिव्य ‘श्रीकृष्ण-कवच’ है। इसका उपदेश भगवान विष्णु ने अपने नाभि कमल में विद्यमान ब्रह्माजी को दिया था।ब्रह्माजी ने शम्भु को, शम्भु ने दुर्वासा को और दुर्वासा ने नन्द मन्दिर में आकर श्रीयशोदा जी को इसका उपदेश दिया था।यह श्रीकृष्ण-कवच सबकी रक्षा करने वाला,विशेषकर बच्चों के लिए परम दिव्य है।
श्री कृष्ण रक्षा कवच का वर्णन गर्ग संहिता के गोलोक खंड के ” पूतना उद्धार ” अध्याय 13 में देखने को मिलता है । गर्ग संहिता गर्ग मुनि द्वारा लिखी गयी है । गर्ग ऋषि नन्द बाबा के कुलगुरु भी थे और उन्होंने ही श्री कृष्ण का नामकरण भी किया था । इस कवच का पाठ गोपियों ने उस समय बाल श्री कृष्ण की रक्षा के लिए किया था जब वे मात्र 6 दिन के थे और उन्होंने पूतना राक्षसी का संहार किया और उसका उद्धार कर के उसे सद्गति प्रदान की वो मात्र 6 दिन के थे । पूतना द्वारा नन्हें श्री कृष्ण उठा कर ले जाते देख गोपियाँ , मैया यशोदा , नन्द बाबा और अन्य बृजवासी उन्हें साधारण बालक समझ कर अत्यंत भयभीत हो गए कि कहीं वो भयानक राक्षसी उनके लाला के साथ कुछ बुरा न कर दे । इसीलिए बालक को जीवित देख कर भी उनका संदेह दूर न हुआ कि वह कोई साधारण बालक नहीं बल्कि स्वयं अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक उनके व्रज में अवतरित हुए थे । बच्चे को ले जाकर गोपियों ने सब ओर से विधिपूर्वक उसकी रक्षा की। यमुनाजी की पवित्र मिट्टी लगाकर उसके ऊपर यमुना-जल का छींटा दिया, फिर उसके ऊपर गाय की पूँछ घुमायी। गोमूत्र और गोरजमिश्रित जल से उसको नहलाया और निम्नांकित रूप से कवच का पाठ किया।
गोप्य ऊचुः
श्री गोपियाँ बोलीं –
श्रीकृष्ण्स्ते शिरः पातु वैकुण्ठः कण्ठमेव हि ।
श्वेतद्वीपपतिः कर्णौ नासिकां यज्ञरूपधृक् ॥ १॥
मेरे लाल ! श्रीकृष्ण सिर की रक्षा करें और भगवान वैकुण्ठ कण्ठ की। श्वेतद्वीप के स्वामी दोनों कानों की, यज्ञरूपधारी श्रीहरि नासिका की रक्षा करें ।
नृसिंहो नेत्रयुग्मं च जिह्वां दशरथात्मजः ।
अधराववतात्ते तु नरनारायणावृषी ॥ २॥
भगवान नृसिंह दोनों नेत्रों की, दशरथ नन्दन श्रीराम जिह्वा की और नर-नारायण ऋषि अधरों की रक्षा करें।
कपोलौ पान्तुर ते साक्षात् सनकाद्याः कला हरेः ।
भालं ते श्वेतवाराहो नारदो भ्रूलतेऽवतु ॥ ३॥
साक्षात श्री हरि के कलावतार सनक-सनन्दन आदि चारों महर्षि दोनों कपोलों की रक्षा करें। भगवान श्वेतवाराह मस्तक की तथा नारद दोनों भ्रूलताओं की रक्षा करें।
चिबुकं कपिलः पातु दत्तात्रेय उरोऽवतु ।
स्करन्धौ द्वावृषभः पातु करौ मत्स्यः प्रपातु ते ॥ ४॥
भगवान कपिल ठोढ़ी को और दत्तात्रेय वक्षःस्थल को सुरक्षित रखें। भगवान ऋषभ दोनों कन्धों की और मत्स्य भगवान दोनों हाथों की रक्षा करें।
दोर्दण्डं सततं रक्षेत् पृथुः पृथुलविक्रमः ।
उदरं कमठः पातु नाभिं धन्वन्तरिच्श्र ते ॥ ५॥
पृथुल-पराक्रमी राजा पृथु सदा बाहुदण्डों को सुरक्षित रखें। भगवान कच्छप उदर की और धन्वन्तरि नाभि की रक्षा करें।
मोहिनी गुह्यदेशं च कटिं ते वामनोऽवतु ।
पृष्ठं परशुरामश्च तवोरू बादरायणः ॥ ६॥
मोहिनी रूपधारी भगवान गुह्यदेश को और वामन कटि को हानि से बचायें। परशुरामजी पृष्ठभाग की और बादरायण व्यास जी दोनों जाँघों की रक्षा करें।
बलो जानुद्वयं पातु जंघे बुद्धः प्रपातु ते ।
पादौ पातु सगुल्फौ व कल्किर्धर्मपतिः प्रभु॥ ७॥
बलभद्र दोनों घुटनों की और बुद्धदेव पिंडलियों के रक्षा करें। धर्म पालक भगवान कल्कि गुल्फों सहित दोनों पैरों को सकुशल रखें ।
सर्वंरक्षाकरं दिव्यं श्रीकृष्णकवचं परम् ।
इदं भगवता दत्तं ब्रह्मणे नाभिपंकजे ॥ ८॥
यह सबकी रक्षा करने वाला परम दिव्य ‘श्रीकृष्ण-कवच’ है। इसका उपदेश भगवान विष्णु ने अपने नाभि कमल में विद्यमान ब्रह्माजी को दिया था।
ब्रह्मणा शम्भवे दत्तं शम्भुर्दुर्वाससे ददौ ।
दुर्वासाः श्रीयशोमत्यै प्रादाच्छ्रीनन्दमन्दिरे ॥ ९॥
ब्रह्माजी ने शम्भु को, शम्भु ने दुर्वासा को और दुर्वासा ने नन्द मन्दिर में आकर श्रीयशोदा जी को इसका उपदेश दिया था।
अनेन रक्षां कृत्वास्य गोपीभिः श्रीयशोमती ।
पाययित्वा स्तनं दानं विप्रेभ्यः प्रददौ महत् ॥ 10 ॥
इस कवच के द्वारा गोपियों सहित श्री यशोदा ने नन्दनन्दन की रक्षा करके उन्हें अपना स्तन पान कराया और ब्राह्मणों को प्रचुर धन दिया ।
इति गर्गसंहितायां गोलोकखण्डे त्रयोदशाध्यान्तर्गतंगोपीभिः कृतं श्रीकृष्णरक्षाकवचम्
यह सबकी रक्षा करने वाला परम दिव्य ‘श्रीकृष्ण-कवच’ है। इसका उपदेश भगवान विष्णु ने अपने नाभि कमल में विद्यमान ब्रह्माजी को दिया था।ब्रह्माजी ने शम्भु को, शम्भु ने दुर्वासा को और दुर्वासा ने नन्द मन्दिर में आकर श्रीयशोदा जी को इसका उपदेश दिया था।यह श्रीकृष्ण-कवच सबकी रक्षा करने वाला,विशेषकर बच्चों के लिए परम दिव्य है।
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