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श्री कृष्णदास कविराज द्वारा रचित
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कुङ्कुमाक्तकाञ्चनाब्ज गर्वहारि गौरभा,
पीतनाञ्चिताब्जगन्धकीर्तिनिन्दसौरभा ।
वल्लवेशसूनु सर्ववाञ्छितार्थसाधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ १॥
कौरविन्दकान्तनिन्दचित्रपत्रशाटिका,
कृष्णमत्तभृङ्गकेलि फुल्लपुष्पवाटिका ।
कृष्णनित्यसङ्गमार्थपद्मबन्धुराधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ २॥
लाल मूंगे का वैभव उनके अद्भुत और रंग बिरंगे रेशमी वस्त्रों के सामने अत्यंत मंद प्रतीत होता है । आप खिले हुए पुष्पों का वह उद्यान हैं जहाँ कृष्ण नामक उन्मत्त भंवर अपनी प्रणयशील लीला करते हैं । वह अपने प्रिय कृष्ण की निरंतर संगति पाने के लिए सूर्य देव की नियमित पूजा करती हैं । वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
सौकुमार्यसृष्टपल्लवालिकीर्तिनिग्रहा,
चन्द्रचन्दनोत्पलेन्दुसेव्यशीतविग्रहा ।
स्वाभिमर्शवल्लवीशकामतापबाधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ ३॥
उनका सौम्य यौवन नवीन अंकुरित पत्तियों के वैभव को निष्फल करने वाला है । उनका लुभावना रूप विग्रह शीतल चन्दन के लेप , चन्द्रमा, कमल के पुष्पों और कपूर के द्वारा सेवा करने के योग्य है । क्योंकि जब वह गोपीजन वल्लभ को स्पर्श करती हैं तो उनके काम ताप को अपने शीतल रूप से शांत करती हैं । वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
विश्ववन्द्ययौवताभिवन्दतापि या रमा,
रूपनव्ययौवनादिसम्पदा न यत्समा ।
शीलहार्दलीलया च सा यतोऽस्ति नाधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदास्तु राधिका ॥ ४॥
यद्यपि भाग्य की देवी श्री लक्ष्मी देवी उन अन्य यौवनयुक्त देवियों द्वारा पूजी जाती हैं जो स्वयं पूरे ब्रह्माण्ड में महिमामंडित हैं , फिर भी वे रूप , सुंदरता , यौवन या अन्य दिव्य स्त्री ऐश्वर्य के सन्दर्भ में श्री राधिका के कहीं आस पास भी नहीं हैं । भौतिक या आध्यात्मिक संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो स्वाभाविक रूप से प्रेमपूर्ण लीलाओं की अभिव्यक्ति में श्री राधिका से श्रेष्ठ हो। वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
रासलास्यगीतनर्मसत्कलालिपण्डिता,
प्रेमरम्यरूपवेशसद्गुणालिमण्डिता ।
विश्वनव्यगोपयोषिदालितोपि याऽधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ ५
वह अनेक पारलौकिक कलाओं में पारंगत हैं जैसे रास नृत्य , गायन और हंसी ठिठोली । वह कई दिव्य गुणों से सुशोभित हैं जैसे प्रेमपूर्ण प्रकृति , उत्तम सौंदर्य , अद्भुत वेशभूषा और आभूषण । व्रज के गोप गोपियों में भी जिनकी प्रशंसा सारे ब्रह्माण्ड में की जाती है श्री राधिका सर्वश्रेष्ठ हैं ।।वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
नित्यनव्यरूपकेलिकृष्णभावसम्पदा,
कृष्णरागबन्धगोपयौवतेषु कम्पदा ।
कृष्णरूपवेशकेलिलग्नसत्समाधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ ६॥
वह शाश्वत यौवन रूप सौंदर्य , शाश्वत लीलाओं और कृष्ण के प्रति शाश्वत प्रेम का भण्डार हैं । कृष्ण के प्रति उनके उन्मत्त प्रेम को देख कर गोपियाँ जो कि कृष्ण से प्रेम करती हैं कांप जाती हैं । वह सदैव कृष्ण के रूप , वेश ( वस्त्र और आभूषण इत्यादि ) और लीलाओं के ध्यान में समाधिग्रस्त रहती हैं । वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
स्वेदकम्पकण्टकाश्रुगद्गदादिसञ्चिता,
मर्षहर्षवामतादि भावभूषणाञ्चिता ।
कृष्णनेत्रतोषिरत्नमण्डनालिदाधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ ७॥
वह आठ परमानंद के लक्षणों (सात्विक-भाव) से विभूषित हैं , जैसे कम्पन , स्वेद बिंदुओं का प्रकट होना , रोंगटे खड़े होना , आँसू आना , आवाज का लड़खड़ाना आदि। वह विभिन्न उत्साहपूर्ण भावनात्मक आभूषणों से सुशोभित है, जैसे अधीरता, आनंद, विरोधाभास, इत्यादि । वह सुंदर रत्नों से विभूषित हैं जो कृष्ण के नयनों को सम्पूर्ण आनंद प्रदान करते हैं। वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
या क्षणार्धकृष्णविप्रयोगसन्ततोदिता-,
नेकदैन्यचापलादिभाववृन्दमोदिता ।
यत्नलब्धकृष्णसङ्गनिर्गताखिलाधिका,
मह्यमात्मपादपद्मदास्यदाऽस्तु राधिका ॥ ८॥
यदि वह कृष्ण से आधे क्षण के लिए भी अलग होती हैं तो , वह भयानक पीड़ा, बेचैनी, और अलगाव के कई अन्य आनंदमय लक्षणों से त्रस्त हो जाती हैं । श्री राधिका कृष्ण से आधे क्षण का भी विरह नहीं सह पातीं । जब वह कुछ प्रयास के बाद कृष्ण की संगति प्राप्त करती है, तो उनकी सारी पीड़ा तुरंत दूर हो जाती है। वह श्री राधिका मुझे अपने चरण कमलों की सेवा का अवसर प्रदान करें ।।
अष्टकेन यस्त्वनेन नौति कृष्णवल्लभां,
दर्शनेऽपि शैलजादियोषिदालिदुर्लभाम् ।
कृष्णसङ्गनन्दतात्मदास्यसीधुभाजनं,
तं करोति नन्दतालिसञ्चयाशु सा जनम् ॥ ९॥
पार्वती और अन्य श्रेष्ठ देवियों के लिए भगवान श्री कृष्ण की अत्यंत प्रिय श्रीमती राधारानी की एक झलक भी प्राप्त करना बहुत कठिन है, लेकिन अगर कोई इन आठ श्लोकों का पाठ करके उनकी स्तुति करता है, तो वह श्री राधा जो श्री कृष्ण की निरंतर संगति से प्रसन्न होती हैं , उस व्यक्ति को अपनी निजी सेवा का मीठा अमृत प्रदान करेंगीं , जो इस तरह अपने ही समान प्रसन्न गोपिकाओं और प्रेमिकाओं की सभा में प्रवेश करता है।
। इति श्रीकृष्णदासकविराजविरचितं श्रीराधिकाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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🙏राधे राधे 🙏
🙏श्री बांके बिहारी लाल की जय 🙏
🙏माता श्री राधारानी की जय 🙏
🙏बहुत सुन्दर भाव है राधारानी के चरण प्यारे प्यारे श्यामा श्याम के चरण प्यारे प्यारे 🙏
Radhe Radhe …hare Krishna …Dhanyawad..
radhe radhe jai shree radhe
Radhe Radhe 🙏