श्रीराम पंचरत्न स्तोत्र | आदि शंकराचार्य द्वारा रचित राम पंचरत्न स्तोत्र | पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का साधन श्री राम पञ्च रत्नम स्तोत्रम | श्रीराम पंचरत्न स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित| Shri Ram Panch Ratna Stotra hindi lyrics with meaning
Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks
Follow on Pinterest: The Spiritual Talks
यह सुंदर श्लोक आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्री राम पंचरत्नम स्तोत्र से है। यह भगवान राम को समर्पित एक स्तुति है, जो उनके दिव्य गुणों की प्रशंसा करती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक शांति और भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भगवन राम और उनके भ्राता लक्षमण की स्तुति करता है । इस स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक ” नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय ” से समाप्त होता है । जो व्यक्ति इन पांच श्लोकों का पाठ दिन में तीन बार करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है। उस व्यक्ति पर सदैव भगवन राम की कृपा बनी रहती है ।
कञ्जातपत्रायतलोचनाय कर्णावतंसोज्ज्वलकुण्डलाय।
कारुण्यपात्राय सुवंशजाय नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय ॥१॥
कञ्जातपत्रायतलोचनाय : कमल के पत्ते जैसी बड़ी आँखों वाले,
कर्णावतंसोज्ज्वलकुण्डलाय : कानों में चमकते हुए कुंडल पहने हुए,
कारुण्यपात्राय : करुणा का अवतार / करुणामयी
सुवंशजाय : श्रेष्ठ वंश में जन्मे हुए,
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय : राम और लक्ष्मण को नमन है।
भगवान राम को नमस्कार, जिनकी आंखें कमल की पंखुड़ियों के समान हैं, जिनके कान चमकदार कुण्डलों से सुशोभित हैं और जो करुणा के अवतार हैं। लक्ष्मण सहित राम को नमस्कार है ॥१॥
विद्युत् निभांभोदसुविग्रहाय विद्याधरैस्संस्तुत सद्गुणाय।
वीरावताराय विरोधिहन्त्रे नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय ॥२॥
विद्युत् निभांभोदसुविग्रहाय: जिसका रूप एक घने वर्षारुपी मेघ के समान बिजली की भांति चमक रहा है,
विद्याधरैस्संस्तुत सद्गुणाय : जिनका देवताओं और ज्ञानीजनों द्वारा उनके गुणों के लिए गुणगान किया जाता है,
वीरावताराय : वीरता से पूर्ण अवतार,
विरोधिहन्त्रे : शत्रुओं के संहारक
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय : लक्ष्मण सहित राम को नमस्कार।
उन भगवान राम को नमस्कार है जिनका शरीर बिजली की तरह चमकता है, जिनके सद्गुणों की विद्याधर ( दिव्य जन ) भी स्तुति करते हैं। ऐसे वीरता के अवतार और शत्रुओं के संहारक राम और लक्ष्मण को मेरा नमस्कार है ॥२॥
संसक्तदिव्यायुधकार्मुकाय समुद्रगर्वापहरायुधाय ।
सुग्रीवमित्राय सुरारिहन्त्रे नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय ॥३॥
संसक्तदिव्यायुधकार्मुकाय : जो दिव्य अस्त्रों और धनुष से दृढ़ता से सुसज्जित हैं ,
समुद्रगर्वापहरायुधाय : जिसके अस्त्र ने समुद्र का गौरव हर लिया,
सुग्रीवमित्राय : सुग्रीव के मित्र
सुरारिहन्त्रे : देवताओं के शत्रुओं के संहारक
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय : लक्ष्मण सहित राम को नमस्कार है
जो दिव्य अस्त्रों और धनुष से दृढ़ता से सुसज्जित हैं , जिसके अस्त्र ने समुद्र का गौरव हर लिया, सुग्रीव के मित्र , ऐसे देवताओं के शत्रुओं के संहारक , राम को लक्ष्मण सहित नमस्कार है ॥३॥
पीताम्बरालंकृत मध्यकाय पितामहेन्द्रामर वन्दिताय।
पित्रे स्वभक्तस्य जनस्य मात्रे नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय ॥४॥
यह श्लोक भगवान राम के दिव्य रूप, देवताओं के बीच उनकी सम्मानित स्थिति और उनके भक्तों के लिए एक रक्षक और पिता के रूप में उनकी भूमिका के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है। इसमें लक्ष्मण को नमस्कार भी शामिल है, जो हमेशा राम से जुड़े रहते हैं।
पीताम्बरालंकृत मध्यकाय : सुडौल शरीर में पीले वस्त्रों में सुसज्जित
पितामहेन्द्रामर वन्दिताय : जिनकी पूजा पितामह (ब्रह्मा), इंद्र और देवतागण करते हैं,
पित्रे स्वभक्तस्य जनस्य मात्रे : पिता के समान जो अपने भक्तों के लिए एकमात्र शरण है,
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय : राम को लक्ष्मण सहित नमस्कार है
जो पीले वस्त्रों से सुसज्जित हैं , सुडौल शरीर धारण करते हैं , जिनकी पूजा पितामह (ब्रह्मा), इंद्र और देवतागण करते हैं, पिता के समान, जो अपने भक्तों के लिए एकमात्र शरण है, ऐसे राम को लक्ष्मण सहित नमस्कार है ॥४॥
नमो नमस्तेऽखिलपूजिताय नमो नमश्चन्द्रनिभाननाय।
नमो नमस्ते रघुवंशजाय नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय ॥५॥
जिसे अखिल ब्रह्माण्ड पूजता है , उसे नमस्कार। जिसका मुख चंद्रमा की भाँति चमकता है, उसे नमस्कार। रघु वंश के वंशज (भगवान राम) को नमन। ऐसे राम को लक्ष्मण सहित नमस्कार है । यह श्लोक भगवान राम की सार्वभौमिक पूजा, उज्ज्वल उपस्थिति, रघु वंश और उनके समर्पित भाई लक्ष्मण की अविभाज्य उपस्थिति पर प्रकाश डालता है ।
नमो नमस्तेऽखिलपूजिताय : जिसे सभी पूजते हैं उसे नमस्कार।
नमो नमश्चन्द्रनिभाननाय : जिसका मुख चंद्रमा की भाँति चमकता है, उसे नमस्कार।
नमो नमस्ते रघुवंशजाय : रघु वंश के वंशज (भगवान राम) को नमन।
नमोऽस्तु रामाय सलक्ष्मणाय : लक्षमण सहित राम को नमस्कार है
जिस को अखिल ब्रह्माण्ड , समस्त जन पूजते हैं , जिनका मुख चन्द्रमा के समान शोभायमान है , उन रघु वंश के वंशज श्री राम को लक्ष्मण सहित नमस्कार है ।
इमानि पञ्चरत्नानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
सर्वपाप विनिर्मुक्तः स याति परमां गतिम् ॥६॥
इमानि पञ्चरत्नानि : ये पांच रत्न (ये पांच श्लोक)
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः : जो व्यक्ति तीनों संध्याओं (सुबह, दोपहर, शाम) में पढ़ता है
सर्वपाप विनिर्मुक्तः : वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है
स याति परमां गतिम् : वह परम गति (मोक्ष) को प्राप्त होता है
जो व्यक्ति तीनों संध्याओं (सुबह, दोपहर, शाम) में ये पांच रत्न (ये पांच श्लोक) पढ़ता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और परम गति (मोक्ष) को प्राप्त होता है।
Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:
For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:
Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks
For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers & Pinterest Stories:
Follow on Pinterest: The Spiritual Talks
For any query contact on:
E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com