Shri Vishnu Shatpadi Stotra | विष्णुषट्पदी | श्री विष्णु षट्पदीस्त्रोतम् – Shri Vishnu Shatpadi Stotra | विष्णु षट्पदी स्तोत्र | षट्पदी हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित | Shatpadi Lyrics in Sanskrit Hindi English | Vishnu Shatpadi Stotram Lyrics in Hindi With Meaning | विष्णु षट्पदी स्तोत्रम् | Vishnu Shatpadi Sanskrit Lyrics | Shatpadi-STOTRAM- श्रीविष्णुषट्पदी | Vishnu Shatpadi | विष्णु षट्पदी| श्री विष्णु षट्पदी स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | शंकराचार्य द्वारा रचित श्री विष्णु षट्पदी स्तोत्र
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विष्णुषट्पदी
अविनयमपनय विष्णो दमय मनः शमय विषयमृगतृष्णां ।
भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरतः ॥ १॥
हे भगवान विष्णु , कृपया मेरी उद्दण्ता दूर करिये ,
मेरे मन का दमन कीजिये ( मेरे मन को शांति से भर दें ) ,
सांसारिक विषयों ( भौतिक इच्छाओं और सांसारिक सुखों की वस्तुओं ) की मृगतृष्णा को समाप्त करें ,
सभी प्राणियों के प्रति मेरे मन में दया भाव की वृद्धि करें ,
और मुझे संसार के इस भवसागर को पार करने में सहायता करें। || 1 ||
Oh my lord Vishnu, please drive away my pride and immodesty ,
Make my entire mind filled with peace,
Dispel the mirage of objects of worldly pleasures and illusionary worldly desires
Expand my mind with compassion for all beings,
And help me cross, this ocean of worldly existence. || 1 ||
दिव्यधुनीमकरन्दे परिमलपरिभोगसच्चिदानन्दे ।
श्रीपतिपदारविन्दे भवभयखेदच्छिदे वन्दे ॥ २॥
मैं भगवान लक्ष्मीपति के उन चरण कमलों की वंदना करता हूं,
जिनका मकरंद गंगा के समान है ,
जिनका सौरभ अथवा सुगंध सच्चिदानंद है ,
और जो इस संसार रुपी भवसागर के भय और दुःख को काट देते हैं || 2 ||
I bow at the lotus-like feet of Vishnu ( Lord of Lakshami ),
Whose nectar is similar to holy Ganga ,
Which are filled with the divine fragrance of eternal happiness. ,
And which cut off the fears and sorrows of ocean of worldly existence || 2 ||
सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाहं न मामकीनस्त्वं ।
सामुद्रो हि तरङ्गः क्वचन समुद्रो न तारङ्गः ॥ ३॥
हे नाथ ! ( मुझमें और आपमें ) भेद न होने पर भी ,
मैं ही आपका हूँ , आप मेरे नहीं ।
क्योंकि तरंग ही समुद्र की होती है , तरंग का समुद्र कहीं नहीं होता है। || 3 ||
Oh Protector ! Even with the difference ( between you and me ) passing off,
I become yours but you do not become mine,
Indeed ( there is no difference between the waves and the ocean ) the wave belongs to the ocean but never or nowhere does an ocean belongs to the wave || 3 ||
उद्धृतनग नगभिदनुज दनुजकुलामित्र मित्रशशिदृष्टे ।
दृष्टे भवति प्रभवति न भवति किं भवतिरस्कारः ॥ ४॥
हे गोवर्धन धारण करने वाले !
हे इन्द्र के अनुज (वामन) !
हे राक्षस कुल के शत्रु !
हे सूर्य – चंद्र रुपी नेत्र वाले ,
हे सर्वशक्तिमान प्रभो ! क्या आपके एक बार दर्शन हो जाने मात्र से इस संसार के प्रति उपेक्षा नहीं हो जाती है?
और क्या ऐसा कुछ है जो होना बाकी रह जाता है || 4 ||
O Lord ! who lifted the mountain,
O younger brother of the mountain-breaker ( Indra ),
O enemy of the demons clan,
And who has the sun and moon as His eyes
O mighty Lord ! Doesn’t the mere sight of you lead to neglect of this world?
Once You are seen is there anything that will remain to happen?|| 4 ||
मत्स्यादिभिरवतारैरवतारवताऽवता सदा वसुधां ।
परमेश्वर परिपाल्यो भवता भवतापभीतोऽहं ॥ ५॥
हे परमेश्वर ! मत्स्यादि अवतारों से अवतरित होकर पृथ्वी की सर्वदा रक्षा करने वाले आपके द्वारा संसार के त्रिविध तापों से भयभीत हुआ मैं रक्षा करने के योग्य हूँ ।।5।।
O Supreme Lord ! I am frightened by the sufferings caused by birth ( Samsara ) . I must be saved by You , who has been coming down on earth in the form of incarnations as fish etc. to always protect the Earth. 5
दामोदर गुणमन्दिर सुन्दरवदनारविन्द गोविन्द ।
भवजलधिमथनमन्दर परमं दरमपनय त्वं मे ॥ ६॥
हे गुणमन्दिर दामोदर ! हे मनोहर मुखारविंद गोविन्द ! हे संसारसमुद्र का मंथन करने के लिए मंदराचल रूप ! मेरे महान भय को आप दूर कीजिये ।।6।।
O Lord ! with the ( mark of ) binding rope on Your belly ! O abode of all auspicious qualities ! O charming Lord of lotus like face ! O Govinda ! Who is the caretaker of all beings ! O Lord who is the very Mandara mountain in the matter of churning the ocean of Samsara ( worldly life ) ! Please remove my greatest dread. 6
नारायण करुणामय शरणं करवाणि तावकौ चरणौ ।
इति षट्पदी मदीये वदनसरोजे सदा वसतु ॥ ७॥
हे करुणामय नारायण ! मैं सब प्रकार से आपके चरणों की शरण लूँ। यह पूर्वोक्त षट्पदी ( छः पदों की स्तुतिरूपिणी भ्रमरी ) सर्वदा मेरे मुख कमल में निवास करे ।।7।।
May the combination of the six words ( the honey bee ) revel for ever in my lotus mouth . ( May this prayer – ” Oh Narayan ! O Merciful One ! let me resort to your two feet as my refuge ” ever revolve in my mouth . 7
॥ इति श्रीमद् शङ्कराचार्यविरचितं विष्णुषट्पदीस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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