ramcharitmanas

रामचरित मानस अर्थ सहित | Ramcharit Manas | रामचरितमानस | Ramcharitmanas| तुलसीदास रचित रामचरितमानस| Tulsidas by Ramcharitmanas| Ramayan| रामायण | अयोध्याकाण्ड | बालकाण्ड | किष्किन्धाकाण्ड | सुन्दरकाण्ड | लंकाकाण्ड | उत्तरकाण्ड | Ayodhyakand | Baalkand| Sundarkand| Uttarkand | Lankakand| Kishkindhakand| Lord Ram

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

 

 

ramcharitmans by tulsidas

 

 

रामचरित मानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य है जो कि अवधी भाषा में रचित प्रभु श्री रामचंद्र जी की जीवन गाथा है । इसमें गोस्वामी जी ने दोहे , चौपाइयां और सोरठे के रूप में प्रभु की महिमा को गाया गाया है ।

 

इसे सामान्यतः ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ या ‘ रामायण ‘ भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है।

 

रामचरितमानस प्रभु श्री राम की जीवन गाथा है जो कि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान है । रामचरित मानस में प्रभु ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में अवतार लिया और सम्पूर्ण मानव समाज को ये सिखाया कि जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों। 

 

तुलसी के राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है।

 

स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) किया था। रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था। 

 

रामचरितमानस को गोस्वामी जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड। आप इसे जितना ज्यादा पढ़ोगे उतना ही रस मिलता है ।

 

यह बात उस समय की है जब मनु और सतरूपा परमब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। कई वर्ष तपस्या करने के बाद शंकरजी ने स्वयं पार्वती से कहा कि ब्रह्मा, विष्णु और मैं कई बार मनु सतरूपा के पास वर देने के लिये आये (“बिधि हरि हर तप देखि अपारा, मनु समीप आये बहु बारा”) और कहा कि जो वर तुम माँगना चाहते हो माँग लो; पर मनु सतरूपा को तो पुत्र रूप में स्वयं परमब्रह्म को ही माँगना था, फिर ये कैसे उनसे यानी शंकर, ब्रह्मा और विष्णु से वर माँगते? हमारे प्रभु राम तो सर्वज्ञ हैं। वे भक्त के ह्रदय की अभिलाषा को स्वत: ही जान लेते हैं। जब २३ हजार वर्ष और बीत गये तो प्रभु राम के द्वारा आकाशवाणी होती है-

प्रभु सर्वग्य दास निज जानी, गति अनन्य तापस नृप रानी।
माँगु माँगु बरु भइ नभ बानी, परम गँभीर कृपामृत सानी॥

 

इस आकाशवाणी को जब मनु सतरूपा सुनते हैं तो उनका ह्रदय प्रफुल्लित हो उठता है और जब स्वयं परमब्रह्म राम प्रकट होते हैं तो उनकी स्तुति करते हुए मनु और सतरूपा कहते हैं-

 

“सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू, बिधि हरि हर बंदित पद रेनू।

सेवत सुलभ सकल सुखदायक, प्रणतपाल सचराचर नायक॥”

 

अर्थात् जिनके चरणों की वन्दना विधि, हरि और हर यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही करते है, तथा जिनके स्वरूप की प्रशंसा सगुण और निर्गुण दोनों करते हैं: उनसे वे क्या वर माँगें?

 

इस बात का उल्लेख करके तुलसीदास ने उन लोगों को भी राम की ही आराधना करने की सलाह दी है जो केवल निराकार को ही परमब्रह्म मानते हैं।

 

पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, गुरुधर्म, शिष्यधर्म, भ्रातृधर्म, मित्रधर्म, पतिधर्म, पत्नीधर्म, शत्रुधर्म प्रभृति जागतिक सम्बन्धों के विश्लेषण के साथ ही साथ सेवक-सेव्य, पूजक-पूज्य, एवं आराधक-आर्राध्य के आचरणीय कर्तव्यों का सांगोपांग वर्णन इस ग्रन्थ में प्राप्त होता है। इसीलिए स्त्री-पुरुष आवृद्ध-बाल-युवा निर्धन, धनी, शिक्षित, अशिक्षित, गृहस्थ, संन्यासी सभी इस ग्रन्थ रत्न का आदरपूर्वक परायण करते हैं।

 

तुलसीदासजी ने रामचरित मानस की रचना भगवान शिव के आदेश पर की थी । शास्त्रों के अनुसार, तुलसीदासजी दिन हो या रात प्रभु राम का भजन करते रहते थे । एक रात जब वह भजन करके सो रहे थे , तो उन्हें सपना आया । सपने में भगवान शिव ने उन्हें आदेश दिया कि आप भगवान राम पर एक महाकाव्य की रचना करिये । इस सपने को देखने के बाद तुलसीदास जी की नींद टूट गयी और सामने शिव जी और पार्वती माँ को देखा । भगवान शिव ने कहा कि तुम अयोध्या जाकर उस महाकाव्य की रचना करो । मेरा आशीर्वाद सदैव आपके साथ रहेगा । वह महाकाव्य सामवेद की तरह फलीभूत होगा । कलयुग में भक्तजन उस महाकाव्य को पढ़ कर मोक्ष की प्राप्ति करेंगे । भगवान् शिव का आदेश पाकर तुलसीदास जी अयोध्या चले गए । तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में सम्वत 1631 में रामनवमी के दिन किया उस दिन वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में राम अवतार के समय था । 

 

 

Baalkand Ramcharitmanas with hindi meaning

 

Ayodhyakand Ramcharitmanas

 

 

Aranyakand Ramcharitmanas Hindi

 

 

Kishkindhakand Ramcharitmanas

 

 

Sundarkand Ramcharitmanas with meaning

 

Lanka Kand Ramcharitmanas

 

 

Ramcharitmanas Uttarkand with meaning

 

 

 

 

 

Be a part of this Spiritual family by visiting more spiritual articles on:

The Spiritual Talks

 

For more divine and soulful mantras, bhajan and hymns:

Subscribe on Youtube: The Spiritual Talks

 

For Spiritual quotes , Divine images and wallpapers  & Pinterest Stories:

Follow on Pinterest: The Spiritual Talks

 

For any query contact on:

E-mail id: thespiritualtalks01@gmail.com

 

 

 

 

 

 

 

By spiritual talks

Welcome to the spiritual platform to find your true self, to recognize your soul purpose, to discover your life path, to acquire your inner wisdom, to obtain your mental tranquility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!