उन्नीसवाँ अध्याय
Nineteenth chapter
जनक उवाच–
तत्त्वविज्ञानसन्दंश–मादाय हृदयोदरात्।
ना नाविधपरामर्श–शल्योद्धारः कृतो मया॥१९.१॥
राजा जनक कहते हैं – तत्त्व–विज्ञान की चिमटी द्वारा विभिन्न प्रकार के सुझावों रूपी काँटों को मेरे द्वारा हृदय के आन्तरिक भागों से निकाला गया ॥१॥
क्व धर्मः क्व च वा कामः क्व चार्थः क्व विवेकिता।
क्व द्वैतं क्व च वाऽद्वैतं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९.२॥
अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या धर्म है और क्या काम है, क्या अर्थ है और क्या विवेक है, क्या द्वैत है और क्या अद्वैत है?॥२॥
क्व भूतं क्व भविष्यद् वा वर्तमानमपि क्व वा।
क्व देशः क्व च वा नित्यं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९.३॥
अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या अतीत है और क्या भविष्य है और क्या वर्तमान ही है, क्या देश है और क्या काल है? ॥३॥
क्व चात्मा क्व च वानात्मा क्व शुभं क्वाशुभं त था।
क्व चिन्ता क्व च वाचिन्ता स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९.४॥
अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या आत्मा है और क्या अनात्मा है तथा क्या शुभ और क्या अशुभ है, क्या विचारयुक्त होना है और क्या निर्विचार होना है? ॥४॥
क्व स्वप्नः क्व सुषुप्तिर्वा क्व च जागरणं तथा।
क्व तुरियं भयं वापि स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९.५॥
अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या स्वप्न है और क्या सुषुप्ति तथा क्या जागरण है और क्या तुरीय अवस्था है अथवा क्या भय ही है ? ॥५॥
क्व दूरं क्व समीपं वा बाह्यं क्वाभ्यन्तरं क्व वा।
क्व स्थूलं क्व च वा सूक्ष्मं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९.६॥
अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या दूर है और क्या पास है तथा क्या बाह्य है और क्या आतंरिक है, क्या स्थूल है और क्या सूक्ष्म है ? ॥६॥
क्व मृत्युर्जीवितं वा क्व लोकाः क्वास्य क्व लौकिकं।
क्व लयः क्व समाधिर्वा स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९.७॥
अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या मृत्यु है और क्या जीवन है तथा क्या लौकिक है और क्या पारलौकिक है, क्या लय है और क्या समाधि है ? ॥७॥
अलं त्रिवर्गकथया योगस्य कथयाप्यलं।
अलं विज्ञानकथया विश्रान्तस्य ममात्मनि॥१९.८॥
अपनी आत्मा में नित्य स्थित मेरे लिए जीवन के तीन उद्देश्य निरर्थक हैं, योग पर चर्चा अनावश्यक है और विज्ञान का वर्णन अनावश्यक है ॥८॥