जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश।
तन–मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।
शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं, और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा। जिसे अपने तन मन की की ही सुधि – बूधी नहीं हैं, उसको क्या उपदेश किया?
जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश।
तन–मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।
शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं, और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा। जिसे अपने तन मन की की ही सुधि – बूधी नहीं हैं, उसको क्या उपदेश किया?
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