जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांहि।।
जब अंहकार रूपी मैं मेरे अन्दर समाया हुआ था तब मुझे गुरू नहीं मिले थे, अब गुरू मिल गये और उनका प्रेम रस प्राप्त होते ही मेरा अंहकार नष्ट हो गया। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि इसमें एक साथ दो नहीं समा सकते अर्थात् गुरू के रहते हुए अंहकार नहीं उत्पन्न हो सकता।