जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।
जिस मनुष्य के हृदय में प्रेम की लगन नहीं है, उसका हृदय श्मशान के समान सूना है और वह स्वयं जीते जी मृतक के समान है। जिस प्रकार लोहार की धोंकनी निर्जीव खाल होने पर भी साँस लेती है। वैसे ही प्रेम से हीन मनुष्य भी देखने में निस्सन्देह साँस लेता, चलता फिरता और काम काज करता दिखायी देता है किन्तु वस्तुतः वह मृतक ही है। जिस इंसान के अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है।