श्रीरामरक्षास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित| श्रीरामरक्षा स्तोत्र से प्रसन्न होते हैं भगवान राम और करते हैं रक्षा| राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से होगी धन की वर्षा, जानें इसका महत्व |Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | राम रक्षा स्तोत्र : धन व समृद्धि के लिए करें राम रक्षा स्तोत्र | श्रीरामरक्षास्तोत्र | Shri Ram Raksha Stotram-श्रीरामरक्षास्तोत्रम || मंत्र: श्री राम रक्षा स्तोत्रम् – Mantra: Shri Ram Raksha Stotram| Ram Raksha Stotra राम रक्षा स्तोत्र: भगवान राम को प्रसन्न करने के लिए करें इसका पाठ | राम रक्षा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | Ram Raksha Stotra Hindi| श्री राम रक्षा स्तोत्र – Shri Ram Raksha Stotra|Ram Raksha Stotra | Ramraksha Stotra| राम रक्षा स्तोत्र लिरिक्स | Ram Raksha Stotra Lyrics| श्री राम रक्षा स्तोत्र – एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र| श्रीरामरक्षास्तोत्रम् लिरिक्स Ramraksha Stotra Lyrics| | Ram Raksha Stotra In Hindi | राम रक्षा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
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श्री राम रक्षा स्तोत्र के लाभ
श्री राम रक्षा स्तोत्र सुनने तथा पाठ करने से सभी प्रकार की आपदाओं और संकटों से रक्षा होती है तथा सभी प्रकार की सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है । व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है । रामरक्षास्तोत्र का जप करने वाले व्यक्ति को मृत्यु का , यमदूतों का कोई भय नहीं रहता। वह सभी प्रकार की अकाल मृत्यु , भूत प्रेत , पिशाच , ऊपरी बाधाओं , टोने टोटकों , काळा जादू , नजर दोष , तंत्र मंत्र आदि बाधाओं से सुरक्षित रहता है । भगवन राम और हनुमान जी सदा उस व्यक्ति की रक्षा करते हैं जो इस सुरक्षा कवच रुपी स्तोत्र का रोज पाठ करता या सुनता है । भगवान श्री राम का आशीर्वाद मिलने से व्यक्ति को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। श्री राम रक्षा स्तोत्र से प्रभु श्रीराम के साथ हनुमान जी की भी कृपा बनी रहती है।
‘ रामरक्षाकवच ‘ की सिद्धि की विधि
नवरात्र में प्रतिदिन नौ दिनों तक ब्रह्म मुहूर्त में नित्य कर्म तथा स्नानादि से निवृत्त हो कर शुद्ध वस्त्र धारण कर कुशा के आसान पर सुखासन में बैठ जाएं भगवान राम के कल्याणकारी स्वरूप में चित्त को एकाग्र करके इस महँ फलदायी स्तोत्र का काम से काम ग्यारह बार और यदि न हो सके तो सात बार नियमित रूप से प्रतिदिन पाठ करें । पाठ करने वाले की श्रीराम की शक्तियों के प्रति जितनी अखंड श्रद्धा होगी उतना ही फल प्राप्त होगा । पूर्ण शांति और विश्वास से इसका जाप होना चाहिए यहाँ तक की यह कंठस्थ हो जाये ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्र जपे विनियोग: ॥
इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |
॥ अथ ध्यानम् ॥
।।ध्यानम।।
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
ध्यान करिये – जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें ।
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं । उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है ।।1।।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
जो नीलकमल के सामान श्याम वर्ण , कमलनयन , जटाओं के मुकुट से सुशोभित , हाथों में खड्ग , तूणीर , धनुष और बाण धारण करने वाले , राक्षसों के संहारकारी तथा संसार की रक्षा करने के लिए अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं , उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान राम और जानकी सहित लक्ष्मण जी सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षा का पाठ करे । मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज रक्षा करें ।।2-4।।
Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र
Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
कौशल्यानंदन नेत्रों की रक्षा करें , विश्वामित्रप्रिय कानों को सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक घ्राण की और सौमित्रिवत्सल (सुमित्रा के पुत्र) मुख की रक्षा करें।।5।।
जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
मेरी जिह्वा की विद्यानिधि , कण्ठ की भरतवंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की भग्नेशकार्मुक ( महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले ) रक्षा करें ।।6।।
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
हाथों की सीतापति , हृदय की जमदग्न्यजित ( जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम को जीतने वाले ) , मध्य भाग की खरध्वंसी ( खर नाम के राक्षस का नाश करने वाले ) और नाभि की जाम्बवदाश्रय ( जाम्बवान के आश्रयस्वरूप ) रक्षा करें ।।7।।
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
कमर की सुग्रीवेश ( सुग्रीव के स्वामी ) , सख्तियों ( कूल्हों ) की हनुमत्प्रभु ( हनुमान के प्रभु ) और उरुओं की राक्षसकुल विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ।।8।।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ विभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
जानुओं की सेतुकृत ( सेतु का निर्माण करने वाले ), जंघाओं की दशमुखान्तक ( दस मुखी रावण को मरने वाले ) , चरणों की विभीषणश्रीद ( विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले ) और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें ।।9।।
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
जो पुण्यवान पुरुष रामबल से संपन्न इस रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है।।10।।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और जो छद्म वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं सकते ।।11।।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
‘राम’ , ‘रामभद्र’ तथा ‘रामचंद्र’ – इन नामों का स्मरण करने से रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।।12।।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धयः ॥१३॥
जो पुरुष जगत को विजय करने वाला एकमात्र मंत्र राम नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कण्ठ में धारण करता है ( अर्थात इसे कंठस्थ कर लेता है ) , सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं ।।13।।
Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सर्वत्र जय और मंगल की ही प्राप्ति होती है ।।14।।
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
श्रीशंकर ने रात्रि के समय स्वप्न में इस रामरक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था , उसी प्रकार प्रातः काल जागने पर बुध कौशिक ऋषि ने इसे लिख दिया ।।15।।
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
जो मानो कल्प वृक्षों के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अंत करने वाले हैं , जो तीनों लोकों में परम सुंदर हैं, वे श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।।16।।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
जो तरुण अवस्था वाले , रूपवान , सुकुमार, महाबली , कमल के समान विशाल नेत्रों वाले , चीरवस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी , फल – मूल आहार करने वाले , संयमी , तपस्वी , ब्रह्मचारी , सम्पूर्ण जीवों को शरण देने वाले , समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसकुल का नाश करने वाले हैं , वे रघुश्रेष्ठ दशरथ कुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।।17-19।।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा है , जो बाण का स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिए हुए हैं , वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मार्ग में सदा ही मेरे आगे चलें ।।20।।
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथान्नश्च राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
सर्वदा उद्यत , कवचधारी, हाथ में खड्ग लिए , धनुष-बाण धारण किये तथा युवा अवस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण जी सहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथों की रक्षा करें ।।21।।
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
( भगवान् का कथन है कि ) राम, दाशरथी, शूर, लक्षमणानुचर , बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघूत्तम , वेदान्तवेद्य, यज्ञेश , पुराणपुरूषोतम , जानकीवल्लभ, श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम – इन नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेधयज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है । इसमें कोई संशय या संदेह नहीं है ।।22-24।।
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
जो लोग दूर्वादल के समान श्यामवर्ण, कमलनयन एवं पीतांबरधारी भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं , वे संसारचक्र में नहीं पड़ते ।।25।।
Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र
रामं लक्षमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथ तनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
लक्ष्मणजी के पूर्वज , रघुकुल में श्रेष्ठ , सीताजी के स्वामी , अतिसुन्दर , ककुत्स्थकुलनंदन , करुणासागर , गुणनिधान , ब्राह्मण भक्त , परम धार्मिक , राजराजेश्वर , सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, श्याम और शांतमूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुलतिलक , राघव और रावणारि ( रावण के शत्रु ) भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ ।।26।।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधातृस्वरूप , रघुनाथ, प्रभु सीतापति को नमस्कार करता हूँ ।।27।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान् राम! हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइए ।।28।।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं श्रीरामचंद्रज के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ , श्रीरामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों को सिर झुका कर प्रणाम करता हूँ तथा श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ ।।29।।
माता रामो मत्पिता राम चंद्रः ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
राम मेरी माता हैं , राम मेरे पिता हैं , राम मेरे स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं । दयामय रामचंद्र ही मेरे सर्वस्व हैं। उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानता- बिलकुल नहीं जानता ।।30।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
जिनकी दाईं और लक्ष्मणजी, बायीं और जानकीजी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं, उन रघुनाथजी की वंदना करता हूँ ।।31।।
लोकाभिरामं रणरङ्ग धीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर , रणक्रीड़ा में धीर, कमलनयन , रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणा के भण्डार हैं उन श्रीरामचंद्र की मैं शरण लेता हूँ ।।32।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
जिनकी मन के समान गति है और वायु के समान वेग है , जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं उन पवननन्दन वानराग्रगण्य ( वानरों के समूह के मुख्य और अग्रणी ) श्रीरामदूत ( हनुमान जी ) की मैं शरण लेता हूँ ।।33।।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ इस मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकिरुप कोकिल ( कोयल ) की मैं वंदना करता हूँ ।।34।।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की संपत्ति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवन राम को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ ।। 35
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
‘राम-राम’ ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालने वाला , समस्त सुख – संपत्ति की प्राप्ति करने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करने वाला है ।।36।।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ । सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ । श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ । मैं हमेशा श्रीराम में ही लीन रहूँ । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें ।।37।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शिव पार्वती से बोले -) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं अर्थात विष्णु जी के 1000 नामों के बराबर एक राम नाम है । मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ ।
Ram Raksha Stotra-श्रीरामरक्षास्तोत्र
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
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