Radha Kripa Kataksh Stotra Hindi Lyrics & meaning | Radha Kripa Kataksh Stotra Hindi Lyrics with meaning | राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र हिंदी में अर्थ सहित | Radha Kripa Kataksh Stotra| Radha Kripa Kataksh Stotra Hindi Lyrics | Radha Stotra | Radha Stuti |राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र – भगवान शंकर जी द्वारा रचित | भगवान शंकर द्वारा रचित श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र | Shri Radha Kripa Kataksh Stotra | श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र | श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र हिंदी लिरिक्स | Radha Kripa Kataksha Stotra composed by Lord Shiva | मुनीन्द्र वृन्द वन्दिते त्रिलोक शोक हारिणि | राधा साध्यम साधनं यस्य राधा | Munindra Vrind Vandite Trilok Shok Haarini
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श्री राधा कृपा कटाक्ष श्री राधारानी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव द्वारा लिखित भजन या प्रार्थना है। भगवान शिव ने उर्ध्वमनाय-तंत्र नामक तंत्र में पार्वती माता से यह प्रार्थना बोली गयी है।
Radha Kripa Kataksh Stotra
“राधा साध्यम साधनं यस्य राधा,
मंत्रो राधा मन्त्र दात्री च राधाl
सर्वं राधा जीवनम् यस्य राधा,
राधा राधा वाचि किम तस्य शेषम ll”
“राधा” साध्य है उनको पाने का साधन भी राधा नाम ही है। मन्त्र भी राधा है और मन्त्र देने वाली गुरु भी स्वयं राधा जी ही है । सब कुछ राधा नाम में ही समाया हुआ है और सबका जीवन प्राण भी राधा ही है । राधा नाम के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड में शेष बचता क्या है?
मुनीन्द्र वृन्द वन्दिते त्रिलोक शोक हारिणि
प्रसन्न वक्त्र पंकजे निकुञ्ज भू विलासिनि
व्रजेन्द्र भानु नन्दिनि व्रजेन्द्र सूनु संगते
कदा करिष्य सीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥१॥
समस्त मुनिगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं, आप प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली हैं, आप धरा पर निकुंज में विलास करने वाली हैं। आप राजा वृषभानु की राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द किशोर श्री कृष्ण की चिरसंगिनी है, हे जगज्जननी श्रीराधे माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।1।।
Radha Kripa Kataksh Stotra
Radha Kripa Kataksh Stotra
अशोक वृक्ष वल्लरी वितान मण्डप स्थिते
प्रवाल ज्वाल पल्लव प्रभारुणांघ्रि कोमले ।
वरा भयस्फुरत्करे प्रभूत सम्पदालये
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥२॥
आप अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए मंदिर में विराजमान हैं, आप सूर्य की प्रचंड अग्नि की लाल ज्वालाओं के समान कोमल चरणों वाली हैं, आप भक्तों को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के लिए सदैव उत्सुक रहने वाली हैं। आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं, आप अपार ऐश्वर्य की भंङार स्वामिनी हैं, हे सर्वेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।2।।
अनङ्ग-रंग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः ।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥३॥
रास क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी से आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहज कटाक्ष रूपी वाणों की वर्षा करती रहती हैं। आप श्री नन्दकिशोर को निरंतर अपने बस में किये रहती हैं, हे जगज्जननी वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।3।।
तडित् सुवर्ण चम्पक प्रदीप्त गौर विग्रहे
मुख प्रभा परास्त कोटि शारदेन्दु मण्डले ।
विचित्र चित्र सञ्चरच्चकोर शाव लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥४॥
आप बिजली के सदृश, स्वर्ण तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी आभा वाली हैं, आप दीपक के समान गोरे अंगों वाली हैं, आप अपने मुखारविंद की चाँदनी से शरद पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं। आपके नेत्र पल-पल में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर शिशु के समान हैं, हे वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।४।।
मदोन्मदाति यौवने प्रमोद मान मण्डिते
प्रियानुराग रञ्जिते कला विलास पण्डिते ।
अनन्यधन्य कुञ्ज राज्य काम केलि कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥५॥
आप अपने चिर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली है, आनंद से पूरित मन ही आपका सर्वोत्तम आभूषण है, आप अपने प्रियतम के अनुराग में रंगी हुई विलासपूर्ण कला पारंगत हैं। आप अपने अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंज-राज के प्रेम क्रीड़ा की विधा में भी प्रवीण हैं, हे निकुँजेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।५।।
अशेष हाव भाव धीर हीर हार भूषिते
प्रभूत शात कुम्भ कुम्भ कुम्भि कुम्भ सुस्तनि ।
प्रशस्त मन्द हास्य चूर्ण पूर्ण सौख्य सागरे
कदा करिष्य सीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥६॥
आप संपूर्ण हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से परिपूर्ण हैं, आप धीरज रूपी हीरों के हारों से विभूषित हैं, आप शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान अंगो वाली है, आपके पयोंधर स्वर्ण कलशों के समान मनोहर हैं। आपकी मंद-मंद मधुर मुस्कान सागर के समान आनन्द प्रदान करने वाली है, हे कृष्णप्रिया माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।6।।
मृणाल वाल वल्लरी तरङ्ग रङ्ग दोर्लते
लताग्र लास्य लोल नील लोचनाव लोकने ।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥७॥
जल की लहरों से कम्पित हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी सुकोमल भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता के अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं। सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मुग्ध होकर आपके मिलन के लिये आतुर रहते हैं ऎसे मनमोहन को आप आश्रय देने वाली हैं, हे वृषभानुनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।7।।
सुवर्ण सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेख कम्बु कण्ठगे
त्रिसूत्र मङ्गली गुण त्रिरत्न दीप्ति दीधिति ।
सलोल नील कुन्तले प्रसून गुच्छ गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥८॥
आप स्वर्ण की मालाओं से विभूषित है, आप तीन रेखाओं युक्त शंख के समान सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृति के तीनों गुणों का मंगलसूत्र धारण किया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त संसार को प्रकाशमान कर रहा है। आपके काले घुंघराले केश दिव्य पुष्पों के गुच्छों से अलंकृत हैं, हे कीरतिनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।8।।
नितम्ब बिम्ब लम्ब मान पुष्प मेखला गुणे
प्रशस्त रत्न किङ्किणी कलाप मध्य मञ्जुले ।
करीन्द्र शुण्ड दण्डिका वरोह सौभ गोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥९॥
आपका उर भाग में फूलों की मालाओं से शोभायमान हैं, आपका मध्य भाग रत्नों से जड़ित स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित है। आपकी जंघायें हाथी की सूंड़ के समान अत्यन्त सुन्दर हैं, हे ब्रजनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।9।।
अनेक मन्त्र नाद मञ्जु नूपुरा रव स्खलत्
समाज राज हंस वंश निक्वणाति गौरवे ।
विलोल हेम वल्लरी विडम्बि चारु चङ्क्रमे
कदा करिष्य सीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥१०॥
आपके चरणों में स्वर्ण मण्डित नूपुर की सुमधुर ध्वनि अनेकों वेद मंत्रो के समान गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्वनि गूँजायमान हो रही है। आपके अंगों की छवि चलते हुए ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे स्वर्णलता लहरा रही है, हे जगदीश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।10।।
अनन्त कोटि विष्णु लोक नम्र पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा पुलोमजा विरिञ्चजा वरप्रदे ।
अपार सिद्धि वृद्धि दिग्ध सत्पदाङ्गुली नखे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥११॥
अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं, श्रीपार्वती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना कर वरदान पाया है। आपके चरण-कमलों की एक उंगली के नख का ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धि की प्राप्ति होती है, हे करूणामयी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? ।।11।।
मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद भारतीश्वरि प्रमाण शासनेश्वरि ।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥१२॥
आप सभी प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी हैं, आप संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी हैं, आप स्वधा देवी की स्वामिनी हैं, आप सब देवताओं की स्वामिनी हैं, आप तीनों वेदों की स्वामिनी है, आप संपूर्ण जगत पर शासन करने वाली हैं। आप रमा देवी की स्वामिनी हैं, आप क्षमा देवी की स्वामिनी हैं, आप आमोद-प्रमोद की स्वामिनी हैं, हे ब्रजेश्वरी! हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी श्रीराधिके! आपको मेरा बारंबार नमन है।।12।।
इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी
करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम् ।
भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप कर्म नाशनं
लभेत्तदा व्रजेन्द्र सूनु मण्डल प्रवेशनम् ॥१३॥
हे वृषभानु नंदिनी! मेरी इस निर्मल स्तुति को सुनकर सदैव के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि से कृतार्थ करने की कृपा करो। केवल आपकी दया से ही मेरे प्रारब्ध कर्मों, संचित कर्मों और क्रियामाण कर्मों का नाश हो सकेगा, आपकी कृपा से ही भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दिव्यधाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा ।।13।।
राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥१४॥
पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त इस-स्तोत्र का पाठ करेगा ।।14।।
यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥१५॥
वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होग अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्री राधाजी की दया दृष्टि से पराभक्ति प्राप्त होगी।।15।।
ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६॥
इस स्तोत्र से श्री राधा-कृष्ण का साक्षात्कार होता है, उसकी विधि इस प्रकार है कि (गोवर्धन पर्वत के निकट) श्री राधा कुण्ड के जल में जंघाओं तक या नाभि पर्यन्त या छाती तक या कण्ठ तक जल में खड़े होकर इस स्तोत्र का 100 बार पाठ करें।।16।।
तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७॥
इस प्रकार कुछ दिन पाठ करने पर सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। दर्शनार्थी भक्तों को इन्हीं से साक्षात् श्री राधा जी का दर्शन होता है।।17।।
तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८॥
श्री राधा जी प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक महान् वरदान देती हैं। (अथवा अपने चरणों का महावर (जावक) भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं) वरदान में केवल “अपनी प्रिय वस्तु दो” यही मांगना चाहिए। तब तत्काल ही श्याम सुन्दर प्रकट होकर दर्शन देते हैं।
नित्यलीला प्रवेशं च ददाति श्री व्रजाधिपः ।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९॥
प्रसन्न होकर श्री ब्रजराज कुमार नित्य लीलाओं में प्रवेश प्रदान करते हैं। इससे बढ़कर वैष्णवों के लिए कोई भी वस्तु नहीं है।
किसी-किसी को राधाकुण्ड के जल में 100 पाठ करने पर एक ही दिन में दर्शन हो जाता है। किसी-किसी को दो महीनों में होता है। इसलिए जब तक दर्शन न हों पाठ करते रहो। किसी-किसी को अपने घर में ही 100 पाठ नित्य प्रति करने से कुछ ही दिनों में इष्ट प्राप्ति हो जाती है।
॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥
इस प्रकार श्री उर्ध्वाम्नाय तंत्र का श्री राधिका कृपा कटाक्ष स्तोत्र पूरा हुआ।
राधा कृपा कटाक्ष के लाभ:-
जगत जननी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी शक्ति माना गया है। इसका मतलब है राधा के कारण श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं।पद्म पुराण में कहा गया है कि राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। महर्षि वेदव्यास ने लिखा है कि श्रीकृष्ण आत्माराम हैं और उनकी आत्मा राधा हैं।
राधा कृपा कटाक्ष के स्त्रोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से साधक को राधा रानी की असीम कृपा प्राप्त होती हैं। उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है और उसकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं।
यह श्री वृंदावन में सबसे प्रसिद्ध स्तोत्र है,जिसे कभी-कभी वृंदावन का राष्ट्रगान कहा जाता है। जो साधक पूर्णिमा के दिन,शुक्ल पक्ष की अष्टमी को,ढलते और घटते चन्द्रमाओं के दसवें,ग्यारहवें और तेरहवें दिन इस स्तोत्र का पाठ करता है,वह अपनी मनोकामनाओं का फल प्राप्त करता है और उसकी कृपा से श्री राधिका की करुणामयी पार्श्व दृष्टि,प्रेमा की विशेषता वाली भक्ति उनके हृदय में अंकुरित हो जाती है।
कुछ दिन पाठ करने पर सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। दर्शनार्थी भक्तों को इन्हीं से साक्षात् श्री राधा जी का दर्शन होता है।
प्रसन्न होकर श्री ब्रजराज कुमार नित्य लीलाओं में प्रवेश प्रदान करते हैं। इससे बढ़कर वैष्णवों के लिए कोई भी वस्तु नहीं है।
किसी-किसी को राधाकुण्ड के जल में 100 पाठ करने पर एक ही दिन में दर्शन हो जाता है। किसी-किसी को दो महीनों में होता है। इसलिए जब तक दर्शन न हों पाठ करते रहो। किसी-किसी को अपने घर में ही 100 पाठ नित्य प्रति करने से कुछ ही दिनों में इष्ट प्राप्ति हो जाती है।
श्री राधा जी प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक महान् वरदान देती हैं। (अथवा अपने चरणों का महावर (जावक) भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं) वरदान में केवल “अपनी प्रिय वस्तु दो” यही मांगना चाहिए। तब तत्काल ही श्याम सुन्दर प्रकट होकर दर्शन देते हैं।
इस स्तोत्र से श्री राधा-कृष्ण का साक्षात्कार होता है, उसकी विधि इस प्रकार है कि (गोवर्धन पर्वत के निकट) श्री राधा कुण्ड के जल में जंघाओं तक या नाभि पर्यन्त या छाती तक या कण्ठ तक जल में खड़े होकर इस स्तोत्र का 100 बार पाठ करें।
पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष की अष्टमी या दशमी को तथा दोनों की एकादशी और त्रयोदशी को जो शुद्ध बुद्धि वाला भक्त इस-स्तोत्र का पाठ करेगा वह जो भावना करेगा वही प्राप्त होग अन्यथा निष्काम भावना से पाठ करने पर श्री राधाजी की दया दृष्टि से पराभक्ति प्राप्त होगी।
Radha Kripa Kataksh Stotra
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