Shri Hari Nama Mala Stotra hindi lyrics| श्रीहरि नाममाला स्तोत्र हिंदी लिरिक्स | जन्म-मृत्यु के चक्र को मिटाने वाला श्रीहरि नाममाला स्तोत्र | Shri Hari nam mala strotra (श्री हरी नाम माला स्तोत्र) | श्री हरि नाम माला स्तोत्र ।। shri-hari-naam-mala-stotra | Sri Hari Nama Mala Stotram – श्री हरि नाममाला स्तोत्रम् | Shri Hari naam mala strotra | हरि नाम की महिमा| श्री हरि नाममाला स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित | राजा बलि द्वारा रचित श्री हरि नाम माला स्तोत्र | Shri Hari nama mala stotra composed by King Bali| हरि नाम माला स्तोत्र का फल | Shri Hari Nama Mala Stotra sanskrit lyrics| श्री हरि नाम माला संस्कृत लिरिक्स
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श्री हरि ही समस्त चराचर जगत के स्वामी है। श्री हरि के नाम जप से जीव के समस्त पाप धुल जाते हैं तथा उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है और अंत समय में मृत्यु पर्यन्त जीव को श्रीहरि के धाम बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। उनकी इच्छा मात्र से अनंत ब्रह्माण्डों का निर्माण होता है और इच्छा मात्र से ही अनंत ब्रह्माण्डों का विनाश होता है। श्री हरि नामा माला स्तोत्र की रचना राजा महाबली ने की थी। इस कलियुग में केवल भगवान् का नाम ही एक आधार है। मनुष्य का मन इस कलिकाल में भ्रम और संदेह से ग्रसित है , इसलिए मनुष्य शरीर से जीर्ण – शीर्ण , मन से विकारयुक्त और विषयों से आसक्त हो गया है तथा उसकी आत्मा विकलांग हो गयी है। मनुष्य को इस अस्वस्थता से उबारने के लिए भगवन्नाम ही एकमात्र रसायन है, फिर भी इस नाम-रसायन को छोड़कर मूढ़ मानव न जाने किन-किन औषधियों के पीछे भागता फिरता है। जिस हरिनाम के प्रभाव से द्रौपदीजी का वस्त्र अनन्त हो गया, जिस हरिनाम का पुत्र के स्नेहवश उच्चारण करके अजामिल दुर्लभ भगवत्-पद को प्राप्त हो गया, जिस नाम के प्रताप से नरसीजी के सभी कार्य बिना उद्योग के सिद्ध हो गए, जिस हरिनाम के प्रभाव से प्रह्लादजी हिरण्यकशिपु द्वारा दी गयी घोर विपत्तियों से मुक्त हो गए, जिस हरिनाम के जाप से कबीर और रैदास सिद्धों में परम सम्माननीय हो गए, जिस हरिनाम से जल में डूबता हुआ गजराज समस्त शोक से छूट गया, हे मनुष्य ! उस हरिनाम को छोड़कर तू किस प्रकार अपना कल्याण चाहता है? पृथ्वी पर जब-जब दुष्टों व दैत्यों के अत्याचारों में वृद्धि हुई है, तब-तब उनका संहार करके पृथ्वी का भार हरण करने एवं साधु-सन्तों का कल्याण और रक्षा करने हेतु भगवान विष्णु अवतार ग्रहण करते हैं। श्रीहरि अपने उपासकों के दु:ख-दारिद्रय एवं संकटों को दूर कर के उन्हें धन-धान्य, ऐश्वर्य तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। इसलिए जो लोग लौकिक सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ मोक्ष के भी इच्छुक हों, उन्हें भगवान विष्णु की उपासना करनी चाहिए।
हरि नाम की महिमा
भगवान विष्णु का एक-एक नाम सम्पूर्ण वेदों से भी अधिक महिमावान माना गया है। भगवान विष्णु का नाम मनुष्यों के पापों का नाश करता है , नए पुण्यों को जन्म देता है , भोगों से विरक्ति उत्पन्न कर गोविन्द के चरणों में भक्ति को बढ़ाता है और भगवान विष्णु के तत्त्व का बोध कराता है। भगवान विष्णु के संकीर्तन व स्तोत्र पाठ का विशेष महत्व है। इससे बुद्धि सदाचारी होकर मनुष्य को सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है। हरिनाम जन्म-मृत्युरूपी बीज को जलाकर मनुष्य को ब्रह्मानन्द में निमग्न कर देता है। जन्म-मृत्यु के घोर चक्र में पड़े जीव को भगवान की नाममाला का उच्चारण अवश्य करना चाहिए; क्योंकि भगवान और उनके नाम से स्वयं भय भी भयभीत रहता है। यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत, वेताल, डाकिनी आदि जो भी हिंसक भूतगण हैं, वे सब श्रीहरि नाम से भाग जाते हैं। अत: संसार में दु:ख भोग कर जो उससे विरक्त होना चाहते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की आराधना अवश्य करनी चाहिए। गूंगे से लेकर चाण्डाल तक इस नाममाला का पाठ कर सकते हैं।
भगवान श्रीहरि की नाममाला के महत्व को बताते हुए किसी भक्त ने क्या खूब कहा है–
हे ईश्वर ! आपकी नाममाला का उच्चारण करने की अभिलाषा करने मात्र से सम्पूर्ण पाप कांपने लग जाते हैं। प्राणियों के पाप-पुण्य के लेखक व यमराज के प्रधानमन्त्री श्रीचित्रगुप्त अपनी कलम को उठाते हुए आशंका करते हैं कि मैंने इस प्राणी का नाम तो पापियों की श्रेणी में लिख दिया है, परन्तु अब तो इसने नाममाला का आश्रय लिया है; अत: अब मुझे इसका नाम पापियों की श्रेणी से काट देना चाहिए; नहीं तो यमराजजी ही मुझ पर ही कहीं कुपित न हो जाएं क्योंकि यह मनुष्य तो अब अवश्य ही हरिधाम को जाएगा। श्रीहरिनाम माला का माहात्म्य इससे अधिक और क्या कहा जाए।
गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् ।
गोवर्धनोद्धरं धीरं तं वन्दे गोमतीप्रियम् ॥1॥
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् ।
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥2॥
पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् ।
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परमेश्वरम् ॥3॥
राघवं रामचन्द्रं च रावणारिं रमापतिम् ।
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥4॥
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥5॥
दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् ।
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥6॥
मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् ।
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥7॥
केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् ।
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौरवान्तकम् ॥8॥
भूधरं भुवनानन्दं भूतेशं भूतनायकम् ।
भावनैकं भुजंगेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥9॥
जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् ।
जामदग्न्यं परं ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥10॥
चतुर्भुजं चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् ।
चराचरगतं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥11॥
श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदम् ।
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥12॥
योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् ।
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुनायकम् ॥13॥
शालिग्रामशिलाशुद्धं शंखचक्रोपशोभितम् ।
सुरासुरैः सदा सेव्यं तं वन्दे साधुवल्लभम् ॥14॥
त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् ।
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥15॥
अनन्तमादिपुरुषं अच्युतं च वरप्रदम् ।
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥16॥
लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् ।
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्षमणप्रियम् ॥17॥
हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियम् ।
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥18॥
हरिनामकृतामाला पवित्रा पापनाशिनी ।
बलिराजेन्द्रेण चोक्त्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥19 ॥
॥ इति महाबलिप्रोक्तं श्रीहरि नाममाला स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥
श्रीहरि नाममाला स्तोत्र पाठ का फल
राजा महाबलि के द्वारा रचित भगवान विष्णु के पवित्र नामों की माला, जो मनुष्य कण्ठ में धारण कर लेता है, अर्थात् उठते, बैठते, सोते या काम करते समय भी पाठ करता रहता है; उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और समस्त लौकिक कामनाओं के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री हरि नाममाला स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित – The Spiritual Talks (the-spiritualtalks.com)
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