श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित | श्री वासुदेवानन्दसरस्वती द्वारा रचित श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र |
लक्ष्मीनारायणस्तोत्रम्
श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पथ करने से मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु जी की कृपा भी प्राप्त होती है । माँ लक्ष्मी जिस पर प्रसन्न हो जाती हैं उसे जीवन में किसी भी वस्तु की कमी नहीं होती है । अगर आप भी माता की कृपा चाहते हैं तो श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। कहते हैं कि केवल माँ लक्ष्मी की स्तुति करने से माँ सदा के लिए स्थायी रूप से नहीं आतीं और व्यक्ति लक्ष्मी का गलत उपयोग भी कर सकता है किन्तु जब माँ लक्ष्मी की स्तुति के साथ साथ उनके पति श्री नारायण की भी स्तुति की जाती है तो वे सदा के लिए नारायण संग उस घर में निवास करती हैं और व्यक्ति श्री नारायण की कृपा से सही दिशा में धन का सदुपयोग करता है । यह लक्ष्मी नारायण स्तोत्र श्री वासुदेवानन्द सरस्वती द्वारा रचित है ।
यह स्तोत्र भगवान विष्णु (नारायण) से प्रार्थना करता है कि वह अपने भक्तों की इच्छाएं पूरी करें और उन्हें जन्म-मृत्यु के संसार-सागर से मुक्ति प्रदान करें।
।। लक्ष्मीनारायणस्तोत्रम्।।
श्रीनिवास जगन्नाथ श्रीहरे भक्तवत्सल।
लक्ष्मीपते नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात्।।१।।
हे श्रीनिवास, हे जगन्नाथ, हे भक्तवत्सल श्रीहरि, हे लक्ष्मीपते! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे भगवान, मुझे संसार के सागर से बचाएं।
राधारमण गोविंद भक्तकामप्रपूरक
नारायण नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात्।।२।।
हे राधारमण! हे गोविंद! हे भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने वाले ! हे नारायण! आपको नमस्कार है; मुझे भवसागर से बचाएं।
दामोदर महोदार सर्वापत्तिनिवारण।
हृषीकेश नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात्।।३।।
जो दामोदर नाम वाले हैं , जो महान उदार हैं, जो सभी प्रकार की आपत्तियों का निवारण करते हैं। हे हृषीकेश (इंद्रियों के स्वामी, भगवान विष्णु) आपको नमस्कार है । हे प्रभु ! भवसागर (संसार के दुखों के सागर) से मेरी रक्षा करें (मुझे पार लगाएँ)।
गरुडध्वज वैकुंठनिवासिन्केशवाच्युत।
जनार्दन नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात्।।४।।
गरुड़ की ध्वजा वाले, वैकुंठ में निवास करने वाले, केशव और अच्युत, हे जनार्दन! तुम्हें नमस्कार है, मुझे जन्म-मृत्यु के भवसागर से बचाओ।
शंखचक्रगदापद्मधर श्रीवत्सलांछन।
मेघश्याम नमस्तुभ्यं त्राहि मां भवसागरात्।।५।।
शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाले, तथा श्रीवत्स चिह्न से युक्त, हे मेघ के समान श्याम वर्ण वाले भगवान, आपको नमस्कार है, मुझे इस भवसागर से बचाएं।
त्वं माता त्वं पिता बंधुः सद्गुरुस्त्वं दयानिधिः।
त्वत्तोsन्यो न परो देवस्त्राहि मां भवसागरात्।।६।।
हे ईश्वर, तुम ही मेरी माँ हो, तुम ही मेरे पिता हो, तुम ही मेरे भाई-बंधु हो, और तुम ही मेरे दयानिधि (करुणामय भंडार) हो, और तुम ही मेरे गुरु हो।हे प्रभु! आपके अलावा मेरा कोई दूसरा देव नहीं है, मुझे भवसागर (संसार के कष्टों के सागर) से बचाओ।
न जाने दानधर्मादि योगं यागं तपो जपम्।
त्वं केवलं कुरु दयां त्राहि मां भवसागरात्।।७।।
मैं दान, योग, यज्ञ , तप और जप नहीं जानता, बस हे स्वामी, आप मुझ पर दया करें और मुझे इस संसार रूपी सागर से पार लगाएँ।
न मत्समो यद्यपि पापकर्ता न त्वत्समोsथापि हि पापहर्ता।
विज्ञापितं त्वेतदशेषसाक्षिन् मामुद्धरार्तं पतितं तवाग्रे।।८।।
यद्यपि मेरे जैसा कोई पापी नहीं है तथापि तुम्हारे (ईश्वर) जैसा कोई पापहर्ता नहीं है। हे समस्त जगत के साक्षी! हे सब कुछ जानने वाले ईश्वर ! मैं आपसे विनती करता हूँ कि आपके चरणों में गिरे हुए मुझ पतित (पापी) का उद्धार करें।
।। इति श्री. प. श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीलक्ष्मीनारायणस्तोत्रम् संपूर्णम् ।।
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